हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – त्रिलोकी ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

आज की साधना

माधव साधना सम्पन्न हुई। दो दिन समूह को अवकाश रहेगा। बुधवार 31 अगस्त से विनायक साधना आरम्भ होगी।

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – त्रिलोकी ??

मैं क्या हूँ,

कौन हूँ,

किसलिए हूँ धरा पर?

जाने कितने

फेरे करा चुकी

तीन प्रश्नों की

यह त्रिलोकी..?

© संजय भारद्वाज

12.9.2022, प्रातः 4:35 बजे

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ प्रेम भाव प्रार्थना ☆ श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ ☆

श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ 

(साहित्यकार श्रीमति योगिता चौरसिया जी की रचनाएँ प्रतिष्ठित समाचार पत्रों/पत्र पत्रिकाओं में विभिन्न विधाओं में सतत प्रकाशित। कई साझा संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित। राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय मंच / संस्थाओं से 150 से अधिक पुरस्कारों / सम्मानों से सम्मानित। साहित्य के साथ ही समाजसेवा में भी सेवारत। हम समय समय पर आपकी रचनाएँ अपने प्रबुद्ध पाठकों से साझा करते रहेंगे।)  

☆ कविता ☆ प्रेम भाव प्रार्थना ☆ श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ ☆

(विधा-राग छंद)

प्रेम भाव रख सभी चलो, सदा चलो ।

हिय सदा प्रमाण दें बढ़े चलो, गढ़े चलो ।।

कामना रखें हृदय सदैव प्रीत हो ।

दीप सा जला करें प्रकाश मीत हो ।।1!!

 

जिंदगी नवीन प्रार्थना प्रभाव हो ।

आज हो नहीं कुभाव प्रीत चाव हो ।।

राग द्वेष आज भूलना न घाव हो  ।

लग रहे तुणीर बंदगी सुझाव हो ।।2!!

 

रागनी सुभाल में विराज आज हो ।

सादगी सुभाव कामना सुकाज हो ।।

साधना प्रयास आज जो सुमाथ हो ।

जीतना सुजान हार रख न साथ हो ।।3!!

 

सत्य राह जीत बन सुभाल ज्ञान है ।

शूल जाल सब बिछा बना विधान है ।।

जाति भाव भेद तोड़ आज कामना ।

बोलना मिठास लें  सुझाव प्रार्थना ।।4!!

 

© श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ 

मंडला, मध्यप्रदेश 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 105 – गीत – यदि मैं करता कुछ शब्दों का… ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके गीत – यदि मैं करता कुछ शब्दों का…।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 105 – गीत – यदि मैं करता कुछ शब्दों का✍

यदि मैं करता हूं शब्दों का उच्चारण।

सपनों का संबंध सत्य से हो जाता

यदि मैं करता कुछ शब्दों का उच्चारण।

 

अधर अधीन हुए थे लेकिन लक्ष्मण रेखा बन गया अहम

संदेहों के  लाक्षागृह      में साध लिया साधुओं ने संयम।

 

मैं समझा तुम खोज रहे हो संकोच शिफ्ट प्रश्नों का हल

किंतु दहकती रही कामना लुप्त रहा उत्तर का मृग जल।

 

तृष्णा का संबंध तृप्ति से हो जाता

यदि मैं करता संकेतों  का निर्धारण

यदि मैं करता कुछ शब्दों का उच्चारण।

 

आकांक्षा की आंख खोलकर आकर्षण ने आँजा काजल।

लेकिन विकल वयस्क दृष्टि को ज्ञात नहीं था यह सारा छल।

 

 साँस हुई  मीरा सी तन्मय ध्यान तुम्हारा आठ  प्रहर

मुग्धा थी,  बावरी हो  गई तन्मयता ने पिया  जहर।।

 

आँखों का अनुबंध रुप से हो जाता

तुम विशेष से हो जाते तब साधारण ।।

यदि मैं करता कुछ शब्दों का उच्चारण।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव-गीत # 107 – “कई कठिनाइयों ने…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण अभिनवगीत – “कई कठिनाइयों ने…।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 107  ☆।। अभिनव-गीत ।। ☆

☆ || “कई कठिनाइयों ने”|| ☆

कुछ परेशानियाँ लेकर

उधार आया हूँ

साथ में मोल, दिक्कतें

दो चार  लाया हूँ

 

मुश्किलों का मुझे

बाजार में मिला ठेका

कई कठिनाइयों ने

वादा किया आने का

 

कुछेक काँटों के गुजरा

हूँ मोड़ से बेशक

कई छालों का गुमशुदा

विचार लाया हूँ

 

यहा सहूलियत से

मिलती हैं समस्यायें

आपको चाहिये तो

कृपा कर यहाँ आयें

 

लिखा था झूठ फर्म

के नियोन बोर्डों पर

उन्हीं से माँग कर

घटिया प्रचार लाया हूँ

 

रहे परिवार यहाँ कई

हजार रोगों के

कोई कहता ये तजुर्वे

है कई लोगों के

 

वो कि जिनको उदास

रहने की ही आदत है

उन्हें मायूसियाँ ही

खुशगवार लाया हूँ

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

18-08-2022

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – विश्वास ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

आज की साधना

माधव साधना सम्पन्न हुई। दो दिन समूह को अवकाश रहेगा। बुधवार 31 अगस्त से विनायक साधना आरम्भ होगी।

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – विश्वास ??

