हिन्दी साहित्य – कविता ☆ अनुभूतियाँ … ☆ श्री जयेश वर्मा

श्री जयेश वर्मा

(श्री जयेश कुमार वर्मा जी का हार्दिक स्वागत है। आप बैंक ऑफ़ बरोडा (देना बैंक) से वरिष्ठ प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। हम अपने पाठकों से आपकी सर्वोत्कृष्ट रचनाएँ समय समय पर साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक  अतिसुन्दर भावप्रवण कविता अनुभूतियाँ …।)

☆ कविता  ☆ अनुभूतियाँ … ☆

उसके सजदे में बुदबुदाती, दुआयें, करती, वो बूढ़ी,माँ,

किसी के  थरथराते, होटों में दबे, दर्द के  वो, लफ्ज़,

दिल से निकले तरानों की एक लहर,

बच्चे के मुँह में पड़ी, घुलती मिश्री की डली,

गांव की पगडंडियों, मेड़ो, पे पसरी धूप की, वो गमक,

किसान के चेहरे पे चमकती, वो पकी फसल,

किसी के लंबे इंतजार में, बेचैन सा, वो मन,

अर्से बाद, किसी के, बेटे की, वो घर वापसी,

किसी के खयाल में,  झुकी हुई, वो पलकें,

पत्तों  फूलों, पर पड़ी, मदहोश सी, शबनम,

किसी के पाँवों में छन छन,  छनकती वो पायल,

आँगन में तुलसी के बिरवे पे जलता, वो दीपक,

माँ के आँचल में हुमकते, बच्चे की वो किलकारी,

रोटी के लिए बच्चे की, वो मासूम सी, सिसकारी,

बिनब्याही लड़कियों, की बढ़ती उम्र में बिखरते से सपने,

भटकते बेरोज़गार लड़को के रोज़ के, वो अफसाने,

बाप की पेशानी पे चमकता पसीने सा, अनकहा, दर्द,

पुरवैया हवाओँ का वो यूँ बहक कर, चलना,

काली घटाओं का,अचानक,वो,जम के बरसना,

ज़मी पे गिरतीं बूँदों का वो मचलना, थिरकना,

मिट्टी की सौंधी सौंधी खुशबू का वो, यूँ, उड़ना,

सोचता रहता हूँ, लिख दूं , एक कविता, ऐसी,

हर चेहरे पे लरजें मुस्कानें, ज़मी हो जन्नत जैसी

 

©  जयेश वर्मा

संपर्क :  94 इंद्रपुरी कॉलोनी, ग्वारीघाट रोड, जबलपुर (मध्यप्रदेश)
वर्तमान में – खराड़ी,  पुणे (महाराष्ट्र)
मो 7746001236

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ लेखनी सुमित्र की – दोहे ☆ डॉ राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम दोहे । )

 ✍  लेखनी सुमित्र की – दोहे  ✍

 

विकल रहूँ या मैं विवश, कौन करे परवाह ।

सब सुनते हैं शोर को, सब जाती है आह।।

 

सोच रहा हूँ आज मैं, करता हूँ अनुमान ।

अधिक अपेक्षा ही करें, सपने लहूलुहान।।

 

शब्द ब्रह्म आराधना, प्राणों का   संगीत।

भाव प्रवाहित ज्यों सरित, उर्मि उर्मि है गीत।।

 

कहनी अन कहनी सुनी, भरते रहे हुँकार ।

क्रोध जताया आपने, हम समझे हैं प्यार ।।

 

कितनी दृढ़ता मैं रखूँ, हो जाता कमजोर ।

मुश्किल लगता खींच कर, रखना मन की डोर।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 22 – फिर समेटे दिन कहीं…. ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज पस्तुत है आपका अभिनव गीत  “फिर समेटे दिन कहीं ….। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 22– ।। अभिनव गीत ।।

☆ फिर समेटे दिन कहीं…. ☆

 

शाम घिरते  होगया धुँधला

वह कनक गुम्बद हवेली का

आँख को ज्यों खूब भाया,

प्रीतकर सुरमा बरेली  का

 

स्याह हो उट्ठे दिशाओं के

बनैले चुप पखेरू

थरथराहट लाँघती

दिनमान के अनगिन सुमेरू

 

फिर समेटे दिन कहीं

गायब हुआ है

खुशनुमा वह सूर्य

पीली इस पहेली का

 

चिपचिपी होने लगी है

ओसारे की ,वाट गीली

थाम हाथों में पहाड़ों को

गरम  होती पतीली

 

घूमती, आँखों अधूरापन

सम्हाले

अँधेरे में चीन्हती

जो गुड़ करेली   का

 

फिर किसी सौभाग्य से

जा पूछती उन्नत शिखरणी

क्यों उदासी ओढ़ती  मृगदाब

की  अनजान हिरणी

 

देखती जो राह

सारे दिन रही है

चैन भी जिसको मिला

न एक धेली  का

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

24-01-2019

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ अक्षय ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ अक्षय ☆

मैं पहचानता हूँ

तुम्हारी पदचाप,

जानता हूँ

तुम्हारा अहंकार भी,

झपटने, गड़पने

का तुम्हारा स्वभाव भी,

बस याद दिला दूँ,

जितनी बार गड़पा तुमने,

नया जीवन लेकर लौटा हूँ मैं,

तुम्हें चिरंजीविता मुबारक

पर मेरा अक्षय होना

नहीं ठुकरा सकते तुम..!

