हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 129 – शब्द, अब नहीं रहे शब्द… ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  एक भावप्रवण गीत – शब्द, अब नहीं रहे शब्द।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 129 – शब्द, अब नहीं रहे शब्द…  ✍

शब्द, अब नहीं रहे शब्द

शब्द को ब्रह्म कहा गया है

और

ब्रह्म को देखा नहीं किसी ने

शब्द को भी

कोई कहाँ देख पाता है।

हाँ,

सुन पाता है उसे

अगर सुनना चाहे तो।

मगर क्या होता है

मात्र सुनने से

जबकि अर्थहीन हो गए हों शब्द

लगता है

शब्दों की केंचुली उतर गई है

बदल गई है उनकी तासीर

अब प्रेम शब्द ना तो स्निग्धा देता है

ना ऊर्जा

और विश्वास का दावा

कानों में उड़ेल देता है

पिघला शीशा

संबोधन के सारे शब्दों से

सड़ी मछली की बू आने लगी है

शब्द, अब शब्द नहीं रहे…। 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 128 – “धरती भीगी मैं भी भीगी…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है  आपका एक अभिनव गीत  धरती भीगी मैं भी भीगी)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 128 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

धरती भीगी मैं भी भीगी… ☆

बदली के बालो को छू कर

बोली मधूलिका

नही जा रही वहाँ कदापि

मैं फिर अमेरिका

 

तुम क्या बरसी बहकर आयी

फसलों की दुनिया

तुम को पाकर हुई चंचला

जल की चुनमुनिया

 

धरती भीगी मैं भी भीगी

गहरे गहरे गहरे तक

पेड़ो से कह कह कर हारी

व्यव्हल कुमारिका

 

आसमान की छत से डगमग

देख रही शुभकर

जिस को पढ़ने तारा मंडल

उतरा है भू पर

 

एक घास का छज्जा आगे

को झुकर सा आया

कहता है कुछ छंद सुनाओ

मुझ को सागरिका

 

कभी कभी तारों को छूती

हुई निकलती हो

लगता जैसे चाँदी की पाय लें

बदलती हो

 

जगमग तारों मैं दिख जाती

मुझ को भी जब तब

कभी रुपहली कभी सुनहली

झिल मिल निहारिका

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

03-03-2023

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – होली पर्व विशेष – प्रह्लाद ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – होली पर्व विशेष – प्रह्लाद  ??

मेरे लिखे ख़त,

जब-जब उसने

आग को दिखाए,

कागज़ जल गया

हर्फ़ उभर आए,

झुंझलाई, भौंचक्की-सी

हुई बार-बार दंग,

कई होलिकाएँ जल मरीं;

प्रह्लाद सिद्ध हुआ

हर बार मेरे प्रेम का रंग..!

नेह और सौहार्द का प्रह्लाद चिरंजीव रहे। आपको एवं आपके परिवार को होली की हार्दिक बधाई एवं मंगलकामनाएँ।

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 कृपया आत्मपरिष्कार एवं ध्यानसाधना जारी रखें। होली के बाद नयी साधना आरम्भ होगी 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ होली की पूर्व संध्याओं पर – “भ्रष्टाचार के सात रंग” ☆ श्री घनश्याम अग्रवाल☆

श्री घनश्याम अग्रवाल

(श्री घनश्याम अग्रवाल जी वरिष्ठ हास्य-व्यंग्य कवि हैं. आज प्रस्तुत है कोरोना सन्दर्भ में आपकी होली की पूर्व संध्याओं पर – “भ्रष्टाचार के सात रंग )

☆ कविता ☆ होली की पूर्व संध्याओं पर – भ्रष्टाचार के सात रंग” ☆ श्री घनश्याम अग्रवाल ☆

( 1 )

जब पेट ज्यादा

और रोटियां कम हों तो

कोई भी रोटी

न खरीदकर

न माँगकर

न कमाकर खाई जाती है,

तब हर रोटी

सिर्फ छीनकर खाई जाती है।

(2)

दुनिया में जब

एक आदमी भी

भूखा सोता है

तो भर-पेट खानेवाले

हम-तुम-सब

एक रात के लिए

आतंकवादी होते हैँ।

( 3 )

भ्रष्टाचार तो

रामराज में भी था

वरना,

रामराज जाता ही क्यूँ ?

