हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष # 115 ☆ वो  क्या  गए… ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.  “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं  एक भावप्रवण  रचना “वो  क्या  गए …। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 115 ☆

वो  क्या  गए

गिले-शिकवे सब रफा-दफा कर दो

हमें  ऐ मालिक वफ़ा  अता  कर दो

 

मैं  मुश्किलों  से  दो  चार  हूँ  कबसे

मिरे मुकद्दर का कुछ फैसला कर दो

 

हम  सब  हैं  करोना  की  गिरफ्त में

कैद  से  अब  हमें  तुम  रिहा कर दो

 

तभी  सुन सकोगे आवाज  दिल की

पहले  दुनिया  को  अनसुना  कर दो

 

वो  क्या  गए  महफ़िलें   उदास  हुईं

बुला कर फिर दिल हरा-भरा कर दो

 

दूर   कबसे   हूँ  करीब   आ   जाओ

या  फिर  फासला और बड़ा कर  दो

 

“संतोष”   मुद्दत  से  जख्मी  है  दिल

रहम अब  मुझ पर मिरे खुदा कर दो

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 15 (21-25)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #15 (21 – 25) ॥ ☆

रघुवंश सर्ग : -15

 

टूट गया जब वृक्ष तब यम की मुष्टि समान।

लवणासुर ने शिला से किया प्रहार महान।।21।।

 

ऐन्द्र अस्त्र से शत्रुध्न ने कर प्रहार आसान।

मसल रेत सा चूर्ण कर, नष्ट किया पाषाण।।22।।

 

तब झपटा वह राक्षस उठा दाहिना हाथ।

ताड़ वृक्ष मय गिरि हो ज्यों, प्रबल प्रभज्न साथ।।23।।

 

विष्णु बाण से भिदा वह राक्षस गिरा विशाल।

धरती कंपित हो उठी सभी हुये बेहाल।।24।।

 

लवणसुर की लाश पर झपटे पक्षि प्रचण्ड।

किन्तु शत्रुध्न पर पड़े दिव्य पुष्प के खण्ड।।25।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य #111 – पानी चला सैर को ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपकी एक अतिसुन्दर बाल गीत  – “पानी चला सैर को।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 111 ☆

☆ बाल गीत – पानी चला सैर को ☆ 

पानी चला सैर को

संगी-साथी से मिल आऊ.

 

बादल से बरसा झमझम

धरती पर आया था.

पेड़ मिले न पौधे

देख, मगर यह चकराया था.

कहाँ गए सब संगी-साथी

उन को गले लगाऊं.

 

नाला देखा उथलाउथला

नाली बन कर बहता.

गाद भरी थी उस में

बदबू भी वह सहता .

उसे देख कर रोया

कैसे उस को समझाऊ.

 

नदियाँ सब रीत गई

जंगल में न था मंगल.

पत्थर में बह कर वह

पत्थर से करती दंगल.

वही पुराणी हरियाली की चादर

उस को कैसे ओढाऊ.

 

पहले सब से मिलता था

सभी मुझे गले लगते थे.

अपने दुःख-दर्द कहते थे

अपना मुझे सुनते थे.

वे पेड़ गए कहाँ पर

कैस- किस को समझाऊ.

 

जल ही तो जीवन है

इस से जीव, जंतु, वन है.

इन्हें बचा लो मिल कर

ये अनमोल हमारे धन है.

ये बात बता कर मैं भी

जा कर सागर से मिल जाऊ.

 

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

13/05/2019

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) म प्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 15 (16-20)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #15 (16 – 20) ॥ ☆

रघुवंश सर्ग : -15

 

था चिताग्नि सा रूप कुछ धूमिल मयदुर्गन्ध।

अग्निलपट से बाल थे, मांस-मखन स्वच्छंद।।16।।

 

शूल रहित पाकर उसे घेर लिया तत्काल।

क्योंकि वह ही उचित था, हर प्रकार का काले।।17।।

 

ब्रह्मा ने डर कर तुम्हें भेजा मम आहार

क्योंकि आज भोजन रहित था मेरा भण्डार।।18।।

 

धमका के शत्रुध्न को राक्षस विविध प्रकार।

उन्हें मारने के लिये तरू एक लिया उखाड़।।19।।

 

खण्ड हुआ वह वृक्ष जब लगा शत्रुध्न तीर।

पुष्परेणु भर छू सकी उड़ कर दुष्ट शरीर।।20।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य#126 ☆ झूठा अभिनय… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का  चौकीदार”  महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है एक अतिसुन्दर भावप्रवण रचना  “झूठा अभिनय….”)

