श्री जयेश वर्मा
(श्री जयेश कुमार वर्मा जी का हार्दिक स्वागत है। आप बैंक ऑफ़ बरोडा (देना बैंक) से वरिष्ठ प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। हम अपने पाठकों से आपकी सर्वोत्कृष्ट रचनाएँ समय समय पर साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक अतिसुन्दर भावप्रवण कविता अनुभूतियाँ …।)
☆ कविता ☆ अनुभूतियाँ … ☆
उसके सजदे में बुदबुदाती, दुआयें, करती, वो बूढ़ी,माँ,
किसी के थरथराते, होटों में दबे, दर्द के वो, लफ्ज़,
दिल से निकले तरानों की एक लहर,
बच्चे के मुँह में पड़ी, घुलती मिश्री की डली,
गांव की पगडंडियों, मेड़ो, पे पसरी धूप की, वो गमक,
किसान के चेहरे पे चमकती, वो पकी फसल,
किसी के लंबे इंतजार में, बेचैन सा, वो मन,
अर्से बाद, किसी के, बेटे की, वो घर वापसी,
किसी के खयाल में, झुकी हुई, वो पलकें,
पत्तों फूलों, पर पड़ी, मदहोश सी, शबनम,
किसी के पाँवों में छन छन, छनकती वो पायल,
आँगन में तुलसी के बिरवे पे जलता, वो दीपक,
माँ के आँचल में हुमकते, बच्चे की वो किलकारी,
रोटी के लिए बच्चे की, वो मासूम सी, सिसकारी,
बिनब्याही लड़कियों, की बढ़ती उम्र में बिखरते से सपने,
भटकते बेरोज़गार लड़को के रोज़ के, वो अफसाने,
बाप की पेशानी पे चमकता पसीने सा, अनकहा, दर्द,
पुरवैया हवाओँ का वो यूँ बहक कर, चलना,
काली घटाओं का,अचानक,वो,जम के बरसना,
ज़मी पे गिरतीं बूँदों का वो मचलना, थिरकना,
मिट्टी की सौंधी सौंधी खुशबू का वो, यूँ, उड़ना,
सोचता रहता हूँ, लिख दूं , एक कविता, ऐसी,
हर चेहरे पे लरजें मुस्कानें, ज़मी हो जन्नत जैसी
© जयेश वर्मा
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