हिन्दी साहित्य – कविता ☆ नवरात्रि… ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

सुश्री प्रभा सोनवणे

? कविता ?

नवरात्रि☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

मेरे घर आयी माता

अब रहेगी नौ दिन

हर्षित हुआ है मन ॥

*

 शैलपुत्री- कुआँरी है

 ब्रह्मचारिणी- योगिनी

 चंद्रघंटा – सुहासिनी ॥

*

मृगनयनी- कूष्मांडा

स्कंदमाता -फलदात्री

कात्यायनी, कालरात्री ॥

*

रूप अलग माता के

महागौरी, सिद्धीदात्रि

नौ दिन की नवरात्रि  ॥

*

आशा तुम विश्वास भी

हो ममता और माया

घरपर तेरी छाया ॥

*

गाती हूँ तेरी आरती

मधुरा – पिकबयनी

माता तुम सुभाषिणी

*

 रहूँ सदा चरणों में 

बस यही है कामना

नौ दिन की उपासना ॥

© प्रभा सोनवणे

संपर्क – “सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 75 – प्यार तो शुद्ध दूध जैसा है… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – प्यार तो शुद्ध दूध जैसा है।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 75 – प्यार तो शुद्ध दूध जैसा है… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

व्यर्थ शंका न पालकर रखिये 

अपना जज्बा सम्हालकर रखिये

*

प्यार तो शुद्ध दूध जैसा है 

कुछ भी, खट्टा न डालकर रखिये

*

काँच जैसा, ये टूट सकता है 

दिल, न ज्यादा उछालकर रखिये

*

शोले, चिन्गारियों से बनते हैं 

छोटी बातों को टालकर रखिये

*

मेरा दिल, ले तो जा रहे हो पर 

ठीक से देख-भाल कर रखिये

*

लग न जाये नजर जमाने की 

थोड़ा, घूँघट भी डालकर रखिये

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 148 – मनोज के दोहे – गांधी जी ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे – गांधी जी । आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 148 – मनोज के दोहे – गांधी जी  ☆

जीवन का चिर- सत्य यह, करना सबको कर्म।

जन्म लिया तो मृत्यु भी, समझें इसका मर्म।।

*

हैं अहिंसा सत्याग्रह, गांधी के प्रिय मंत्र।

डिगा सका न पथ उन्हें, ब्रिटिश हुकूमत तंत्र।।

*

सत्याग्रह की भूमिका, हिंसा कोसों दूर।

नहीं रक्त रंजित रहे, शांतिपूर्ण भरपूर।।

*

गांधी जी की सादगी, उतरी दिल के पार।

पहिन लँगोटी ने किया, जनमत को तैयार।।

*

समय-समय पर खोजता, हर युग अपनी राह।

सुखद शांति की कल्पना, हर मानव की चाह।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – पर्याप्त ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – पर्याप्त ? ?

बरगद, नीम, पीपल के

समूल काटकर कंठ,

चारों ओर लगा देते हैं

वे ऑरनामेंटल प्लांट,

आत्मघाती प्रदर्शन और

कृत्रिम हरियाली सर्वत्र व्याप्त है,

इस समय को समझने के लिए

बस इतना ही पर्याप्त है..!

© संजय भारद्वाज  

संध्या 7:45 बजे, 6 अक्टूबर 2024

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 3 अक्टूबर 2024 से नवरात्रि साधना आरम्भ हो गई है 💥

🕉️ इस साधना के लिए मंत्र इस प्रकार है-

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

देवीमंत्र की कम से कम एक माला हर साधक करें 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 208 – माँ भगवती की आराधना ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ ☆

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है श्री गणेश वंदना “माँ भगवती की आराधना”।) 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 208 ☆

🌹 माँ भगवती की आराधना 👏

मन में रख विश्वास सदा ही, भरती माँ झोली खाली है।

श्रद्धा से कर पूजन वंदन, आसन बैठी माँ काली है।।

दानव मारे चुन चुन कर के, वो रण चंडी कहलाती।

नरमुंडो की माला धारें, रक्त दंतिका दिखलाती।।

 *

जब चंड मुंड संघार करें, चामुंडा देवी नाम धरी।

मधुकैटभ को मारी मैया, शेरों वाली त्रिपुर सुन्दरी।।

पान सुपारी ध्वजा नारियल, मैया को भेंट चढाना हैं।

घर घर जोत जली मैया की,नितश्रद्धा भक्ति बढाना है।।

 *

गौरी अंबा रुप भवानी, ये शिवा शक्ति कल्याणी हैं।

मांगों मैया से जी भर के ,शुभ इच्छित फल वरदानी हैं।।

लाल चुनरिया सर पर ओढ़े, माँथे बिंदिया की लाली है।

अधरों पर मुस्कान लिए है, दो नैना कजरा डाली है।।

 *

बनी जूही चंपा अरु चमेली, गूथें माला बलिहारी है।

कानों कुंडल चाँद सितारे, झूले मोती नग प्यारी है ।।

शेरों पर बैठी है माता,येअष्ट भुजाओं वाली है।

सच्चे मन जो कोई ध्याये, करती उनकी रखवाली है।।

 *

पूरी हलुवा भोग लगाते, सब कष्ट मिटाने वाली है।

सदा सुहागन करने वाली, वो खप्पर धारे काली है।।

नव दुर्गा आराधन कर लो, माता की सेवा न्यारी हैं।

उनके ही आँचल में पलते, सुंदर दुनिया फुलवारी हैं।।

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 210 – कथा क्रम (स्वगत)… ☆ स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका भावप्रवण कविता – कथा क्रम (स्वगत)।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 210 – कथा क्रम (स्वगत)… ✍

