हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 60 ☆ ।। हे माँ दुर्गा पापनाशनी,तेरा वंदन बारम्बार है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं।  आप प्रत्येक शनिवार श्री एस के कपूर जी की रचना आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण मुक्तक ।। हे माँ दुर्गा पापनाशनी,तेरा वंदन बारम्बार है।।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 60 ☆

☆ मुक्तक  ☆ ।। हे माँ दुर्गा पापनाशनी,तेरा वंदन बारम्बार है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

[1]

सुबह शाम की आरती और

माता का जयकारा।

नौदिवस का हरदिन बन गया

शक्ति का भंडारा।।

केसर चुनरी चूड़ी रोली हे माँ

तेरा श्रृंगार सब करें।

सिंह पर सवार माँ दुर्गा आयी

बन भक्तों का सहारा।।

[2]

तेरे नौं रूपों में समायी शक्ति

बहुत असीम है।

तेरी भक्ति से बन जाता व्यक्ति

बहुत प्रवीण है।।

हे वरदायनी पापनाशनी चंडी

रूपा कल्याणी तू।

दुर्गा नाम मात्र हो जाता व्यक्ति

भक्ति तल्लीन है ।।

[3]
नौं दिन की नवरात्रि मानो कि

ऊर्जा का संचार है।

भक्ति में लीन तेरे भजनों की

माया अपरम्पार है।।

कलश कसोरा जौ और पानी

आस्था के प्रतीक।

हे जगत पालिनी माँ दुर्गा तेरा

वंदन बारम्बार है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 124 ☆ ग़ज़ल – “अधर जो कह नहीं पाते…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक गावव ग़ज़ल  – “अधर जो कह नहीं पाते …” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण   प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा #124 ☆  गजल – “अधर जो कह नहीं पाते …” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

अचानक राह चलते साथ जो जब छोड़ जाते हैं

वे साथी जिन्दगी भर, सच, हमेशा याद आते हैं।

 

बने रिश्तों को हरदम प्रेम जल से सीचते रहिये

कठिन मौकोें पै आखिर अपने ही तो काम आते हैं।

 

नहीं देखे किसी के दिन हमेशा एक से हमने

बरसते हैं जहाँ आँसू वे घर भी जगमगाते हैं।

 

बुरा भी हो तो भी अपना ही सबके मन को भाता है

इसी से अपनी टूटी झोपड़ी भी सब सजाते हैं।

 

समझना सोचना हर काम के पहले जरूरी है

किये कर्मो का फल क्योंकि हमेशा लोग पाते हैं।

 

जहाँ  पाता जो भी कोई परिश्रम से ही पाता है

जो सपने देखते रहते कभी कुछ भी न पाते हैं।

 

बहुत सी बातें मन की लोग औरों से छुपाते हैं

अधर जो कह नहीं पाते नयन कह साफ जाते हैं।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ गीत – “गाँव की बेटी-दोहों में” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ गीत – “गाँव की बेटी-दोहों में” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

बेटी भाती गाँव की,जो गुण से भरपूर। 

जहाँ पहुँच जाती वहाँ, बिखरा देती नूर।। 

बेटी प्यारी गाँव की,प्रतिभा का उत्कर्ष। 

मायूसी को दूरकर,जो लाती है हर्ष।। 

बेटी जो है गाँव की,करना जाने कर्म। 

हुनर संग ले जूझती,सतत् निभाती धर्म।। 

गाँवों की बेटी सुघड़,बढ़ती जाती नित्य।

चंदा-सी शीतल लगे,दमके ज्यों आदित्य।। 

कुश्ती लड़ती,दौड़ती,पढ़ने का आवेग। 

गाँवों की बेटी लगे,जैसे हो शुभ नेग।। 

बेटी गाँवों की भली, होती है अभिराम। 

जिसके खाते काम के,हैं अनगिन आयाम।। 

खेतों से श्रम का सबक,बढ़ना जाने ख़ूब। 

गाँवों की बेटी प्रखर,होती पावन दूब।। 

करती बेटी गाँव की,अचरज वाले काम। 

मुश्किल में भी लक्ष्य पा,हासिल करती नाम।। 

गाँवों को देती खुशी,रचती है सम्मान। 

बेटी मिट्टी से बनी,रखती है निज आन।। 

राजनीति,सेना गहे,कला और विज्ञान। 

गाँवों की बेटी करे,पूरे सब अरमान।। 

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – ईको पॉइंट ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – ईको पॉइंट ??

मेरे अथक संघर्ष को

निरर्थक कहने वालो!

