English Literature – Poetry ☆ English translation of Urdu poetry couplets of Pravin ‘Aftab’ # 79 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

English translation of Urdu poetry couplets of Pravin ‘Aftab’ # 79 ☆

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>  कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

☆ English translation of Urdu poetry couplets of Pravin Aftab # 79 ☆

(Today, enjoy some of the Urdu poetry couplets written and translated in English by Pravin ‘Aftab’.  Pravin ‘Aftab’ is nick name of Capt. Pravin Raghuvanshi.)

बड़ी रौनक होगी आज

खुदा की महफिल में,

मौसिकी का खज़ाना है

जो पहुंचा ज़मीन से जन्नत में…

 

There must a great festivity

in the God’s gathering today…

Treasure of music has just

arrived in heaven from the Earth.

 

 

कितना दुश्वार है…

यूँ ज़िंदगी बसर करना

तुम्हीं से फासला रखना

और तुम्हीं से इश्क़ करना…!

 

How difficult it is

to live life like this…

To keep distance from you

and love you too…!

 

 

न एक सांस ज़्यादा

न एक साँस कम,

फिर काहे की फिक्र

और काहे का ग़म

 

Neither a breath more

nor a breath less,

Then why to worry

and why to feel sad…!

 

पहले परिंदों के शोर हुआ करते थे

अब तो बस दबे पाँव शाम होती है

बहारों में भी खिंजा का गुमाँ होता है

ज़िंदगी यूँही तमाम हुए जाती हैं… 

 

Earlier there used to be boisterous chirping of birds

Now it’s just inane turning of dusk into night

Even the blooming spring gives a feel of autumn

Life just keeps on passing in a Sambre plight…!

 

Pravin ‘Aftab’

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 80 ☆ सॉनेट – चुनाव ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित  ‘सॉनेट – रस।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 80 ☆ 

☆ सॉनेट – चुनाव

लबरों झूठों के दिन आए।

छोटे कद, वादे हैं ऊँचे।

बातें कड़वी, जहर उलीचे।।

प्रभु ये दिन फिर मत दिखलाए।।

 

फूटी आँख न सुहा रहे हैं।

कीचड़ औरों पर उछालते।

स्वार्थ हेतु करते बगावतें।।

निज औकातें बता रहे हैं।।

 

केर-बेर का संग हो रहा।

सुधरो, जन धैर्य खो रहा।

भाग्य देश का हाय सो रहा।।

 

नाग-साँप हैं, किसको चुन लें?

सोच-सोच अपना सिर धुन लें।

जन जागे, नव सपने बुन ले।।

 

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१३-२-२०२२

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 12 (66-70)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #12 (66-70) ॥ ☆

सर्गः-12

 

जान कुशलता प्रिया की झट मिलने की आश।

जाने सागर पार का, सोचा, सफल प्रयास।।66।।

 

वानर सेना थी प्रबल, भूमि और आकाश।

में जा सब संकट हरण का था अति विश्वास।।67।।

 

सागर तट पर राम जब थे सेना के साथ।

सद्प्रेरित तब विभीषण आये शरण रघुनाथ।।68।।

 

दिया बिभीषण को अभय, वैभव का प्रतिदान।

उचित समय शुभ नीतियाँ करती सुफल प्रदान।।69।।

 

शेषनाग सम विष्णु के सोने हित अनुकूल।

रचा वानरों ने अगम सागर पर एक पुल।।70।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिंदी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ #129 – आतिश का तरकश – ग़ज़ल – 16 – “हमने उनके ख़्वाबों को…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “हमने उनके ख़्वाबों को …”)

? ग़ज़ल # 15 – “हमने उनके ख़्वाबों को …” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

 

मुहब्बत वाले क़यामत की नज़र रखते हैं,

महबूब को हो तकलीफ़ तो ख़बर रखते हैं।

 

हमने उनके ख़्वाबों को आँखों पर सजाया,

हमपर आई सख़्त धूप वो शजर रखते हैं।

 

उन्होंने हमारी रातों को ख़्वाबों से सजाया,

उनकी यादें हम दिल में हर पहर रखते हैं।

 

ग़ज़ल सिर्फ़ आपही लिखना नहीं जानते हो,

हम रदीफ़ संग क़ाफ़िया ओ बहर रखते हैं।

 

हमने तो लुटा दी जन्नत उनकी चाहत में

वो हमेशा मिल्कियत पर तेज नज़र रखते हैं।

 

फ़लक से तोड़ तारे बिछाए तेरी रहगुज़र,

खुद के लिए टूटे प्यालों में ज़हर रखते हैं।

 

उन पर होवे इनायात की बारिश हर पहर,

आतिश उनकी मुसीबतों से बसर रखते हैं।

 

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा 68 ☆ गजल – ’माहौल देखकर के बेचैन मन बहुत है’ ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण  ग़ज़ल  माहौल देखकर के बेचैन मन बहुत है। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। ) 

☆ काव्य धारा 68 ☆ गजल – ’माहौल देखकर के बेचैन मन बहुत है’ ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

खबरें सुनाती हर दिन आँसू भरी कथायें

दुख-दर्द भरी दुनियाँ, जायें तो कहाँ जायें ?

बढ़ती ही जा रही है संसार में बुराई

चल रही तेज आँधी हम सिर कहाँ छुपायें ?

उफना रही है बेढब बेइमानियों की नदियॉ

ईमानदारी डूबी, कैसे उसे बचायें ?

