हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 7 (31-35)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #7 (31-35) ॥ ☆

 

राजाओं ने योजनाबद्ध ढंग से लड़ इंदुमति अज से ले छीनने को

बढ़, देख मौका कर अवरोध पथ में रच मोरचे युद्ध में जीतने को ॥ 31॥

 

कर ब्याह अनुज का गौतम दे भरपूर, वैदर्भ नृप भोज ने दी बिदाई

रघुपुत्र अज की सुरक्षा का धर ध्यान, खुद साथ चल पीछे सेना चलाई ॥ 32॥

 

बिता तीन दिन – रात अज साथ मग में कुंडिन नगर – स्वामि भोजाधिराजा

लौटे उसी भांति जैसे प्रखर सूर्य से पर्व में चंद्रमा लौट आता ॥ 33॥

 

स्वयंवर से पहले ही रघु – दिग्विजय में पराजित नृपति शत्रु थे अज प्रखर के

अतः संगठित हो नहीं सह सके सब मिलन इन्दु का अज से अनुरूप वर से । 34।

 

जैसे कि रोका था वामनचरण को प्रल्हाद ने, इन्द्र के शत्रु जो थे

वैसे ही रोका नृपति गण ने अज को वहाँ मार्ग में इन्दुमति साथ जाते ॥ 35॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – त्रिकालदर्शी ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि – त्रिकालदर्शी  ??

भविष्य से

सुनता है

अपनी कहानी,

जैसे कभी

अतीत को

सुनाई थी

उसकी कहानी,

वर्तमान में जीता है

पर भूत, भविष्य को

पढ़ सकता है,

प्रज्ञाचक्षु खुल जाएँ तो

हर मनुज

त्रिकालदर्शी हो सकता है!

©  संजय भारद्वाज

प्रात: 9.31 बजे, 9.4.2020

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

 

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज # 106 ☆ भावना के दोहे ☆ डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं   “भावना के दोहे । ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 106 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे ☆

अपराधी पाकर शरण,

होते धन्य सनाथ।

रहता जिनके शीश पर,

नेताजी का हाथ।।

 

लगा रही गोता लगन,

    दो नैनों की झील।

सुध-बुध खोकर बावरा,

   करता प्यार अपील।।

 

शिशु की पुलकन देखकर,

 मन में उठी उमंग।

लगा रही है प्यार से,

माँ की ममता अंग।।

 

विरह प्रेम में जल रहा,

 मन में एक अलाव।

शांत हुई क्रमशः जलन,

 था मनुहार-प्रभाव।।

 

जीवन के हैं चार दिन,

   करो नहीं तुम बैर।

हिल मिल कर करते रहो,

    प्रेम गली की सैर।।

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष # 95 ☆ फासले न बढ़ाओ…. ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.  “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं  एक भावप्रवण रचना  “फासले न बढ़ाओ ….। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 95 ☆

☆ फासले न बढ़ाओ …. ☆

कभी तो कुछ समझदारी किया करो

मुहब्बत  से    जरा यारी  किया करो

 

औरों पर  तो  रखते  हो  खूब  नजर

अपनी भी कुछ पहरेदारी किया करो

 

दिल ने जब जो चाहा झट बोल दिया

अरे  कुछ  तो  पर्दादारी  किया   करो

 

सौगात  राहतों  की  वो  रोज  दे  रहे

मंहगाई  पर  भी  सवारी  किया करो

 

मिले कुछ गुरबत से राहत गरीबों को

फरमान  ऐसे  भी  जारी किया  करो

 

नफरत से कुछ न हासिल होगा तुम्हें

प्यार से बातें  अब प्यारी  किया करो

 

फासले न बढ़ाओ इंसानों के दरम्यां

“संतोष” काम परहितकारी किया करो

 

भूल कर सभी नादानी,कहाँ चल दिये

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 7 (26-30)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #7 (26-30) ॥ ☆

