हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #42 ☆ रेशम के धागे ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है रक्षाबंधन पर्व पर विशेष कविता “# रेशम के धागे #”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 41 ☆

☆ # रेशम के धागे # ☆ 

कितने पवित्र है

यह रेशम के धागे

जिनकी बहना है

उनके तो है भाग जागे

गर बहन नहीं हो

तो जीवन है सूना

गर भाई नही हो

तो जीवन में दर्द है दूना

भाई-बहन सा प्यार

जग में मिलना है दुश्वार

यह याद दिलाने आता है

राखी का त्योहार

 

इक बहना ने,

आरती उतारी, टिका लगाया

भाई के कलाइपे राखी बांधी

भाई ने रख्खा सरपे हाथ

बोला-

तुझपे ना आए कोई आंधी

जीवन भर तेरी

रक्षा करूंगा

पूरी तेरी मै हर इच्छा करूंगा

तू जरूरत में आवाज़ तो देना

भैया कहके मुझे बुलाना

आ जावूंगा मैं दौड़के

सारे काम काज छोड़के

तू तो है दुनिया में न्यारी

मां-बाबा और हम

सबकी प्यारी

वो भाई को

ऐसे लिपट गई

मानो सारी दुनिया

वहीं सिमट गई

भूल गई वो दु:ख दर्द सारे

जैसे मिल गये उसे चांद-सितारे

राखी,

भाई बहन के स्नेह का

अनमोल है बंधन

मै शत् शत् करता हूं

इस पवित्र रिश्ते को वंदन

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 2 (16-20)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 2 (16-20) ॥ ☆

 

उस देवता पितृगण की क्रिया साधिका नंदिनी का सहज अनुसरण कर

किया भूप ने श्राद्ध विधि पूर्ण जैसे कि साक्षात श्रद्धा हो विधि अनुगमनकर ॥16॥

 

जल से निकलता हुआ वन सुअरदल व आवास द्रुम की दिशा मोर जाते

मृगवास शाद्वल धरणि शाम सबको लखा और वन को सुश्यामल बनाते॥17॥

 

भरे ऐन के भार से गौं औं तन की सबल पुष्ठि के भार से स्वस्थ राजा

तपोवन विजन मध्य निज राह चलते थे दिखते बढ़ाते हुये वन्य आभा ॥18॥

 

गुरू धेनु अनुयायी उस बर नृपति को सुवन प्रान्त से शाम को लौट आने

निहार अपलक नयन से रानी थी लगती जैसे तृषा मिटाते ॥ 19॥

 

नरेश आगे धर धर्मपत्नी को पार करते थे राह वन्या

औं दम्पती बीच सुशोभती धेनु निशा दिवस बीच यभेैव संध्या ॥20॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 54 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 54 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 54) ☆

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>  कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

☆ English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 54 ☆

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

दुनिया  में  कम  ही

लोग  ऐसे  होते  हैं

जो  जैसे  लगते  हैं

वो  वैसे  ही  होते  हैं…

 

There are very few  

people in this world    

who  actually  are

the  way  they  look…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

उफ़्फ़ ये तनहाई कि दर

अपना ही  खटका  देना

और ख़ुद से ही ये कहना

कि  ज़िंदा  हूँ  मैं  अभी..!

 

Oh, this wretched desolation

makes me knock own door

Then forcing me to say it to

myself that I am still alive..

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

वक्त ने कई जख्म भर दिए,

यादें भी अब कम खलती हैं,

पर किताबों पर धूल जमाने से

भला कहानियाँ कहाँ बदलती हैं….

 

Time has healed many a wound,

Memories are also scarce now

But when do stories change

By settling of dust on the books!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

शुक्र कर ये दिल तेरे

लिए सिर्फ धड़कता है

गर बोलने लगता तो

क़यामत ही आ जाती…

 

Thankfully, this heart

Just only beats for you

If only it could speak,

Doomsday would come

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य #84 ☆ भोजपुरी गीत – मातृभूमि रक्षा खातिर ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”


(आज  “साप्ताहिक स्तम्भ -आत्मानंद  साहित्य “ में प्रस्तुत है  श्री सूबेदार पाण्डेय जी की  देशप्रेम से ओतप्रोत भोजपुरी भाषा में भावपूर्ण रचना  “मातृभूमि रक्षा खातिर ….। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 84 ☆ भोजपुरी गीत – मातृभूमि रक्षा खातिर …. ☆

