हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 23 – सजल – सामंजस्य रहे जीवन में… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है बुंदेली गीत  “सामंजस्य रहे जीवन में… । आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 23 – सजल – सामंजस्य रहे जीवन में… 

समांत- अन

पदांत- अपदांत

मात्राभार- 16

 

नारी ही नारी की दुश्मन।

उनसे ही सजता नंदनवन।।

 

गंगा जब बहती है उल्टी,

जीवन में बढ़ जाती उलझन।

 

पांचाली, कैकयी, मंथरा,  

युग में मचा गई हैं क्रंदन।

 

खिचीं भीतियाँ घर-आँगन में,

परिवारों में होती अनबन ।

 

सीता, रुक्मिणी या सावित्री,

होता उनका ही अभिनंदन ।

 

समरसता समभाव बने तो,

जीवन भर महके है चंदन ।

 

सास-बहू, ननदी-भौजाई,

गूढ़ पहेली का है कानन।

 

सामंजस्य रहे जीवन में,

हँसी-खुशी में डूबे तन-मन।

 

पड़ें हिंडोले बाग-बगीचे,

जेठ गया तब आया सावन।

 

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

10 जुलाई 2021

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)-  482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य#115 – कविता – हर हर महादेव ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ ☆

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत है  महाशिवरात्रि पर्व पर आधारित एक भावप्रवण कविता “*हर हर महादेव *”। ) 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 115 ☆

? हर हर महादेव ?

?महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं ?

 

सदियों से चली आई, महाशिवरात्रि की रीत।

जन्मों-जन्मों याद करें, शिव पार्वती संग प्रीत।

 

शिव शंकर का ब्याह रचानें, मचा हुआ है शोर।

धूनी रमाए बैठे भोले, चले किसी का न जोर।।

 

 नंदी अब सोच रहे, दिखे ना कोई छोर।

 कहां उठाऊं भोले को, रात बड़ी घनघोर ।।

 

कठिन परीक्षा की घड़ी,  बसंत छाया चहु ओर।

कोयल कूके डाली डाली,  आमों में आया बौर।।

 

 भांग धतूरे की खुशबू, कामदेव का शोर।

ध्यान से जागे शिव शंभू, नाच उठा मन मोर।।

 

हृदय पटल झूम उठा,  प्रीत ने लिया हिलोर।

मंद मंद मुस्काए शंकर, झूम उठे गण चहूं ओर।।

 

जटा जूट लहराए शंभू, अंग भभूति रम डाला।

भाल चंद्रमा सोह रहा, गले में सर्पों की माला।।

 

दूल्हा बन गए अधिपति, इंद्र देव गण मुस्काय।

अपने अपने गणों को लेकर, संग संग चल चले आए।।

 

देख रूप अवघड दानी का,  गौरा जी मुस्काई।

मैं तो हूं सब रुप  की दासी,  पर कैसे हो सेवकाई।।

 

 रुप भयंकर त्यागों स्वामी,  करो सब पर उपकारी।

 हाथ जोड़ करूं मैं विनती, रूप धरो मनुहारी।।

 

 सजा रूप बना दूल्हे का, सुखो की रात्रि छाई।

 शिव पार्वती विवाह रचाने,  महाशिवरात्रि आई।।

 

स्याम गौर सुंदर छवि,  सभी नयन छलकाए ।

कभी दिखे शिव शंकर शंभू,  कभी गौरी दिख जाए।।

 

आंख मिचौली खेलते प्रभु, मन को बहुत भर माए।

समा गई आधे अंग गौरा, अर्धनारीश्वर कहलाए।।

 

करें जो श्रद्धा से पूजन,  इक्छित वर को पाए।

धन भंडार भरे घर में, प्रीत पर आंच न आए।।

? हर हर महादेव ?

