हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की#61 – दोहे ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)

? जीवेम शरदः शतम ?

? वरिष्ठतम साहित्यकार गुरुवर  डॉ. राजकुमार सुमित्र जी को उनके 83वें जन्मदिवस पर सादर प्रणाम एवं हार्दिक शुभकामनाएं ?

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की #61 –  दोहे 

शरतचंद्र की नायिका, पतिता, पुण्य  पवित्र ।

आँसू  जैसी निर्मला, निर्मला चारू चरित्र।।

 

कभी-कभी तो है दिया, आँसू  ने आनंद ।

धर्म सभा में हों, खड़े सहज ‘विवेकानंद’।।

 

आंखों में आंसू भरे, होरी खड़ा हताश ।

है धनिया के हृदय में, गोवर्धन की आस।।

 

देवदास आँसू  पिए, पारो करें ‘उपास’ ।

चंद्रमुखी की जिंदगी, किसकी करें तलाश।।

 

तेग बहादुर त्याग में, करें राष्ट्र अभिमान ।

आँसू सूखे आँख में, किए पुत्र बलिदान।।

 

बाउल गीतों ने दिया, मन को यों झकझोर ।

आँखें रोई रात भर, अश्रु निवेदित भोर।।

 

आँसू  की अठखेलियां, हमने देखी खूब ।

ऊब पत्थरों पर रही, अपनेपन की दूब।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव-गीत # 61 – नदी जैसे  बीच में ….. ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण अभिनवगीत – “नदी जैसे  बीच में …..। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 61 ☆।। अभिनव-गीत ।। ☆

☆ || नदी जैसे  बीच में ….. || ☆

पीपल पर तेरे

जैसी बिलकुल |

बोला करती है

छन्दा बुलबुल ||

 

नदी जैसे  बीच में

किनारों के |

मीठे इन शहद

के शरारों  के |

 

खोज रही अपने

इस होने को |

कोई इक टापू 

ऊँचा थुलथुल ||

 

गुमसुम सा घाम

रखे सिरहाने |

दूब इसी बात

का बुरा माने |

 

नदीनहीं छोड़ेगी

यों अपनी |

सांँसों में डूबती 

हुई कल कल ||

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

10-09-2019

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – मैली चाँदनी ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि – मैली चाँदनी ?

गैर घरों में

झाड़ू-पोछा करती,

अपने बच्चों की

फीस भरती,

परायी किचन में

चपाती सेकती,

अपनी रसोई चलाती,

जुआरी पति की

भद्दी गालियाँ सुनती,

शराबी मर्द के

लात-घूँसे खाती,

हर रात बलत्कृत होती,

फिर भी

करवा चौथ का व्रत करती!

काश चाँद औरत होता!

इन बदनसीब कालिमाओं

के जीवन में

थोड़ी चाँदनी होती…!

©  संजय भारद्वाज

( 2007 की करवाचौथ के दिन रचित, कवितासंग्रह ‘योंही’)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #51 ☆ # गणना # ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी नवरात्रि पर्व पर विशेष कविता “# गणना #”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 51 ☆

☆ # गणना # ☆ 

वो सुर्य की किरणें

ओस की बूंदों में

गिन रहे हैं

 

वो अथाह सागर में

मोतियों से भरे सीप

बीन रहे हैं

 

वो शरद पूर्णिमा को

अंबर से गिरते अमृत को

अपने कटोरे के दूध में

लीन रहे हैं

 

वो खेतों की उपज को

बड़े बड़े गोदामों में भरकर

भूखों से निवाला

छीन रहे हैं

 

वो चेहरों पर मुखौटा लगाकर

महापुरुष बनने का

एक शानदार सीन कर रहे हैं

 

वो प्रेयसी के बालों में सजे

मोगरे,जाई के

फूलों को मसलकर

छिन्न भिन्न कर रहे हैं

 

वो महामारी में

मृतकों की संख्या नहीं जानते

पर जीवित मुर्दों में लगें टीके

क्रमवार गिन रहे हैं

 

वो गणना के खेल के

माहिर खिलाड़ी है

वो यह खेल सदियों से

रात दिन खेलते हैं 

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 6 (21 -25)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #6 (21-25) ॥ ☆

ये है परन्तप मगध के राजा प्रजानुरंजक प्रतापशाली

शरण में आये के अति हितैषी, पै शत्रुओं हित विनाशकारी ॥ 21॥

 

हजारों नृप है परन्तु इनसे ही है धरा यह सुराजवाली

अनंत तारों – ग्रहों के होते भी ज्यों रजनि चंद्र से ज्योतिशाली ॥ 22॥

 

अनेक यज्ञानुष्ठान कर इंद्र सहास्राक्षि को दे निमत्रंण

शची की निर्माल्य लटों को गोरे कपोलों पै किया विवश प्रदर्शन ॥ 23॥

 

जो चाह पाणिग्रहण की इनके, तो पुष्पपुर वासी कामनियों को

खुशी दो जो राजभवन -छतों से, प्रवेश करती लखोंगी तुमको ॥ 24॥

 

ये सुन के उसको विलोक केवल, हिलाती दुर्वा-मधूक माला –

बिना कोई रूचि दिखये, आगे बढ़ी सहज ही वह राज बाला ॥ 25॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 63 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 63 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 63) ☆

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>  कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

☆ English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 63 ☆

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

गर किसी से इश्क करते हो

तो फिर खामोश ही रहना

वरना  जरा  सी ठेस लगी

कि ये शीशा टूट जाता है….

 

If you love someone

then keep silence only

Otherwise, just a hurt

and this glass shatters!

 ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

भला ये आईने  क्या बयाँ कर सकेंगे

तुम्हारी  शख्सियत  की  खूबियाँ

कभी आके हमारी आँखों से  पूछो

कि  कितने  लाज़वाब  हो  तुम..!

 

What narration can these mirrors

ever give  of  your  persona…

Come over sometime and ask my

eyes as to how awesome you are!

 ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

मुझे उस जगह से भी

मोहब्बत हो जाती है

जहाँ बैठ कर एक बार

तुम्हें सोच लेता  हूँ…!

 

I just fall in love

with that place,  too

where I sit and think

of you even once…!

 ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

न रुकी वक़्त की गर्दिश

न  ही  बदला ज़माना ,

पेड़  सूखा  तो  परिंदों

ने भी  ठिकाना बदला…

 

Neither atrocities of time stopped

nor the world ever changed,

When tree dried up then the

birds also shifted their nests ….!

 ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 63 ☆ मैं नट हूँ  ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित भावप्रवण कविता  ‘मैं नट हूँ  । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 63 ☆ 

☆ मैं नट हूँ  ☆ 

मैं नट हूँ,

करतब करती हूँ।

साध संतुलन चढ़ रस्सी पर

बाँस पकड़कर कदम बढ़ाती,

कलाकार हूँ,

कला प्रदर्शन कर जीती हूँ।

भरी हुई संतोष-गर्व से

यह न समझना

मैं रीती हूँ।

गिर, उठ, सम्हली

किंतु न हारी।

जीत हुई मैं

सबकी प्यारी।

हँसकर करतब रोज दिखाती।

कुछ पैसे, कुछ ताली पाती।

मत समझो

मैं दीन-हीन हूँ।

मुझे गर्व

मैं नट प्रवीण हूँ।

पाल पेट सकती मैं अपना

औरों का भी बनी सहारा।

तुम क्या जानो

आँधी-पानी?

हर मौसम ने मुझे दुलारा।

पाठ जिंदगी के पढ़ती हूँ

अपनी किस्मत

खुद गढ़ती हूँ।

नहीं तुम्हारी तरह कभी

बेरोजगार रह भार बनी मैं।

समझ सको तो सत्य समझना

जीवन को उपहार बनी मैं।

तुम साधन पा इतराते हो,

बिन साधन झट कुम्हलाते हो।

मैं निज साधन आप जुटाती

श्रम-कोशिश है मेरी थाती।

नहीं दया की भीख माँगती

नहीं रहम या सीख चाहती।

दे पाओ, दो कुछ अपनापन

कुछ बराबरी, कुछ सपनापन

आओ! टिक्कड़ साग खिलाऊँ।

तीखी चटनी तुम्हें चटाऊँ।

चाहो तो करतब दिखलाऊँ।

सीख सको तो झट सिखलाऊँ।

*

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य #93 ☆ # मेल – मिलाप # ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”