पीछे पछताओगे,

निरर्थक के आयाम

समझ जाओगे,

आज व्यवस्था की

चट्टानों से टकराकर

गूँजता है दूर-दूर तक

मेरा स्वर…,

पत्थरों को बींधता

और दरारें पैदा करता है

मेरा स्वर…,

भविष्य में इन्हीं चट्टानों में

ख़ामोशी से

मेरी अनुगूँज सुनने आओगे

और कभी

‘ईको पॉइंट’ तलाश कर

अपने स्वर में

मुझे आवाज़ लगाओगे..!

(कविता संग्रह ‘मैं नहीं लिखता कविता।’)

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम को समर्पित आपदां अपहर्तारं साधना गुरुवार दि. 9 मार्च से श्रीरामनवमी अर्थात 30 मार्च तक चलेगी।

💥 इसमें श्रीरामरक्षास्तोत्रम् का पाठ होगा, साथ ही गोस्वामी तुलसीदास जी रचित श्रीराम स्तुति भी। आत्म-परिष्कार और ध्यानसाधना तो साथ चलेंगी ही।💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “जगत की रीत” ☆ डॉ रेनू सिंह ☆

डॉ. रेनू सिंह

(ई-अभिव्यक्ति में प्रतिष्ठित साहित्यकार डॉ. रेनू सिंह जी का हार्दिक स्वागत है। आपने हिन्दी साहित्य में पी एच डी की डिग्री हासिल की है। आपका हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी और उर्दू में भी समान अधिकार है। एक प्रभावशाली रचनाकार के अतिरिक्त आप  कॉरपोरेट वर्ल्ड में भी सक्रिय हैं और अनेक कंपनियों की डायरेक्टर भी हैं। आपके पति एक सेवानिवृत्त आई एफ एस अधिकारी हैं। अपनी व्यस्त दिनचर्या के बावजूद आप  साहित्य सेवा में निरंतर लगी रहती हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण रचना  “फितरत।)

? “जगत की रीत” डॉ. रेनू सिंह ?

कहीं लहरों में नैया है,

कहीं तट पर बसेरे हैं,

*

कहीं सागर ही प्यासा है,

कहीं मरु में हिलोरें हैं।

*

कहीं फ़ूलों में मेले हैं ,

तो पतझड़ कहीं अकेले हैं

*

कहीँ एकाकी रास्ते हैं,

कहीं राहों के रेले हैं

*

कहीं है बाँसुरी की धुन ,

कहीं प्राणों में भी रुदन,

*

कहीं निर्बाध उड़ रहे मन,

कहीं साँसों पे भी बन्धन,

*

कहीं सतरंगी आँचल है,

कहीं न गज़ भर चादर भी,

*

कहीं बह रहे हैं मधुसर,

कहीं ख़ाली है गागर भी,

*

ये जग जल है और ज्वाला भी,

विषकुण्ड हैऔर मधुशाला भी,

*

विष पी कर ‘शिव’बन जाओ तुम,

जल-जल निखरो तो ‘सोना’ भी।

© डा. रेनू सिंह 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #173 ☆ भावना के मुक्तक… ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है  आपकी एक भावप्रवण कविता  भावना के मुक्तक।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 173 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के मुक्तक … ☆

बजी है राग की रागिनी,बजे दिल तो इकतारा है।

तुझे लगता जो प्यारा है,वहीं मेरा भी दुलारा है।

नाचे दुनिया धुन पर खामोशी है अब भी मन पर,

यही मैं कहता आया हूं तेरा प्यार हमारा है।

*

तेरी खामोशी जो कहती  उससे मैं तो समझता हूं।

तेरे दिल में मेरा दिल है यही मैं तुझ से कहता हूं।

तू कहना जो मुझे चाहे तेरी खामोशी  कह देती।

मेरी  आंखों  में देखो तो तेरा चेहरा ही दिखता है।।

*

गांव के थे हसीन लम्हे जिन्हें पीछे में छोड़ आया।

किया है रुख शहर का तो मैं रिश्तों को तोड़ आया।

असर दिल पर ये होता है याद आती है गांव की

मुझे लगता है अब पीछे मैं जाने क्या छोड़ आया।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #160 ☆ “देखना है दर्द गर प्रीत का…” ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी एक पूर्णिका – देखना है दर्द गर प्रीत का। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 160 ☆

☆ एक पूर्णिका – “देखना  है  दर्द  गर  प्रीत का…” ☆ श्री संतोष नेमा ☆

प्यार है तो निभाकर देख

इंकार है तो बताकर देख

 

मेरे  दिल  में  भी  है जगह

कभी मुझे आजमाकर देख

 

गर प्यार है जरा भी दिल में

हमें  भी  फिर जताकर देख

 

इंसान   सभी  हैं  यहाँ   पर

चश्मा धर्म का हटाकर  देख

 

देखना  है  दर्द  गर  प्रीत का

दिल  किसी  से लगाकर देख

 

सब समझते हैं खुदा खुद को

किसी को भी समझाकर देख

 

मिलेगा  “संतोष” तुमको   भी

कभी घर अपने  बुलाकर देख

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – दस्तावेज़ ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – दस्तावेज़ ??