घृत श्शमी पल्लव औं खील की गंध दायी उठा धूम्र हविवेदिका से

छू इन्दु के गाल जो क्षण करनफूल सा लगा, हो नीलकमल का जैसे ॥ 26॥

 

उस धूम से इन्दु का मुख सहज अश्रु छज्जल भरे नेत्र वाला गया हो

उसने किया गाल को लाल सा और आभा रहित कर्ण आभूषणों को ॥ 27॥

 

बैठे हुये स्वर्ण की चौकियों पर दम्पति ने सबसे शुभाशीष पाये

पूज्य अतिथियों, राज्यपरिवार जन और सधवाओं ने क्रमिक अक्षत चढ़ाये ॥ 28॥

 

सम्पन्न कर इन्दु विवाह – उत्सव समुद्ध श्री भोज कुलदीप नृप ने

सभी नृपों का अलग अलग योग्य सम्मान कर लगा बिदाई करने ॥ 29॥

 

मन दुख भरा किन्तु मुख पै खुशी भर घड़यालधारी सरोवर सा सबने

सम्मान पा भोज को दे के उपहार प्रस्थित हुये राज्य की ओर अपने ॥ 30॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अविनाशी ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि – अविनाशी ??

कभी पहाड़ से कूदता है,

कभी आग में लोटता है,

कभी पानी में उतरता है,

कभी चाकू से गोदता है,

चीखता है, चिल्लाता है,

रोता है, गिड़गिड़ाता है,

चोला बदलने के लिए,

कई पापड़ बेलता है,

सहानुभूति का पात्र है,

जर्मन लोक-कथाओं में,

अमरता का वरदान पाया,

वह अभिशप्त राक्षस..,

अमर्त्य होने की इच्छा पर

अंकुश कब लगाओगे मनुज?

अपनी अविनाशी नश्वरता का

उत्सव कब मनाओगे मनुज.?

 

©  संजय भारद्वाज

रात्रि 1:53 बजे, 14.4.2019

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 84 ☆ गीत – बीते बचपन की यादें ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत।  इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा  डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे । 

आज प्रस्तुत है  एक भावप्रवण गीत  “बीते बचपन की यादें

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 84 ☆

☆ गीत – बीते बचपन की यादें ☆ 

धूप गुनगुनी बैठे छत पर

      सेंक रहे इकले नाना।

बीते बचपन की यादों का

    है सुंदर छिपा खजाना।।

 

गाँव था अलबेला – सा अपना

     जिसमें थी पेड़ों की छइयाँ।

गौधूलि में कितनी ही आतीं

    बैल, भैंस , बकरी औ गइयाँ।

 

फूस – छप्परों के घर सबके

   क्या सुखद था इक जमाना।

बीते बचपन की यादों का

     है सुंदर छिपा खजाना।।

 

संगी – साथी , कुआ , बाबड़ी

     घने नीम की छाँव भली।

आमों के थे बाग – बगीचे

      धुर देहाती गाँव – गली।

 

याद रहा अट्टे की छत पर

      नभ के नीचे सो जाना।

बीते बचपन की यादों का

    है सुंदर छिपा खजाना।।

 

राखी औ’ सावन के झूले

     त्योहारों की धूम निराली।

पथबारी की पूजा रौनक

     बजते थे डमरू औ’ थाली।

 

लोकगीत में मस्त मगन हो

     नाच – कूद होता गाना।

बीते बचपन की यादों का

    है सुंदर छिपा खजाना।।

 

मिट्टी के गुड़िया – गुड्डों का

    मिलजुल करके ब्याह रचाए।

इक्का, ताँगा, रेढू गाड़ी

    दुल्हन घूँघट से शरमाए।

 

ढपर – ढपर से बैंड साज पर

     घोड़ी ठुम – ठुम नचकाना।

बीते बचपन की यादों का

     है सुंदर छिपा खजाना।।

 

झर लग जाते वर्षा के जब

     छतें टपाटप थी करतीं।

चौपालों में करें मसखरी

    राग – मल्हारें थीं गवतीं।

 

