हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 209 ☆ गीत – गिनती कर किससे क्या पाया? ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है गीत  गिनती कर किससे क्या पाया? …।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 209 ☆

☆ गीत – गिनती कर किससे क्या पाया?  ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

जो थक-चुका वृद्ध वह ही है

अपना मन अब भी जवान है

अगिन हौसले बहुत जान है…

*

जब तक श्वासा, तब तक आशा

पल में तोला, पल में माशा

कटु झट गुटको, बहुत देर तक

मुँह में घुलता रहे बताशा

खुश रहना, खुश रखना जाने

जो वह रवि सम भासमान है

उसका अपना आसमान है…

*

छोड़ बड़प्पन बनकर बच्चा

खुद को दे तू खुद ही गच्चा

मिले दिलासा झूठी भी तो

ले सहेज कह जुमला सच्चा

लेट बिछा धरती की चादर

आँख मुँदे गायब जहान है

आँख खुले जग भासमान है…

*

गिनती कर किससे क्या पाया?

जोड़ कहाँ क्या लुटा गँवाया?

भुला पहाड़ा संचय का मन

जोड़ा छूटा काम न आया

काम सभी कर फल-इच्छा बिन

भुला समस्या, समाधान है

गहन तिमिर ही नव विज्ञान है

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१.१०.२०२४

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि –शिल्पी ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – शिल्पी ? ?

?

पहले पूजता है उसे,

फिर अपनी मन्नत रखता है,

कमाल का शिल्पी है आदमी,

ज़रूरत के मुताबिक देवता गढ़ता है।

?

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 दीपावली निमित्त श्री लक्ष्मी-नारायण साधना,आश्विन पूर्णिमा (गुरुवार 17 अक्टूबर) को आरम्भ होकर धन त्रयोदशी (मंगलवार 29 अक्टूबर) तक चलेगी 💥

🕉️ इस साधना का मंत्र होगा- ॐ लक्ष्मी नारायण नम: 🕉️ 

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ मै… ☆ सुश्री अपर्णा परांजपे  ☆

सुश्री अपर्णा परांजपे 

? कविता – मै… – सुश्री अपर्णा परांजपे ? ?

?

मैने मेरे श्याम को

मेरे लिये लड़ते देखा है

मैने मेरे राम को

मेरे लिये लड़ते देखा है..

 

सुख मे तो समझा नही

पर संकट मे यह जाना है

मैने मेरे राम को

मेरे लिये लड़ते देखा है..

 

उसका सहारा पाकर ही

“मैंने” “मुझे” संभाला है

“मै” कुछ न कर सका

उसने ही उठाया है…

 

स्वयम् राम ही आते है

संकट बुरा कैसे बोलू?

राम न दिखे सुख मे

तो सुख अच्छा कैसे बोलू?

 

मुझे गोद मे बिठाकर

दुख पार किया मेरा

बिगडी हुयी नैया को

चलाकर साथ दिया मेरा..

 

सुख दुख के परे

मै भी हू यह जाना जब

राम श्याम, श्याम राम

सत्य यही मन मे बसा तब…

 

नासमझ मन को सुख का

आभास हुवा

समझ जब आ गयी

“रामरुप” स्पष्ट हुआ…

 

भीतर की आवाज को

जिस क्षण पहचाना मैने

मे तू है, तूही मै हूँ 

परम सत्य जाना मैने…

 

मान हो या अपमान

“मै” वो नही जो समझता था

इस सबसे उपर “मै”

मेरे ही भीतर का “श्याम” था…

 

जीवन का यही अनमोल क्षण

जिसमे था “राम ही राम”

वो ही तो सत्य है

मेरे हृदय का विश्राम…

 

भार मेरा खुद लेकर

“मुझे” स्वतंत्र किया

ऐसा यह राम मेरा

मुझे ही “उसमे” समा गया…

 

मेरा राम मेरा श्याम

ब्रह्मरूप सत्यता

दुःख निवृत्ती देना ही

जीवन की सिध्दता …

 

मैने मेरे श्याम को

मेरे लिये लड़ते देखा है

मैं ने मेरे राम को

मेरे लिये लड़ते देखा है…

?

 🙏 भगवंत हृदयस्थ हैं 🙏

चित्र गूगल से…

© सुश्री अपर्णा परांजपे

पुणे

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 506 ⇒ चैनसिंह का बगीचा ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है कविता – “चैनसिंह का बगीचा।)

?अभी अभी # 506 ⇒ चैनसिंह का बगीचा ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

नदी हमें नहीं बांटती

हम नदी को बांटते हैं

पानी में लकीर खींचते हैं

सरहद बनाते हैं ;

हमने धरती बांटी

अम्बर बांटा

समंदर बांटा

कभी मंदर तो कभी

हरमंदर बांटा ।

बस प्यार नहीं बांटा

नफरत और गुस्सा बांटा

थप्पड़ का जवाब चांटा

पत्थर का जवाब भाटा ;

