हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 12 (51-55)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #12 (51-55) ॥ ☆

सर्गः-12

राक्षस-सेना-हार की, राम की विजय विशेष।

रावण को देने खबर रही शुर्पनखा शेष।।51।।

 

सेना का सुन नाश और शर्पूनखा-अपमान।

शिर पर राम के चरण का रावण को हुआ मान।।52।।

 

‘मारीच’ को मृग रूप दे, रच धोखे की चाल।

कर जटायु से युद्ध, किया सिया-हरण तत्काल।।53।।

 

चले सिया की खोज में राम-लखन दोऊ भाई।

पंख-रहित अधमरा पथ में लखा गीध जटायु।।54।।

 

अपहृत सीता के कहे उसने सारे भाव।

कथा समूची कह रहे थे जटायु के घाव।।55।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य#119 ☆ नर्मदा जयंती विशेष – नर्मदा नर्मदा…..☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”  महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज  नर्मदा जयंती के पुनीत अवसर पर प्रस्तुत है गीति-रचना “नर्मदा नर्मदा…..”)

☆  तन्मय साहित्य  #119 ☆

☆ नर्मदा जयंती विशेष – नर्मदा नर्मदा…..☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

नर्मदा – नर्मदा, मातु श्री नर्मदा

सुंदरम, निर्मलं, मंगलम नर्मदा।

 

पुण्य उद्गम  अमरकंट  से  है  हुआ

हो गए वे अमर,जिनने तुमको छुआ

मात्र दर्शन तेरे पुण्यदायी है माँ

तेरे आशीष हम पर रहे सर्वदा। नर्मदा—–

 

तेरे हर  एक कंकर में, शंकर बसे

तृप्त धरती,हरित खेत फसलें हँसे

नीर जल पान से, माँ के वरदान से

कुलकिनारों पे बिखरी, विविध संपदा। नर्मदा—–

 

स्नान से ध्यान से,भक्ति गुणगान से

उपनिषद, वेद शास्त्रों के, विज्ञान से

कर के तप साधना तेरे तट पे यहाँ

सिद्ध होते रहे हैं, मनीषी सदा। नर्मदा—–

 

धर्म ये है  हमारा, रखें स्वच्छता

हो प्रदूषण न माँ, दो हमें दक्षता

तेरी पावन छबि को बनाये रखें

ज्योति जन-जन के मन में तू दे माँ जगा। नर्मदा—–

 

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से#12 ☆ ग़ज़ल – भागता आदमी ☆ डॉ. सलमा जमाल

डॉ.  सलमा जमाल

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 22 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक लगभग 72 राष्ट्रीय एवं 3 अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन। ) 

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है। 

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है एक अतिसुन्दर ग़ज़ल  “भागता आदमी”। 

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 12 ✒️

?  ग़ज़ल – भागता आदमी  —  डॉ. सलमा जमाल ?

 रोड पर रात दिन भागता आदमी।

जीवन मूल्यों को नापता आदमी ।।

 

भ्रष्टाचारी को स्कूटर कार है।

भूखा नंगा भीख मांगता आदमी।।

 

 कुत्तों को ऊन के स्वेटर मिलें।

 ठंड से फुटपाथ पर कांपता आदमी।।

 

दूध, ब्रेड, मक्खन खाते हैं श्वान।

राशन के लिए भागता आदमी ।।

 

दोज़ख, मौत, सड़क के गड्ढों में है ।

ढूंढता बचने का रास्ता आदमी ।।

 

दस्तरख़्वान पर छप्पन भोग रखें ।

 मधुमेह, रक्तचाप, से सजा आदमी ।।

 

घास का बिछौना लगी नींद गहरी ।

मख़मली बेड पर जागता आदमी ।।

 

 गाय, भैंसों के ब्रेकर शहर में मेरे ।

प्रशासन का मुंह ताकता आदमी ।।

 

ज़िन्दगी में अंधेरा दिया तक नहीं ।

चांद, तारे, सूरज बांटता आदमी।।

 

“सलमा” पैरों के नीचे ज़मीं भी नहीं ।

आसमां की तरफ़ झांकता आदमी ।।

 

