हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.३७॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.३७॥ ☆

भर्तुः कण्ठच्चविर इति गणैः सादरं वीक्ष्यमाणः

पुण्यं यायास त्रिभुवनगुरोर धाम चण्डीश्वरस्य

धूतोद्यानं कुवलयरजोगन्धिभिर गन्धवत्यास

तोयक्रीडानिरतयुवतिस्नानतिक्तैर मरुद्भिः॥१.३७॥

स्वामी सदृश कंठ , छबिवान तुम

गण समावृत महाकाल के धाम जाना

नदी स्नान क्रीड़ा निरत युवतिजन की

कमल धूलि मिस्रित पवन गंध पाना

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 39 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 39 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 39) ☆ 

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

☆ English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 39☆

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

इश्क था इसलिए

सिर्फ तुझसे किया,

फरेब  होता  तो

सबसे किया होता…

 

It  was  love, that’s why

Just  did  it  with  you  only ,

If it was a fraud, then would

have done it with everyone!

 ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

मेरे  दिल से निकलने का

रास्ता भी ना ढूंढ पाये वो…

और कहते थे कि तेरी

रग-रग से वाकिफ हैं हम…

 

Could not even find a way

To come out of my heart…

Who used to claim to be

Knowing me inside out…

 ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

गिरते रहे सजदों में हम

अपनी ही हसरतों की ख़ातिर

इश्क़ ए ख़ुदा में गिरे होते तो

कोई हसरत ही बाक़ी ना रहती..

 

Kept on falling in  prostration

For the sake  of own  desires

Had only fallen in love of God

No desires would ever be left

 ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

पैर में कांटा क्या चुभा,

ये तस्सली सी बंध गई

कि इस अनजान गली में,

ज़रूर कोई  गुलाब  होगा…

 

With a prick of thorn in foot,

it was more of tranquil relief

That, of course, in this street,

There must be living a rose..!

 ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈  Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य – त्रासदियां ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”


(आज  “साप्ताहिक स्तम्भ -आत्मानंद  साहित्य “ में प्रस्तुत है  श्री सूबेदार पाण्डेय जी की श्री अटल बिहारी बाजपेयी जी के जन्मदिवस पर एक भावप्रवण कविता “त्रासदियां। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य –  त्रासदियां ☆

काँप रही है धरा, डोल उठा है गगन ।

देख तांडव मौतों का, सिहर उठा है ‌जीवन।

महामारियां हैं आ रही, टूटते पहाड़ हैं।

कभी बादल फट रहे, ये मौत की दहाड़ है।

ध्वस्त‌ हुई बस्तियां, बिखर रही हैं लाशें।

मानवता रो रही, थम रही हैं सांसें।

प्रकृति क्रुद्ध हो रही, अपना धैर्य खो रही।

मानव की नादानियों का दंड प्रकृति दे रही।

अपने ही कुकर्मों का दंश, ये मानव झेल रहा।

समझ बूझ लुप्त हुई, मौत से वो खेल रहा।

काटता है बन जंगल, पर्वतों को तोड़ रहा।

बड़े बड़े बांध बना जल धारा मोड़ रहा।

रोक रोक जलधारा, नदियों को मार रहा।

पानी बिन मर रहा, मदद को पुकार रहा।

वन जंगल कटने से, वन्य जीव मर रहे।

खत्म हुई हरियाली, सपने बिखर रहे।

नित आंधियां है चल रही, बज्रपात हो रहा।‌‌ ‌

फ़ूटी सी किस्मत ले, ये मानव रो रहा।

प्रकृति और इंसान में, जंग मानों छिड़ गई।

प्रतिघात घात चल रहा, धरा अखाड़ा बन रही।

प्रकृतिजन्य आपदा का जनक मानव ही बना।

मिट रहा निज कर्म से, कर्म फल है भोगना।

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.३६॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.३६॥ ☆

जालोद्गीर्णैर उपचितवपुः केशसंस्कारधूपैर

बन्धुप्रीत्या भवनशिख्जिभिर दत्तनृत्योपहारः

हर्म्येष्व अस्याः कुसुमसुरभिष्व अधवखेदं नयेथा

लक्ष्मीं पश्यंल ललितवनितापादरागाङ्कितेषु॥१.३६॥

 

वहां केशगंधी अगरु धूम्र से हृष्ट

पा गृहशिखी से मिलन नृत्य उपहार

सुमन गंधसज्जित चरमराग रंजित

भवन श्री निरख, भूल श्रम, मार्ग कर पार

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 27 ☆ सात्विक संतोषी बड़े भारत के सब गांव ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  की एक भावप्रवण कविता  “सात्विक संतोषी बड़े भारत के सब गांव“।  हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 27 ☆

☆ सात्विक संतोषी बड़े भारत के सब गांव ☆

 

सात्विक संतोषी बड़े भारत के सब गांव

जिनकी निधि बस झोपड़ी औ” बरगद की छांव

बसते आये हैं जहां अनपढ़ दीन किसान

जिनके जीवन प्राण पशु खेत फसल खलिहान

 

अपने पर्यावरण से जिनको बेहद प्यार

खेती मजदूरी ही जहाँ जीवन का आधार

सबके साथी नित जहां जंगल खेत मचान

दादा भैया पड़ोसी गाय बैल भगवान

 

