हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – सृजन ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – सृजन ? ?

?

कठिन परीक्षाएँ सिर पर हैं

तुम्हें कभी तैयारी करते नहीं देखा..?

समस्या क्रमांक दो (क) के

तीसरे उपप्रश्न ने कहा,

जटिल प्रश्नपत्र बने

जीवन को सांगोपांग निहारा,

पारंपरिक उत्तरों को

निकासी द्वार दिखाया,

कलम स्याही में डुबोई

और मैं हँस पड़ा….!

?

© संजय भारद्वाज  

(प्रात: 9:10, गुड़ी पाडवा, संवत 2076)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥  मार्गशीर्ष साधना 16 नवम्बर से 15 दिसम्बर तक चलेगी। साथ ही आत्म-परिष्कार एवं ध्यान-साधना भी चलेंगी💥

 🕉️ इस माह के संदर्भ में गीता में स्वयं भगवान ने कहा है, मासानां मार्गशीर्षो अहम्! अर्थात मासों में मैं मार्गशीर्ष हूँ। इस साधना के लिए मंत्र होगा-

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

  इस माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को गीता जयंती मनाई जाती है। मार्गशीर्ष पूर्णिमा को दत्त जयंती मनाई जाती है। 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 139 ☆ मुक्तक – ।।सोने की चिड़िया वाला हिंदुस्तान नया बनाना है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ “श्री हंस” साहित्य # 139 ☆

☆ मुक्तक – ।।सोने की चिड़िया वाला हिंदुस्तान नया बनाना है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

[1]

वजह बेवजह जरूर ही एक   काम  हो।

कुछ हिस्सा वक्त का देश के भी नाम   हो।।

कुछ कर्तव्य हो एक नागरिक होने की भी।

बनो सजग प्रहरी न ही गरिमा बदनाम हो।।

[2]

हमारा देश एक बगिया हम सब फूल हैं।

मातृ भूमि की मिट्टी बने माथे की धूल है।।

देश देता हमेंअधिकार और कुछ जिम्मेदारी।

हटाएं खुद भी राह का हर   एक शूल है।।

[3]

हमनें बहुत बलिदानों से यह आजादी पाई है।

लेकिनआजादी साथ ही दायित्व भी लाई है।।

जिम्मेदारी स्वाधीनता को सुरक्षित रखने की।

इतिहास गवाह कि शहीदों के लहू से आई है।।

[4]

हम देशवासी हमें ही तो   देश बदलना है।

नई सदी में एक नई राह पर लेकर चलना है।।

भारत को विश्व गुरु विश्व  नायक है बनाना।

सोने की चिड़िया वाला   देश अब ढलना है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 204 ☆ हमारा नगर जबलपुर प्यारा… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित – “हमारा नगर जबलपुर प्यारा। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे.।) 

☆ काव्य धारा # 204 ☆ हमारा नगर जबलपुर प्यारा ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

रेवातट पर बसा जबलपुर पावन प्यारा शहर हमारा

जिसकी मनभावन माटी ने हमें संवारा हमें निखारा

*

इसके वातावरण वायु जल नभ ने नित ममता बरसाया

इसके शिष्ट समाज सरल ने सदा नया उत्साह बढाया

 *

इसके प्राकृत दृश्य और इतिहास ने नित नये स्वप्न जगाये

इससे प्राप्त विशेष ज्ञान ने पावन सुखद विचार बनाये

 *

भरती है आल्हाद हृदय मे इसकी सुदंर परम्पराएँ 

इसकी धार्मिक भावनाओ ने भक्तिभाव के गीत गुंजाए 

 *

इसकी हर हलचल में दिखता मुझको एक संसार सुहाना

श्वेत श्याम चट्टानो में है भरा प्रकृति का सुखद खजाना

 *

दूर दूर तक फैला दिखता विंध्याचल का हरित वनांचल

कृपा बांटता प्यास बुझाता माँ रेवा का पावन आंचल

 *

इसकी ही धडकन ने मुझको बना दिया साहित्यिक अनुरागी

संवेदी मन में ज्ञानार्जन की उत्सुकता उत्कण्ठा जागी

 *

यहीं ज्ञान वैराग्य भक्ति तप मे रत हैं साधू सन्यासी

उद्योग, व्यापारो व्यवसाय में है कर्मठ सब नगर निवासी

 *

शिक्षा रक्षा और चिकित्सा के कई है संस्थान यहाँ पर

सडक रेल औं वायुयान की यात्राओं हित साधन तत्पर

 *

सहज सुलभ सुविधायें सभी वे जो जीवन हित हैं सुखकारी

बाल युवा वृद्धो के जीवन हित संभव सुविधाये सारी

 *

लगता मेरा शहर मुझे प्रिय अनुपम सब नगरों से ज्यादा

परिवारी स्वजनों से ज्यादा यहाँ सबों का भला इरादा

इसकी सात्विक रूचि से संपोषित है मेरी जीवन धारा

यह ही पालक पोषक और परम प्रिय पावन नगर हमारा

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रचना संसार #30 – गीत – आलोकित मनमंदिर मेरा… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ☆

सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम गीतआलोकित मनमंदिर मेरा

? रचना संसार # 29 – गीत – आलोकित मनमंदिर मेरा…  ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

☆ 

रोम -रोम रोमांचित होता,

बहती प्रेम सुधा रस धारा।

जब भी कविता लिखने बैठूँ ,

लिख जाता है नाम तुम्हारा।।

 *

अन्तर्मन में बसते प्रियतम ,

हिय में है प्रतिबिंब तुम्हारा।

गंगा -यमुनी संगम अपना ,

जन्म -जन्म का प्रेम हमारा।।

रूप मनोहर कामदेव सा ,

तुम्हें निरखता मन मतवारा।

रोम -रोम रोमांचित होता ,

बहती प्रेम सुधा रस धारा।।

 *

सृजन करूँ जब – जब मैं साजन,

भावों में आती छवि प्यारी।

गीत ग़ज़ल रस अलंकार हो,

सप्त सुरों की सरगम सारी।।

पढ़कर मन नैनों की भाषा,

लिखता मन शृंगार दुलारा।

रोम -रोम रोमांचित होता,

बहती प्रेम सुधा रस धारा।।

 *

आलोकित मनमंदिर मेरा,

अंग – अंग में प्रीत समाई।

सन्दल सी सुरभित काया है,

पड़ी सजन की जो परछाई।।

रात अमावस दीप जले हैं,

पूनम सा फैला उजियारा।

रोम -रोम रोमांचित होता,

बहती प्रेम सुधा रस धारा।।

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- [email protected], [email protected]

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #257 ☆ भावना के दोहे ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं भावना के दोहे )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 257 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे  ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

बता दिया उसने मुझे, अपने दिल का राज।

कैसे कह दूँ मैं तुम्हें, बन जाओ सरताज।।

*

 अश्क बहाने क्यों अभी, आए मेरे पास।

दिल तेरा कहने लगा, मैं हूँ  तेरी खास।।

*

कहते क्यों हो  जीवनी, भोर नहीं है रात।

कैसे तुम यह भूलते, होती कितनी  बात।।

*

समझ गए हो आज तुम, अपनी ही तकदीर।

आए जब से तुम यहाँ, हर ली मेरी पीर।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #239 ☆ एक बुंदेली गीत – हिंदुस्तान है सबको भैया… ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है  आपका  – एक बुंदेली गीत – हिंदुस्तान है सबको भैया…  आप  श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

 ☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 239 ☆

☆ एक बुंदेली गीत – हिंदुस्तान है सबको भैया ☆ श्री संतोष नेमा ☆

मिल जुल खें सब रहबे बारे

बात समझ खें कहवे बारे

*

सड़कों पै बिन समझें उतरें

बातें ऊंची करवे बारे

*

गंगा जमुनी तहजीब हमारी

बा में हम सब पलवे बारे

*

हमरी एकता हमरी ताकत

कम हैं बहुत समझवे बारे

*

नाहक में बदनाम होउत हैं

जबरन सड़क पै उतरवे बारे

*

हिंदुस्तान है सबको  भैया 

सुखी “संतोष”संग रहवे बारे

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 70003619839300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – मुग़ालता ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – मुग़ालता ? ?

?

सूखे के

मारे थे सारे,

सावन बन दिया साथ,

इस मुग़ालते में

पर वे रहे,

अकेले ही

उलीच लाए बरसात..!

?

