हिन्दी साहित्य – कविता ☆ सलिल प्रवाह # 79 ☆ सॉनेट – लता ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित  ‘सॉनेट – लता ।)

☆ सलिल प्रवाह # 79 ☆  सॉनेट – लता ☆

*

लता ताल की मुरझ सूखती।

काल कलानिधि लूट ले गया।

साथ सुरों का छूट ही गया।।

रस धारा हो विकल कलपती।।

 

लय हो विलय, मलय हो चुप है।

गति-यति थमकर रुद्ध हुई है।

सुमिर सुमिर सुधि शुद्ध हुई है।।

अब गत आगत तव पग-नत है।।

 

शारदसुता शारदापुर जा।

शारद से आशीष रही पा।

शारद माँ को खूब रहीं भा।।

 

हुआ न होगा तुमसा कोई।

गीत सिसकते, ग़ज़लें रोई।

खोकर लता मौसिकी रोई।।

 

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

६-२-२०२२

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #66 ☆ # तुम क्यों उदास रहती हो‌ ?# ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# तुम क्यों उदास रहती हो‌ ? #”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 66 ☆

☆ # तुम क्यों उदास रहती हो‌ ? # ☆ 

तुम क्यों उदास रहती हो ?

दिल की बात खुल के

क्यों नहीं कहती हो ?

घुट घुट के जीना भी है

कोई जीना ?

उन्मुक्त नदी सा क्यों नहीं

बहती हो?

 

उड़ते पंछियों को देखो

कब पिंजरे में बंद रहते है

नापते है आसमां की उंचाई

चांद तारों को

मात करते है

तुम आजादी का पाठ

इनसे क्यों नही

सीखती हो ?

तुम क्यों उदास रहती हो ?

 

तुम्हारे भी कितने सपने होंगे

तुम्हारे भी कितने अपने होंगे

कोई तो होगा दिल के करीब

दिल के जज्बात

जिससे कहने होंगे

प्यार छुपाने की जरूरत क्या है ?

अपने महबूब से

 क्यों नहीं कहती हो ?

तुम क्यों उदास रहती हो?

 

जिंदगी में किस्मत से

प्यार मिलता है

चाहने वाला सच्चा

दिलदार मिलता है

थाम लो तुम हाथों में

हाथ उसका

वरना जीवन भर का

सिर्फ इंतजार मिलता है

प्यार इबादत है,

दुनिया से क्यों डरती हो ?

तुम क्यों उदास रहती हो ? /  

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 12 (36-40)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #12 (36-40) ॥ ☆

सर्गः-12

 

चंद्रोदय करता है ज्यों सागर को विक्षुब्ध।

किया सिया के हास ने त्यों ही उसको क्षुब्ध।।36।।

 

कहा राक्षसी ने तुरत यह मेरा अपमान।

भोगोगी परिणाम खुद इतना निश्चित जान।।37।।

 

सीता को भयभीत कर नाम के ही अनुरूप।

शूर्पनखा ने, सूपनख सा रक्खा निज रूप।।38।।

 

पहले तो मधुभाषिणी फिर लख ऐसा रूप।

लक्ष्मण ने जाना उसे मायाविनी विरूप।।39।।

 

इससे क्रोधित हो अधिक नाक-कान दिये काट।

घुसी कुटी में राम की, करने बाराबाट।।40।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 78 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 78 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 78) ☆

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>  कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

☆ English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 78☆

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

ले जाते हैं रोज़ मेहरबाँ

मुझे मक़तल* की ओर

रोज़ मेरा ख़ुदा मुझे

वापिस ले आता है घर…

 

My debonairs take me to

the battlefield every day

But my God brings me

back  home  everyday…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

बेशुमार जख्मों की

मिसाल हूँ मैं…

फिर भी हँस लेता हूँ

कमाल हूँ ना मैं भी…!

I’m an illustration of

countless wounds…

Still I laugh so livelily

Am I not amazing…?

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

खामोशियाँ बोल देती हैं

जिनकी बातें नहीं होतीं

इश्क़ वो भी किया करते हैं…

जिनकी मुलाकातें नहीं होती

 

Silences speak, of those

who do not even talk

They also fall in love

who do not get to meet

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

ना मैं चाँद चाहती हूँ ना सितारे

मुझे तो सिर्फ उजालों की प्यास है

जहाँ से खींच गई बंदिशे दीवारों की

वहीं से नये रास्तों की तलाश है…!

 

 Neither I want the Moon nor the stars

I’m only craving for the light…

Looking for the newer vistas from

where the wall of restrictions starts…!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

 * मक़तल- रणभूमि

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ- उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा भाग – 6 ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

प्रतिदिन श्री संजय भारद्वाज जी के विचारणीय आलेख एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ – उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा   श्रृंखलाबद्ध देने का मानस है। कृपया आत्मसात कीजिये। 

? संजय दृष्टि – एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ- उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा भाग – 6 ??