© डा. सलमा जमाल 

दि. 29.09.2020

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 12 (46-50)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #12 (46-50) ॥ ☆

सर्गः-12

दुष्ट कथित अपशब्द ज्यों सहज नहीं स्वीकार।

किया तथा श्रीराम ने ‘दूषण’ का संहार।।46।।

 

‘खर’ ‘त्रिशरा’ पर भी किया क्रमिक बाण-सन्धान।

लगा किन्तु, जैसे चले एक साथ सब बाण।।47।।

 

देह छेद बाहर गये तीक्ष्ण राम के बाण।

पान किया क्षणमात्र में तीनों जीवन-प्राण।।48।।

 

राक्षस सेना उस बड़ी में, सब के शिर काट।

रूण्ड-मुण्ड से भूमि सब दिया शेरों ने पाट।।49।।

 

देव-द्रोही राक्षस सभी राम से लड़कर आप।

गिद्धपंखों की छाँव में सो गये मर चुपचाप।।50।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 19 – सजल – हिलमिलकर ही जीवन जीना… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है बुंदेली गीत  “हिलमिलकर ही जीवन जीना… । आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 19 – सजल – हिलमिलकर ही जीवन जीना

समांत- आई

पदांत- अपदांत

मात्राभार- 16

 

जाँगर-तोड़ी करी कमाई ।

बुरे वक्त में काम न आई।।

 

खूब सुनहरे सपने देखे,

नींद खुली तो थी परछाई।

 

घुटने टूटे कमर है रूठी,

खुदी बुढ़ापे की है खाई।

 

लाचारी की चादर ओढ़ी,

सास-बहू के बीच लड़ाई।

 

हँसी खुशी जीना था जीवन, 

सिर-मुंडन को खड़ा है नाई।

 

मंदिर जैसे होते वे घर ,

सुख-शांति की हुई निभाई।

 

हिलमिलकर ही जीवन जीना,

इसमें सबकी बड़ी भलाई।

 

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

7 जुलाई 2021

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)-  482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 144 ☆ कविता – श्रद्धा सुमन – स्वर साम्राज्ञी लता ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है। )

आज प्रस्तुत है श्रद्धा सुमन – स्वर साम्राज्ञी लता ।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 144 ☆

? श्रद्धा सुमन – स्वर साम्राज्ञी लता ?

स्वर साम्राज्ञी कोकिल कंठी

हम सब का है प्यार लता

 

भारत रत्न, रत्न भारत का

गीतो का सुर, सार लता ।

 

रागो का जादू, जादू गजल का

सरगम की लय, तार लता,

 

 

तबले की धिन् पर, सितारों की धड़कन,

नगमों की रस धार लता ।

 

बनारस घराना, जयपुर तराना,

गीतो का इकरार लता,

 

बैजू सुना था बावरा वो,

तानसेन दीदार लता।

 

सरहद की रेखा से सुर बड़ा है,

नूपुर की झंकार लता

 

भारत पाक लाख दुश्मन हों

जनता की सरकार लता ।

 

तुम्हारा ये जाना न माने जमाना

रहेगी सदा गुलजार लता

 

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३

मो ७०००३७५७९८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ आभार ☆ श्री वीरेंद्र प्रधान

श्री वीरेंद्र प्रधान

(ई-अभिव्यक्ति में सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री वीरेंद्र प्रधान जी का हार्दिक स्वागत है।  आप भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन (कवि, लघुकथाकार, समीक्षक)। प्रकाशित कृति – कुछ कदम का फासला (काव्य-संकलन), प्रकाशनाधीन कृति – गांव से बड़ा शहर। साहित्यकारों पर केन्द्रित यू-ट्यूब चैनल “प्रधान नामा” का संपादन। )

