हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 12 (81-85)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #12 (81-85) ॥ ☆

सर्गः-12

सोने का आदी था जो सोता था दिनरात।

उसे सुलाया राम ने अवश मृत्यु के साथ।।81।।

 

कोटि राक्षस जा गिरे वानर सेना बीच।

जैसे रण की धूल गिर बने रक्त मिल कीच।।82।।

 

तब रावण संकल्प ले विजय या कि फिर मृत्यु।

निकला करने राम से घर से अन्तिम युद्ध।।83।।

 

देख राम को विरथ औ रावण रथ-आरूढ़।

इन्द्र ने भेजा राम हित श्वेत अश्वरथः गूढ।।84।।

 

मातलि जिसका सारथी उस रथ बैठे राम।

नभ-गंगा की वायु से उड़ती ध्वजा ललाम।।85।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 21 – सजल – राह देखता खड़ा सुदामा… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है बुंदेली गीत  “राह देखता खड़ा सुदामा … । आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 21 – सजल – राह देखता खड़ा सुदामा …

समांत- ईते

पदांत- अपदांत

मात्राभार- 16

 

श्रमिक-रोज शंका में जीते ।

दुख के आँसू खुद ही पीते।।

 

राह देखता खड़ा सुदामा,

शासक के बस हुए सुभीते।

 

फल तो कई फले हैं लेकिन,

खाने को कब मिले पपीते।

 

अखबारों में छपी योजना,

तंत्र लगाते रहे पलीते।

 

तन-गरीब ऐसे हैं ढकते,

सुइ-धागों से थिगड़े सीते।

 

हर गरीब का जीना दूभर,

कैसे उनका जीवन बीते।

 

सबने पाल रखे हैं सपने।

पर उनके दिल दिखते रीते।

 

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)-  482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 12 (76-80)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #12 (76-80) ॥ ☆

सर्गः-12

 

किया गरूड़ ने लखन को नागपाश से मुक्त।

पर क्षण संकट दे गया मेघनाथ से युद्ध।।76।।

 

तब पौलस्त्य ने शक्ति का लखन पै किया प्रयोग।

किन्तु राम के हृदय पै व्यापी गहरी चोट।।77।।

 

लाये तब संजीवनी महाबली हनुमान।

जिसने फिर जीवन दिया बचा लखन के प्राण।।78अ।।

                

लक्ष्मण ने उठ फिर किया भीषण युद्ध प्रगाढ़।

डर लंका की नारियाँ रोई आँसू ढार।।78ब।।

 

शरद आ करता मेघ औ इंद्रधनुष का नाश।

त्यों रावण-सुत ‘मेध’ का धनुसंग किया विनाश।। 79।।

 

कुंभकरण सुग्रीव से हो विरूप अँग-भंग।

मनःशिला सम रक्त मय भिड़ा राम के संग।।80।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 77 – दोहे ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 77 –  दोहे ✍

तब के नेता और थे, अब के नेता और ।

लुटा गए सर्वस्व वे, खींच रहे हैं कौर।।

 

अध: पतित हम हो गए, नए-नए है ढंग ।

वस्त्र हीनता ओढ़ कर, बनते फिरे दबंग।।

 

पूर्वोत्तर नींदे हुई, सफल हुए संथाल ।

अमृतसर में उग रहे, संशय के शैवाल।।

 

बदनाम ‘बार बाला’ हुई, राजनीति सरनाम।

वास्तव में है एक ही, दोनों ही के नाम।।

 

आजादी आई नहीं, आजादी के बाद।

‘होरी’ की सर पंचियत, सपने की बकवाद।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव-गीत # 77 – “वाणी में कम्पन सा …” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण अभिनवगीत – वाणी में कम्पन सा …।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 77 ☆।। अभिनव-गीत ।। ☆

☆ || “वाणी में कम्पन सा …|| ☆

यादों में,गये साल के ।

ठहरे से लगते दिन

टप्पे-खयाल के ।।

 

कुछ तो बदलाव यहाँ

अब आया समाज में।

राग यमन बदल गया

जैसे खम्माज में।

 

ऐसा कुछ

जैसे रुमाल के।

कोनो पर लिखा है

थोडा सम्हाल के।।

 

वाणी में कम्पन सा

जाने क्या बैठ  रहा।

जठर से दिमाग तक

कुछ-कुछ जो ऐंठ रहा ।

 

जिसमें कुछ सपने

भोपाल के ।

मिले- जुले लगते

फिलहाल के ।।

 

सांसें जो सभागार में

चुपके  आ  ठहरीं-

रेशमी लिबासों में,

डूब गई हैं गहरीं ।

 

मौसम की धीमी

पड़ताल के।

देख रहे हैं तिरछे

पंछी एक डाल के ।।

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

10-02-2022

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 67 ☆ # बसंती बयार # ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# बसंती बयार  #”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 67 ☆

☆ # बसंती बयार # ☆ 

मैं कब इनकार करती हूँ 

हाँ ! मै तुमसे प्यार करती हूँ 

 

जब हम पहली बार मिले थे

मिलकर दूर किये

जो शिकवे गिले थे

भ्रमर बन जिन कलियों को

तुमने चूमा था

वो आज पुष्प बन

उपवन में खिले थे

तुम्हारी खुशबू से ही

मैं महकती हूं

हाँ ! मैं तुमसे प्यार करती हूँ 

 

