हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – पारदर्शी ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि – पारदर्शी ??

तुम कहते हो शब्द,

सार्थक समुच्चय

होने लगता है वर्णबद्ध,

तुम कहते हो अर्थ,

दिखने लगता है

शब्दों के पार भावार्थ,

कैसे जगा देते हो विश्वास?

जादू की कौनसी

छड़ी है तुम्हारे पास..?

सरल सूत्र कहता हूँ-

पहले जियो अर्थ,

तब रचो शब्द..,

न छड़ी, न जादू का भास,

बिम्ब-प्रतिबिम्ब एक-सा विन्यास,

मन के दर्पण का विस्तार है,

भीतर बाहर एक-सा संसार है।

© संजय भारद्वाज

रात्रि 12.13 बजे, 22.9.19

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 79 ☆ # मजदूर दिवस # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय एवं भावप्रवण कविता “# मजदूर दिवस #”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 79 ☆

☆ # मजदूर दिवस # ☆ 

एक नारा गूंज रहा था कानों में

कहीं कहीं कुछ प्रतिष्ठानों में

मजदूर मजदूर भाई भाई

मैंने कहा-

सब बकवास है

सब अलग-अलग बंट गये है

स्वा‌र्थके लिए अलग-अलग छट गये है

पूंजीपतियों ने इनको तोड़ा है

अपनी अपनी तरफ मोड़ा हैं

अब कहां हड़ताल होती है

सरकार मस्त तानकर सोती है

मजदूरों के कल्याण की बात बेमानी है

नेताओं के आंखों का मर गया पानी है

दिखावे का मजदूर दिवस मनाते है

मीडिया से अपना फोटो खिंचवाते है

इतिहास गवाह है

भूखे पेट ही होती है क्रांति

तभी आती है दुनिया में शांति/

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 16 (81-85)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #16 (81 – 85) ॥ ☆

रघुवंश सर्ग : -16

कुमुद नाग ने गर्व से सिर उठा समझ गरुड़ास्त्र की महिमा का भेद खोला।

तनय राम के कुश जो थे शत्रुहंता से करके नमन यों विनत स्वर में बोला।।81।।

 

मैं जानता हूँ कि तुम विष्णु के रूप श्रीराम के पुत्र कुश हितमना हो।

भला आपके नेह की, पूज्य जो है, क्यों किसी भी भाँति अवमावना हो।।82।।

 

उछाले गये गेंद को झेलती सी, गगन से उतरती हुई ज्योति के सम।

तुम्हारे विजय शील इस आमरण को, जिस जल में लख रख कुमुद ने लियादम।।83।।

 

तो जो भूमि रक्षा के हित अर्गला संग है आजानु बाहू ज्या-आघात-चिन्हित।

से भुंजबंध इसका हो संयोग फिर से, यह अब हमारा मनोरथ है निश्चित।।84।।

 

हे कुश इसके अपहरण अपराध का दण्ड, अनुजा कुमुद को कृपा कर यों दीजै।

कि चिरकाल इसको चरण सेवा में अपनी दासी बना लेना स्वीकार कीजे।।85।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 90 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

?  Anonymous Litterateur of Social Media # 90 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 90) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>  कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 90 ?

☆☆☆☆☆

Falling Stars…!

झूठ बोलता होगा

कभी चाँद भी…

इसलिए तो रूठकर

तारे टूट जाते हैं…

 

Sometimes, even the

moon must be lying…

That’s why the stars

break away sulkily…!

☆☆☆☆☆

हिज्र की बातें, दर्द के किस्से

उम्र पड़ी है, इन्हें कहने को…

घर से निकले हो तो देखो

चहल-पहल है ये बारात की …

 

सोच-समझकर, देख-भालकर

कहना अपनी दिल की बात को

सूरज ज़ालिम क्या समझेगा,

बात है ये इक चाँदनी रात की..!

 

Stories of the rueful separation

Talks of pain are things of past

If you’ve got out of the house,

Enjoy the merriment around..!

 

Very cautiously mention the

Deep secrets of your heart

How can the Sun ever realize,

The talks of the moonlit night..!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 90 ☆ सॉनेट – मातृभाषा ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित सॉनेट – मातृभाषा।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 90 ☆ 

☆ सॉनेट – मातृभाषा 


माँ की भाषा केवल ममता।

वात्सल्य व्याकरण अनोखा।

हर अक्षर है प्यारा चोखा।।

खूब लुटाती नेह न कमता।।

बारहखड़ी दूध की धारा।

शब्द-शब्द का अर्थ त्याग है।

वाक्य-छंद में भरा राग है।।

कथ्य गीत का तन-मन वारा।।

अलंकार लोरी में अनगिन।

रस सागर की लहरें मत गिन।

शिशु बन हो आनंदित पल-छिन।।

पल में तोला, पल में माशा।

श्वास-श्वास दे जन्म तराशा।

माँ की भाषा दूध-बताशा।।

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२२-२-२०२२

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कविता – आत्मानंद साहित्य #120 ☆ आरती – श्री बंगाली बाबा ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 120 ☆

☆ ‌आरती – श्री बंगाली बाबा ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆

जय जय हे बंगाली बाबा,

जय जय हे बंगाली बाबा।

तुम दीनों के मात पिता हो,

तुम रक्षक तुम दाता ।।जय जय हे।।१।।

 

तुम हो बाबा बड़े दयालू,

शिव स्वरूप हो बड़े कृपालू।

तुम सा नहीं है कोई ज्ञानी,

कोई नहीं है तुम सा दानी ।

कीर्ति जगत विख्याता ,

जय जय हे बंगाली बाबा!।।२।।

 

तुम हरते अज्ञान तिमिर को,

जलते ज्योति पुंज बन हिय में।

तुम हो प्राणाधार जगत के ,

जीव जगत जन जन के तन के।

तुम रक्षक तुम दाता,

जय जय हे बंगाली बाबा।।३।।

 

डूब रही है जीवन नैया ,

जो मिल जाए तुम सा खिवैया।

हमें उबारो बीच भंवर से,

बनकर भाग्य विधाता।

तुम रक्षक तुम दाता ,

जय जय हे बंगाली बाबा।।४।।

 

जो कोई तेरे दर आये,

चरण धूलि उसको मिल जाए।

तन मन की सुख शांति वैभव,

बिनु मांगे सब पाता।

तुम रक्षक तुम दाता,

जय जय हे बंगाली बाबा।।५।।

 

जलते हो बन दीपशिखा,

नर रूपी नारायण तन मे

सदगुरु बन के तुम्हीं बिराजे,

भक्तजनों की श्रद्धा मन में।

कीर्ति जगत विख्याता,

जय जय हे बंगाली बाबा।।६।।

 

तुम ही सबके जीवन धन हो,

तुम ही मेरे प्रेम रतन हो।

आत्मानंद मगन मन भजता,

कृपा तुम्हारी पाता।

तुम रक्षक तुम दाता,

जय जय हे बंगाली बाबा।।७।।

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 16 (76-80)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #16 (76 – 80) ॥ ☆

रघुवंश सर्ग : -16

 

महाराज सब यत्न कर भी हमारे वलय आपका तो नहीं हाथ आया।             

लगता है कि लोभवश कुमुदनागेश ने नदी जल से उसे है चुराया।।76।।

 

तब बली कुश ने पहुंच सरयू तट पै, कुमुद नाग को मारने शर उठाया।

प्रत्यंचा चढ़ाई, गरुड़ देव के अस्त्र का करने संधान मस्तक झुकाया।।77।।

 

संघान करते ही जलहृद विकल हो, लगा तरंगों से वो तट को डुबाने।

औं गर्त में गिरे वन गज सरीखा लगा मचलने शोर भारी मचाने।।78।।

 

सागर के मन्थन पै ज्यों कल्प तरु साथ लक्ष्मी को ले के उपस्थित हुआ था।

वैसे ही उस क्षुब्ध जलहृद से नागेश, ले कुमुद कन्या वहाँ आ खड़ा था।।79।।

 

लख नाग को सहित भूषण उपस्थित, नटराज कुश ने उतारी प्रत्यंचा।

सज्जन कभी भी विनत शरण आये हुओं के भला कब हुए प्राण हंता।।80।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिंदी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #140 – ग़ज़ल-26 – “अभी ज़िंदगी में तूफ़ान और भी हैं…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं । प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “अभी ज़िंदगी में तूफ़ान और भी हैं…”)

? ग़ज़ल # 26 – “अभी ज़िंदगी में तूफ़ान और भी हैं…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

माशूक के सिवा शैतान और भी हैं,

अभी ज़िंदगी में तूफ़ान और भी हैं।

 

हमसफ़र बन कर वो संग-संग चलें,

दिलों  में  हसरतें अभी और भी हैं।

 

हमने ज़हर भरे प्याले खूब भर पिए,

इश्किया पैमाने इधर उधर और भी हैं।

 

सैयाद  की  तैयारी में कसर नहीं,

उन की नज़रे इनायत और भी हैं।

 

मुहब्बत में उम्मीद नज़र नहीं आती,

आतिश कब्र में ठिकाने  और भी हैं।

 

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा#78 ☆ गजल – ’’खुद से भी शायद ज्यादा…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण  ग़ज़ल  “खुद से भी शायद ज्यादा…”। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। ) 

☆ काव्य धारा 78 ☆ गजल – खुद से भी शायद ज्यादा…  ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

मेरे साथ तुम जो होते, न मैं बेकरार होता,

खुद से भी शायद ज्यादा, मुझे तुमसे प्यार होता।

तुम बिन उदास मेरी मायूस जिन्दगी है,

होते जो पास तुम तो क्यों इन्तजार होता ?

 

मजबूरियाँ  तुम्हारी तुम्हें दूर ले गईं हैं,

वरना खुशी का हर दिन एक तैवहार होता।

मुह मांगी चाह सबको मिलती कहाँ यहाँ है ?

मिलती जो, कोई सपना क्यों तार-तार होता ?

 

हँसने के वास्ते कुछ रोना है लाजिमी सा,

होता न चलन ये तो दिल पै न भार होता।

मुझको जो मिले होते मुस्कान लिये तुम तो,

इस जिन्दगी में जाने कितना खुमार होता।

 

आ जाते जिन्दगी में मेरे राजदार बन जो,

सपनों की झाँकियों का बढ़िया सिंगार होता।

हर रात रातरानी खुशबू बिखेर जाती,

हर दिन आलाप भरता सरगम-सितार होता।

 

तकदीर है कि ’यादों’ में आते तो तुम चुप हो,

पर काश कि किस्मत में कोई सुधार होता।।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अविनाशी ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि – अविनाशी ??

कभी पहाड़ से कूदता है,

कभी आग में लोटता है,

कभी पानी में उतरता है

कभी चाकू से गोदता है,

चीखता है, चिल्लाता है,

रोता है, गिड़गिड़ाता है,

चोला बदलने के लिए

कई पापड़ बेलता है,

सहानुभूति का पात्र है

जर्मन लोक-कथाओं में

अमरता का वरदान पाया

वह अभिशप्त राक्षस..,

 

अमर्त्य होने की इच्छा पर

अंकुश कब लगाओगे मनुज,

अपनी अविनाशी नश्वरता का

उत्सव कब मनाओगे मनुज.?

© संजय भारद्वाज

रात्रि 1:53 बजे, 14.4.2019

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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