हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 206 – कथा क्रम (स्वगत)… ☆ स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका भावप्रवण कविता – कथा क्रम (स्वगत)।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 206 – कथा क्रम (स्वगत)… ✍

(नारी, नदी या पाषाणी हो माधवी (कथा काव्य) से )

क्रमशः आगे…

किया देह का दोहन ।

किन्तु

अभी

पूरा नहीं हुआ था

गालव का अभीष्ट ।

शुल्क में

जुट पाये थे

केवल छै सौ अश्व |

चिन्तातुर

गालव ने

फिर स्मरण किया

मित्र गरुड़ का

परामर्श के लिये ।

गरुड़ ने पूछा –

क्यों मित्र

कृतकार्य हुए?

उदास गालव ने

कहा

अभी बाकी है

गुरुदक्षिणा का

चौथाई भाग ।

गरुड़ ने कहा-

‘ने

‘मित्र

पूर्ण नहीं होगा

तुम्हारा मनोरथ ।

और

इसका कारण है।

पूर्व काल में

राजा गाधि की पुत्री

सत्यवती को पत्नी रूप में पाने

ऋचीक मुनि ने

© डॉ राजकुमार “सुमित्र” 

साभार : डॉ भावना शुक्ल 

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 206 – “बहुत तसल्ली थी उनको…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत बहुत तसल्ली थी उनको...)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 206 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “बहुत तसल्ली थी उनको...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी 

सारे बेटे रहे पालते

” पापा ” को स्नेह से

मरे एक दिन किन्तु पिताजी

हत्यारी मधुमेह से

 

कोई दवा काम ना

आयी तरह तरह बदली

जब भी जिस ने जो

बतलायी वह गोली निगली

 

सोया करते पूज्य पिता

तब बाहर की दालान में

जिस में भीग भीग जाते

थे चौमासे के मेह से

 

जब भी कोई व्यक्ति

माँगने दरवाजे आता

उसे मना की नहीं कभी

वह खुश होकर जाता

 

कीर्तिमान यह रहा पिता

का कुछ न कुछ देते

कहा किये थे याचक ना

खाली जाये इस गेह से

 

बहुत तसल्ली थी उनको

जायेंगे माघ मेला

तभी राम ने उन से था

खेला ऐसा खेला

 

प्राण पखेरू उड़े अचानक

रोक नहीं पाये

लगा कि सारा नेह चुक गया

उनका था इस देह से

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

08-09-2024

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – चेहरे ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – चेहरे ? ?

आरोप है

लम्बे समय से

मैंने कुछ नया नहीं लिखा है,

मैं इसे नकारता हूँ

आरोपों का खंडन करता हूँ,

लो अपने लेखन का भेद

आज तुम्हारे सामने

प्रकट करता हूँ …..

 

दरअसल

मैं चेहरों पर लिखा करता था,

चेहरे मेरे लेखन का केंद्र होते थे,

बोलते चेहरे-तौलते चेहरे,

हँसाते चेहरे-रुलाते चेहरे,

सुंदर चेहरे-विद्रूप चेहरे,

लड़ाते चेहरे-झगड़े मिटाते चेहरे,

गुलाब की पंखुड़ियों से

खिलते-मुरझाते चेहरे…..

 

ऐसे चेहरे-वैसे चेेहरे,

हर रंग के चेहरे,

रंग-बिरंगे चेहरे,

इस तरफ चेहरे,

उस तरफ चेहरे,

हर तरफ चेहरे,

भीतर को सच्चाई से

बाहर जताते चेहरेे…..

 

मैं चेहरे देखता,

क़लम खुद चल पड़ती,

कई रंग कागज़ पर बिखरते,

रचना बन पड़ती,

तुम इसे पढ़ते,

मैं तुम्हे पढ़ता,

तुम्हारे रंग के सहारे

फिर एक नयी रचना गढ़ता…..

 

चेहरे अब बेरंग हो गए हैं,

हँसना-हँसाना,

रोना-रुलाना,

रूठना-मनाना,

सब कुछ एकदम सधा हुआ,

मापा हुआ-तौला हुआ…..

 

इंचों में गिनी जाती मुस्कानें,

मिलीमीटर में आँसू के पैमाने,

भावनाओं के

सुनिश्चित गणितीय चौखट के

पहरेदार हो चले हैं,

चेहरे अब निर्विकार हो चले हैं…..

 

रचता तो मैं अब भी हूँ,

क़ाग़ज़ों पर रंग

तुम ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो,

मेरा लिखना बदस्तूर जारी है

तुम पढ़ सको तो पढ़ लो…!