☆  तन्मय साहित्य  #126 ☆

☆ झूठा अभिनय… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

विस्मय में आदमी, संशय में हैं

शहर मेरा दहशत में, भय में हैं।

 

फिर पड़ोसी की साँसें क्यों तेज हुई

कुछ खराबी, मेरे ही ह्रदय में  है।

 

ना रिदम,ना गला ना ही स्वर मुखर

बेसुरे  गीत  बेढंगी  लय  में है।

 

थोड़े अक्षत के दाने कुमकुम अबीर

कामना उनकी ब्रह्म से विलय में है।

 

जो सृजन शांति की बातें कर रहे

अग्रषित वे ही सृष्टि के प्रलय में हैं।

 

ये प्रदर्शनीयाँ, चित्र ये अजायबघर

कितना आनंद झूठे  अभिनय में है

 

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 20 ☆ गीत – योग अपनाओ यारो ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 22 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक लगभग 72 राष्ट्रीय एवं 3 अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।  

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है एक गीत  “योग अपनाओ यारो”। 

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 20 ✒️

?  गीत – योग अपनाओ यारो —  डॉ. सलमा जमाल ?

अच्छी सेहत के लिए,

योग अपनाओ यारो ।

अपने प्यारे देश को,

निरोग बनाओ यारो ।।

 

जन्म के बाद दाई मां,

शिशु को योगा कराती,

मजबूत हड्डी होती,

चलना बैठना सिखाती,

बचपन गया तुम बालिग़,

ऊर्जा जगाओ यारो ।

अच्छी ——————— ।।

 

रोज़ सुबहा उठकर,

नित्य कर्म से फ़ारिग़ होना,

फ़िर पैदल सैर करना,

बाद में नहाना – धोना,

पड़ोसियों को बुलाकर,

महफ़िल सजाओ यारो ।

अच्छी ——————— ।।

 

बैठे हों चाहे लेटे,

व्यायाम ही करना है,

स्वस्थ शरीर बनाकर,

ग़रीबों के दुख हरना है,

आलोम – विलोम से दिल,

मजबूत बनाओ यारो ।

अच्छी———————।।

 

पद्मासन हो या बज्रासन,

हो कपाल भारती,

जीवन चर्या का हिस्सा बन,

सज जाए आरती,

छोटे – बड़े सभी का,

अब आलस भगाओ यारो ।

अच्छी ——————– ।।

 

बुरी आदतें ना रखना,

जीवन हो शाकाहारी,

फ़ल, मेवे, दूध, छांछ,

फ़िर ना लगती बीमारी,

सौगंध भारत मां की,

संकल्प उठाओ यारो ।

अच्छी ———————-।।

 

असली पूंजी है इंन्सा का,

रोग मुक्त होना,

ऑक्सीजन लेना हर दिन,

प्रकृति का है ख़जाना,

यह तन दिया ख़ुदा ने,

तुम इसको बचाओ यारो ।

अच्छी ———————-।।

 

नमाज़ में है योगा तुम,

यह बात याद रखना,

इस्लाम मानने वालो,

तुम रोज़ नमाज़ पढ़ना,

‘सलमा’ दीन और दुनियां,

दोनों सजाओ यारो ।

अच्छी ———————–।।

© डा. सलमा जमाल 

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 15 (11-15)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #15 (11 – 15) ॥ ☆

रघुवंश सर्ग : -15

पड़ा मार्ग में बाल्मीकि ऋषिवर का आवास।

मृगमय आश्रम में किया शत्रुध्न ने निशि वास।।11।।

 

किया मुनी वाल्मीकि ने शत्रुधं का सम्मान।

तपबल अर्जित श्रेष्ठ दे पीठ-शयन व पान।।12।।

 

उसी रात्री में सिया ने जाये दो सुकुमार।

कोष-दण्ड युत धरणि के जो उज्ज्वल उपहार।।13।।

 

रामपुत्र का जन्म सुन शत्रुध्न हुये प्रसन्न।

प्रातः मुनि से मिल करी यात्रा रथ-सम्पन्न।।14।।

               

लवणासुर, कुम्मनिसी-पुत्र महत् बलवान।

रहता था मधुपध्न में जो था नगर समान।।15अ।।

 

पहुँचे जब शत्रुध्न वह आया ले उपहार।

वन जीवों की राशि का करने को आहार।।15ब।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 27 – सजल – युग बदले पर कभी न बदले… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है दोहाश्रित सजल “युग बदले पर कभी न बदले… । आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 27 – सजल – युग बदले पर कभी न बदले… 

समांत- आदा

पदांत- अपदांत

मात्राभार- 30

 

कट्टरता का ओढ़ लबादा।

खुद तो बने हुए हैं दादा ।।

 

दूर रहें पढ़ने-लिखने से, 

खुद को कहते हैं शहजादा।

 

नारी को समझे हैं दासी,

सारा अपना बोझा लादा।

 

कट्टरता जग का है दुश्मन,

मानवता का हुआ बुरादा।

 

युग बदले पर कभी न बदले,

तोड़ी हैं सारी मर्यादा।

 

छद्म वेश धरकर हैं चलते,

लड़ने को होते आमादा।

 

काट पतंगें सद्भावों की

रिपु दल का है बुरा इरादा।

 

मानवता कहती है जग में

रक्त बहे न करो यह वादा ।

 

लहू एक रंग हर प्राणी में ,

फिर क्यों होता धर्म तकादा ।

 

बड़े धुरंधर क्यों बनते हो,

मानव-धर्म ही* सीधा-सादा।

 

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

30 अगस्त 2021

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)-  482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 119 – कविता – कभी बनी ममता की मूरत… ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ ☆

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत है स्त्री विमर्श पर आधारित एक भावप्रवण कविता  “कभी बनी ममता की मूरत”। ) 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 119 ☆

☆ कविता – कभी बनी ममता की मूरत 

कर्तव्यों का बोझ उठाती

संसार की हर एक नारी

नए वंश को जन्म देकर

बनी हुई सृष्टि पर लाचारी

 

कभी बनी ममता की मूरत

आंचल लिए स्नेह का गागर

कभी धरी देवी की सूरत

डुबाई गई नदिया सागर

 

भोर से उठकर करती काम

सब रिश्तो का संभाले भार

रख सांझ दीपक तुलसी चौरा

कहती सबको देना तार

 

सबका पेट भरती रहती

अन्नपूर्णा का रूप संभाले

करती रहती सबकी चाकरी

वफादारी का बोझ उठा ले

 

दिन-रात वो सेवा करती

पराया घर अपना बनाती

फिर भी मनुज नहीं थका

बेचारी अबला नार कहाती

 

अगर मिले थोड़ा सा मान

बनती नहीं वह पाषाण

दुख दर्द सारे भूल जाती

बिगड़ी बात बनाती आसान

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 15 (6-10)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #15 (6 – 10) ॥ ☆

रघुवंश सर्ग : -15

दिया राम ने शत्रुघ्न को समुचिंत आदेश।

मुनियों के कल्याण हित हो निर्विघ्न प्रदेश।।6।।

 

हर विशेष, सामान्य से निश्चित होता नेक।

अतः शत्रु-संहार हित रघुकुल का कोई एक।।7।।

 

चले शत्रुघ्न राम का लेकर आशीर्वाद।

रथ पर चढ़ निर्भीक मन पुष्प पूर्ण भू-भाग।।8।।

 

राक्षस-बध हित शत्रुध्न ही तो थे पर्याप्त।

किन्तु राम ने सेना भी देना समझा आप्त।।9।।

 

राह दिखाते मुनि चले रथ अति शोभावान।

बालखिल्य से सूर्य का रथ ज्यों दिखे महान।।10।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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