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 13 (41-45)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #13 (41 – 45) ॥ ☆

सर्गः-13

और सुतीक्ष्ण मुनि कर रहे जो चरित्र उद्यात।

पंच-अग्नि तप-साधना सूर्य ताप के साथ।।41।।

 

इंद्र सशंकित हो उठे देख तदोबल ध्यान।

पर न अपसरा कर सकीं पथ से विमुख निदान।।42।।

 

वाम भुजा ऊँची उठा जय माला को धार।

अन्य जो खुजलाती हिरण करती मम सत्कार।।43।।

 

मौन मुनी ने सिर हिला कर प्रणाम स्वीकार।

हटा दृष्टि मम यान से रवि को रहे निहार।।44।।

 

यह आश्रम शरभंग का तपः पूत स्थान।

जिनने समिधा बनाये अपने तन मन प्राण।।45।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 79 – दोहे – शिमला संदर्भ   ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे – शिमला संदर्भ  ।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 79 –  दोहे – शिमला संदर्भ   ✍

 

सुबह धूप घुटनों चली, दोपहर हुई जवान।

शिमला सोयी शाम को, करके कन्यादान।।

 

ऊंचे नीचे रास्ते, उखड़ी उखड़ी सांस।

शिमला तेरी गली में, गड़ी गजब की फांस।।

 

सुंदर सुंदर दृश्य है, सुंदर-सुंदर लोग।

शिमला क्या तुझसे कहें, नदी नाव संयोग।।

 

सुजन सुमन संयोगवश, मिलता है परिवेश।

शिमला तू तो लग रहा, गंध प्रिया का देश।।

 

बैठ पराए देश में, अपने आते याद।

लख शिमला के चांदनी, मन करता संवाद।।

 

सर -सर चलती पवनिया, फर- फर उड़ते केश।

शिमला की सरगोशियां, प्रियतम का संदेश।।

 

घाटी घाटी गूंजती, देवदारू दरबान।

सुनो शिमला राधिके, कान्हा का आव्हान।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव-गीत # 79 – “द्वार के बाहर उँकेरी  स्वस्तिका” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण अभिनवगीत – “द्वार के बाहर उँकेरी  स्वस्तिका …।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 79 ☆।। अभिनव-गीत ।। ☆

☆ || “द्वार के बाहर उँकेरी  स्वस्तिका”|| ☆

मूर्ति हो

साकार ज्यों

पाषाण-

अनगढ़ की ।।

 

गगन में बिखरी

हुई सुषमा ।

कौन क्या दे-दे

तुम्हें उपमा।

 

तुम विरह-

रत  लगी हो

राधा किशन-

गढ़ की ।।*

 

द्वार के बाहर

उँकेरी  स्वस्तिका।

स्वर्ण अक्षर में

लिखित सी पुस्तिका।

 

दृष्टि में

आयी हुई-

अनजान,

अनपढ़ की ।।

 

नेत्र से टपके

सहज जल से ।

लौट कर आये

हिमाचल से ।

 

पखेरू जो

कला हैं

निश्चित किसी

गढ़ की ।।

(*किशन गढ़ चित्र कला की एक शैली / राजस्थान कलम)

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

07-02-2022

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 70 ☆ # युद्ध की मानसिकता # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# युद्ध की मानसिकता  #”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 70 ☆

☆ # युद्ध की मानसिकता # ☆ 

जब आसमानों में

फायटर प्लेन उड़ते हैं

विनाशकारी बम

उससे गिरते हैं

विध्वंसक मिसाइलें

दागी जाती है

निरपराध लोगों को

मौत आती है

चारो तरफ कोहराम

मच जाता है

जमीन पर प्रलय छा जाता है

प्रश्रय  के लिए

लोग कहाँ कहाँ  भटकते हैं

डर और तबाही देख

अपना सर पटकते है

विभत्स फैली हुई लाशें

तो कहीं रूकती हुई सांसें 

कितना वीभत्स  मंजर

होता है

मानवता के सीने में

चुभता हुआ खंजर होता है

चारों तरफ

रूदन और क्रंदन

बरसते हुए बम दनादन

 

सदियों से यही तो

होता आया है

शक्तिशाली ने

कमजोर को

हमेशा दबाया है

अपनी झूठी जीत पर

अट्टहास लगाते हैं

अपनी गुंडागर्दी पर

खुशियां मनाते हैं

 

विश्व हो या,

देश,

समाज

यही तो हो रहा है आज

युद्ध में दोनों पक्ष

एक दूसरे को

तबाह करते हैं

अपने उन्माद में

यह गुनाह करते हैं

 

क्या शोषण, उत्पीडन,

गुंडागर्दी और हिंसा

समाप्त हो पायेगी ?