©  संजय भारद्वाज 

प्रात: 12.11बजे, 22.10.2020

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #15 ☆ बहुत मुश्किल है ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं । सेवारत साहित्यकारों के साथ अक्सर यही होता है, मन लिखने का होता है और कार्य का दबाव सर चढ़ कर बोलता है।  सेवानिवृत्ति के बाद ऐसा लगता हैऔर यह होना भी चाहिए । सेवा में रह कर जिन क्षणों का उपयोग  स्वयं एवं अपने परिवार के लिए नहीं कर पाए उन्हें जी भर कर सेवानिवृत्ति के बाद करना चाहिए। आखिर मैं भी तो वही कर रहा हूँ। आज से हम प्रत्येक सोमवार आपका साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी प्रारम्भ कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है एक अतिसुन्दर , अर्थपूर्ण एवं भावप्रवण  कविता “ बहुत मुश्किल है ”। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 15 ☆ 

☆ बहुत मुश्किल है ☆ 

घटनाएं अच्छी-बुरी

घट रही थी

जिंदगी खुशी खुशी

कट रही थी

यह कैसा प्रलय आया

जिसने तूफान लाया

इससे बच पाना

बहुत मुश्किल है

 

हमने तो जीवन भर

फूलों के पौधे लगाए

फूलों के संग संग

कांटे भी उग आए

फूलों पर कब्जा

जमाने ने कर लिया

कांटों से दामन

हमारा भर दिया

फूलों से बेहतर

हमने कांटों को बनाया

तराशा,

खुशबू से महकाया

फिर भी इनको कांटों की

क्षमता पर शक है

क्या वाकई इनको

ये कहने का हक है

इन तंगदिल वालों से

जीत पाना

बहुत मुश्किल है

 

घर उनका जला है तो

खुश हो रहे हो

बेफिक्र, खूब

तानकर सो रहे हो

कल घर तूम्हारा जलेगा

तो तुम्हें पता चलेगा

इस आग की कोई

धर्म या जाति नहीं होती

आग लगती है तो वो

सबकुछ है जलाती

यह इन दिग्भ्रमित

लोगों को समझाना

बहुत मुश्किल है

 

कसौटी पर परखो

फिर उसे चाहों

इन्सान ही रहने दो

खुदा ना बनाओं

खुदा जो बन गया तो

तूम्हारी नहीं सुनेगा

अपनी प्रशंसा के ही

सपने बुनेगा

उसके डर से

या उसके कहर से

इन नशे में गाफिल

लोगों को बचा पाना

बहुत मुश्किल है।

© श्याम खापर्डे 

18/10/2020

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़)

मो  9425592588

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 27 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 27 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 27) ☆ 

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

☆ English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 27☆

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

दरवाजा ग़र सख़्त हो जाये तो

बारिश को इल्ज़ाम ना देना

शायद  कुछ  भीगी  यादें

जम  गई  होंगी  चौखट  पे…

 

Do not blame the rains if the

Door gets jammed on the sill

Maybe some wet memories

have got accumulated on it!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

उसका वादा भी अजीब था

जिन्दगी भर साथ निभायेंगे,

मैंने भी ये कभी नहीं पूछा कि

मोहब्बत के या यादों के साथ…

 

His promise was too strange

Will  be  with  you forever,

I also never questioned him

With love or with memories

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

जो  नहीं  है  हमारे

पास  वो  ख्वाब  हैं,

पर जो भी  है हमारे

पास वो लाजवाब है…

 

बहुत संभाल कर खर्च करो 

ये दोस्ती की दौलत…

आखिर एक उम्र गुजारनी है

इसी  की  बदौलत….!