रोज़ रात

सो जाता हूँ

इस विश्वास से कि

सुबह उठ जाऊँगा,

दर्शन कहता है-

साँसें बाकी हैं;

सो उठ पाता हूँ,

मैं सोचता हूँ

विश्वास बाकी है

सो उठ जाता हूँ..!

© संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ ‘त्रिशंकु’… श्री संजय भारद्वाज (भावानुवाद) – ‘Suspended…’ ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.)

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi poem त्रिशंकु  .  We extend our heartiest thanks to the learned author  Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit,  English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.)

श्री संजय भारद्वाज जी की मूल रचना 

? त्रिशंकु ??

स्थितियाँ हैं कि

जीने नहीं देती और

मेरी जिजीविषा है कि

मरने नहीं देती..,

सुनो सत्यव्रत!

तुम अकेले

त्रिशंकु नहीं हुए

इस जगत में..!

© संजय भारद्वाज

शुक्रवार दि. 26.08.2016, प्रातः 7:40 बजे 

 English Version by – Captain Pravin Raghuvanshi
? Suspended… ??

Circumstances

don’t let me live…

But my will-to-live

doesn’t allow me to die…

Listen Satyavrat!

You alone are not the only

Trishanku*, -the suspended one

in this world..!

~Pravin

* ( Trishanku Due to the stubbornness of King Satyavrat, Sage Vishwamitra tried to send him to heaven bodily. Indra pushed him down, but then, the enraged Vishwamitra did not allow him to fall on the earth. It is believed that Satyavrat remained hanging upside down and was called Trishanku.)

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈  Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 97 ☆ # शिक्षक दिवस पर… # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# शिक्षक दिवस पर… #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 97 ☆

☆ # शिक्षक दिवस पर… # ☆ 

जो भोर की किरण बनकर आया

जिसने कली कली को

छू कर जगाया

जो ओस की बूंदों में झिलमिलाया

वो हमारे जीवन में

शिक्षक कहलाया

 

उसने हमको पढ़ना सिखाया

उसने हमको लिखना सिखाया

उसने हमको बोलना सिखाया

उसने हमको लड़ना सिखाया

 

विद्या का दिया हमको दान

समझाया सत्य-असत्य का ज्ञान

हमारे जीवन की खाली स्लेट पर

जीवन का मर्म समझाकर

भर दिए हममें प्राण

 

हमारी हर गलती पर हमको डांटा

फिर भी ना सुधरें तो मारा चांटा

हमारे साथ साथ जाग जाग कर

हमारे यश-अपयश को बांटा

 

प्रेम, भाईचारे का महत्व बताया

धर्म -अधर्म का अर्थ समझाया

त्याग, करुणा, दया

हमारे अंत:करण में डाली

अहिंसा पर चलने वाला

सच्चा इंसान बनाया

 

हम बिन गुरु ज्ञान कहां से पाते

हम बिन गुरु समझ कहां से लाते

जीवन की राह पर भटकते रहते

हम बिन गुरु शिखर पर कहां से जाते

 

आओ, अपने गुरु के आगे

शीश झुकाएं

गुरु की शिक्षा को

अपने जीवन में लाऐं

गुरु का आदर्श

विद्यार्थी बनकर

चलो, आज

शिक्षक दिवस मनाएं/

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588\

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 109 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

?  Anonymous Litterateur of Social Media # 109 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 109) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus. His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>  कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 109 ?

☆☆☆☆☆

गिले शिकवे ही तो थे

आंखों से गिर गए होंगे,

होठों से तो शिकायत

कभी की ही नहीं हमने…

 

Just whines-n-grumbles, they were…

Must have fallen from the eyes,

As never,  did I even make

complaints  from  the  lips..!

☆☆☆☆☆

अब समझ लेता हूँ,

मीठे लफ़्ज़ों की कड़वाहट,

हो गया है ज़िंदगी का

तजुर्बा थोड़ा – थोड़ा…!

I’m able to understand now,

the bitterness of sweet words,

A little bit of experience of the

life, I too have gone through…!