क्या विश्वपटल पर

भाईचारा, सद्भभाव

समता और शांति आयेगी /

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 13 (36-40)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #13 (36 – 40) ॥ ☆

सर्गः-13

 

और है मुनी अगस्त का यह आश्रम-स्थान।

जिनने इंद्रपद से किया ‘नहुष’ को क्षण में म्लान।।36।।

 

उनके छवि के धूम को छू और पाके गन्ध।

लगता मुझको बढ़ रहा सतोगुण से सम्बंध।।37।।

 

सातकर्णि मुनिका वहाँ पम्पासर तालाब।

मेघ घिरे से चंद्र सम वह दिखते जहाँ आप।।38।।

 

कुश पर ही करते थे ऋषि, वन-मृग सँग निर्वाह।

तब बल से डर इन्द्र ने भेजी पाँच अपस्रायें।।39।।

 

मुनि के जल प्रासाद का वाद्य घोष औं गान।

से हो गया प्रभावित क्षण भर पुष्प विमान।।40।।

            

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 81 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 81 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 81) ☆

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>  कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

☆ English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 81☆

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

आज  तक  याद है  वो

शाम-ए-जुदाई का समाँ

तेरी आवाज़ की लर्ज़िश

तेरे  लहज़े  की थकन…!

 

Till today, that the moment of

separation is alive in memory

The chocking lump in your voice,

the weariness in your tone…!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

कुछ इस तरह खूबसूरत

रिश्ते टूट जाया कराते हैं,

जब दिल भर जाता है तो

लोग रूठ जाया कराते हैं…

 

Some beautiful relations

break up like this also,

When heart gets satiated,

people just sulk away…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

मुहब्बत दिल में कुछ ऐसी नवाज़ों

कि भले ही वो किसी और को

नसीब हो पर जिंदगी भर कमी

उसे सिर्फ हमारी ही महसूस हो…!

 

Adorn the heart with love in

such a way that even if it’s

destined for someone else, yet

Lifelong he misses me only…!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह #82 ☆ सॉनेट गीत – वसुंधरा ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित  ‘सॉनेट गीत – वसुंधरा।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 82 ☆ 

☆ सॉनेट गीत – वसुंधरा ☆

(विधा- अंग्रेजी छंद, शेक्सपीरियन सॉनेट)

हम सबकी माँ वसुंधरा।

हमें गोद में सदा धरा।।

 

हम वसुधा की संतानें।

सब सहचर समान जानें।

उत्तम होना हम ठानें।।

हम हैं सद्गुण की खानें।।

 

हममें बुद्धि परा-अपरा।

हम सबकी माँ वसुंधरा।।

 

अनिल अनल नभ सलिल हमीं।

शशि-रवि तारक वृंद हमीं।

हम दर्शन, विज्ञान हमीं।।

आत्म हमीं, परमात्म हमीं।।

 

वैदिक ज्ञान यहीं उतरा।

हम सबकी माँ वसुंधरा।।

 

कल से कल की कथा कहें।

कलकल कर सब सदा बहें।

कलरव कर-सुन सभी सकें।।

कल की कल हम सतत बनें।।

 

हर जड़ चेतन हो सँवरा।

हम सब की माँ वसुंधरा।।

 

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 13 (31-35)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #13 (31 – 35) ॥ ☆

सर्गः-13

 

तुम से विलग वहाँ मैंने चक्रवाक का युग्म।

देखा था जो परस्पर बाँट रहे थे पद्य।।31।।

 

तटवर्ती यह वल्लरी जो थी तुम्हीं समान।

को रोते छूते लखन ने कराई पहचान।।32।।

 

ध्वनि सुन किंकिणि की मधुर जो आबद्ध विमान।

सारस गोदावरी के करते तव अगवानि।।33।।

 

आगे पंचवटी जहाँ रोपे तुमने आम।

आनंदित करते खड़े मृगदल मुझे ललाम।।34।।

 

यहीं तुम्हारी गोद में थक आखेटोपरान्त।

गोदावरी-समीर हित मिलता था एकान्त।।35।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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