हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 9 (56-60)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #9 (56-60) ॥ ☆

 

धनुर्धारी दशरथ के भय से बिखर, झुण्ड मृग को चकित अश्रुपूरित नयन से

हवा से प्रकम्पित कमल नील दल दल सा सुश्यामल छटा भर दी वातावरण में। 56

 

इन्द्र और विष्णु सदृश वीर दशरथ नेकर लक्ष्य मृग को धनुष तो चढ़ाया

पर सहचरी मृगी को देख मृदुमन हो चलाने से पहले ही शर को हटाया॥ 57॥

 

भय से चपल दीर्घ नेत्री प्रगल्भा प्रिया नेत्रों के ‘मधुर भावों की कर याद

अन्य मृगों पर भी प्रहारेच्छु दशरथ ने मारा न कोई बाण समझ जैसे फरयाद॥ 58।

 

पंकिल जलाशय से उठ भागते गीले कीचड़ भरे पैर चिन्हों से जाहिर

मोया के मुँह से गिरे कवलखण्डों से सुअरों की आखेट को हुआ हाजिर ॥ 59॥

 

घोड़े से झुक बाण संहार करते, उससे सुअर ने झपट चाहा भिड़ना

पर धनुर्धर के प्रखर बाण से विद्ध मर उसे तरू से ही आया लिपटना ॥ 60॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 69 – दोहे ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 69 –  दोहे ✍

कितना क्या हम सह रहे,  किसे बताएं यार ।

जीवन नैया बह रही, बिना किसी पतवार।।

 

है शूकर – सी जिंदगी, जीते हैं इंसान।

फोटो उनकी खींचकर, लोग हुए धनवान।।

 

चूहे हैं अच्छे भले, बदतर है इंसान।

चूहे दानी है उन्हें, इनको नहीं मकान।।

 

ईश्वर अल्लाह एक है, अनगिन पूजा थान।

मगर आदमी के लिए, मुश्किल एक मकान।।

 

अनदेखा भगवान है, सुना नाम ही नाम ।

चाहे जितना लूटिए, ख्वाबों का गोदाम।।

 

रंग रंगी थी जिंदगी, हुई आज बदरंग।

 रिश्ते सारे काटते, जैसा जूता तंग।।

 

उद्घाटन की लालसा, करती गई कमाल ।

पांच बरस में खुल गई रुपयों की टकसाल ।।

 

हवामहल में बैठकर, देखा करें जमीन ।

जिनको समझा साधु-सा निकले वही कमीन।।

 

राजनीति के पंक में लिपटे राजा रंक।

एक  ध्येय सब का यही, मिले पुष्प पर्यंक।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव-गीत # 69 – अब उन्हें कहो कि… ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण अभिनवगीत – अब उन्हें कहो कि।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 69 ☆।। अभिनव-गीत ।। ☆

☆ || अब उन्हें कहो कि ….. || ☆

अधबहियाँ छाँव

के सलूके

पहिन धूप ढूंढती-

छेद कुछ रफू के

 

आ बैठी रेस्तराँ

 दोपहरी

देख रही मीनू को

टिटहरी

 

हैं यहाँ तनाव

फालतू के

 

स्वेद सनी गीली

बहस सी

सभी ओर असुविधा

उमस सी

 

मैके में मौसमी

बहू के

 

श्वेत- श्याम धरती

के द्वीपों

गरमी है खुले

अन्तरीपों

 

पेड़ सभी बन गये

बिजूके

 

इधर- उधर भटकी

छायायें

अब उन्हें कहो कि

घर चली जायें

 

बादल शौकीन

कुंग-फू के

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

16-12-2021

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – सहनाववतु ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

?संजय दृष्टि –  सहनाववतु ??

इतना चल चुके,

शिखर अब भी

पहुँच से दूर क्यों है..?

मैं मापता रहा;

अपने साथ अपनों,

कुछ कम अपनों के

हिस्से की भी दूरी,

‘सहनाववतु सहनौभुनक्तु

सहवीर्यं करवावहै’

की परंपरा को

जीना चाहता हूँ,

पहाड़ की साझा चोटियों की

एक कड़ी भर होना चाहता हूँ,

लम्बाई-ऊँचाई के

पैमानों में कोई रस नहीं,

निपट एकाकी शिखर होना

मेरा लक्ष्य नहीं..!

 

©  संजय भारद्वाज

(प्रातः 7:35 बजे, 6 सितंबर 2018)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कविता – मुस्कराकर तो देखो ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है  एक  भावप्रवण कविता  ‘मुस्कराकर तो देखो ’)  

☆ कविता – मुस्कराकर तो देखो ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

उन आँखों में झांक के देखो तो सही ,

प्यार झलकता है कि नहीं ?

 

एक कदम बढ़ा के देखो तो सही ,

राह मिलती है कि नहीं ?

 

एक हाथ उठा के देखो तो सही ,

काम होता है कि नहीं ?

 

एक बार मुस्करा के देखो तो सही ,

दुनिया अपनाती है कि नहीं ?

 

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #59 ☆ # लोग कुछ तो कहेंगे # ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# लोग कुछ तो कहेंगे #”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 59 ☆

☆ # लोग कुछ तो कहेंगे # ☆ 

छोड़ो कल की बातें

वो बीती हुई रातें

सुनहरी किरणों को देखो

अब स्याह चोला

उखाड़ फेंको

लोगों का क्या है

लोग कुछ तो कहेंगे ?

 

यह असमानता की गहराई

कहीं पहाड़ तो कहीं खाई

यह परेशान से चेहरे

हर सूरत है कुम्हलाई

यह पिटे पिटे लोग

क्यों सब सहेंगे?

लोगों का क्या है

लोग कुछ तो कहेंगे ?

 

यह भ्रूण की हत्यायें

जलती हुई महिलाएं

लुटती हुई अस्मत

दरिंदों से कैसे बचाएं

मायूस खोयी खोयी आंखों से

क्यों आँसू बहेंगे ?

लोगों क्या है —-?

 

कहीं कहीं प्रेम आजाद है

कहीं कहीं पंचायतों का राज है

कहीं कहीं है फूलों पर बंदिशे  

कहीं कहीं कांटे बनें सरताज है

प्रेम पर बने

रूढीयोंके किल्ले

क्यों नहीं ढहेंगें ?

लोग कुछ तो कहेंगे—?

 

लोकतंत्र मजबूती से खड़ा है

अपने सिद्धांतों पर

निर्भीक अड़ा है

छल कपट से गुमराह करते

लोगों को देख

बेजान-सा लहुलुहान पड़ा है

न्याय का सरकारीकरण देख

क्यों चुप रहेंगे?

लोगों का क्या है

लोग कुछ तो कहेंगे ?

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 9 (51-55)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #9 (51-55) ॥ ☆

 

वन  पुष्पमाला से श्शोभित शिरोभाग, हरी  पत्तियों  के  कवच  से  सुरक्षित

अश्वों की गति से चलित कुण्डलद्वय, महाराज पहुंचे जहाँ रूरू थे विचरित। 51 ॥

 

लता जिनके तन थे, भ्रमर जिनकी आँखे, उन वनदेवियों ने उसे तब निहारा

थे जिसके नयन तीक्ष्ण,दशरथ वही जिसकी नयनीति से खुश था कोशल ही सारा

 

कुत्तों  के  दल  और  फंदे  लिये  लोग  पहले  ही  से  थे  उपस्थित  वहाँ पै

दाव और तस्कर रहित वन जहाँ अश्व निर्भय हो पहुँचे हो मृगगव जहाँ पै ॥ 53॥

 

पहुँच वहाँ दशरथ ने सिंहों को क्रोधित करे जा वही तब धनुज्या सँभाली

जैसे कि भादों रखे इन्द्रधनु ही चमकती पीली बिजली की प्रत्यंचा वाली ॥ 54॥

 

देखा बड़े एक मृगदल में आगे अभय घासदाबे कृष्णसार मृग को

शिशु कों पिलाती हुई हिरणियाँ रूक, निरंतर न बढ़ पाने देती थी जिसको। 55।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 71 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 71 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 71) ☆

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>  कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

☆ English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 71☆

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

खामोशियाँ कभी

बेवजह नहीं होती,

कुछ दर्द आवाज़

छीन लिया करते हैं…

 

Never  unfounded

are  the  silences

Some  pains  just

strangulate the voice..!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

फिर कुछ यूँ  हुआ कि

हम जुदा हो गए…,

हम बंदगी  में रहे…

और वो खुदा हो गए…

 

Then something such

happened that we parted….