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥  मार्गशीर्ष साधना 16 नवम्बर से 15 दिसम्बर तक चलेगी। साथ ही आत्म-परिष्कार एवं ध्यान-साधना भी चलेंगी💥

 🕉️ इस माह के संदर्भ में गीता में स्वयं भगवान ने कहा है, मासानां मार्गशीर्षो अहम्! अर्थात मासों में मैं मार्गशीर्ष हूँ। इस साधना के लिए मंत्र होगा-

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

  इस माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को गीता जयंती मनाई जाती है। मार्गशीर्ष पूर्णिमा को दत्त जयंती मनाई जाती है। 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #49 ☆ कविता – “मैं एक ग़रीब हूँ, हाँ मैं इंसान हूँ…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

श्री आशिष मुळे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 49 ☆

☆ कविता ☆ “मैं एक ग़रीब हूँ, हाँ मैं इंसान हूँ …☆ श्री आशिष मुळे ☆

तुम्हारी इस कायनात का

एक मामूली ज़र्रा हूँ

छोटीसी एक ख़ुशी का

हरपल मैं ग़ुलाम हूँ

 

जितने जहाँ, देखो मैं दौड़ा हूँ

ख़ुदसे ही मगर देखो मैं हारा हूँ

भूखे बच्चे और डरी अबलाएं 

दुनिया में इनकी रहता हूँ

 

लफ़्ज़ों की दुबली रस्सी से

जन्नत पाना सोचता हूँ

एहसास की टूटी कश्ती से

जहन्नम पहुँच रहा हूँ

 

तेरी रोशनी हर दिन सदियोंसे

देख नहीं पाता हूँ

समशेरियों में ही क्यूँ

हर जवाब पाता हूँ

 

ये फूल ये कलियाँ ये ज़र्रा

दौलत इनकी देखता हूँ

नहीं बनाते मुझे तो क्या फ़र्क़ पड़ता

यहीं में सोचता हूँ

 

मैं एक ग़रीब हूँ

हाँ मैं इंसान हूँ

 

हा मैं वहीं जन्नत से गिरा

नंगा, घबराया आदम हूँ

 

मैं एक ग़रीब हूँ

हाँ मैं इंसान हूँ….

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 228 ☆ बाल कविता – चलो पार्क में नाना जी… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मानबाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंतउत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य प्रत्येक गुरुवार को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 228 ☆ 

बाल कविता – चलो पार्क में नाना जी ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

बच्चों का संसार निराला।

निश्छल मन है मतवाला।

आर्यन जी नाना से बोले

चलो पार्क में मस्ती करने।

खेले-कूदें , झूला झूलें

देखें हम तो नकली झरने।

 *

बच्चों के सँग-सँग खेलेंगे,

ड्रेगन ट्रेन चलाएं हम।

बाइक राइड करें मजे से

फूलों -सा मुस्काएँ हम।

 *

जंपिंग राइड बड़ी अनोखी

कोलंबस तो और निराली।

बाइक राइड सैर कराए

सभी बजाएं मिलकर ताली।

 *

बुल राइड भी खेल खिलाए

आइस-पाइस की धमाचौकड़ी।

आइसक्रीम हमको खिलवाना

और खिलाना चाट-पकौड़ी।

 *

सभी चले हैं खुश होकर के

पार्क आ गया बच्चों वाला।

खेल देखकर नाना हँसते

बचपन सचमुच मधुवाला।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #255 – कविता – सही-सही मतदान करें… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता सही-सही मतदान करें…” ।)

☆ तन्मय साहित्य  #255 ☆

☆ सही-सही मतदान करें…  ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

चलो! आज कुछ बातें कर लें

जागरूक हो ज्ञान की

क्या महत्व है मतदाता का

क्या कीमत मतदान की।

 

मंदिर बना हुआ है लोकतंत्र का,

सबके वोटों से

बचकर रहना, लोभी लम्पट

नकली धूर्त मुखौटों से,

नहीं प्रलोभन, धमकी से बहकें

सौगन्ध विधान की। ……

 

जाती धर्म, रिश्ते-नातों को भूल,

सत्य को अपनाएँ

सेवाभावी, निःस्वार्थी को

वोट सिर्फ अपना जाए,

मन में रहे भावना केवल

देश प्रेम सम्मान की। …….

 

जिस दिन हो मतदान

भूल जाएँ

सब काम अन्य सारे

मत पेटी के वोटों से ही

होंगे देश में उजियारे,

महा यज्ञ राष्ट्रीय पर्व पर

आहुति नव निर्माण की। ……

 

मतदाता सूचियों में पात्र नाम

सब अंकित हो जाये

है अधिकार वोट का सब को

वंचित कोई न रह पाए,

बजे बाँसुरी सत्य-प्रेम की

जन गण मंगल गान की

क्या महत्व है मतदाता का

क्या कीमत मतदान की।।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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