उत्सवधर्मी समाज :

जितने उत्सव भारतीय समाज में है उतने विश्व के दूसरे किसी भी समुदाय में नहीं है। इस  दर्शन में जीवन प्रतिपल एक उत्सव है। विश्व के अनेक छोटे-बड़े धार्मिक समुदाय अन्यान्य कारणों से भारत में आए। इनमें शरण लेने से लेकर धर्म प्रचार और आक्रमणकारी सभी सम्मिलित हैं। कालांतर में इनमें से अधिकांश भारत में बस गए।  गोस्वामी जी ने बालकांड में भरत के नामकरण के प्रसंग में लिखा है,

बिस्व भरन पोषन कर जोई। ताकर नाम भरत अस होई॥

जो संसार का भरण-पोषण करता है, वही भरत कहलाता है। इसे भारत के संदर्भ में भी ग्रहण किया जा सकता है। उदारमना भारतीय संस्कृति ने घुसपैठियों और आक्रमणकारियों को अपनी ममता की उष्मा उसी प्रकार दी जैसे मादा कौवा अपने अंडों के साथ कोयल के अंडे भी सेती है।  पोषण रस से होता है। जैसे माता पयपान कराती है एवं शिशु पुष्ट होता है। माता और संतान एकात्म होते हैं। पयपान करता शिशु अनेक बार माता को काट लेता है, तब भी माता उसे हटाती नहीं। भारतभूमि व यहाँ आये आक्रमणकारियों के बीच भी यही सम्बंध रहा। समय साक्षी है कि भारत माँ को वासना और लूट-खसोट की दृष्टि से देखनेवालों को भी इस धरती ने पयपान ही कराया।

शत्रु को भी अपनी संतान की तरह देखनेवाली इस धरती पर मनुष्य जन्म पाना तो अहोभाग्य ही  है।

दुर्लभं भारते जन्म मानुष्यं तत्र दुर्लभम्।

अर्थात भारत में जन्म लेना दुर्लभ है। उसमें भी मनुष्य योनि पाना तो दुर्लभतम ही है। अनेक बार भारतीय संस्कृति की सामासिकता के लिए ‘गंगा -जमुनी तहज़ीब’ शब्द का प्रयोग होता है। इन पंक्तियों के लेखक की इससे मतभिन्नता है। गंगा भी भारत की है यमुना भी भारत की है। ऐसे में गंगा-जमुना में भेद कैसे हुआ? यह संस्कृति संगम की है जो अपने साथ अंतर्सलिला सरस्वती को भी समाहित करती है। यूँ भी सरस्वती का अभाव ही सारे छद्मवाद की जड़ होता है।

क्रमश: ….

©  संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 78 ☆ सॉनेट – शीत ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित  ‘सॉनेट – शीत।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 78 ☆ 

☆ सॉनेट – शीत ☆

*

प्रीत शीत से कीजिए, गर्मदिली के संग।

रीत-नीत हँस निभाएँ, खूब सेंकिए धूप। 

जनसंख्या मत बढ़ाएँ, उतरेगा झट रंग।।

मँहगाई छू रही है, नभ फीका कर रूप।।

*

सूरज बब्बा पीत पड़, छिपा रहे निज फेस।

बादल कोरोना करे, सब जनगण को त्रस्त।

ट्रस्ट न उस पर कीजिए, लगा रहा है रेस।।

मस्त रहे जो हो रहे, युवा-बाल भी पस्त।।

*

दिल जलता है अगर तो, जलने दे ले ताप।

द्वार बंद रख, चुनावी ठंड न पाए पैठ। 

दिलवर कंबल भा रहा, प्रियतम मत दे शाप।।

मान दिलरुबा रजाई, पहलू में छिप बैठ।।    

*

रैली-मीटिंग भूल जा, नेता हैं बेकाम।

ओमिक्रान यदि हो गया, कोई न आए काम।। 

*

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२९-१२-२०२१ 

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ बसंत पंचमी: आया पर्व ऋतुराज बसंत का… ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

(हम कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी द्वारा ई-अभिव्यक्ति के साथ उनकी साहित्यिक और कला कृतियों को साझा करने के लिए उनके बेहद आभारी हैं। आई आई एम अहमदाबाद के पूर्व छात्र कैप्टन प्रवीण जी ने विभिन्न मोर्चों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर पर देश की सेवा की है। आप सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार के रूप में कार्यरत थे साथ ही आप विभिन्न राष्ट्र स्तरीय परियोजनाओं में भी शामिल थे।)

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी ने अपने ‘प्रवीन  ‘आफ़ताब’’ उपनाम से  अप्रतिम साहित्य की रचना की है। आज प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम रचना बसंत पंचमी: आया पर्व ऋतुराज बसंत का…।  

? बसंत पंचमी: आया पर्व ऋतुराज बसंत का…?

