सुश्री अपर्णा परांजपे
कविता – मै… – सुश्री अपर्णा परांजपे
मैने मेरे श्याम को
मेरे लिये लड़ते देखा है
मैने मेरे राम को
मेरे लिये लड़ते देखा है..
सुख मे तो समझा नही
पर संकट मे यह जाना है
मैने मेरे राम को
मेरे लिये लड़ते देखा है..
उसका सहारा पाकर ही
“मैंने” “मुझे” संभाला है
“मै” कुछ न कर सका
उसने ही उठाया है…
स्वयम् राम ही आते है
संकट बुरा कैसे बोलू?
राम न दिखे सुख मे
तो सुख अच्छा कैसे बोलू?
मुझे गोद मे बिठाकर
दुख पार किया मेरा
बिगडी हुयी नैया को
चलाकर साथ दिया मेरा..
सुख दुख के परे
मै भी हू यह जाना जब
राम श्याम, श्याम राम
सत्य यही मन मे बसा तब…
नासमझ मन को सुख का
आभास हुवा
समझ जब आ गयी
“रामरुप” स्पष्ट हुआ…
भीतर की आवाज को
जिस क्षण पहचाना मैने
मे तू है, तूही मै हूँ
परम सत्य जाना मैने…
मान हो या अपमान
“मै” वो नही जो समझता था
इस सबसे उपर “मै”
मेरे ही भीतर का “श्याम” था…
जीवन का यही अनमोल क्षण
जिसमे था “राम ही राम”
वो ही तो सत्य है
मेरे हृदय का विश्राम…
भार मेरा खुद लेकर
“मुझे” स्वतंत्र किया
ऐसा यह राम मेरा
मुझे ही “उसमे” समा गया…
मेरा राम मेरा श्याम
ब्रह्मरूप सत्यता
दुःख निवृत्ती देना ही
जीवन की सिध्दता …
मैने मेरे श्याम को
मेरे लिये लड़ते देखा है
मैं ने मेरे राम को
मेरे लिये लड़ते देखा है…
🙏 भगवंत हृदयस्थ हैं 🙏
चित्र गूगल से…
© सुश्री अपर्णा परांजपे
पुणे
≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