हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रचना संसार #24 – कविता – प्रेम पंथ… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ☆

सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम कविता प्रेम पंथ

? रचना संसार # 24 – कविता – प्रेम पंथ…  ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

प्रेम पंथ पर चलते जाओ,

पथिक मिलेगा तुम्हें किनारा।

सच्चे प्रेमी के हिय मे ही,

नित्य बहे शुचि प्रेमिल धारा।।

राधा सी तुम प्रीति करो अब,

मीरा सी बनके  दीवानी।

युगों युगों तक याद करेगी,

दुनिया तेरी अमर कहानी ।।

बनो श्याम से सखा जगत में,

नित्य बढ़ेगा मान तुम्हारा।

प्रेम पंथ पर चलते जाओ,

पथिक मिलेगा तुम्हें किनारा।।

 *

प्रीत अलौकिक अनुपम होती,

नव विश्वास जगाती मन में।

स्वर्ग सरिस सुख सागर मिलता,

खुशियां भर देती जीवन में।।

संयम सदा प्रेम में रखिए,

वेद ऋचा सा जीवन सारा।

प्रेम पंथ पर चलते जाओ,

पथिक मिलेगा तुम्हें किनारा।।

 *

अर्पण संजीवन बूटी है,

गंग धार सी निर्मल पावन।

भाव अमल हो सागर जैसे,

मर्यादा के पुष्प लुभावन।।

आत्मबोध में बसे नेह का,

मिले निबल को सदा सहारा।।

प्रेम पंथ पर चलते जाओ,

पथिक मिलेगा तुम्हें किनारा।।

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- [email protected], [email protected]

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #252 ☆ भावना के दोहे – नवरात्रि ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं भावना के दोहे – नवरात्रि)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 252 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे –  नवरात्रि ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

माँ तुम जननी जगत की, करती जग उद्धार।

कृपा आपकी बरसती, मिलता प्यार अपार।।

*

दीप ज्ञान का जल रहा, लगता माँ में ध्यान।

 राह कठिन है माँ करो, मेरा तुम कल्याण।।

*

ब्रह्मचारिणी  मातु को, करते सभी प्रणाम।

नौ देवी की नवरात्रि, द्वितीय तेरे नाम।।

*

तप करती  तपश्चारिणी, निर्जल निरहार।

हाथ जोड़कर पूजते, हो देवी अवतार।।

*

करना अंबे तुम दया, रखना मेरी लाज।

भक्तों के तुम कर रही, माता पूरे काज।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #234 ☆ कविता – समय… ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है कवितासमय आप  श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 234 ☆

☆ कविता – समय ☆ श्री संतोष नेमा ☆

अब निद्रा से जागो भाई

अवसर ने आवाज लगाई

*

बढ़ो खोलकर अपनी आँखें

समय स्वयं दे रहा दुहाई

*

कूद पड़ो इस धर्म युद्ध में

लेकर साहस की अँगड़ाई

*

दरवाजे पर शत्रु खड़ा है

लड़नी होगी बड़ी लड़ाई

*

पहचानो अपने दुश्मन को

कौन हितैषी समझो भाई

*

बहुरुपियों की भीड़ बहुत है

समझो तुम इनकी चतुराई

*

माफ न करता समय किसी को

हो ‘संतोष’ न फिर भरपाई

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 70003619839300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ चंदन ☆ श्री अनिल वमोरकर ☆

श्री अनिल वमोरकर 

☆ कविता – चंदन ☆ श्री अनिल वमोरकर ☆

चंदन सा शरीर

अनमोल सा श्वास

अज्ञानांधकार से

माटीमोल जीवन प्रवास….