☆ कविता ☆ आभार ☆ श्री वीरेंद्र प्रधान  ☆

मरने को तो मरते हैं अब भी

पहले से ज्यादा लोग

मगर अब नहीं आतीं खूंट पर कटी चिट्ठियां

और सीरियस होने के तार

से किसी के मरने के समाचार

अब तो अखबारों में फोटो सहित छपते हैं

मरने वाले की अन्त्येष्टी और उठावने के इश्तहार।

सोशल मीडिया ने भी बहुत करीब ला दिया

व्यस्तता और समयाभाव के युग में

बहुत समय बचा दिया।

अब  दिनों में पहुंचने वाले

सुख/दु:ख के समाचार

घंटों और मिनटों में नहीं

सेकण्डों में पहुंच जाते हैं गन्तव्य तक।

किसी महामारी के दुष्प्रभावों की

भरपूर जानकारी दिला

सबको जानकार बना दिया

सोशल मीडिया ने।

 

गुलाब दिवस, प्रस्ताव दिवस

चाकलेट और आलिंगन दिवस

और अन्त में प्रेम दिवस के बहाने

कर दिये बाजार सब गुलज़ार

सोशल मीडिया ने।

प्रेम का इजहार

करने के सब साधन और उपहार

के व्यापार का हर व्यापारी

हृदय-तल से हैं आभारी

सोशल मीडिया का।

© वीरेन्द्र प्रधान

संपर्क – शिव नगर, रजाखेड़ी, सागर मध्यप्रदेश 

मो – 7067009815

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 12 (41-45)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #12 (41-45) ॥ ☆

सर्गः-12

टेढ़े नख अंकुश सदृश उँगली से वह नारि।

कुटिल राक्षसी रूप धर धमकायी कई बार।।41।।

 

झट जा जनस्थान में खर-दूषण के पास।

दिखा स्वयं की दुर्दशा कहा, ये है उपहार।।42।।

 

आगे कर उस नककटी को ले अपने साथ।

राक्षस झपटे राम पर, हार पै हुये अनाथ।।43।।

            

आती राक्षस भीड़ को अस्त्र शस्त्र ले हाथ।

धनुष लिया श्रीराम ने, सिया लखन के साथ।।44।।

 

एक अकेले राम थे, राक्षस कई हजार।

देखा सबने राम पर, रहे हरेक को मार।।45।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 76 – दोहे ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 76 –  दोहे ✍

चटकाते चप्पल फिरे, फिर चुनाव की दौड़ ।

मंत्री पद पर बैठकर, जोड़े पांच करोड़।।

 

पावन गांधी नाम को, इतना किया खराब।

 नाम रखा उस मार्ग का, बिकती जहां शराब।।

 

चादर गांधी नाम की, ओढ़े फिरें जनाब ।

मांसाहारी आचरण, जमके पियें शराब।।

 

सत्याग्रह के अर्थ को, क्या समझेंगे आप ।

भ्रष्ट आचरण युक्त हैं, सारे क्रियाकलाप।।

 

तख्तनशीनी  हुई तो, हुए दूधिया आप ।

बदली सारी व्यवस्था, छिपा लिए सब पाप।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

7/2/22

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव-गीत # 76 – “उधर पिलाती-दूध विमाता ….” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण अभिनवगीत – “उधर पिलाती-दूध विमाता …।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 76 ☆।। अभिनव-गीत ।। ☆

☆ || “उधर पिलाती-दूध विमाता …” || ☆

बैल गाड़ियों की सँध में

जो रोटी  का टुकड़ा ।

पड़ा हुआ है,देख रहा वह,

रामदीन-कुबड़ा ।।

 

उधर पिलाती-दूध विमाता,

छोटे भाई को।

और,देख भौंचक रमदिनवा

बडी  बिलाई को ।

 

दूर खड़ा भागीरथ काना

माँ को ताके है ।

दूध पिलाती सुखिया के

यौवन को आँके  है ।

 

अपनी-अपनी सब जुगाड़-

 में,पायेगा केवल-

इन लोगों के क्षुधा-युद्ध में

जो होगा तगड़ा ।।

 

राम दीन भी सरक रहा है

लक्ष्य बना रोटी ।

बिल्ली लगी हुई फिट

करने में अपनी गोटी ।

 

सोच रही माँ इस काने की

तनिक निगाह हटे ।

मिल जाए वह रोटी का

टुकड़ा बिन राम रटे ।

 

सारे लोग व्यस्त अपनी

केवल इस चिंता में ,

” ईश्वर  बिनती सुने हमारी

निपट जाए झगड़ा ।।”

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

06-07-2022

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares