डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं “भावना के दोहे”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 133 – साहित्य निकुंज ☆
☆ भावना के दोहे ☆
चलन हो चुका है लिखने का तो अब
अदब कम, हुनर कम, तमाशा बहुत है
इरादा है मिलन का तुमसे लेकिन
समझो तो तुम ये इशारा बहुत है
लगाई है उम्मीद हमने जो अब तुमसे
लगता है इसमे अब हताशा बहुत है।
हम पर किया है अपनो ने ही भरोसा
लगाई है उनने हमसे आशा बहुत है ।
न जाने क्यों लूटती बेटी की अस्मत
जहां मे दिखावे का तमाशा बहुत है ।
करें हम अब किस पर इतना भरोसा
करीब से रिश्तों को तराशा बहुत है ।
© डॉ भावना शुक्ल
सहसंपादक… प्राची
प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120, नोएडा (यू.पी )- 201307
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