जन मन में मिलता जहां आपस का सद्भाव

खुला हुआ व्यवहार सब कोई न भेद दुराव

दुख सुख में सहयोग की जहां सबों की रीति

सबकी सबसे निकटता सबकी सबसे प्रीति

 

आ पहुंचे यदि द्वार पै कोई कभी अनजान

होता आदर अतिथि का जैसे हो भगवान

हवा सघन अमराई की देती मधुर मिठास

अपनेपन का जगाती हर मन में विश्वास

 

मोटी रोटी भी जहां दे चटनी के साथ

सबको ममता बांटता हर गृहणी का हाथ

शहरों से विपरीत है गावो का परिवेश

जग से बिलकुल अलग सा अपना भारत देश

 

मधुर प्रीति रस से सनी बहती यहां बयार

खिल जाते मन द्वार सब पा मीठा व्यवहार

गांव खेत हित के लिये  रहें सदा जो तैयार

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – शाश्वत ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

निठल्ला चिंतन – 

☆ संजय दृष्टि – शाश्वत ☆

…मृत्यु पर इतना अधिक क्यों लिखते हो?

…मैं मृत्यु पर नहीं लिखता।

…अपना लिखा पढ़कर देखो।

…अच्छा बताओ, जीवन में अटल क्या है?

…मृत्यु।

…जीवन में नित्य क्या है?

… मृत्यु।

…जीवन में शाश्वत क्या है?

…मृत्यु।

… मैं अटल, नित्य और शाश्वत पर लिखता हूँ।

©  संजय भारद्वाज

(11.42 बजे, 22.1.2020)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

9890122603

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.३५॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.३५॥ ☆

 

पत्रश्यामा दिनकरहयस्पर्धिनो यत्र वाहाः

शैलोदग्रास त्वम इव करिणो वृष्टिमन्तः प्रभेदात

योधाग्रण्यः प्रतिदशमुखं संयुगे तस्थिवांसः

प्रत्यादिष्टाभरणरुचयश चन्द्रहासव्रणाङ्कैः॥१.३५॥

 

वहां सूर्य के अश्व सम नील हय हैं

जहां शैल सम उच्च गय मद प्रदर्शी

सुनिर्भीक रणवीर भट अग्रगामी

असिव्रण अलंकृत रुचिर रूपदर्शी

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – समय ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि – समय  ☆

समय को ढककर

अपने दुशाले से

खेलता हूँ छुपाछुपी,

खुद ही छिपाता हूँ

खुद ही ढूँढ़ता हूँ,

हौले से दुशाला हटाता हूँ,

समय को न पाकर

चौंक जाता हूँ,

फिर देखता हूँ

समय उतरा बैठा है

हर आँख में..,

अब आँख

खुली रखो या बंद,

क्या अंतर पड़ता है,

समय सर्वव्यापी हो चुका!

©  संजय भारद्वाज

प्रात:8:50 बजे, 21.6.2020

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

9890122603

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष # 69 ☆ संतोष के दोहे☆ श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.    “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं  “संतोष के दोहे। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार  आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 69 ☆

☆ संतोष के दोहे  ☆

अलबेली सी लग रही, दुनिया की अब चाल

स्वारथ में लिपटे सभी, यह जन-जन का हाल

 

छलिया मोरे मन बसे, कहलाते चित चोर

मुझको मोहन दीखते, जित देखूं उत ओर

 

अक्सर फँसती  पूंछ ही, गज निकले आसान

काज न समझें लघु कभी, होते सभी महान

 

पूस माह जाड़ा बढ़े, कपकपाये शरीर

बड़े-बूढ़े संभल रहें, दुर्बल  है तासीर

 

आया समय अवसान का, याद करें भगवान

जीवन के नव दौर में, कभी न आया ध्यान

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ मेरा गाँव… ☆ श्री जयेश वर्मा

श्री जयेश वर्मा

(श्री जयेश कुमार वर्मा जी  बैंक ऑफ़ बरोडा (देना बैंक) से वरिष्ठ प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। हम अपने पाठकों से आपकी सर्वोत्कृष्ट रचनाएँ समय समय पर साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता मेरा गाँव…।)

☆ कविता  ☆ मेरा गाँव… ☆

क्यों मन जिद करता है…

जाने को तुमसे दूर..

बुलाता है मुझे, अब, भी…

वो, गाँव का सूरज……

पगडंडियों पर लेटी वो धूप..

 

आँचल सम्हालती.. मुस्काती चन्दा….

जिससे मैं मिलने को आतुर…

क्यों मन जिद करता है..

जाने को तुमसे दूर…

 

क्यों मन कभी गाँव के आसमां में उड़ता,

कभी धरती को नापता, दौड़ दौड़,

क्यों भरता है कुलांचे, ये मन,

झील की  लहरों को,

ताकता, एकटक,

 

कभी भगवत शरण में,

रमने की इच्छा,

कभी बुलाती, मुझे

गाँव के मंदिर की राम धुन,

 

मुझे शहर नहीं भाता,

गाँव ही बुलाता, हरदम,

इसलिए मन ज़िद करता,

जाने को तुमसे दूर..

 

©  जयेश वर्मा

संपर्क :  94 इंद्रपुरी कॉलोनी, ग्वारीघाट रोड, जबलपुर (मध्यप्रदेश)
वर्तमान में – खराड़ी,  पुणे (महाराष्ट्र)
मो 7746001236

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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