© संजय भारद्वाज  

(कवितासंग्रह ‘चेहरे’ से।)

अध्यक्षहिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 गणेश चतुर्थी तदनुसार आज शनिवार 7 सितम्बर को आरम्भ होकर अनंत चतुर्दशी तदनुसार मंगलवार 17 सितम्बर 2024 तक चलेगी।💥

🕉️ इस साधना का मंत्र है- ॐ गं गणपतये नमः। 🕉️

साधक इस मंत्र के मालाजप के साथ ही कम से कम एक पाठ अथर्वशीर्ष का भी करने का प्रयास करें। जिन साधकों को अथर्वशीर्ष का पाठ कठिन लगे, वे कम से कम श्रवण अवश्य करें।

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 191 ☆ # “मौत एक सच्चाई है” # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता मौत एक सच्चाई है

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 191 ☆

☆ # “मौत एक सच्चाई है” #

जिंदगी तूने इक बात

तो समझाई है

जीवन है हसीन ख्वाब

और मौत एक सच्चाई है

 

जीवन के भागदौड़ में

कुछ अपने बिछड़ गए

उम्र के आखिरी पड़ाव पर

उनकी याद आई है

 

वो वादा करके गये थे

आएंगे लौटकर

हमने हर सुबह ओ’ शाम

इंतजार मे बिताई है

 

सब कुछ लुटा दिया

हमने अपनों के वास्ते

बिस्तर पर पड़े तो

औलाद ने भी पीठ दिखाई है

 

जवानी तो मस्ती और

रंगीनियों मे गुजर गयी

बुढ़ापा देखकर

आंख भर आई है

 

भंवरें सा चूमते रहे बगीचों में

खिलती हुई कलियां

उन फूलों को भी अब

छूने की मनाही है

 

मसान मे जो देखी

जलती हुई चितायें

राजा हो या रंक

सबने यूंही सद्गति पाई है

 

जो शोषित, वंचितों के लिए

लड़ते रहे उम्र भर

वो अवतार बन गये

लोगों के दिलों में जगह पाई है

 

हम चलते रहे हमेशा

अपने उसूलों की राह पर

” श्याम” इसलिए तुमने

हर कदम पर ठोकर खाई है /

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ – प्रतीक्षा… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

श्री राजेन्द्र तिवारी

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय कविता ‘प्रतीक्षा…‘।)

☆ कविता  – प्रतीक्षा… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

तेरी याद में ऐसी खोई,

अपनी सुध बुध मैंने खोई,

आज अपनी डगरिया भुला बैठी,

जीवन लगता प्यारा प्यारा,

तूने क्या ऐसा कर डाला,

आज अपनी नगरिया भुला बैठी,

घर से जैसे ही मैं निकली,

पनघट पर पनिया भरने को,

राह में बैठा था तू सजना,

निंदिया मेरी हरने को,

तूने कंकरिया जो मारी,

गगरी फूट गई बेचारी

आज अपनी गगरिया गंवा बैठी,

 आज अपनी डगरिया भुला बैठी,

सजना तेरी याद में खोई,

सुबह शाम ना जानूं,

दुनिया छूटे, जग रूठे पर,

तुझको अपना मानूं

तू अब इन आंखों की ज्योति,

 जैसे सीप में रहता मोती,

तुझसे अपनी नजरिया मिला बैठी,

आज अपनी डगरिया भुला बैठी,

द्वार पर बैठी  पंथ निहारूं,

पलक बुहारूं अंगना,

हर आहट पर दिल ये सोचे,

आए मेरे सजना,

तू अब इन आंखों का सपना,

तज के लोग लाज को सजना,

तुझको अपना सांवरिया बना बैठी,

आज अपनी डगरिया भुला बैठी.

© श्री राजेन्द्र तिवारी  

संपर्क – 70, रामेश्वरम कॉलोनी, विजय नगर, जबलपुर

मो  9425391435

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of social media # 203 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of social media # 203 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 203) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..! 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 203 ?

☆☆☆☆☆

इस सफ़र में

नींद ऐसी खो गई

हम न सोए

रात थक कर सो गई …

☆☆

In this sojourn of life…

Lost sleep like this

Never could I sleep

Tired night only slept off…

☆☆☆☆☆

हर रोज़ ख़ुद पे ही बहुत…

हैरान बहुत होता हूँ मैं

कोई तो है मुझ में  जो…

बिल्कुल ही जुदा है मुझ से…!

☆☆

Everyday  I  keep  getting

too  surprised  on  myself…

There’s someone in me who’s

completely different from me…

☆☆☆☆☆

सारी उम्र गुजर गयी……

खुशियाँ बटोरते बटोरते

बाद में पता चला कि

खुश तो वो लोग थे जो खुशियाँ बाट रहे थे…

☆☆

Whole life passed away in

Picking up  the  happiness…

Only to find happy were those

Who kept sharing happiness..!

