हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 139 ☆ कविता – रंग हजार ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी  द्वारा लिखित एक विचारणीय कविता  ‘रंग हजार’ । इस विचारणीय रचना के लिए श्री विवेक रंजन जी की लेखनी को नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 139 ☆

? कविता – रंग हजार ?

रंग हजार

चित्र विचार

रोशन करते मन उद्गार

 

कुछ गाढ़े, कुछ फीके

कलाकर के बड़े सलीके

अभिव्यक्ति के नए तरीके

 

आसमान से आई चिड़िया

कैनवास में छाई चिड़िया

बिंब बना है कितना बढ़िया

 

झरना सिमटा दीवारों में

बिखरा जलप्रपात फर्श पर

पक्षी मानो मन प्रतीक है

दिखता चित्र बड़ा सटीक है

 

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३

मो ७०००३७५७९८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 92 ☆ तुझको स्वयं बदलना होगा ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत।  इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा  डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे । 

आज प्रस्तुत है  आपकी एक भावप्रवण  रचना “तुझको स्वयं बदलना होगा”. 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 92 ☆

☆ तुझको स्वयं बदलना होगा ☆ 

देख रहा घर – घर में रगड़े

तुझको स्वयं बदलना होगा।

जीवन की हर बाधाओं से

हँसते – हँसते लड़ना होगा।।

 

कर्तव्यों से हीन मनुज जो

अधिकारों की लड़े लड़ाई।

प्रकृति के अनुकूल न चलता

आत्ममुग्ध हो करे बड़ाई।

 

झूठे सुख के लिए सदा ही

देख रहा ना पर्वत – खाई।

धन  – संग्रह की होड़ लगी है

मन कपटी है चिपटी काई।

 

हे मानव ! तू सँभल ले अब भी

तुझको स्वयं भुगतना होगा।

देख रहा घर – घर में रगड़े

तुझको स्वयं बदलना होगा।।

 

जो सन्तोषी इस धरती पर

वह ही सुख का मूल्य समझता।

वैभवशाली, धनशाली का

सबका ही सिंहासन हिलता।

 

उद्यम कर, पर चैन न खोना

अपना लक्ष्य बनाकर चलना।

परहित – सा कोई धर्म नहीं है

देवदूत बन सबसे मिलना।

 

समय कीमती व्यर्थ न खोना

तुझको स्वयं समझना होगा।

देख रहा घर – घर में रगड़े

तुझको स्वयं बदलना होगा।।

 

सामानों की भीड़ लगाकर

अपने घर को नरक बनाए।

सारा बोझा छूटे एक दिन

उल्टे – पुल्टे तरक चलाए।

 

उगते सूरज योग करें जो

उनकी किस्मत स्वयं बदलती।

कर्म और पुरुषार्थ , भलाई

यहाँ – वहाँ ये साथ हैं चलतीं।

 

परिस्थितियां जो भी हों साथी

तुझको स्वयं ही ढलना होगा।

देख रहा घर – घर में रगड़े

तुझको स्वयं बदलना होगा।।

 

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 11 (6-10)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #11 (6-10) ॥ ☆

लखन राम के साथ थे, नृप ने दी आशीष।

थे रक्षा हित सजग वे, नहीं थी मन में टीस।।6।।

 

मातृ-चरण-रज शीष धर चले जो मुनि के साथ।

लगे वे जैसे सूर्य के मधु-माधव हों साथ।।7।।

 

उन दोनों की चपल गति थी सुखकर भरपूर।

उद्ध्य-भिद्या नद शोभते थे जैसे जब पूर।।8।।

 

‘बला-अतिबला’ विद्या पा मुनि से वे सुकुमार।

निडर और निश्चित थे मग में सभी प्रकार।।9।।

 

मुनि कौशिक से मार्ग में सुन सारा इतिहास।

राम लखन को थकन का हुआ न कोई आभास।।10।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #115 – किससे बात करें….. ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”  महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत हैं एक भावप्रवण कविता “किससे बात करें…..”)

☆  तन्मय साहित्य  #115 ☆

☆ किससे बात करें…..

इक चेहरे के पीछे

छिपे हुए अनेक चेहरे

किससे बात करें।

 

बंद चहकना हुआ चिरैया का

और रँभाना घर की गैया का

फूलों पर गुंजार न भ्रमरों की

कलियों पर है वार ततैया का,

बेतरतीब मौसमों से

तरु पल्लव डरे-डरे

किससे बात करें।

 

होड़ दौड़ की मची, न पल भर चैन

पानीदार रहे ना नेहिल नैन

कौवों के मजमें, कोयल गुमसुम

हुए दिवंगत, सद्भावी मृदुबैन,

मुस्कानों पर लगे हुए

इनके-उनके पहरे

किससे बात करें।

 

एक टीस, बाहर से भीतर तक

शोर-तमाशे, कोलाहल, गम्मत

बिजली बारूद माचिस के मेले

घूम रहा, हाथों में ले चकमक,

नभ-पथ पर जो विचरे

वे क्यों धरती पर ठहरे

किससे बात करे

 

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 8 – भजन – कान्हा की नगरिया ☆ डॉ. सलमा जमाल

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 22 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक लगभग 72 राष्ट्रीय एवं 3 अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।  

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है। 

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है एक भक्ति रस में रचित अतिसुन्दर रचना  कान्हा की नगरिया ”। 

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 8 ✒️

?  भजन – कान्हा की नगरिया —  डॉ. सलमा जमाल ?