चंद शेर–

जरवले होई उ देहियां के बारूद गोला से।

अपने छाती पर गोली उ खिले होई।।

दुश्मन के खून से होली खेलले होई उस सीमा पे।

 वतन परस्ती क रीत निभवले होई।।

 अपने हिम्मत से मरले होई उ दुश्मन के सरहद पे।

अपने माई क लाल कहवले होई।।

उस पहिरले होई तिरंगा कफ़न हमनी  खातिर।

आपन पूंजी देशवा पे लुटवले होई।।

☆ मातृभूमि रक्षा खातिर …. ☆

ऊ मातृभूमि रक्षा खातिर,

पलटन में जाइ भयल भरती।

माई क शान रखै खातिर,

पलटन में जाइ भयल भरती।

उस आयल रहै घरे छुट्टी,

परिवार से अपने मिलै खातिर।

माई के गोदि में सिर रखि के,

बचवा बनि तनिक सोवै खातिर।

बाऊ कै अपने बनै सहारा,

बहिना कै मान करै खातिर।।1।।

 

एक दुपहरिया मिलल खबर,

चढि आयल हौ दुश्मन सीमा पर।

सुनतै बेचैन हो गयल उ,

कइलस तइयारी जाये कै।

 देश प्रेम के ज्वाला में,

 छाती ओकर जरै लगल।

सीमा पर कइलस घमासान,

दुश्मन कै खेमा उखडि गयल।2।।

 

भूलि गयल ऊ बाग बगइचा,

खेत खलिहवां  भूलि गयल।

भूलि गयल मेहरी के पिरितिया,

माई कै ममता भूलि गयल।

भूलि गयल  भाई कै नेहिया,

बहिनां के राखी भूलि गयल।

भूरि गयल बचवन कै चेहरा,

संगी साथी भूलि गयल।

माई कै शान रखै खातिर,

अपनौ दुख सुखवा भूलि गयल।।3।।

 

जब पहुचल उस सीमा पे,

तब एकै बतिया याद रहल।

माई के दूध कै कर्ज बा केतना,

एतनै बतिया याद रहल।

हम सब दीवाली रहे मनावत,

उस सीमा पे होली खेलत बा।

हमनी के सुख चैन बदे,

सीना पर गोली झेलत बा।

दुश्मन से लोहा लेत लेत,

गोली खिला उ सीनवां पर।

अपने त मरल अकेलै उ,

दस बीस के मरलस सीमवां पे।

कमर तोड़ दिहलस दुश्मन कै,

ओकर दांत भयल खट्टा।

अपने माई के रहै सपूत,

ना शान में लगै दिहेस बट्टा।।4।।

 

उस आपन सब कुछ लुटा दिहेन,

अध्याय नया इक लिख गइलेन।

अपने स्वर्ग सिधरलेन उ,

इ वतन हवाले कर गइलन।

उस आपन करै समरपन,

जवनें रहिया चलि के गयल।

ओहि माटी से तिलक करीं जा,

जहवां ओकर पांव पड़ल।

जवनें माटी में जनम लिहेसि उ,

उस मांटी  भी धन्य हो गइल।

जेहि जगह पे चिता जरल ओकर,

काबा काशी उ जगह हो गइल।

ओकरा याद में मिलि हम सब,

आवा इक दिया जराई जा।

हम हमें मिलि के ओकरे उपरा,

आपन नेह लुटाई जा।‌।5।।

 

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 2 (11-15)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 2 (11-15) ॥ ☆

धनुष धरे भी दवार्द्र नृप को निहार निस्शंक अभीत मन से

विशाल नयनों का लाभ पाया वन हरणियों ने विलख नयन से ॥11॥

 

पवन भरे बजते बॉसुरी से, विशेष बाँसों के क्षत विवर में

वनदेवियों से सुना नृपति ने सुयश सघन वन में उच्च स्वर में ॥12॥

 

वननिर्झरों के जलकण प्रकम्पित पादप सुमनगंध से हो सुधसित

पवन थके, छत्ररहित नृपति को कर स्पर्श दे मान था अलाल्हादित ॥13॥

 

वर्षा बिना ही हुई श्शांत दावाग्नि फूले फले वृक्ष सहर्षमन से

वन प्राणियों की विफलता हुई कम, नृप के तथा शांत वन आगमन से॥14॥

 

दिनकर निरंतर प्रदर्शित दिशाधर चले जब भ्रमण पूर्णकर श्शांति पाने

तभी सॉझ को गृहगमन हेतु उपक्रम रचा नंदिनी ने तथा रविप्रभा ने ॥15॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 42 ☆ गीता ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा  रचित विशेष कविता  “गीता“।  हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। ) 