भूल गए इंसानियत

फैलाई सिर्फ दहशत

नहीं सहमत,तो सह मत

जहां नहीं चैन,वहां रह मत ।।

हम इस पार और उस पार

को नहीं मानते

बस,आरपार को मानते हैं,

कभी खुद को खुदा और

गधे को रहनुमा मानते हैं;

वैसे तो हम बहुत जानते हैं

लेकिन सयानों की कभी,

बात नहीं मानते,

स्वार्थ,खुदगर्जी,अवसरवाद और मस्ती को ही

अपना आदर्श मानते हैं।

फिर भी हम इतने अच्छे

और लोग इतने बुरे क्यों हैं

यह भ्रम पालते हैं,

गाय तो पाल सकते नहीं

लेकिन इतने बड़े भक्त हैं कि,

स्वामिभक्ति के लिए कुत्ता पालते हैं ;

शासन ही अनुशासन

जिसकी लाठी,उसकी भैंस

पैसा फेंक,तमाशा देख,

दु:शासन गिन रहा अंतिम सांसें,सुशासन में चैन

फिर भी मूढ़मति

तेरा क्यूं मन बैचेन ।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 135 ☆ मुक्तक – ।।इसी धरती को ही स्वर्ग समान बनाना है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ “श्री हंस” साहित्य # 135 ☆

☆ मुक्तक – ।।इसी धरती को ही स्वर्ग समान बनाना है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

[1]

कुछ का नहीं सबका हालात बदलना है।

जीने का कुछ अंदाज ख्याल बदलना है।।

नईपीढ़ी को सौंपके जानी विरासत अच्छी।

दुनिया का यह बदहाल हाल बदलना है।।

[2]

हर समस्या का   कुछ   निदान   पाना है।

जन जन जीवन को    आसान बनाना है।।

बदलनी  पूरे समाज की सूरत और सीरत।

हर दिल से हर दिल का   तार  जुड़ाना है।।

[3]

शत्रु के नापाक इरादों पर   भी काबू पाना है।

उन्हें ध्वस्त करना  खुद को मजबूत बनाना है।।

दुनिया को देना है विश्व गुरु भारत का पैगाम।

शांति का संदेश सम्पूर्ण  संसार में फैलाना है।।

[4]

वसुधैव कुटुंबकम् सा यह   संसार बनाना है।

मानवता का सबको    ही प्रण   दिलाना है।।

नर नारायण सेवा का भाव है सब में जगाना।

इस धरा को ही  स्वर्ग से भी सुंदर बनाना है।।

[5]

जीवन शैली खान पान का  रखना है ध्यान।

आचरण वाणी को भी करना है मधु समान।।

प्रगति  प्रकृति मध्य रखना सामजस्य भाव।

विविधता में एकता   बनाना एक अभियान।।

[6]

माला में हर गिर   गया मोती  अब पिरोना है।

अब हर टूटा   छूटा   रिश्ता   पाना खोना है।।

आंख में आंसू  आए हर किसीके दर्दों गम में।

हर कंटीली राह पर फूलों को अब बिछौना है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 199 ☆ होती प्रीति की भावना… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित – “होती प्रीति की भावना। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा # 199 ☆ होती प्रीति की भावना☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

चेहरा है शरीर का ऐसा अंग प्रधान

जिससे होती आई है हर जन ही पहचान।

 *

द्वेष भाव संसार में है एक सहज स्वभाव

जाता है बड़ी मुश्किल से कर ढेरों उपाय ।

 *

स्वार्थ, द्वेष हैं शत्रु दो सबके प्रबल महान

जो उपजाते हृदय में लोभ और अभियान |

 *

होती प्रीति की भावना गुण-दोषों अनुसार

पक्षपात होता जहाँ दुखी वही परिवार

 *

जिनका मन वश में सदा औ खुद पर अधिकार

उन्हें डरा सकता नहीं कभी भी यह संसार ।

 *

इस दुनियाँ में हरेक का अलग अलग संसार

वैसा करता काम जन जैसा सोच विचार

 *

बहुतों को होता नहीं खुद का पूरा ज्ञान

क्योंकि उनकी बुद्धि को हर लेता अभिमान।

 *

हर एक जैसा सोचता वैसे करता काम

सहना पड़ता भी किये करमो का परिणाम ।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ ‘बीज’ श्री संजय भारद्वाज (भावानुवाद) – ‘Seed…’ ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi poetry “बीज.  We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit, English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.)

श्री संजय भारद्वाज जी की मूल रचना

? संजय उवाच – बीज ? ?