पीले पीले फूलों की रूत आई है

संग संग “बसंत”की खुशी लाई है

मदनोत्सव में डूबें है नर-नारी

मदन को जगाती यह पुरवाई है

मैं भी हर घड़ी

तुम्हारा इंतज़ार करतीं हूँ 

हाँ ! मैं तुमसे प्यार करती हूँ 

 

“बसंत” प्रेमियों के लिए उपहार है

जिसके कण कण में बस

प्यार ही प्यार है

फूलों से सजे स्वागत द्वार है

सजनी के गले में बाहों का हार है

तुमसे मिलने को

मन ही मन मैं दहकती हूँ 

हाँ ! मै तुमसे प्यार करती हूँ 

 

इस रूत में,

कामदेव-रति पृथ्वी पर आते हैं

प्रेम प्रणय का संदेश साथ लाते हैं

तुम भी आ जाओ,

कहीं बीत ना जाए यह घड़ी

मैं प्रणय-विव्हल

तुमसे बार बार कहती हूँ 

हाँ ! मै तुमसे प्यार करती हूँ 

हाँ ! मै तुमसे प्यार करती हूँ /

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 12 (71-75)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #12 (71-75) ॥ ☆

सर्गः-12

सेन सहित श्रीराम तब जाकर सागर पार।

घेरा लंका का बना सोने का प्राकार।।71।।

 

हुआ युद्ध भीषण वहाँ वानर-राक्षस बीच।

फैला जय-जय घोष औ’ मची रक्त की कीच।।72।।

 

वृक्षों से परिधा कटी प्रस्तर से धन चूर।

नख से शस्त्र विनष्ट हुये पर्वत से गज दूर।।73।।

 

देख राम का कटा सिर, सीता हुई बेहोश।

त्रिजटा ने माया बता दिया उन्हें संतोष।।74।।

 

कहा सिया ने- खुशी है जीवित है श्रीराम।

पर पहले मृत जान भी मरी न मैं विधि वाम।।75।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ English translation of Urdu poetry couplets of Pravin ‘Aftab’ # 79 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

English translation of Urdu poetry couplets of Pravin ‘Aftab’ # 79 ☆

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>  कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

☆ English translation of Urdu poetry couplets of Pravin Aftab # 79 ☆

(Today, enjoy some of the Urdu poetry couplets written and translated in English by Pravin ‘Aftab’.  Pravin ‘Aftab’ is nick name of Capt. Pravin Raghuvanshi.)

बड़ी रौनक होगी आज

खुदा की महफिल में,

मौसिकी का खज़ाना है

जो पहुंचा ज़मीन से जन्नत में…

 

There must a great festivity

in the God’s gathering today…

Treasure of music has just

arrived in heaven from the Earth.

 

 

कितना दुश्वार है…

यूँ ज़िंदगी बसर करना

तुम्हीं से फासला रखना

और तुम्हीं से इश्क़ करना…!

 

How difficult it is

to live life like this…

To keep distance from you

and love you too…!

 

 

न एक सांस ज़्यादा

न एक साँस कम,

फिर काहे की फिक्र

और काहे का ग़म

 

Neither a breath more

nor a breath less,

Then why to worry

and why to feel sad…!

 

पहले परिंदों के शोर हुआ करते थे

अब तो बस दबे पाँव शाम होती है

बहारों में भी खिंजा का गुमाँ होता है

ज़िंदगी यूँही तमाम हुए जाती हैं… 

 

Earlier there used to be boisterous chirping of birds

Now it’s just inane turning of dusk into night

Even the blooming spring gives a feel of autumn

Life just keeps on passing in a Sambre plight…!

 

Pravin ‘Aftab’

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 80 ☆ सॉनेट – चुनाव ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित  ‘सॉनेट – रस।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 80 ☆ 

☆ सॉनेट – चुनाव

लबरों झूठों के दिन आए।

छोटे कद, वादे हैं ऊँचे।

बातें कड़वी, जहर उलीचे।।

प्रभु ये दिन फिर मत दिखलाए।।

 

फूटी आँख न सुहा रहे हैं।

कीचड़ औरों पर उछालते।

स्वार्थ हेतु करते बगावतें।।

निज औकातें बता रहे हैं।।

 

केर-बेर का संग हो रहा।

सुधरो, जन धैर्य खो रहा।

भाग्य देश का हाय सो रहा।।

 

नाग-साँप हैं, किसको चुन लें?

सोच-सोच अपना सिर धुन लें।

जन जागे, नव सपने बुन ले।।

 

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१३-२-२०२२

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 12 (66-70)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #12 (66-70) ॥ ☆

सर्गः-12

 

जान कुशलता प्रिया की झट मिलने की आश।

जाने सागर पार का, सोचा, सफल प्रयास।।66।।

 

वानर सेना थी प्रबल, भूमि और आकाश।

में जा सब संकट हरण का था अति विश्वास।।67।।

 

सागर तट पर राम जब थे सेना के साथ।

सद्प्रेरित तब विभीषण आये शरण रघुनाथ।।68।।

 

दिया बिभीषण को अभय, वैभव का प्रतिदान।

उचित समय शुभ नीतियाँ करती सुफल प्रदान।।69।।

 

शेषनाग सम विष्णु के सोने हित अनुकूल।

रचा वानरों ने अगम सागर पर एक पुल।।70।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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