-साहित्यकार हूँ, अपने समय का दस्तावेज़ लिखता हूँ।

-जो दस्तावेज़ लिखे, इतिहासकार होता है, साहित्यकार नहीं।

..और सुनो, बीते समय को जानने के लिए उस काल का प्रमाणित इतिहास पढ़ा जाता है, साहित्य नहीं।

हाँ, उन स्थितियों ने अंतर्चेतना को कैसे झिंझोड़ा, अंतर्द्वंद कैसे अपने समय से द्वंद करने उठ खड़ा हुआ, व्यष्टि का साहस कैसे समष्टि का प्रताप बना, कैसे भीतर के प्रकाश ने समय में व्याप्त तिमिर को उजालों से भरकर विचार को प्रभासित किया, यह जानने के लिए तत्कालीन साहित्य पढ़ा जाता है।

जिसका लिखा समय के प्रवाह में दस्तावेज़ बनकर उभरा, वही साहित्यकार कहलाया।

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

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☆ आपदां अपहर्तारं ☆

मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम को समर्पित आपदां अपहर्तारं साधना गुरुवार दि. 9 मार्च से श्रीरामनवमी अर्थात 30 मार्च तक चलेगी।

💥 इसमें श्रीरामरक्षास्तोत्रम् का पाठ होगा, साथ ही गोस्वामी तुलसीदास जी रचित श्रीराम स्तुति भी। आत्म-परिष्कार और ध्यानसाधना तो साथ चलेंगी ही।💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 201 ☆ कविता – बड़ा बेफिक्र कर दिया तुमने… — ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है एक विचारणीय कविता  – बड़ा बेफिक्र कर दिया तुमने …

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 201 ☆  

? कविता – बड़ा बेफिक्र कर दिया तुमने …  – ?

थाम कर , बच्चे सा मुझको

बड़ा बेफिक्र कर दिया तुमने

ओढ़ ली सारी जिम्मेदारी

बड़ा बेफिक्र कर दिया तुमने

 

पिरो कर माला में रिश्ते

सहकर खुद अकेले सब

बना कर बच्चे नव रत्नी

बड़ा बेफिक्र कर दिया तुमने

 

उठा कर बोझ सब हँस कर

रोशन कर के घर भर को

हर मुश्किल को कर आसां

बड़ा बेफिक्र कर दिया तुमने

 

भला लाऊं मैं क्या तोहफा

तुम खुद मेरा तोहफा हो

आई तुम जबसे जीवन में

बड़ा बेफिक्र कर दिया तुमने

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य #134 – कविता – “कविता– किसे  सुनाऊँ” ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं।  आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण कविता कविता– किसे  सुनाऊँ)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 134 ☆

☆ कविता ☆ “कविता– किसे  सुनाऊँ” ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’   

मैं कविता यहाँ सुनाऊँ ।

तो किस-किसको सुनाऊँ ?

यहाँ तो सभी वक्ता बैठे हैं।

 

एक से एक कवि हैं। 

जहां न पहुंचे रवि हैं।

ब्रह्मा बन कर लेटे हैं।

यहाँ तो सभी वक्ता बैठे हैं।

 

शब्दों के बाजीगर हैं।

हंसने -हंसाने का वर है।

बिन दुल्हन, दूल्हे से ऐंठे  हैं।

यहाँ तो सभी वक्ता बैठे हैं।

 

बातों के तीर चलाते हैं। 

हंसते, हंसाते, रुलाते हैं।

जागे हैं पर, मद में लेटे हैं।

यहाँ तो सभी वक्ता बैठे हैं।

 

सुनाएंगे बढ़-चढ़कर।

नहीं रहेंगे ये डर कर।

अपनी हद से ही ऐंठे हैं।

यहाँ तो सभी वक्ता बैठे हैं।

 

अपनी ही तो सुनाएंगे।

फिर चुपके से ही जाएंगे।

मन में मन के श्रोता लेटे हैं।

यहाँ तो सभी वक्ता बैठे हैं।

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

22-03-23 

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) म प्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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