श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9th की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण गीतिका “सीधी बात न करता क्यों बे….”। )
☆ तन्मय साहित्य #104 ☆
☆ सीधी बात न करता क्यों बे…. ☆
(एक मित्र से चर्चा के दौरान उसके दिए शब्द “क्यों बे” शब्द पर लिखी एक गीतिका)
क्या लिखता रहता है क्यों बे
रातों में जगता है क्यों बे।
लच्छेदार शब्द शस्त्रों से
लोगों को तू ठगता क्यों बे।
सच जब तेरे सम्मुख आए
मूँह छिपाकर भगता क्यों बे।
बातें दर्शन और धर्म की
यूँ फोकट में बकता क्यों बे।
बिना पिये पटरी से उतरे
सीधी बात न करता क्यों बे।
नौटंकी अभिनय बाजों से
रिश्ता उनसे रखता क्यों बे।
लिखता है जैसा जो भी तू
वैसा ना तू दिखता क्यों बे।
बाहर बाहर मौज खोजता
भीतर में नहीं रहता क्यों बे।
मन की मदिरा बहुत नशीली
बाहर निकल, बहकता क्यों बे।
कहे मदारी, सुने जमूरा
हाँ में हाँ तू कहता क्यों बे।
ह्रस्व दीर्घ की पंचायत में
छंदों में नहीं रमता क्यों बे।
बीच बजार खड़ी है कविता
दाम सही ना मिलता क्यों बे।
मिल-जुल हँसी-खुशी से जी ले
अपनों से ही जलता क्यों बे।
© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश
मो. 9893266014
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