हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 1 (81-85)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 1 (81-85) ॥ ☆

उसी सुरभि की सुता को परम पूज्य शुचि जान

सपत्नीक सेवा करो पाने को वरदान ॥ 81॥

 

इतना कहते ही वहाँ धेनु नन्दिनी नाम

आहुति साधन यज्ञ की आई वन से शाम ॥ 82॥

 

पल्लव पाटल वर्ण था, श्वेतचंद्र था भाल

भग्योदय सूचक तथा नव शशि संध्याकाल ॥ 83॥

 

कुण्डोन्धी, प्रियदर्शिनी पावन सौम्य शरीर

वत्स देखकर ऐस से टपक रहा थ क्षीर ॥ 84॥

 

खुर उद्धेलित धूलि कण का पा पावन स्पर्श

तीर्थ स्नान सी शुद्धि का जो देता था हर्ष ॥ 85॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ लेखनी सुमित्र की#51 – दोहे – ☆ डॉ राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)

✍  लेखनी सुमित्र की #51 –  दोहे ✍

 

मेघ कुंतला याद है, याद रसीले बैन ।

मृगलोचन से दूधिया, मृगनयनी के नैन।।

 

कटि, तट, पनघट एक से, छविदाता अभिराम।

मुझे दिखाई दे रहा, लिखा प्यार का नाम।।

 

कहने को हम दूर हैं, लेकिन बहुत समीप ।

ऊर्जा लेकर आपकी, जलता प्राण प्रदीप।।

 

थकन, निराशा, खिन्नता, या तिरती मुस्कान ।

मन में क्या कुछ उठ रहा, कर लेता अनुमान।।

 

द्वैत भले हो देहगत, एहसासी एकत्व ।

अद्वैती है प्रेम रस, या फिर कहे ममत्व।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 50 – आँख की बही स्याही… ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज पस्तुत है आपका अभिनव गीत “आँख की बही स्याही…  । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 50 ☆।। अभिनव गीत ।।

☆ आँख की बही स्याही …  ☆

रोटी के टुकड़े में

देखे सम्भावना

भागवती को मुमकिन

भोजन प्रस्तावना

 

हुलस गई बाहर से

कक्षायें दिखने पर

देख सकी सरस्वती

के केवल टखने भर

 

स्कूली-गेट पर

खड़ी रही हाथ जोड़

फाटक से चिपकी सी

एक अदद प्रार्थना

 

अध्ययन समूचा तब

आँखों में आ सिमटा

पीठ पर पड़ा चुपके

भोजन का जब चिमटा

 

आँखों से बह निकला

शिक्षा प्रबंधन सब

फटी फ्रॉक से झाँकी

ललक लिये यातना

 

आँख की बही स्याही

अप्रत्याशित थी घटना

नहीं कोई सुन पाये

दिल्ली में या पटना

 

चोट खाये भूखे ही

सोयेगी भागवती

खंडित हो गई आज

जिसकी आराधना

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

20-07-2021

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #41 ☆ व्यंग कविता – परिवर्तन ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है महामारी कोरोना से ग्रसित होने के पश्चात मनोभावों पर आधारित एक व्यंग्य कविता “# परिवर्तन #”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 41 ☆

☆ # व्यंग कविता – परिवर्तन # ☆ 

स्वाधीनता के पावन पर्व पर

अपनी संपन्नता पर गर्व कर

नेताजी ने

कार में बैठते हुए

अभिमान से

अपनी गर्दन

ऐंठते हुए

अपने ड्रायवर

से कहा-

क्यों भाई

हमने इस देश को

कितना आगे बढ़ाया है

गरीबों का जीवनस्तर

कितना ऊपर उठाया है

अपना खून पानी

की तरह बहाकर

इस देश में कितना

परिवर्तन लाया है ?

 

बेचारा ड्रायवर

अपनी अल्पबुधी से

कुछ सोचते हुए

फटी कमीज़ से

माथे का पसीना

पोंछते हुए

बोला-

नेताजी,

हम तो बस

इसी सत्य को

मानते हैं

हम तो बस

इसी परिवर्तन को

जानते हैं

कि

आज से

पचहत्तर साल पहले

आपके पूज्यनीय पिताजी

आज ही के दिन

तिरंगा झंडा

फहराया करते थे

और

हमारे पिताजी

उन्हें वहाँ  तक

पहुँचाया करते थे

और आज

पचहत्तर साल बाद

आप झंडा फहराने

जा रहे हैं

और हम

आपको वहाँ तक

पहुँचा रहे हैं 

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 1 (76-80)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 1 (76-80) ॥ ☆

पत्नी के ऋतुकाल पर धर्म कर्म धर ध्यान

प्रदक्षिणा तुमने न की दे समुचित सम्मान ॥ 76॥

 

‘‘ करता है अपमान नृप जिस संतति हित आज –

हो संतति मम कृपा पर ” – है उसका यह श्राप ॥ 77॥

 

उसे न सारथि ने सुना, न ही आप महाराज

थे नभ गंगाधर में क्रीड़ारत गजराज ॥ 78॥

 

तो उनके अपमान से फली न मन अभिलाष

पूजा निश्चित पूज्य की पूरी करती आश ॥ 79॥

 

वह प्राचेतस यज्ञ की कवि हित लंबेकाल

भुजग सुरक्षित द्वार जो, रहती है पाताल ॥ 80॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ स्वतंग्रता दिवस विशेष – हर बलिदानी को शत शत प्रणाम ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा  स्वतन्त्रता दिवस पर विशेष कविता  “हर बलिदानी को शत शत प्रणाम“।  हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।

☆ स्वतंग्रता दिवस विशेष – हर बलिदानी को शत शत प्रणाम ☆

जो छोटी सी नौका ले के, भर के मन में साहस अपार 

उठती तूफानी लहरों में, निकले थे करने उदधि पार ।

उनकी ही त्याग तपस्या ने, उनके ऊँचे विश्वासों ने

दिलवाई हमको आजादी, टकरा जुल्मों से बार बार 

ऐसे हर व्रती मनस्वी को हम सबका है शत शत प्रणाम ।।1 ।।

सब ओर घना अँधियारा था, कोई न किरण थी किसी ओर

घनघोर भयानक गर्जन था, पुरखौफ सफर था, दूर छोर ।

फिर भी बढ़ जिनने ललकारा, सागर को रहने सीमा में

उनने ही लाई अथक जूझकर आजादी की सुखद भोर 

ऐसे हर प्रखर तपस्वी को हर भारतवासी का प्रणाम ।।2 ।। 

परवाह न की निज प्राणों की जिनने सुन माता की पुकार

बढ़ अलख जगाने निकल पड़े थे, गाँव शहर हर द्वार द्वार । 

जो भूल सभी सुख जीवन के बैरागी बने जवानी में

हथकड़ी, बेड़ियाँ, फाँसी के फंदे थे जिनको पुष्पहार 

ऐसे हर नर तेजस्वी को भारत के जन – जन का प्रणाम ।।3 ।।

पर दिखता अब उनके सपने सब मिला दिये गये धूलों में 

अधिकांश लोग हैं मस्त आज रंगरलियों में सुख मूलों में । 

यह बहुत जरूरी समझे सब उन अमर शहीदों के मन की 

जिनने हँसते सब दे डाला खुद चढ़ फाँसी के झूलों में ।

ऐसे हर अमर यशस्वी को मेरा मन से शत शत प्रणाम ।।4 ।। 

स्वातंत्र्य  समर सेनानी हर बलिदानी को शत शत प्रणाम 

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ स्वतन्त्रता दिवस विशेष – आन-बान-शान तिरंगा ☆ डॉ. सलमा जमाल

डॉ.  सलमा जमाल 

 

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार डा. सलमा जमाल जी ने  रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त । s 15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 22 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक लगभग 72 राष्ट्रीय एवं 3 अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन। अब तक १० पुस्तकें प्रकाशित।आपकी लेखनी को सादर नमन।) 

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

☆ स्वतन्त्रता दिवस विशेष – आन-बान-शान तिरंगा ☆

लहर – लहर – लहराए हमारा
आन – बान – शान – तिरंगा ।
कल – कल – करके सलामी
देती है पवित्र जमुना – गंगा ।।

दुश्मन देश पर नज़र उठाए,
हम आंख नोच लेंगे,
माया – मोह का त्याग कर,
प्राण देने का सोच लेंगे,
लाल किला – इंडिया गेट पे
करेंगे दुश्मन को नंगा ।
लहर ———————– ।।

चाहे पाक ड्रोन के द्वारा,
करें ख़ुफ़िया निगरानी,
ऐसी मौत हम उसको देंगे,
ना मांगेगा पानी,
कश्मीर हमारा अभिन्न अंग है,
ना करना तुम दंगा ।
लहर ———————- ।।

इक-इक बाला है रज़िया,
लक्ष्मी, दुर्गा का अवतार,
युवा है सुभाष, चंद्र शेखर,
उनपे भारत मां का भार,
रामप्रसाद, अशफ़ाक, भगत
के देश से ना लेना पंगा ।
लहर ———————- ।।

गुरु ग्रंथ का पाठ करें और
हो अज़ान व आरती ,
गिरजाघर की प्रार्थना से
गर्वित है मेरी भारती ,
मानवता है धर्म हमारा
‘सलमा’ का देश है चंगा ।
लहर ———————— ।।

© डा. सलमा जमाल 

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 1 (71-75) ॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 1 (71-75) ॥ ☆

बिना स्नान आबद्ध गज को ज्यों कष्ट महान

तद्धत मम मन की व्यथा को समझें भगवान ॥ 71॥

 

जिस विधि उससे मुक्ति हो वही करें प्रिय तात

सूर्यवंश के कष्ट में सिद्धि आपके हाथ ॥ 72॥

 

राजा के ये वचन सुन हुये ध्यान में लीन

क्षण भर ऋषि यों शांत ज्यों दिखे झील में मीन ॥ 73॥

 

शुद्ध हृदय मुनि ने लखा, कर के जब प्रणिधान

जो देखा सब कह दिया नृप से सहित निदान ॥74॥

 

कभी इंद्र के पास से आते पृथ्वी लोक

देख कल्पतरू छाँव में खड़ी सुरभि पथ रोक ॥ 75॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #94 – मानसून की पहली बूंदे… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(वरिष्ठ साहित्यकार एवं अग्रज श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण कविता   ‘मानसून की पहली बूंदे….….। )

☆  तन्मय साहित्य  # 94 ☆

 ☆ मानसून की पहली बूंदे…. ☆

मानसून की पहली बूंदे

धरती पर आई

महकी सोंधी खुशबू

खुशियाँ जन मन में छाई।

 

बड़े दिनों के बाद

सुखद शीतल झोंके आए

पशु पक्षी वनचर विभोर

मन ही मन हरसाये,

बजी बांसुरी ग्वाले की

बछड़े ने हाँक लगाई।

 

ताल तलैया पनघट

सरिताओं के पेट भरे

पावस की बौछारें

प्रेमी जनों के ताप हरे,

गाँव गली पगडंडी में

बूंदों ने धूम मचाई।

 

उम्मीदों के बीज

चले बोने किसान खेतों में

पुलकित है नव युगल

प्रीत की बातें संकेतों में,

कुक उठी कोकिला

गूँजने लगे गीत अमराई।

मानसून की पहली बूंदें

धरती पर आई

महकी सुध खुशबू

जन-जन में छाई।

 

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 45 ☆ मौत से रूबरू ☆ श्री प्रह्लाद नारायण माथुर

श्री प्रहलाद नारायण माथुर

(श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी अजमेर राजस्थान के निवासी हैं तथा ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से उप प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। आपकी दो पुस्तकें  सफर रिश्तों का तथा  मृग तृष्णा  काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं तथा दो पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा  जिसे आप प्रति बुधवार आत्मसात कर सकेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता ‘मौत से रूबरू । ) 

 

Amazon India(paperback and Kindle) Link: >>>  मृग  तृष्णा  

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 45 ☆

☆ मौत से रूबरू

वैसे तो मुझे यहां से जाना ना था,

मुझे अभी तो और जीना था,

कुछ मुझे अपनों के काम आना था,

कुछ अभी दुनियादारी को निभाना था,

एक दिन अचानक मौत रूबरू हो गयी,

मैं घबरा गया मुझे उसके साथ जाना ना था,

मौत ने कहा तुझे इस तरह घबराना ना था,

मुझे तुझे अभी साथ ले जाना ना था,

सुनकर जान में जान आ गयी,

मौत बोली तुझे एक सच बतलाना था,

बोली एक बात कहूं तुझसे,

यहाँ ना कोई तेरा अपना था ना ही कोई अपना है,

मैं मौत से घबरा कर बोला,

मैं अपनों के बीच रहता हूँ यहां हर कोई मेरा अपना है,

 

मैंने मौत से कहा तुझे कुछ गलतफहमी है,

सब मुझे जी-जान से चाहते हैं हर एक यहां मिलकर रहता है,

मौत बोली बहुत गुमान है तुझे अपनों पर,

तेरे साथ तेरा कोई नहीं जायेगा जिन पर तू गुमान करता है,

मैंने भी मौत से कह दिया,

तुझ पर भरोसा नहीं, तुझ संग कभी इक पल भी नहीं गुजारा है,

भले अपने कितने पराये हो जाये,

मुझे इन पर भरोसा है इनके साथ सारा जीवन बिताया है ||

 

© प्रह्लाद नारायण माथुर 

8949706002
≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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