I remained in devout prayers

And, they became the God….!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

जिसके लफ्जों में हमें

अपना अक्स मिलता हो,

बड़े नसीबों से ही ऐसा

कोई शख्स मिलता है…!

 

In whose words reflects

our own image,

Such a person is found

with great luck only…..!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

कबूल करते हैं कि हमें

फुर्सत नहीं मिलती…

तुम्हें जब याद करते हैं तो

ज़माने को भी भुला देते हैं..!

 

I  do  confess that

I don’t get the time…

When I remember you,

I even forget the world!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 71 ☆ सॉनेट – सौदागर ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित  ‘सॉनेट – सौदागर।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 71 ☆ 

☆ सॉनेट – सौदागर ☆

भास्कर नित्य प्रकाश लुटाता, पंछी गाते गीत मधुर।

उषा जगा, धरा दे आँचल, गगन छाँह देता बिन मोल।

साथ हमेशा रहें दिशाएँ, पवन न दूर रहे पल भर।।

प्रक्षालन अभिषेक आचमन, करें सलिल मौन रस घोल।।

 

ज्ञान-कर्म इंद्रियाँ न तुझसे, तोल-मोल कुछ करतीं रे।

ममता, लाड़, आस्था, निष्ठा, मानवता का दाम नहीं।

ईश कृपा बिन माँगे सब पर, पल-पल रही बरसती रे।।

संवेदन, अनुभूति, समझ का, बाजारों में काम नहीं।।

 

क्षुधा-पिपासा हो जब जितनी, पशु-पक्षी उतना खाते।

कर क्रय-विक्रय कभी नहीं वे, सजवाते बाजार हैं।

शीघ्र तृप्त हो शेष और के लिए छोड़कर सुख पाते।।

हम मानव नित बेच-खरीदें, खुद से ही आजार हैं।।

 

पूछ रहा है ऊपर बैठे, ब्रह्मा नटवर अरु नटनागर।

शारद-रमा-उमा क्यों मानव!, शप्त हुआ बन सौदागर।।

 

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१८-१२-२०२१

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ कुछ लोग ☆ श्री श्याम संकत

श्री श्याम संकत

(ई-अभिव्यक्ति में श्री श्याम संकत जी का हार्दिक स्वागत है। आप भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। स्वान्त: सुखाय कविता, ललित निबंध, व्यंग एवं बाल साहित्य में लेखन।  विभिन्न पत्र पत्रिकाओं व आकाशवाणी पर प्रसारण/प्रकाशन। रेखांकन व फोटोग्राफी में रुचि। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता ‘कुछ लोग’

☆ कविता ☆ कुछ लोग ☆ श्री श्याम संकत ☆ 

कुछ लोग इस तरफ थे

कुछ लोग थे उस तरफ

कुछ लोग किसी भी तरफ नहीं थे

तटस्थ थे, निर्दलीय की भाँति।

आखिर इन दो आँखों से

किस किस को कितनी तरफ देखा जा सकता था

फिर भी सब को देख लिया गया

समझ लिया गया बारी बारी से

लोगों का इधर या उधर होना

उतना महत्वपूर्ण नहीं था

महत्वपूर्ण था, जो भी जहाँ था

उसे देख लिया जाना

समझ लिया जाना।

 

© श्री श्याम संकत 

सम्पर्क: 607, DK-24 केरेट, गुजराती कालोनी, बावड़िया कलां भोपाल 462026

मोबाइल 9425113018, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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