हम तो जाएंगे कान्हा की नगरिया ।

टेढ़ी-मेढ़ी गैल दूर है डगरिया ।।

 

गोपी ग्वाल संग रास रचाऊं ,

मुरली बन कान्हा के अधर सजाऊं ,

पनघट पर फोड़े मोरी गगरिया ।

टेढ़ी-मेढ़ी ———————– ।।

 

मोह- माया तज कृष्ण को ध्याऊं,

लोक लाज मीरा सी गवाऊं ,

हमने रंग डाली श्याम रंग चुनरिया ।

टेढ़ी-मेढ़ी ———————-।।

 

गोवर्धन गिरी पे जाके बसूंगी,

बरसो झमाझम बदरी से कहूंगी,

उंगली पर धारें गिरी सांवरिया ।

टेढ़ी-मेढ़ी ———————–।।

 

यमुना के तीरे कदंब की छंइयां ,

सांझ परे वन सें लौटें घर गईंयां ,

मोहन को ढूंढो मैं हॉट बजरिया ।

टेढ़ी-मेढ़ी ———————–।।

 

दही और माखन का भोग लगाऊं ,

सोलह सिंगार ,कृष्ण को रिझाऊं,

वंशीधर ले लो “सलमा” की खबरिया ।

टेढ़ी-मेढ़ी ———————–।।

 

© डा. सलमा जमाल 

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 11 (1-5)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #11 (1-5) ॥ ☆

आये विश्वामित्र तब नृप दशरथ के पास।

लेने को श्री राम दो मख रक्षा ही आश।।1।।

 

मुनि सेवी उस नृपति ने बड़े दुष्ट के साथ।

राम-लखन मुनि को दिये विनत, यक्ष रथार्थ।। 2।।

 

नृप ने आदेशित किया मार्ग शुद्धि संस्कार।

पर मिल बादल-वायु ने स्वयं किया उपचार।। 3।।

 

जाने उद्यत धनुर्धर दोनों राजकुमार।

झुके चरण में पिता के बही अश्रुकी धार।।4।।

 

सिंचे पिता-प्रेमाश्र से चले मुनी के संग।

लोक-नयन-अरविंद से सजे दिखे सब पंथ।।5।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 15 – सजल – कैसी यह लाचारी है… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है सजल “कैसी यह लाचारी है… । आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 15 – सजल – कैसी यह लाचारी है…  ☆ 

समांत- आरी

पदांत- है

मात्राभार- 14

 

कैसी यह लाचारी है।

विकट समस्या भारी है।।

 

फिदा पड़ोसी पर होते ,

मजहब से ही यारी है।

 

आतंकी सब सखा बने,

मानवता भी हारी है ।

 

काश्मीर में शांति आई,

खिली वहांँ फुलवारी है।

 

लोकतंत्र में भ्रष्टाचार,

जनता से मक्कारी है।

 

गहरी जड़ें वंशवाद की,

नेता की बलिहारी है।

 

जन सेवक कहलाते जो,

गाड़ी-घर सरकारी है।

 

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

01-01- 2022

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)-  482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – वह ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि – वह  ??

‘वह’ शृंखला की एक और कविता प्रसूत हुई। पाठकों के साथ साझा कर रहा हूँ।

 

उसके भीतर

बसती है एक बतक्कड़,

बहुत कुछ, सब कुछ

उससे कहना चाहती है वह,

किस्से-कहानी, आपबीती-जगबीती

सिर्फ उसे सुनाना चाहती है वह,

फिर सुनकर उसका रूखापन

अनमनी-सी चुप हो जाती है वह !

 

©  संजय भारद्वाज

अपराह्न 1:48 बजे, 9.1.20 2 2

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 
मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 10 (81-86)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #10 (81-86) ॥ ☆

था सौहाद्र समान पर, राम – लखन थे साथ

तथा भरत – शत्रुघ्न का था स्नेह विख्यात ॥ 81॥

 

वायु – अग्नि में प्रेम ज्यों, चंदा और समुद्र

वैसे ही द्वय युग्म का था सनेह अति उग्र ॥ 82॥

 

चारों की तेजस्विता औं विनम्रता साथ

जनप्रिय मन मोहक थी ज्यों ग्रीष्म बाद बरसात ॥ 83॥

 

दशरथ के वे पुत्र थे शोभित, चार उदार

अर्थ कर्म काम मोक्ष के साक्षात अवतार ॥ 84॥

 

सागर पाता रत्नों से दिय स्वामी का ध्यान

त्यों प्रसन्न सुत गुणों से दशरथ पिता महान ॥ 85॥

 

भंजक दैत्य असि दन्त से ऐरावत गजराज

फलदायी गुणचार से राजनीति के काज ॥ 86॥ अ

 

चतुर्युगो के भार से ज्यों श्शोभित भगवान

विष्णु अंश चारों सुतों से त्यों नृपति महान ॥ 86॥ ब

 

दसवॉ सर्ग समाप्त

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 72 – दोहे ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 72 –  दोहे ✍

सत्ताधारी जब रहे, सूजी उनकी डाढ़,

फिर जिनका कब्जा हुआ, डाढें रहे उखाड़।।

 

शिक्षा मंत्री बन गए, बाप पढ़ें  ना पूत ।

पढ़े-लिखे की हैसियत, हैंडलूम का सूत।।

 

क्या है उनकी कुंडली, क्या है उनका ज्ञान ।

अरे अरे मत पूछिए, सुनिए सिर्फ बयान।।

 

महंगाई की मार से, सभी लोग बेहाल ।

ढेर ढेर भूसा दिखे, खिंचे हमारी खाल।।

 

बहिन बेटियों समझ लो, समय-सांड  बिगड़ैल ।

सोच समझकर निकलिए, राजनीति की गैल।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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