☆☆☆☆☆

कौन कहता है कि

दिल सिर्फ सीने में होता है…

तुमको लिखूँ तो

मेरी उँगलियाँ भी धड़कती हैं…

 ☆☆

Who says that

Heart is in chest only

My fingers also throb

When I write to you…!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 203 ☆ सॉनेट – याद… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है सॉनेट – याद…।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 203 ☆

सॉनेट – याद ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

याद झुलाती झूला पल पल श्वासों को,

पेंग उठाती ऊपर, नीचे लाती है,

धीरज रस्सी थमा मार्ग दिखलाती है,

याद न मिटने देती है नव आसों को।

याद न चुकने-मिटने देती त्रासों को,

घूँठ दर्द के दवा बोल गुटकाती है,

उन्मन मन को उकसाती हुलसाती है,

याद ऊगाती सूर्य मिटा खग्रासों को।

याद करे फरियाद न गत को बिसराना,

बीत गया जो उसे जकड़ रुक जाना मत,

कल हो दीपक, आज तेल, कल की बाती।

याद बने बुनियाद न सच को ठुकराना,

सुधियों को संबल कर कदम बढ़ाना झट,

यादों की सलिला, कलकल कल की थाती।

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

शुक्रवार, १२ अप्रैल, २०२४

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ श्री गणेश-वंदना ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ श्री गणेश-वंदना ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

हे विघ्नविनाशक,बुद्धिप्रदायक, नीति-ज्ञान बरसाओ ।

गहन तिमिर अज्ञान का फैला, नव किरणें बिखराओ।।

 *

कदम-कदम पर अनाचार है, झूठों की है महफिल।

आज चरम पर पापकर्म है, बढ़े निराशा प्रतिफल।।

एकदंत हे ! कपिल-गजानन, अग्नि-ज्वाल बरसाओ ।

गहन तिमिर अज्ञान का फैला, नव किरणें बिखराओ ।।

 *

मोह,लोभ में मानव भटका, भ्रम के गड्ढे गहरे।

लोभी,कपटी, दम्भी हंसतेहैं विवेक पर पहरे।।

रिद्धि-सिद्दि तुम संग में लेकर, नवल सृजन सरसाओ।

गहन तिमिर अज्ञान का फैला, नव किरणें बिखराओ ।।

 *

जीवन तो अब बोझ हो गया, तुम वरदान बनाओ।

नारी की होती उपेक्षा, आकर मान बढ़ाओ।।

मंगलदायी, हे ! शुभकारी, अमिय आज बरसाओ ।

गहन तिमिर अज्ञान का फैला, नव किरणें बिखराओ ।।

 *

भटक रहा मानव राहों में, गहन तिमिर का आलम।

आया है पतझड़ जोरों पर, पीड़ा का है मौसम।।

प्रथम पूज्य हे! सुखकारी प्रभु!, जग रोशन कर जाओ।

गहन तिमिर अज्ञान का फैला, नव किरणें बिखराओ ।।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – समृद्धि ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – समृद्धि ? ?

मैं और वह,

दोनों काग़ज़ के पुजारी,

मैं फटे-पुराने,

मैले-कुचलेे,

जैसे भी मिलते,

कागज़ बीनता, संवारता,

करीने से रखता..,

वह इंद्रधनुषों के पीछे भागता,

रंग-बिरंगे कागज़ों के ढेर सजाता,

दोनों ने अपनी-अपनी थाती

विधाता के आगे धर दी,

विधाता ने

उसके माथे पर अतृप्त अमीरी

और मेरे भाल पर

समृद्ध संतुष्टि लिख दी।

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 गणेश चतुर्थी तदनुसार आज शनिवार 7 सितम्बर को आरम्भ होकर अनंत चतुर्दशी तदनुसार मंगलवार 17 सितम्बर 2024 तक चलेगी।💥

🕉️ इस साधना का मंत्र है- ॐ गं गणपतये नमः। 🕉️

साधक इस मंत्र के मालाजप के साथ ही कम से कम एक पाठ अथर्वशीर्ष का भी करने का प्रयास करें। जिन साधकों को अथर्वशीर्ष का पाठ कठिन लगे, वे कम से कम श्रवण अवश्य करें।

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 129 ☆ गीत – मंजिल की फितरत है कि खुद चलकर नहीं आती है ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ “श्री हंस” साहित्य # 130 ☆

गीत – मंजिल की फितरत है कि खुद चलकर नहीं आती है ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

मंजिल की फितरत है कि खुद चल कर नहीं आती है।

जो बहाता है पसीना बस यह उसको ही मिल पाती है।।

****

ऊंची नीची डगर पर   हमेशा लंबा ही    होता सफर है।

बस तू चलते रहना मत छोड़ जाना करकेअगर मगर है।।

छोटी सोच कभी  किसी को  भी जीत नहीं  दिलाती है।

मंजिल की फितरत है कि खुद चलकर नहीं आती है।।

****

जिनके इरादे मेहनत की   स्याही से ही लिखे जाते हैं।

वह किस्मत के पन्ने    कभी भी खाली नहीं   पाते हैं।।

आपकी मेहनत आपको सफलता का मंत्र बतलाती है।

मंजिल की फितरत है कि खुद चलकर नहीं आती है।।

***

अनुभव का निर्माण नहीं होता ये कर्म करके ही आता है।

जो चाहता है सीखना वो हर गलती से भी सीख जाता है।।

अंधेरे में भी रोशनी आपकी हिम्मत लगातार लाती है।

मंजिल की फितरत है कि खुद चलकर नहीं आती है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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