☆ काव्य धारा # 42 ☆ गीता 

श्री कृष्ण का संसार को वरदान है गीता

निष्काम कर्म का बडा गुणगान है गीता

 

दुख के महासागर मे जो मन डूब गया हो

अवसाद की लहरो मे उलझ ऊब गया हो

 

तब भूल भुलैया मे सही राह दिखाने

कर्तव्य के सत्कर्म से सुख शांति दिलाने

 

संजीवनी है , एक रामबाण है गीता

पावन पवित्र भावो का संधान है गीता

 

है धर्म का क्या मर्म , कब करना क्या सही है

जीवन मे व्यक्ति क्या करे गीता मे यही है

 

पर जग के वे व्यवहार जो जाते न सहे हैं

हर काल हर मनुष्य को बस छलते ही रहे हैं

 

आध्यात्मिक उत्थान का विज्ञान है गीता

करती हर एक भक्त का कल्याण है गीता

 

है शब्द सरल अर्थ मगर भावप्रवण है

ले जाते हैं जो बुद्धि को गहराई गहन में

 

ऐसा न कहीं विश्व मे कोई ग्रंथ है दूजा

आदर से जिसकी होती है हर देश मे पूजा

 

भारत के दृष्टिकोण की पहचान है गीता

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – खोज ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – ? खोज ?

माथे पर ऐनक चढ़ाक

ऐनक ढूँढ़ता हूँ कुछ ऐसे,

भीतर के हरि को बिसरा कर

बाहर हरि खोजे कोई जैसे!

©  संजय भारद्वाज

9:17 प्रात:, 16 जून 2021

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 2 (6-10)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 2 (6-10) ॥ ☆

जब बैठती गया तब बैठ जाते, रूकने पै सकते औं चलने पै चलते

जलपान करती तो जलपान करते यों छाया सदृश भूप व्यवहार करते ॥ 6॥

 

सभी राज चिन्हों का परित्याग कर भी, स्वतः तेज से राजसी रूप धारे

अन्तर्मदावस्थ गजराज की भाँति वन में विचरथे नृप बेसहारे ॥7॥

 

वन द्रुमलता से उलयाते हुये केश ले, धूम बन बन सतत धनुष ताने

गुरूदेव की धेनुहित नित्य रक्षार्थ चल दुष्ट वनचर  दलो से बचाने ॥8॥

 

अनुचर रहित उस नृपति की प्रशंसा , थे वनवृक्ष औं वरूप करते दिखाते

औ पक्षि समुदाय कर गाल कलख थे चरणों सम मधुर गीत गाते ॥9॥

 

सुस्वागतम हेतु बिखेरती खील यथा नृपति मान में पौरकन्या

तथा प्रसूना ञ्जलि छोड़ती थी पवन प्रकम्पित सुलतायें वन्या ॥10॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – संसार ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – ? संसार ?

वह खड़ी रही

घड़ी की सूइयों की परिधि में,

मैं करता रहा प्रतीक्षा

समय की सीमाओं के पार,

न कोई न्यून, न कोई अधिक,

न कोई सीमित, न कोई विस्तृत,

पूरक में तुलना होती है निराधार,

पूरक की समग्रता में साँस लेता संसार।

©  संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज # 94 ☆ भावना के दोहे ☆ डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं   “भावना के दोहे। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 94 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे ☆

हृदय प्रफुल्लित हो गया,

दर्शन करते देव।

सावन में अभिषेक से,

हों प्रसन्न महदेव।।

 

धानी रंग पुकारता,

आया सावन झूम।

हरियाली छाने लगी,

लता धरा को चूम।।

 

फूल आज कुछ कह रहा,

कर अतीत  को याद।

निज स्पंदन से आज तुम,

करो  मुझे आबाद।।

 

खुशबू जिनमें है नही,

कागज के हैं फूल।

चंचरीक बनकर नहीं ,

करो प्यार की भूल।।

 

सूख गए हो आज तुम,

खिलते हुए गुलाब।

याद तुम्हारी आ गई,

जबसे मिली किताब।।

 

तनहाई डसने लगी,

बातें करो जनाब।

हो प्रतीक  मुस्कान के,

खिलते हुए गुलाब।।

 

तितली भंवरे कर रहे,

फूलों का रसपान।

महक नहीं है फूल में,

कागज भी  बेजान।।

 

मन के रेगिस्तान में,

खिलते फूल हजार।

होते ही मन बावरा , 

खोले पंख पसार।।

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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