टूटा घर अब हुआ खंडहर

     बस केवल आज फ़साना।

बीते बचपन की यादों का

      है सुंदर छिपा खजाना।।

 

ढकीमीचना , कंचा – गोली

      गिल्लीडंडा औ’ गेंदतड़ी।

खिपड़े खूब नचा सरवर में

       जल बर्षा में नाव पड़ी।

 

अ आ इ ई ऊ लिखें पहाड़े

      शेष बचा ताना – बाना।।

बीते बचपन की यादों का

     है सुंदर छिपा खजाना।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 7 (21-25)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #7 (21-25) ॥ ☆

ज्यों आम्र के साथ अशोक किसी लय नवल अरूणपत्र है जगमगाता

उसी तरह अज कर इंदुमति कर को पा परम शोभा था बढ़ाता ॥ 21॥

 

अज की कलाई थी रोमांच धारे और इन्दु की उँगलियाँ स्वेद गीली

ज्यों काम ने बॉट दी थीं वहाँ शायद दोनों में निजवृतियाँ कुछ हठीली ॥ 22॥

 

नयन मिले दृष्टि लजा के लौटी, हों यंत्रवत आप स्वयं भयातुर

वधू औं वर के नयन परस्पर थे देखने जो नितांत आतुर ॥ 23॥

 

परिक्रमा करते अग्नि की वे, थे लगते दोनों सभी को ऐसे

कि मेरू के पास मिले से दिखते हैं रात्रि और दिन पुनीत जैसे ॥ 24॥

 

नितंबिनी चारू चकोर नेत्री विनम्र ने आग में खील डाले

जब इन्दु से ब्रह्म सदृश पुरोहित ने ऐसा करने को स्वर निकाले ॥ 25॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ शब्द मेरे अर्थ तुम्हारे – 7 – बिझुका !☆ श्री हेमन्त बावनकर

हेमन्त बावनकर

☆ शब्द मेरे अर्थ तुम्हारे – 7 ☆ हेमन्त बावनकर

 ☆ बिझुका ! ☆

तुम

ड्राइंग रूम में

टी वी के समक्ष

ब्रेकिंग न्यूज़ में

खो गए हो

आस पास की दुनिया भूल

बिझुका हो गए हो।

 

तुम्हें

ब्रेकिंग न्यूज़ का नशा हो गया है

वही पक्ष देखते हो

जो तुम्हें दिखाया जाता है

और

अंजाम से भटकाया जाता है।

 

तुम्हारे कंधों पर बैठकर

लोकतन्त्र के विभिन्न स्तंभों के पक्षी

कांव कांव करते हैं

और तुम

चुपचाप देखते – सुनते रहते हो

बस

बिझुका की यही गति है 

और  

तुम्हारी यही नियति है।  

 

© हेमन्त बावनकर

पुणे 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 7 (16-20)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #7 (16-20) ॥ ☆

यों सुंदरी नारियों से कथा रम्य सुनते हुये कर्ण प्रिय कीर्ति गाथा

पहुँचे वहाँ अज जहाँ महल में विवाह हित रम्य मंडप सजा था ॥ 16॥

 

उतर के हथिनी से शीघ्र अज वह जो काम से अति कांतिवाला

सुनारियों के हृदय में बसता सा, नृप के द्वारा गया संभाला ॥ 17॥

 

आसीन हो मंच पै अर्ध्य – मधुपई पा अज ने वस्त्रादि औं रत्न पाये

औं साथ ही चितवनें जो देती थे नारियों के नयन लजाये ॥ 18॥

 

ज्यों चंद्र किरणों बढ़ा उदधि को सफेद लहरों के पास लाती

त्यों नारियाँ कुछ ले साथ अज को, दिखीं वहाँ इन्दु के पास जातीं ॥ 19॥

 

फिर, राजपंडित ने प्रज्जवलित की हवन करा यज्ञ की अग्नि ज्वाला

औं वर – वधु का कर ग्रंथिबंधन, कर अग्नि साक्षी, रच ब्याह डाला ॥ 20॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares