॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #15 (81 – 85) ॥ ☆
रघुवंश सर्ग : -15
‘‘माँ धरती ले गोद में, हूँ मैं यदि निष्पाप।
पति प्रति अर्पित रहे नित तन-मन कार्यकलाप।।81।।
इतना सुन धरती फटी, निकली प्रभा महान।
करने को सीता को लय निज में बातें मान।।82।।
शेष नाग के शीश पर सिंहासन आसीन।
सिंधु मेखला भूमि माँ प्रकटी दुखी मलीन।।83।।
सीता थी श्रीराम को एकटक रही निहार।
राम ने रोका, धरा संग गई पर तज संसार।।84।।
राम को यह सब देख था क्रोध और सन्ताप।
भाग्य प्रबल कह ऋषि ने धैर्य बँधाया आप।।85।।
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