हिन्दी साहित्य – कविता ☆ संदेशपूर्ण चौपाईयाँ ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ संदेशपूर्ण चौपाईयाँ  ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

मानवता का धर्म निभाना। ख़ुद को चोखा रोज़ बनाना।।

बुरे सोच को दूर भगाना। प्रेमभाव को तुम अपनाना।।(1)

 

दयाभाव के फूल खिलाना। पर-उपकारी तुम बन जाना।।

झूठ कभी नहिं मन में लाना। मानव बनकर ही दिखलाना।।(2)

 

निर्धन को तुम निज धन देना। उसके सारे दुख हर लेना।।

भूखे को भोजन करवाना। करुणा का तुम धर्म निभाना।।(3)

 

अंतर में उजियारा लाना। द्वेष,पाप तुम दूर भगाना।।

लोभ कभी नहिं मन में लाना। ख़ुद को सच्चा संत बनाना।।(4)

 

ईश्वर को तुम नहिं बिसराना। अच्छे कामों के पथ जाना।।

अपनी करनी को चमकाना। मानवता का सुख पा जाना।।(5)

 

भजन,जाप को तुम अपनाना। मंदिर जाकर ध्यान लगाना।।

वंदन प्रभुजी का नित करना। अपने पापों को नित हरना।।(6)

 

अहंकार को दूर भगाना। विनत भाव को उर में लाना।।

कोमलता से प्रीति लगाना। संतों की सेवा में जाना।।(7)

 

भजन,आरती में खो जाना। सद् वाणी प्रति राग जगाना।।

बुरी बात हर ,परे हटाना। दुष्कर्मों को आज मिटाना।।(8)

 

जीवन को नहिं व्यर्थ गँवाना। दान,पुण्य से प्रीति लगाना।।

हर प्राणी से दया दिखाना। स्वारथ को तो दूर भगाना।।(9)

 

नैतिकता के पथ पर चलना। समय गँवा,नहिं आँखें मलना।।

मानव बन ही रहना होगा। गंगा जैसा बहना होगा।।(10)

 

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 113 – गीत – तुम कैसे सब सहती हो ? ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  एक भावप्रवण गीत – तुम कैसे सब सहती हो ।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 113 – गीत – तुम कैसे सब सहती हो ✍

पल-पल विकल हुआ करता हूं तुम कैसे सब सहती हो।

कली सरीखी सुबह चटकती छा जाती है अरुणाई

एहसासों का सूरज सिर पर छाया करती पहुनाई

छाया कहां दहा करती है लगता तुम ही दहती हो।

लगता समय बहा जाता है कौन कहां पर ठहरा है

कामयाब क्या होगी मरहम गांव जहां पर गहरा है

नीर नयन से बहता रहता लगता तुम ही बहती हो।

क्षण भर भूल नहीं पाता हूं याद कहां से आएगी

भूल भटक कर आ भी जाए छवि अपनी ही पाएगी

ध्यान और धूनी में क्या है केवल तुम ही रहती हो ।

पल-पल विकल हुआ करता हूं तुम कैसे सब सहती हो।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव-गीत # 115 – “साधते हों सगुन…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण अभिनवगीत – “साधते हों सगुन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 115 ☆।। अभिनव-गीत ।। ☆

☆ || “साधते हों सगुन” || ☆

इस समूचे दिवस

का आलेख-

ज्यों रहा है लिख ।

समय का मंतिख ।

 

घूप कैसी हो

व कैसी छाँव ।

गली महतो की

रुकें ओराँव ।

 

साधते हों सगुन

देहरी पर ।

तो दिखे पोती

हुई कालिख ।

 

एक ही ओजस्व

का दाता ।

जिसे सारा विश्व

है ध्याता ।

 

शाक पर है वही

निर्भर देवता ।

तुम जिसे समझा

किये सामिख ।

 

इस लगन पर

सब नखत एकत्र ।

करेंगे प्रारंभ

अनुपम सत्र ।

 

पक्ष में होंगी

सभी तिथियाँ |

यही देंगे वर

शुभंकर रिख ।

 

मंतिख = भविष्य वक्ता,

सामिख= सामिष

लगन= लग्न

नखत= नक्षत्र

रिख= ऋषि

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

04-11-2022

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – डर ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ मार्गशीष साधना🌻

बुधवार 9 नवम्बर से मार्गशीष साधना आरम्भ होगी। इसका साधना मंत्र होगा-

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि –  डर ??

मनुष्य जाति में

होता है

एकल प्रसव,

कभी-कभार जुड़वाँ,

और दुर्लभ से दुर्लभतम

तीन या चार,

डरता हूँ,

ये निरंतर

प्रसूत होती लेखनी

और जन्मती रचनाएँ,

मुझे, जाति बहिष्कृत

न करा दें…..!

© संजय भारद्वाज 

(शुक्र. 4 दिस. 2015 रात्रि 9:56 बजे)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ उड़ान ☆ श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ ☆

श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ 

(साहित्यकार श्रीमति योगिता चौरसिया जी की रचनाएँ प्रतिष्ठित समाचार पत्रों/पत्र पत्रिकाओं में विभिन्न विधाओं में सतत प्रकाशित। कई साझा संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित। राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय मंच / संस्थाओं से 150 से अधिक पुरस्कारों / सम्मानों से सम्मानित। साहित्य के साथ ही समाजसेवा में भी सेवारत। हम समय समय पर आपकी रचनाएँ अपने प्रबुद्ध पाठकों से साझा करते रहेंगे।)  

☆ कविता ☆ उड़ान  ☆ श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ ☆

(वाम सवैया)

उड़ान भरें जब भी नभ में पर याद रहे क्षिति छूकर आया ।

हजार जलें जब दीप सदा तम रात घटे तब सुंदर पाया ।।

प्रभास सुदीर्घ सुधीर बने तम धीर धरे उजला घन साया ।

प्रसारित नित्य प्रभाव बना मन  मंदिर शंख सुनाद सुनाया ।।1!!

विनोद विनीत सदैव धरे जग आज सुकाज करे मन सारा ।

सुकांत सुभाष सुभाल रहे हिय देख अमोघ प्रवाहित धारा ।।

जहाँ सदभाव रखें हृद में छल दंभ बिसार कहे मन हारा ।

उड़ान भरें नव शीर्ष चढ़े मग धीरज प्रीति मुकाम सँवारा ।।2!!

© श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’

मंडला, मध्यप्रदेश 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 105 ☆ # पानी के बुलबुले… # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है दीप पर्व पर आपकी एक भावप्रवण कविता “#पानी के बुलबुले…#”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 104 ☆

☆ # पानी के बुलबुले… # ☆ 

जिंदगी कैसे कैसे घाव देती है

कहीं धूप तो कहीं छांव देती है

बिखर जाते है जांबाज भी कशमकश में

कहीं कमजोर बाजू तो

कहीं थके पांव देती है

 

कहीं कहीं फूलों की बहार है

कहीं कहीं खुशियाँ हज़ार है

कहीं शूल लिपटें है दामन से

कहीं जीत तो कहीं हार है

 

ठोकरें इम्तिहान लेती है

ठोकरें बुजदिलों के प्राण लेती है

ठोकरें सिखाती है जीने का सलीका

ठोकरें अमिट निशान देती है

 

कौन जाने वक्त कब बदल जाए

खोटा सिक्का भी कब चल जाए

बहुरंगी इस दुनिया में

कोई अपना ही कब छल जाए

 

हम तो अभावों में ही पले हैं

चुभते तानों से ही जले हैं

किससे फरियाद करे यारों

हम तो पानी के बुलबुले हैं/

 

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 115 ☆ नवगीत – किसे बताएं… दिल का हाल? ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित नवगीत – “किसे बताएं… दिल का हाल?…”)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 115 ☆ 

☆ नवगीत – किसे बताएं… दिल का हाल? ☆

हर चेहरा है

एक सवाल

शंकाकुल मन

राहत चाहे

कहीं न मिलती.

