श्री आशिष मुळे
☆ कविता ☆ “आवारा” ☆ श्री आशिष मुळे ☆
मन में ना कोई धरम है
ना किसी की नफरत है
बस जीने की एक ख्वाहिश है
सीने में एक धड़कता दिल है
कहते हमे आवारा है ।
हमें जाना कहीं नहीं है
रास्ता यही हमारा घर है
जन्नत कहाँ है पता नहीं है
जन्नम का हमें डर नहीं है
कहते हमे आवारा है ।
प्यार खुले आसमां में उड़ता है
नफ़रत बंद गलियों में दौड़ती है
इंसानियत जंगल में रहती है
हैवानियत अब घर में क़ैद है
और कहते हमे आवारा है ।
खयाल पत्थरों को जान देते हैं
पत्थर मासूमों की जान लेते है
कहानियों के पीछे जिंदगी भागती है
वहां मौत सड़कों पे नाचती है
और कहते हमे आवारा है ।
रहमत है खुदा की भगवान की कृपा है
हाथों पे खून किसी मासूम का नहीं है
किसी होशियार के प्यादे नहीं है
किसी कहानी के हम गुलाम नहीं है
शुक्र है हम आवारा है
शुक्र है हम आवारा है ।
© श्री आशिष मुळे
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