सदा यही रहता।

न गांधीजी सपने देखते

न कोई पार्टी वादा करती।

( 4 )

टीवी देखती माँ

रोते बच्चे के मुंह में

थमा देती है

बजाय स्तन के

रबर का एक निप्पल।

( यह दुनिया का पहला भ्रष्टाचार है )

जिसे चूसते-चूसते

बच्चा सो जाता है,

और सुबह उठत़े ही

भ्रष्टाचारी हो जाता है।

( 5 )

कड़े से कड़ा कानून

आदमी को

बेईमानी करने से

रोक तो सकता है,

पर उसे

ईमानदार नहीं बना सकता।

” नजर हटी

कि दुर्घटना घटी। “

( 6 )

कसम खाकर

गवाह सच उगलता है,

मंत्री का चरित्र

रामचरित मे  ढलता है,

कसम खाकर वर्दी

फर्ज निभाती है,

और बेशर्मो को भी

कसम खाने से

गर शर्म आती है,

तो लो हम भी कसम खाते हैं

”  न रिश्वत लेंगे-न रिश्वत देंगे। “

( 7 )

बेताल के

इस सवाल पर

विक्रम से लेकर 

ए से जेड तक

सभी मौन हैं,

जब सारा देश

भ्रष्टाचार के खिलाफ है

तब स्साला,

भ्रष्टाचार

करता कौन है ?

© श्री घनश्याम अग्रवाल

(हास्य-व्यंग्य कवि)

094228 60199

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 119 ☆ # होली पर्व विशेष – होली के रंग… # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी होली पर्व पर विशेष कविता “# होली के रंग … #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 118 ☆

☆ # होली पर्व विशेष – होली के रंग… # ☆ 

जीवन के हैं रंग हजार

डूबा हुआ है यह संसार

आओ तुम भी रंग लगाओ

आया है रंगों का त्योहार

 

रंग है सबके दिल की धड़कन

चंग है साजों की स्पंदन

भांग है मनमस्तिष्क की कंपन

संग है तरूणाई में डूबे तन-मन

 

कायनात पर रंगो का राज है

ना कोई छोटा ना बड़ा आज है

घूम रही फाग गाती टोलियां 

हर टोली में एक सरताज है

 

युवक युवतियां परस्पर रंगों को डालते

एक दूजे पर गुलाल उछालते

भिगो रहे हैं सबके वस्त्र

शर्मसार है तरूणाई,

भीगे वस्त्रों को संभालते

 

खेलो राधा कृष्ण सी होली

बोलो प्रेम में डूबी प्रेममय बोली

प्रेम ही तो शाश्वत है जग मे

चाहे हो मीरा या राधा भोली /

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 130 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media# 130 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 130) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus. His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like, WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 130 ?

☆☆☆☆☆

खामोशी का मजा..

वो ही उठा सकते हैं,

जो फना हुआ हो…

किसी की मोहब्बत में..

☆☆

They can only enjoy

the fun of silence…

Who have sacrificed their

life in someone’s love…!

☆☆☆☆☆ 

रूह पर “मैं” का दाग़

आ जाता है जब…

दिलों  में  “दिमाग़”

आ जाता  है  तब…!

☆☆

When the stain of “I” 

comes on the soul…

Then the “mind” takes

birth in the hearts…!

☆☆☆☆☆

Wandering Wind

ये हवा यूं ही ख़ाक छानती

फिरती है यहाँ ,

या इसकी भी कोई चीज़

खो गई है यहाँ…!

☆☆

The wind just wanders

around here aimlessly…

Or it, too, has lost

something around here…!

☆☆☆☆☆

इक शमा की मानिंद खुद को

जलाता हूँ हर रोज,

बुझ तो जाऊँगा मगर तमाम 

ज़िंदगी रौशन कर जाऊँगा..!