 

What we don’t have

are  the  dreams,

But  what we  have

is  truly  wonderful…

 

Carefully spend the

wealth of friendship…

After all, with this only

We’ve to  pass the life…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈  Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ माँ का प्यार ☆डॉ. सलमा जमाल

डॉ.  सलमा जमाल 

( सुप्रसिद्ध साहित्यकार डा. सलमा जमाल जी ने  रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त । s 15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 22 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक लगभग 72 राष्ट्रीय एवं 3 अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन। अब तक १० पुस्तकें प्रकाशित।आपकी लेखनी को सादर नमन।) 

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

☆ गीत – माँ का प्यार ☆

माँ  तेरे अनमोल प्यार को,

आज समझ मैं पाई हूं ।

श्रद्धा सुमन कदमों पर तेरे,

अर्पित करने आई हूं ।।

 

घर के काम सभी तू करती,

चूड़ियां बजतीं थी खनखन,

भोर से पहले तू उठ जाती,

पायल बजती थी छन छन,

गोद में लेकर चक्की पीसती,

मैं प्रेम सुधा से नहाई हूं ।

माँ  तेरे —————–।।

 

बादल गरजते बिजली चमकती,

वह सीने से चिपकाना ,

आंखों में आंसुओं को छुपाना,

मेरे दर्द से कराहना ,

याद आता है रह-रहकर

बचपन,

कितना तुम्हें सताई हूं ।

माँ तेरे —————–।।

 

मैं हूँ बाबू जी की बेटी ,

तू भी किसी की बेटी है,

हम तो चहकते हैं चिड़ियों से ,

तू क्यों उदास बैठी है ,

तेरे कदमों में बसे स्वर्ग को,

आज देख मैं पाई हूं ।

माँ  तेरे —————-।।

 

गर्भवती हुई पहली बार मैं,

तब तेरा एहसास हुआ ,

नौ महीने कोख में संभाला,

दुखों का न आभास हुआ ,

सीने से सलमा को लगा लो ,

भले ही आज मैं पराई हूं ।

माँ  तेरे—————–।।

 

© डा. सलमा जमाल 

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 27 ☆ गीत – वाम से इतर ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है  आचार्य जी  की एक गीत  वाम से इतर। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 27 ☆ 

☆ गीत – वाम से इतर ☆ 

आओ! कुछ काम करें

वाम से इतर

 

लोक से जुड़े रहें

न मीत दूर हों

हाजमोला खा न भूख

लिखें सू़र हों

रेहड़ीवाले से करें

मोलभाव औ’

बारबालाओं पे लुटा

रुपै क्रूर क्यों?

मेहनत पैगाम करें

नाम से इतर

सार्थक भू धाम करें

वाम से इतर

 

खेतों में नहीं; जिम में

पसीना बहा रहे

पनहा न पिएँ कोक-

फैंटा; घर में ला रहे

चाट ठेले हँस रहे

रोती है अँगीठी

खेतों को राजमार्ग

निगलते ही जा रहे

जलजीरा पान करें

जाम से इतर

पनघटों का नाम करें

वाम से इतर

 

शहर में न लाज बिके

किसी गाँव की

क्रूज से रोटी न छिने

किसी नाव की

झोपड़ी उजाड़ दे न

सेठ की हवस

हो सके हत्या न नीम

तले छाँव की

सत्य का सम्मान करें

दाम से इतर

छोड़ खास, आम वरें

वाम से इतर

*

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१४-४-२०२०

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 13☆ शारदी चाँदनी ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

( आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  की  एक भावप्रवण कविता  शारदी चाँदनी ।  हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।  ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 13 ☆

☆ शारदी चाँदनी ☆

शारदी चांदनी सा धुला मन,  जब पपीहा सा तुमको पुकारे

सावनी घन घटा से उमड़ते , स्वप्न से तुम यहां  चले आना

प्राण के तार खुद जनझना के , याद की वीथिका खोल देंगे

नैन मन की मिली योजना से,  चित्र सब कुछ स्वतः बोल देंगे

बात करते स्वतः बावरे से , प्रेम रंग में रंगे सांवरे से

वीणा से गीत गुनगुनाते , स्वप्न से तुम यहां  चले आना

शारदी चांदनी सा धुला मन,  जब पपीहा सा तुमको पुकारे

 

है कसम तुम्हें मेरे सपन की, राह में भटक तुम न जाना

दिन कटे काम की उलझनो में , रात गिनते गगन के सितारे

सांस के पालने में झुलाये , आस डोरी पे सपने तुम्हारे

मंद मादक मलय के पवन से , गंध भीनी बसाये वसन से

मोह से मोहते मन लुभाते , स्वप्न से तुम यहां चले आना

है कसम तुम्हें मेरे सपन की, राह में भटक तुम न जाना

शारदी चांदनी सा धुला मन,  जब पपीहा सा तुमको पुकारे

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ शिल्पी ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ शिल्पी ☆

पहले पूजता है,

फिर मांग रखता है,

कमाल का शिल्पी है आदमी,

ज़रूरत के मुताबिक

देवता गढ़ता है।

 

©  संजय भारद्वाज 

प्रात: 10.26 बजे 26.10.20200

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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