जलती सूखी ज़मीन,

ठूँठ से खड़े पेड़,

अंतिम संस्कार की

प्रतीक्षा करती पीली घास,

लू के गरम शरारे,

दरकती माटी की दरारें,

इन दरारों के बीच पड़ा

वो बीज…

मैं निराश नहीं हूँ,

ये बीज मेरी आशा का केंद्र है,

ये, जो अपने भीतर समाए है

विशाल संभावनाएँ-

वृक्ष होने की,

छाया देने की,

बरसात देने की,

फल देने की,

और हाँ,

फिर एक नया बीज देने की,

मैं निराश नहीं हूँ,

ये बीज मेरी आशा का केंद्र है…!

(लगभग 25 वर्ष पुरानी रचना। कवितासंग्रह ‘योंही’ से )

© संजय भारद्वाज  

मोबाइल– 9890122603, संजयउवाच@डाटामेल.भारत, [email protected]

☆☆☆☆☆

English Version by – Captain Pravin Raghuvanshi

?~ Seed ~??

On blazing dry arid land,

Trees standing with stumps,

Yellow grass waiting for its last rites,

Scorching flashes of the sun,

Cracks in the fractured soil

That seed is still lying

between these cracks…

 

I am not at all crestfallen…

 

This seed is the center of my hope,

This tiny seed contains within itself

enormous possibilities of

—becoming a tree

— giving shade,

—bringing rains

—giving fruits,

And yes, above all

—giving a new seed again,

 

I am not disappointed,

This seed is the center of my hope…!

??

~ Pravin Raghuvanshi

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रचना संसार #26 – गीत – चलते रहिए… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ☆

सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम गीत चलते रहिए

? रचना संसार # 26 – गीत – चलते रहिए…  ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

पाना तुमको लक्ष्य अगर तो,

निशिवासर  चलते रहिए।

 दूर बहुत मंजिल  है तो क्या ,

 आगे ही बढ़ते रहिए।।

 **

उदित जगत में नव रवि होगा,

काली रजनी बीतेगी ।

प्रेम दीप फिर नए जलेंगें,

तम की गागर रीतेगी।।

जग कल्याण करो अब मानव,

घातों से बचते रहिए।

 *

पाना तुमको लक्ष्य अगर तो,

निशिवासर चलते रहिए।।

 **

चिंतन मनन करो निशदिन ही,

निज मंजिल की आस रखो।

व्यंग वाण से मत घबराओ ,

खुद  पर तुम विश्वास रखो।।

बिन संघर्ष नहीं कुछ हासिल

नवल सृजन रचते रहिए,

 *

पाना तुमको लक्ष्य अगर तो,

निशिवासर चलते रहिए।।

 **

करो भीष्म सी आज प्रतिज्ञा,

अर्जुन लक्ष्य करो धारण।

जीत मिलेगी निश्चित तुमको,

सत्य सुभग मन के कारण।।

शौर्य वीरता दिखलाकर के,

धर्म युद्ध लड़ते रहिए।

 *

पाना तुमको लक्ष्य अगर तो,

निशिवासर चलते रहिए।।

 **

तोड  चक्रव्यूहों को तुम अब,

विजय पताका लहराओ।

ऊँचा होगा नाम जगत में

तारे नभ से  ले आओ।।

संदल जैसे सुरभित हो कर,

सबके हिय म़े बसते रहिए।

 *

पाना तुमको लक्ष्य अगर तो,

निशिवासर चलते रहिए।।

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- [email protected], [email protected]

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #254 ☆ भावना के दोहे ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं भावना के दोहे )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 254 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

(शब्दाधारित सृजन )

जीवंत

सोच रहे है आज हम, होगा दुख का अंत।

आशाओं के दीप को, रखना तुम जीवंत।।

सरोजिनी

सरोजिनी मन में खिले, हुआ प्यार गुंजार।

देख तुम्हें लगने लगा, खिलते फूल हज़ार।।

पहचान

खिली-खिली है आज तू, प्यारी है मुस्कान।

आज तुम्हें तो मिल रही, अपनी ही पहचान।।

अथाह

संग मुझे तेरा मिले, अपनी ऐसी चाह।

मिलने को तुम आ रहे, मिलती ख़ुशी अथाह।।

अपनत्व

दिखता नहीं अपनत्व तो, जीना है बेकार।

मुझको अपना जान लो, कर लो मुझसे प्यार।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #235 ☆ संतोष के दोहे – तर्पण ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है – संतोष के दोहे आप  श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

 ☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 235 ☆

☆ संतोष के दोहे – तर्पण  ☆ श्री संतोष नेमा ☆

जीते  जी  भी  चाहत  रखना

उनके  दिल  में  राहत रखना

*

तभी  मिलेगा  पुण्य  आपको

माँ बाप  से न अदावत रखना

*

कष्ट  दिया  गर  तुमने उनको

संघर्षों   की   ताकत   रखना

*

स्वर्ग  समान चरण  हैं  उनके

श्रद्धा   और   इबादत  रखना

*

तर्पण  होगा  सार्थक तब  ही

कभी न कोई शिकायत रखना

*

मिलेगा  “संतोष”  तुम्हे   जब

नेकी  और   शराफत   रखना

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 70003619839300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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