☆☆

I keep burning the life

like a candle everyday,

I’ll be extinguished for  sure

but will light up many lives..!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 129 ☆ सॉनेट – शारदा – ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित  सॉनेट “~ शारदा ~”)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 129 ☆ 

सॉनेट ~ शारदा ~ ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆


हृदय विराजी मातु शारदा

सलिल करे अभिषेक निरंतर

जन्म सफल करता नित यश गा

सुमति मिले विनती सिर, पग धर

वीणा अनहद नाद गुँजाती

भव्य चारुता अनुपम-अक्षय

सातों स्वर-सरगम दे थाती

विद्या-ज्ञान बनाते निर्भय

अपरा-परा नहीं बिसराएँ

जड़-चेतन में तुम ही तुम हो

देख सकें, नित महिमा गाएँ

तुमसे आए, तुममें गुम हों

सरस्वती माँ सरसवती हे!

भव से तार, दिव्य दर्शन दे

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

४-२-२०२३, जबलपुर

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ अपने भी बेगाने…☆ डॉ निशा अग्रवाल ☆

डॉ निशा अग्रवाल

☆ कविता ☆ अपने भी बेगाने… ☆ डॉ निशा अग्रवाल ☆

चला है दौर हवाओं का ऐसा,

कि फितरत भी रंग बदलने लगी है।

 

बनावट की दुनियां में आज ये देखो,

असली चमक भी खोने लगी है।

 

प्रोफाइल में जितनी रंगीन दिखती है जिंदगी,

हकीकत में वो बेरंग होने लगी है।

 

नकली चेहरे के पीछे छुपा रूप असली,

न जाने कितने फिल्टर से सजने लगी है।

 

सफल होता देख कर किसी अपने को,

अपनों में ही कुढन मचने लगी है।

 

निशां बढ़ते कदमों के दिखते यहां जब,

अपनों से बेज़ारी होने लगी है।

 

कैसा ये जमाना है,कैसी ये नगरी,

डगर इसकी अनजान सी लगने लगी है।

 

नहीं कोई अपना  और ना ही पराया,

अपनी छाया भी बेगानी लगने लगी है।

©  डॉ निशा अग्रवाल

(ब्यूरो चीफ ऑफ जयपुर ‘सच की दस्तक’ मासिक पत्रिका)

एजुकेशनिस्ट, स्क्रिप्ट राइटर, लेखिका, गायिका, कवियत्री

जयपुर ,राजस्थान

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #179 – 65 – “मुक़र्रर इस जीस्त की कुछ सजाएँ…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “मुक़र्रर इस जीस्त की कुछ सजाएँ…”)

? ग़ज़ल # 65 – “मुक़र्रर इस जीस्त की कुछ सजाएँ…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

उम्र का सफ़र अब ढलने लगा है,

सब्र का पानी  पिघलने लगा है।

ज़िल्लतों को ढो लिया बहुत दिन,

वजन कंधों पर से उतरने लगा है।

ज़माने की भीड़ में कोई नहीं मेरा,

आरज़ूओं का नशा ढलने लगा है।

मुक़र्रर इस जीस्त की कुछ सजाएँ,

फ़ना का साया अब उभरने लगा है।

बदरंग हो चली हैं अब सब तस्वीरें, 

ख़्वाहिशों का पानी जमने लगा है।

देख कर मेला यहाँ रुसवाइयों का,

ज़िंदगी का मक़सद घुलने लगा है।

आशिक़ी में हम रहे नाकाम आतिश,

यारों को हमारा साथ खलने लगा है।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – पढ़ाई ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि –  पढ़ाई ??

उसने पढ़ी

आदमी पर लिखी किताबें,

मैं आदमी को पढ़ता रहा,

होना ही था;

उसके पास लग गया

कागज़ी डिग्रियों का अंबार,

मैं रहा खाली हाथ,

राज़ की एक बात बताऊँ,

उसे जब कुछ नया जानना हो

वह मुझसे मिलने

आता ज़रूर है…!

(कवितासंग्रह, ‘मैं नहीं लिखता कविता’।)

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 कृपया आत्मपरिष्कार एवं ध्यानसाधना जारी रखें। होली के बाद नयी साधना आरम्भ होगी 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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