 

लालच, ईर्षा, बैर

द्वेष, क्रोध को लेकर

असफल जीवन जी रहे

सार्थक कैसा ये जीवन प्रवास?…

 

श्वास रुपी वृक्ष

कम रह जाएंगे

अहसास तब होगा

जब शाश्वत आनंद न पाओंगे…

 

प्रेम, परोपकार

भाई-चारा, सौहार्द व्यवहार

यही है शाश्वत आनंद किल्ली

सोचो, समझो अभी भी जाओ सवंर…

 

©  श्री अनिल वामोरकर

अमरावती

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 222 ☆ गीत – बहुत दिखावा, जग है छइयाँ… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मानबाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंतउत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य प्रत्येक गुरुवार को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 222 ☆ 

गीत – बहुत दिखावा , जग है छइयाँ ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

बहुत दिखावा , जग है छइयाँ

माया रे संसार।

मुँह देखी में सिमट गया रे

सारा ममता , प्यार।

जीते जी ये करें ईर्ष्या

कपट, घृणा की छानी रे।

आँखों में भी सूख रहा अब

मम भावों का पानी रे।

 *

अदले का बदला है सारा

मोबाइल अब सार।

मुँह देखी में सिमट गया रे

सारा ममता , प्यार।

 *

कोठी, कनका , कार ही सब कुछ

रिश्तों की वह डोर कहाँ।

भाव प्रेम का कहाँ वो आँचल

बढ़ता ही अब शोर वहाँ।

 *

बढ़े आदमी सभी हुए अब

टूट रहे अब तार।

मुँह देखी में सिमट गया रे

सारा ममता , प्यार।

 *

भाग रहा जग चाहत मैं ही

अपने से भी दूर रहा।

दीपक बाती बन कब पाया

उड़ता हुआ कपूर रहा।

 *

छोटी-छोटी बात अहमवश

बढ़ीं बहुत तकरार।

मुँह देखी में सिमट गया रे

सारा ममता, प्यार।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – पीड़ा, जिजीविषा और मैं… ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – पीड़ा, जिजीविषा और मैं… ? ?

(1)

पीड़ा और वेदना

तीव्रता से जा मिलीं,

मुझे मथने लगीं,

माँ सुनाती थी कहानी

मेंढ़क-मेंढ़की

खौलते पानी में

खदबद सीजने लगे,

उनकी मदद को

दौड़े थे हरि..,

मेरे लिए

जिजीविषा बनकर

संग खड़े थे हरि..,

तीव्रता हाँफने लगी,

वेदना-पीड़ा

मुँह बाएँ खड़ी रहीं,

नकार नहीं सकता,

सो उनका अस्तित्व भी

पलता रहा,

पर ‘माइंड ओवर बॉडी’

का सूत्र लिए

जीवनभर मैं चलता रहा..!

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 3 अक्टूबर 2024 से नवरात्रि साधना आरम्भ होगी💥

🕉️ इस साधना के लिए मंत्र इस प्रकार होगा-

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

देवीमंत्र की कम से कम एक माला हर साधक करे🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #249 – कविता – ☆ जहर भी अब शुध्द मिलता है कहाँ… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता “जहर भी अब शुध्द मिलता है कहाँ…” ।)

☆ तन्मय साहित्य  #249 ☆

☆ जहर भी अब शुध्द मिलता है कहाँ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

चमकते बाजार में सब भ्रमित, है कुछ ज्ञात क्या

आवरण में छिपे सच के,  झूठ का अनुपात क्या।

*

जहर भी अब मोल महँगे, शुद्ध मिलता है कहाँ

जरूरी जो वस्तुएँ, उनकी करें हम बात क्या।

*

माह सावन और भादो में, तरसते रह गए

बाद मौसम के, बरसते मेह की औकात क्या।

*

तुम जहाँ हो, पूर्व दो दिन और कोई था वहाँ

कल कहीं फिर और , ऐसा अल्पकालिक साथ क्या।

*

चाह मन की तृप्त, तृष्णायें न जब बाकी रहे

सहज जीवन की सरलता में, भला शह-मात क्या।

*

छोड़कर परिवार घर को, वेश साधु का धरा

चिलम बीड़ी न छुटी, यह भी हुआ परित्याग क्या।

*

अब न बिकते बोल मीठे, इस सजे बाजार में

एक रँग में हैं रँगे सब, क्या ही कोयल काग क्या।

*

अनिद्रा से ग्रसित मन, जो रातभर विचरण करे

पूछना उससे कभी, सत्यार्थ में अवसाद क्या।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 73 ☆ समझौते अटपटे हुए हैं… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “समझौते अटपटे हुए हैं…” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 73 ☆ समझौते अटपटे हुए हैं… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

घर में ही घर बँटे हुए हैं

दीवारों से सटे हुए हैं ।

*

अम्मा बाबूजी परछी में

आँगन तुलसी कटे हुए हैं ।

*

बड़की भौजी अब भी कहती

समझौते अटपटे हुए हैं ।

*

सबके सब कानून कायदे

बच्चों तक को रटे हुए हैं।

*

किसको कहें कौन है दोषी

सबके सब तो छटे हुए हैं ।

*

अपनापन खो गया कहीं पर

रिश्ते सारे फटे हुए हैं ।

*

भरें उड़ान भला अब कैसे

सबके ही पर कटे हुए हैं ।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 77 ☆ अब शाखे गुलिस्ता पै नहीं एक भी पत्ता… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “अब शाखे गुलिस्ता पै नहीं एक भी पत्ता“)

☆ साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 77 ☆

✍ अब शाखे गुलिस्ता पै नहीं एक भी पत्ता… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

इख़्लास की नायाब सदा ढूंढ रहा हूँ

पागल हूँ जमाने में वफ़ा ढूंढ रहा हूँ

 *

बारूद के ढेरों पै लिए हाथ में मश्अल

महकी हुई पुर कैफ़ फ़ज़ा ढूंढ रहा हूँ

 *

मैं तेरी जुस्तज़ू में भटकता हूँ जा-ब-जा

दुनिया समझ रही है ख़ुदा ढूंढ रहा हूँ

 *

दुनिया है कि सुख चैन से महरूम हुई है

इक मैं हूं कि मदहोश अदा ढूंढ रहा हूँ

 *

दफ़्तर में घिरी रहती है अग्यार से हरदम

मैं उसकी निगाहों में हया ढूंढ रहा हूँ

 *

अब शाखे गुलिस्ता पै नहीं एक भी पत्ता

नादान हूँ बुलबुल की सदा ढूंढ रहा हूँ

 *

अब कृष्ण सुदामा की कहाँ मित्रता अरुण

मैं व्यर्थ ही अब ऐसे सखा ढूंढ रहा हूँ

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ ऋतूओं का राजा बसंत… ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

सुश्री प्रभा सोनवणे

? कविता ?

☆ ऋतूओं का राजा बसंत☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

है वसुंधरा सजधज के तैयार,

छायी है  सृष्टी पे बसंत बहार।

फूल फूल पर भँवर मंडराए

प्राणी मात्र गीत मिलन के गाए ।

 *

मौसम आया है प्यार का

पशु पंछियों के शृंगार का।

बेहद खुश है सब किसान,

फसल हुई है अब जवान ।

 *

आए फसल कटाई के त्यौहार

पोंगल, बिहू ,बैसाखी शानदार।

बोले कोयल भी मीठे बोल

कुहूऽऽऽ कुहू  स्वर बडे अनमोल।

 *

पीले वसन पहिन सुंदरियाँ  

हँसती नाचती है सजनियाँ।

मस्त हवा में लहराती है पतंग,

खुश है सभी ऋतू राजा के संग ।

 *

मर्द गाते हैं, ढोल बजाते हैं

पीते और…..  पिलाते हैं ।

रंग लाता है बसंत भरपूर,

हो जाता है ये मौसम मशहूर।

© प्रभा सोनवणे

संपर्क – “सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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