(नारी, नदी या पाषाणी हो माधवी (कथा काव्य) से )

क्रमशः आगे…

और

क्या विचार

उठ रहे होंगे

माधवी के मन में,

शायद कोई नहीं जानता ।

शायद सब जानते हैं

सब जानते होंगे

किन्तु

छाई रही शब्द हीनता

तना रहा

मौन का वितान ।

(शायद

चल रहा था।

सत् असत्

अहं, प्रतिष्ठा

शील

लज्जा और

ग्लानि क

मनोयुद्ध)

ग्लानि से

उबरने

कर्तव्य बोध से

प्रेरित हुए ययाति ।

रचा माधवी का स्वयंवर |

देश देशान्तर के

राजा

राजकुमार

ऋषि कुमार

सभी हुए एकत्र ।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र” 

साभार : डॉ भावना शुक्ल 

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 211 – “वक्त क्यों झुर्रियाँ टटोलता है…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत वक्त क्यों झुर्रियाँ टटोलता है...)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 211 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “वक्त क्यों झुर्रियाँ टटोलता है...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी 

सच कहूँ  “सत्य”

यहाँ बोलता है ।

वक्त क्यों झुर्रियाँ

टटोलता है ॥

 

जो हंसता हूँ तो

कान हिलते हैं ।

बाद चुपचाप

होंठ मिलते हैं ।

 

आईना देखदेख

डोलता है ॥

 

सर्द जुल्फें

उड़ान भरती हैं ।

बदलियाँ बूँद –

बूँद झरती हैं ।

 

कपाट ज्यों ललाट

खोलता है ॥

 

दृश्य भर आँख

भी चमकती है ।

लाज तब यहाँ

पर खटकती है ।

 

जिसका अंदाज

कोई तौलता है ॥

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

06-10-2024

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – पीड़ा, जिजीविषा और मैं..(3) ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – पीड़ा, जिजीविषा और मैं..(3) ? ?

मैं हूँ

सो तुम हो,

मुझ पर ही

टिका है

तुम्हारा अस्तित्व,

‘जीती रहो’ पीड़ाओ!

खेद है,

तुम्हें ‘विजयी भव’

नहीं कह सकता मैं..,

अपनी जिजीविषा को

चिरंजीव होने का आशीर्वाद

पहले ही दे चुका हूँ मैं..!

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 3 अक्टूबर 2024 से नवरात्रि साधना आरम्भ हो गई है 💥

🕉️ इस साधना के लिए मंत्र इस प्रकार है-

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

देवीमंत्र की कम से कम एक माला हर साधक करें 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 194 ☆ # “तेरे दरबार में…” # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “तेरे दरबार में…”।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 194 ☆

☆ # “तेरे दरबार में…” # ☆

तेरे दरबार में दुहाई है

मेरी मजबूरी खींच लाई है

 

संगी साथी सब छूट गये हैं  

मेरे अपने सब रूठ गये हैं

जो कमाये थे मैंने अब तक

वो खनकते सिक्के सब लुट गये हैं

तुझे जगाने आवाज़ लगाई है

तेरे दरबार में दुहाई है

 

मेरी आंखों के तारे खो गये हैं

भीड़ में किसी के हो गये हैं

मेरी बगिया वीरान हो गई है

मेरे कुचले अरमान सो गये हैं

तेरी शक्ति ने आस बंधाई है

तेरे दरबार में दुहाई है

 

गरीबी नाइलाज मर्ज है

दुनिया बड़ी खुदगर्ज है

ज़ख्मों पर नमक छिड़कती है

रोते-रोते यह मेरी अर्ज है

तूने लाखों की बिगड़ी बनाई है

तेरे दरबार में दुहाई है

 

क्षमा कर दे तू मेरे अवगुण

होंठ गुनगुना रहे हैं तेरी ही धुन

अश्रुओं को चढ़ाने आया हूं

मोतियों को लाया हूं चुन-चुन

अरमानों की माला पिरोकर चढ़ाई है

तेरे दरबार में दुहाई है

मेरी मजबूरी खींच लाई है  /

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ – इंसान तुम बस प्रेम का… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

श्री राजेन्द्र तिवारी

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय कविता इंसान तुम बस प्रेम का…।)

☆ कविता  – इंसान तुम बस प्रेम का… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆ 

इंसान तुम बस प्रेम का प्रतिदान बनकर के चलो,

प्रेम का आभास निज उर में सदा रखकर के चलो,

कठिनाइयों से प्यार हो, ना कष्ट का आभास हो,

मुश्किलों में मुस्कुरा, मुस्कान बनकर के चलो,

इंसान तुम बस प्रेम का…

*

राह वीराने में बनाकर, दीप तूफां में जला दो,

हर दिलों में प्यार हो प्रेम की ज्योति जला दो,

भूले बिसरे राही के हमराज बनकर के चलो,

इंसान तुम बस प्रेम का…

*

राह से कंटक हटाकर, राह पुष्पों की बना दो,

प्रेम रूपी राह में प्रीति की कलियां खिला दो,

अंधकार का अंत हो रश्मि पुंज बनकर के चलो,

इंसान तुम बस प्रेम का…

*

महक उठे रजनीगंधा सुरसौरभि का “राज” बना दो,

शांति गीत का हो गुंजन ऐसा प्यार साज बना दो,

हो उदित अनुराग, ऐसी तान बनकर के चलो,

इंसान तुम बस प्रेम का प्रतिदान बनकर के चलो..

© श्री राजेन्द्र तिवारी  

संपर्क – 70, रामेश्वरम कॉलोनी, विजय नगर, जबलपुर

मो  9425391435

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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