☆☆☆☆☆

ख़ता  का  तो  पता  नहीं,

बस सजा काटे जा रहे हैं,

मुश्किलें  तमाम  छुपा  कर

बस ख़ुशियाँ बाँटे जा रहे हैं…

Not sure about the fault, but

just serving the punishment,

Hiding all the rigmarole of life,

just doling out happiness…

☆☆☆☆☆

जिसे कभी न आने की

कसमें देकर आया हूं,*

उसी  के  क़दमों  की

आहट का इंतजार भी है…

Whom I have given an

oath of not to visit,

But, desperately wait for the

sound of his footsteps, too..!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 107 ☆ गीत : भाग्य निज पल-पल सराहूँ… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित दोहा सलिला: शिक्षक पारसमणि सदृश…)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 108 ☆ 

☆ दोहा सलिला: शिक्षक पारसमणि सदृश… ☆

*

शिक्षक पारसमणि सदृश, करे लौह को स्वर्ण.

दूर करे अज्ञानता, उगा बीज से पर्ण..

*

सत-शिव-सुंदर साध्य है, साधन शिक्षा-ज्ञान.

सत-चित-आनंद दे हमें, शिक्षक गुण-रस-खान..

*

शिक्षक शिक्षा दे सदा, सकता शिष्य निखार.

कंकर को शंकर बना, जीवन सके सँवार..

*

शिक्षक वह जो सिखा दे, भाषा गुण विज्ञान.

नेह निनादित नर्मदा, बहे बना गुणवान..

*

प्रतिभा को पहचानकर, जो दिखलाता राह.

शिक्षक उसको जानिए, जिसमें धैर्य अथाह..

*

जान-समझ जो विषय को, रखे पूर्ण अधिकार.

उस शिक्षक का प्राप्य है, शत शिष्यों का प्यार..

*

शिक्षक हो संदीपनी, शिष्य सुदामा-श्याम.

बना सकें जो धरा को, तीरथ वसुधा धाम..

*

विश्वामित्र-वशिष्ठ हों, शिक्षक ज्ञान-निधान.

राम-लखन से शिष्य हों, तब ही महिमावान..

*

द्रोण न हों शिक्षक कभी, ले शिक्षा का दाम.

एकलव्य से शिष्य से, माँग अँगूठा वाम..

*

शिक्षक दुर्वासा न हो, पल-पल दे अभिशाप.

असफल हो यदि शिष्य तो, गुरु को लगता पाप..

*

राधाकृष्णन को कभी, भुला न सकते छात्र.

जानकार थे विश्व में, वे दर्शन के मात्र..

*

महीयसी शिक्षक मिलीं, शिष्याओं का भाग्य.

करें जन्म भर याद वे, जिन्हें मिला सौभाग्य..

*

शिक्षक मिले रवीन्द्र सम, शिष्य शिवानी नाम.

मणि-कांचन संयोग को, करिए विनत प्रणाम..

*

ओशो सा शिक्षक मिले, बने सरल-हर गूढ़.

विद्वानों को मात दे, शिष्य रहा हो मूढ़..

*

हो कलाम शिक्षक- ‘सलिल’, झट बन जा तू छात्र.

गत-आगत का सेतु सा, ज्ञान मिले बन पात्र..

*

ज्यों गुलाब के पुष्प में, रूप गंध गुलकंद.

त्यों शिक्षक में समाहित, ज्ञान-भाव-आनंद..

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२४-८-२०१६

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कविता – आत्मानंद साहित्य #140 ☆ दर्द उभय  लिंगी प्राणियों का ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 140 ☆

☆ ‌ कविता ☆ ‌दर्द उभय  लिंगी प्राणियों का ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆

प्रकृति की एक छोटी सी भूल ।

दे रही है आजीवन शूल।

जिधर भी जाओ, विलग दिखते

न कहीं कुछ होता अनुकूल।।1 

 

पूर्ण  है मानव की काया

किंतु देता न जगत सम्मान।

हर तरफ होती बंकिम दृष्टि,

सार्वजनिक मिलता है अपमान।।2 

 

उभरता अपने मन में क्लेश

दे रहे हम जग को संदेश

योग्यता हम में नहीं है कम

कर सकेंगे स्वदेश उन्मेष।।3 

 

मूल्य समझे समाज सारा।

हम भी हैं नीलगगन तारा।

नहीं क्षमता में कुछ भी कम,

कर्म से कभी नहीं हारा।।4 

 

योग्यता क्षमता भरी अपार।

चाहिए बस समाज का प्यार।

करेंगे इस के हित में त्याग

हमारे हिय में भी है आग।।4

 

मिले अवसर करेंगे काम

देश का हम भी करेंगे नाम

जाति से धर्म से है नाता

हमारे भी हैं प्रभु श्री राम।।5

 

उपेक्षा से न बनेगा काम ।

नपुंसक का देकर बस नाम।

करेंगे हम इस जग का कर्म,

विश्व में होगा राष्ट्र का नाम।।5

 

हम भी सहते हैं पीड़ा दंश

हृदय में बसता ईश्वर अंश।

ज्ञान में नहीं किसी से कम

हमें यदि समझा जाए हंस।।6

 

हम भी हैं माता की संतान।

चाहिए हमको भी पहचान।

ज्ञान शिक्षा श्रम से हम भी

करेंगे भारत का उत्थान।।7

 

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय 

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