निर्मल, चंचल, शीतल समीर,

मन्दस्वर में है गुनगुनाती

शरद चाँदनी मुक्त हृदय से

अनवरत रहती है इठलाती

पीली चादर है ओढ़े सरसों,

धानी चुनर में लिपटी वसुधा

नीले अंबर तले, हृदय झंकृत

करती रहती, है अमृत-सुधा

 

चंचल कलरव पक्षियों का

इंद्रधनुषी महकते फूलों में

है स्वागत तुम्हारा ऋतुराज

इन बसंती उन्मुक्त झूलों में

 

हे विद्यादायिनी माँ सरस्वती

हे वीणावादिनि शारदा वर दे

हे ज्ञानदायिनी, हे हंसवाहिनी

बुद्धि, मति से परिपूर्ण कर दे

 

© कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

पुणे

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 12 (31-35)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #12 (31-35) ॥ ☆

सर्गः-12

 

विन्ध्या ज्यों अनुशाशित, ऋषि अगस्त्य आदेश।

बसे राम पंचवटी त्यों तज कर अन्य प्रदेश।।31।।

 

तपी त्रस्त ज्यों सर्पिणी आती चन्दन पास।

कामाहत त्यों शूर्पनखा आई राम के पास।।32।।

 

सीमा सम्मुख ही लगी करने आत्म बखान।

कामातुर कामिनी को रहता कब कोई ध्यान।।33।।

 

सबल श्रेष्ठ श्रीराम ने कहा उसे समझाय।

वे तो हैं पत्नी सहित, एकाकी है भाई।।34।।

 

लक्ष्मण ने भी जब उसे किया न अंगीकार।

फिर लौटी वह राम पै ज्यों सरिता की धार।।35।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिंदी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ #128 – आतिश का तरकश – ग़ज़ल – 15 – “इंतज़ार-ए-शबेग़म हुआ नहीं मुक्तसर …” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “इंतज़ार-ए-शबेग़म हुआ नहीं मुक्तसर …”)

? ग़ज़ल # 15 – “इंतज़ार-ए-शबेग़म हुआ नहीं मुक्तसर …” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

मिरे चेहरे से तुम क्या जान लोगे,

दिल तुमको दिया क्या जान लोगे।

 

डरते क्यों हो निगाहों से ज़माने  की,

पा जाओगे मुहब्बत अग़र ठान लोगे।

 

हमसे कुछ दिन और थोड़ा रूठे रहो,

मिलने की मजबूरी खुद जान लोगे। 

 

रुत मिलन की  गुनगुनाएगी रगों में,

हमारी ख़ुशबू बदन में पहचान लोगे।

 

नज़र बिछाए बैठे हैं तुम्हारी राहों में,

तोहफ़े में क्या सुलगते अरमान लोगे।

 

दस्तरखान दीवानगी का सज़ा रक्खा,

लबों से चख ज़ायक़ा पहचान लोगे।

 

इंतज़ार-ए-शबेग़म हुआ नहीं मुक्तसर,

आने के वास्ते रक़ीब से फ़रमान लोगे।

 

जुदाई  मज़ा देती है थोड़े  वक़्त की,

टूटे प्यालों से क्या रक़्स-ए-जान लोगे।

 

रातें हुईं अब ख़ार-ओ-ख़स सी तनहा,

मुर्दा जिस्म से तुम क्या आन लोगे।

 

इंतज़ार-ए-वस्ले यार में जो हुआ पिन्हा,

ख़ुदगर्ज ‘आतिश’ की  क्या शान लोगे।

 

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ वसंत पंचमी विशेष – ।।शरद ऋतु का अंत।।बसंत।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं। आज प्रस्तुत है आपकी वसंत पंचमी पर्व पर एक विशेष रचना ।।शरद ऋतु का अंत।।बसंत।। )

☆ कविता ☆ वसंत पंचमी विशेष – ।।शरद ऋतु का अंत।।बसंत।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

।।विधा।। मुक्तक।।

[1]

शरद ऋतु तुमको प्रणाम, खुमारी सी छाने लगी है।
लगता ऋतुराज़ बसंत की, रुतअब कहींआने लगी है।।
माँ सरस्वती काआशीर्वाद, अब पाना है हम सबको।
मन पतंग भीअब खुशियों, के हिलोरे खाने लगी है।।

[2]
पत्ता पत्ता बूटा बूटा अब, खिला खिला सा तकता है।
धवल रश्मि किरणों सा, सूरज जैसे अब जगता है।।
मौसम चक्र में मन भावन, परिवर्तन अब आया जैसे।
ऋतुराज बसन्त काअवसर, अब आया सा लगता है।।

? बसंत पंचमी कीअनंत शुभ कामनाओं सहित ?

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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