(आज  “साप्ताहिक स्तम्भ -आत्मानंद  साहित्य “ में प्रस्तुत है  श्री सूबेदार पाण्डेय जी की  एक भावप्रवण कविता  “# मेल – मिलाप #। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# #93 ☆ # मेल – मिलाप # ☆

(मेल मिलाप जीवन में सदैव उत्तम परिणाम देता है, सुख का सृजन करता है। सृष्टि संरचना का आधार है। आपसी मेल-मिलाप से व्यवस्था संचालन की शक्ति अपार हों जाती है ,असंभव भी मेल-मिलाप से संभव हो जाता है, मेल  मिलाप के अर्थ बताती यह रचना कवि के मंतव्य को दर्शाती है।)

सीता से जब राम मिलें,     

             तब बन जाते हैं सीता राम।

राधा से जब श्याम मिले,

          तब बन बैठे वो राधेश्याम।

 शिव से जब शंकर मिलते हैं,

             बन जाते हैं शिव शंकर।

 जब नर से नारायण मिलते,

         ‌  बन जाते हैं नरनारायण ।

मेल मिलाप से बन जाते हैं,

          जीवन में सब बिगड़े काम।।

      सीताराम सीताराम,

।।भज प्यारे तूं सीता राम।।1।।

 ☆ ☆ ☆ ☆ ☆ 

नर से नारी जब मिलते हैं,

      सृजन सृष्टि तब होती है।

जैसे सीपी में स्वाती का जल,

   घुलकर कर बन जाता  मोती है।

बांस के भीतर मिल कर वह,

      बंसलोचन बन जाता है।

सर्प जो उसका पान करे तो,

       वही गरल वह बन जाता है।

  मेल मिलाप से बन जाते हैं,

        जीवन में सब बिगड़े काम।

     सीता राम सीता राम,

।।भज प्यारे तूं सीता राम।।2।।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆ 

किसी का मिलना दुख का कारण,

    किसी का मिलना सुख  देता है।

 कोई सदा बांट कर खाता,

        कोई हिंसा कर लेता है।

किसी का जीवन जग की खातिर,

 कोई तिल तिल  जल कर मरता है।

   कोई जग में नाम कमाता,

        कोई पाता दुख का इनाम।

    मेल मिलाप सदा सुख देता,

         बन जाते सब बिगड़े काम।

।। सीता राम सीता राम भज ले

       प्यारे तूं सीता राम।।3।। 

 

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

23-10-2021

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 6 (16 -20)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #6 (16-20) ॥ ☆

कोई उठा वाम भुज रख के सिंहासन पै लगा अन्य से बात करने

कि जिससे उसके गले की माला सिसंक के पीछे लगी लटकने ॥16॥

 

कोई विलासी प्रिया मिलन के सपन में, केतकी सुमन के दल को

दिखा पिया के नितंब सदृश नखाग्र से था रहा मसल जो ॥17॥

 

रेखा – ध्वजा अंकित कमल पाणि से किसी ने अक्षों को उछाला

कि मुद्रिका मणि की सुप्रभा से दिखी बनी लघु सी एक माला ॥18॥

 

किसी ने समुचित लगे मुकुट समझ सरकता हुआ सम्हाला

दिखी तो ऊँगलीयों बीच मणियों की झिलमिलाती प्रभा विशाला ॥19॥

 

तभी सुनन्दा ने इंदुमति को मगध के नृप के समीप लाकर

सभी नृपों की कुल – शील ज्ञाता प्रतिहारिणी ने कहा सुनाकर ॥ 20॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – स्त्री ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि – स्त्री  ?

एक स्त्री ठहरी है,

स्त्रियों की फ़ौज से घिरी है,

चौतरफा हमलों की मारी है,

ईर्ष्या से लांछन तक जारी है,

एक दूसरी स्त्री भी ठहरी है,

किसी स्त्री ने हाथ बढ़ाया है,

बर्फ गली है, राह खुल पड़ी है,

हलचल मची है, स्त्री चल पड़ी है!

 

©  संजय भारद्वाज

(प्रात: 9.11 बजे, 13.10.2019)

( कवितासंग्रह ‘वह’ से )

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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