सद्भाव, प्रेम, ममता दिखती नहीं कहीं भी

है तेज आज जग में विद्वेष की हवायें।

है जो जहाँ भी, अपनी ढपली बजा रहा है

लगी आग है भयानक, जल रहीं सब दिशाएं।

दिखता न कहीं कोई सच्चाई का सहारा

अब सोचना जरूरी कैसे हो कम व्यथायें।

सब धर्म कहते आये है, प्रेम में भलाई

पर लोगों ने किया जो किसकों व्यथा सुनायें ?

बीता समय कभी भी वापस नहीं है आता

सीखा न पर किसी ने कि समय न गँवायें।

माहौल देखकर के बेचैन मन बहुत है

कैसे ’विदग्ध’ ऐसे में, चैन कहाँ पायें ?          

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 12 (61-65)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #12 (61-65) ॥ ☆

सर्गः-12

लंका में हनुमान ने देखी सीता दीन।

राक्षसी विष लतिकाओं के घिरी सुधैव मलीन।।61।।

 

देख राम की मुद्रिका चिर परिचित पहचान।

सीता ने आँसू बहा किया स्नेह सम्मान।।62।।

 

सीता को दे सान्त्वना सुना राम-संदेश।

‘हनु’ ने मारा ‘अक्ष’ को जारा लंका देश।।63।।

 

सीता-चूड़ामणि लिये जब लौटे हनुमान।

कुशल-कार्य सम्पन्न सुन हरषे राम महान।।64।।

 

सिय-चूड़ामणि हाथ ले, मूँद नयन कपि ओर।

प्रिया मिलन सम सुख समझ हो गये आत्मविभोर।।65।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ जाने कब ☆ डॉ. हंसा दीप

डॉ. हंसा दीप

संक्षिप्त परिचय

यूनिवर्सिटी ऑफ टोरंटो में लेक्चरार के पद पर कार्यरत। पूर्व में यॉर्क यूनिवर्सिटी, टोरंटो में हिन्दी कोर्स डायरेक्टर एवं भारतीय विश्वविद्यालयों में सहायक प्राध्यापक। तीन उपन्यास व चार कहानी संग्रह प्रकाशित। गुजराती, मराठी व पंजाबी में पुस्तकों का अनुवाद। प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ निरंतर प्रकाशित। कमलेश्वर स्मृति कथा पुरस्कार 2020।

☆ कविता ☆ जाने कब ☆ डॉ. हंसा दीप 

कभी धूप, कभी छाँव

जाने क्यों

मौसम इतना खफा हुआ है।

 

काली घटा, कड़कती बिजली

जाने कहाँ

कोई बादल मचला हुआ है।

 

कभी प्यार, कभी नफरत

जाने कैसे  

हवा का रुख बदला हुआ है।

 

बहती नदियाँ, पूछतीं सवाल

जाने कौन

रो-रोकर बेहाल हुआ है।

 

कहीं दूर, कुछ टूटा है

जाने किससे

कोई हाथ छूटा हुआ है। 

☆☆☆☆☆

© डॉ. हंसा दीप

संपर्क – Dr. Hansa Deep, 22 Farrell Avenue, North York, Toronto, ON – M2R1C8 – Canada

दूरभाष – 001 647 213 1817

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज # 119 ☆ भावना के दोहे ☆ डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं  “भावना के दोहे। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 119 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे ☆

तुझसे अब कहते बना, होती जब है शाम।

प्यारा सा अहसास है, लेना तेरा नाम।।

 

खोज बहुत की सत्य की, करते रहे प्रचार।

संत कबीर ने कर दिया, धर्म पर ही प्रहार।

 

तेरी अपनी सोच है, मेरी अपनी सोच।

सोच सोच कर बोलना, लगे न दिल पर मोच।।

 

कविता में ही रच दिया, तूने सब संसार।

शब्द शब्द से झलकता, तेरा प्यार अपार।।

 

उनकी वाणी कह रही, मीठा मीठा बोल।

 सबकी वाणी हो मधुर, यह जीवन का मोल।।

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष # 109 ☆ राधा नाम सुनत हरि धावें…. ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.  “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं  एक भावप्रवण  रचना “राधा नाम सुनत हरि धावें….। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 109 ☆

☆ राधा नाम सुनत हरि धावें….

राधा नाम देत सुख सारे, मनवांछित फल पावें

जाको नाम जपें खुद कृष्णा, निशदिन नाम बुलावें

रास विहारिनि नवल किशोरी, मोहन को अति भावें

राधे राधे जपिये प्यारे, कृष्णा सुन झट धावें

पाना है गर मोहन को तो, निशदिन राधे  गावें

राधे कह “संतोष”मिलेगा, सुख-शान्ति घर लावें

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 12 (56-60)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #12 (56-60) ॥ ☆

सर्गः-12

मृत जटायु का किया फिर उनने दाह संस्कार।

उस दशरथ के मित्र को पिता समान विचार।।56।।

 

पथ में मार ‘कबन्ध’ को दे सद्गति श्रीराम।

पंपा गये सुग्रीव ने उनको किया प्रणाम।।57।।

 

अनुज वधू का कर हरण करता था जो राज।

उस बाली को मार कर दिया सुग्रीव को ताज।।58।।

 

तब सीता की खोज मे वानर भेजे हजार।

कपिपति ने ज्यों राम के मन के विविध विचार।।59।।

 

सम्पाती से ज्ञात कर रावण का स्थान।

पहुँचे सागर पार कर पवन-पुत्र हनुमान।।60।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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