शूल चुभें शत

आशा की नव

कली न खिलती

प्रश्न सभी

देते हैं टाल

क्या कसूर,

क्यों व्याधि घेरती,

बेबस करती?

तन-मन-धन को

हानि अपरिमित

पहुँचा छलती

आत्म मनोबल

बनता ढाल

मँहगा बहुत

दवाई-इलाज

दिवाला निकले

कोशिश करें

सम्हलने की पर

पग फिर फिसले

किसे बताएं

दिल का हाल?

*

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२९-११-२०१४

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिंदी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #164 – 50 – “ज़िंदगी इसी तरह से निभती है जनाब…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “ज़िंदगी इसी तरह से निभती है जनाब …”)

? ग़ज़ल # 50 – “ज़िंदगी इसी तरह से निभती है जनाब …” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

मान करना ज़रूरी बाँह पकड़ने को सब तैयार,

पाक होना ज़रूरी है साथ चलने को सब तैयार।

हाथ हाथों में हर वक्त रहे मुमकिन नहीं होता,

थाह दिल की लो साथ धड़कने को सब तैयार।

आसमान के तारे तोड़ लाने की क़समें बेवजह,

प्यार पाने की हो नीयत निभने को सब तैयार।

नौबत हाथापाई की ना पाए कभी नौकझोंक में,

गरम ठंडा सहना आता हो हंसने को सब तैयार।

ज़िंदगी इसी तरह से निभती है जनाब आजकल,

राह आसान ‘आतिश’, साथ चलने को सब तैयार।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – दिगंबर ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ मार्गशीष साधना🌻

बुधवार 9 नवम्बर से मार्गशीष साधना आरम्भ होगी। इसका साधना मंत्र होगा-

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – दिगंबर ??

रुधिर से भी

तीव्र फूटती है

अंतर्वेदना की धार,

इस धार में छुपा

दिगंबर संसार…!

© संजय भारद्वाज

प्रात: 10.26 बजे, 26.10.2020

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 41 ☆ मुक्तक ।। हम मशीन बन कर नहीं, इंसान बन कर रहें ।।☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं।  आप प्रत्येक शनिवार श्री एस के कपूर जी की रचना आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण मुक्तक ।।हम मशीन बन कर नहीं, इंसान बन कर रहें।।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 41 ☆

☆ मुक्तक  ☆ ।।हम मशीन बन कर नहीं, इंसान  बन कर रहें।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

[1]

नए दौर में भी तुम,  दया साथ  रखो।

जमाना नया है पर,  हया साथ  रखो।।

हमें चमक ही  नहीं,  रोशनी  चाहिए।

बिना खोए पुराना तुम,नया साथ रखो।।

 [2]

पुरातन संस्कृति का, कभी हरण ना हो।

गलत प्रथा आदर्शों ,  का चलन ना हो।।

बहुमूल्य हैं पुरातन , संस्कार आज भी।

कदापि नारी सम्मान,  का क्षरण ना हो।।

[3]

संवेदना अवमूल्यन, पशुता की निशानी है।

हमें भावनाओं की पूंजी, नहीं मिटानी है।।

विश्वगुरु भारत महान, का अतीत रखें हम।

आधुनिकता दौड़ में, दौलत नहीं लुटानी है।।

[4]

हमाराआदरआशीर्वाद ही, हमाराअर्थ तंत्र है।

हमारा स्नेह प्रेम सरोकार, ही हमारा यंत्र है।।

हम मशीन नहीं बस ,  मानव बन कर रहें।

वसुधैव कुटुंबकम् भाव, ही हमारा गुरुमंत्र है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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