हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – टिटहरी ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – टिटहरी  ?

( 5 जून से आरम्भ पर्यावरण विमर्श की रचनाओं में आज तीसरी रचना।)

भीषण सूखे में भी
पल्लवित होने के प्रयास में,
जस- तस अंकुर दर्शाती
अपने होने का भास कराती
आशाओं को, अंगुली थाम
नदी किनारे छोड़ आता हूँ।

आशाओं को
अब मिल पायेगा
पर्याप्त जल और
उपजाऊ जमीन।

ईमानदारी से मानता हूँ
नहीं है मेरा सामर्थ्य,
नदी को खींचकर
अपनी सूखी ज़मीन तक लाने का,
न कोई अलौकिक बल
बंजर सूखे को
नदी किनारे बसाने का।

वर्तमान का असहाय सैनिक सही,
भविष्य का परास्त योद्धा नहीं हूँ,
ये पिद्दी-सी आशाएँ,
ये ठेंगु-से सपने,
पलेंगे, बढ़ेंगे,
भविष्य में बनेंगे
सशक्त, समर्थ यथार्थ,
एक दिन रंग लायेगा
मेरा टिटहरी प्रयास।

जड़ों के माध्यम से
आशाओं के वृक्ष
सोखेंगे जल, खनिज
और उर्वरापन..,
अंकुरों की नई फसल उगेगी,
पेड़ दर पेड़ बढ़ते जाएँगे,
लक्ष्य की दिशा में
यात्रा करते जाएँगे।

मैं तो नहीं रहूँगा
पर देखना तुम,
नदी बहा ले जाएगी
सारा नपुंसक सूखा,
नदी कुलाँचें भरेगी
मेरी ज़मीन पर,
सुदूर बंजर में
जन्मते अंकुर
शरण लेंगे
मेरी ज़मीन पर,
और हाँ..,
पनपेंगे घने जंगल
मेरी ज़मीन पर..!

#लक्ष्य की दिशा में आज एक कदम बढ़े। शुभ दिवस#

©  संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सकारात्मक कविता # 95 ☆ दरअसल ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है आपकी एक सकारात्मक कविता  ‘दरअसल )  

☆ सकारात्मक कविता ☆ दरअसल ☆

दरअसल 

कुछ नहीं कहना ,

 

अभी गर्मी 

बहुत अधिक है, 

 

कोरोना अभी

लाशें खरीद रहा है,

 

 मन है पर बहुत 

उचाट सा रहता है, 

 

दरअसल

 ये है कुछ कहो,

 

पर तुम ध्यान भी

 नहीं देते इस उहापोह में,

 

दिक्कत ये  हो गई है

 कि सब कुछ बदल रहा है, 

 

ब्याज भरे संबंधों का

हिसाब-किताब हो रहा है,

 

दरअसल 

कोविड ने

दुरस्ती का ठेका लिया है

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #39 ☆ # हे राही ! तू क्यों है उदास # ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है महामारी कोरोना से ग्रसित होने के पश्चात मनोभावों पर आधारित एक अविस्मरणीय भावप्रवण कविता “# हे राही ! तू क्यों है उदास #”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 30 ☆

☆ # हे राही ! तू क्यों है उदास # ☆ 

हे राही ! तू क्यों है उदास ?

तेरी क्यों रूक रही है सांस ?

यह जीवन चक्र है

फिर भी तू क्यों है निराश ?

 

इन पीड़ित लोगों के बारे में सोच

इनके बहते आंसुओं को पोछ

इनका सबकुछ महामारी में लुट गया

अपनों का साथ राह में छूट गया

भरा-पूरा परिवार वीरान  हो गया

नियति के आगे मजबूर इन्सान हो गया

तू इनके मन में जगा जीवन की आस

हे राही ! तू क्यों है उदास ?

 

पहले पड़ी महामारी की मार

दूजे में छूट गए रोजगार

भटक रहे हैं भूखे-प्यासे

उखड़ ना जाए इनकी सांसे

मदद क लिए उठें है क ई हाथ

सभी संगठन दे रहें हैं साथ

तू भी इनमें शामिल होकर

कर अलग कुछ खास

हे राही ! तू क्यों है उदास

 

दु:ख दर्द में जीना सीखो

जहर मिले तो पीना सीखो

खुद हंसो, पीड़ितों को हंसाओ

उनके जीवन में खुशियां लाओ

खुशियों से बढ़ेगी इम्यूनिटी

जीवन में आयेगी पाॅजिटिवीटि

तू आदर्श बन,

दूर कर महामारी का त्रास

हे राही! तू क्यों है उदास 

© श्याम खापर्डे 

04/06/2021

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 1 (21-25) ॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 1 (21-25) ॥ ☆

सकल धर्म साधन सुलभ, स्वस्थ शरीर प्रमाण

सुख – वैभव उपभेग भी किये क्षणिक सब मान ॥ 21॥

 

ज्ञान शक्ति औं त्याग के अनुवर्ती गुण आप्त

मौन क्षमा श्लाघा विरति जन्मजात थे प्राप्त ॥ 22॥

 

परांगत विद्यायों में, विषयों में रूचिहीन

वृद्धावस्था पूर्व ही धर्मकर्म में लीन ॥ 23॥

 

शिक्षा पोषण भरण कर, प्रजा पुत्रवत पाल

पिता जन्म हित पिता थे, पालक थे भूपाल ॥ 24॥

 

अपराधी हित दण्ड था, पुत्र प्राप्ति हित ब्याह

अर्थ – काम का भी किया, धर्म सदृश निर्वाह ॥ 25॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 52 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 52 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 52) ☆ 

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>  कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

☆ English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 52 ☆

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

रात  है  ख़्वाब  बुनती,

दिन  हैं  कि  उधेड़ देते…

इसी उधेड़-बुन में तमाम,

ज़िंदगी  है  बीती  जाती…!

 

Night keeps weaving dreams,

and the days untwine them

In this turmoil only, whole

Life  keeps  on  passing..!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

आस्मां छुपे  हैं  कई मुझ में,

मैं कायनात का इक जरिया हूँ,

मैं दरिया  की  एक बूँद नहीं,

एक  बूँद  में  पूरा दरिया हूँ..!

 

Many skies are hidden in me,

I’m the  tool of  the  universe

I’m not just a drop of the river

But the whole river in a drop!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

हो सकता  है  कि  लोग मुझे

शायद कमज़ोर समझते  हों,

क्योंकि मेरे पास ताक़त नहीं है

किसी  का  दिल  तोड़ने  की…

 

May be people consider me

as  weak  hearted  since

I don’t  have the  strength

to break someone’s heart!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

तोड़ दे अपनी ये बेगानी खामोशी

कुछ  तो  दिलों  की बात  होने दे

जैसी होती है अक्सर खयालों में

वैसी ही  एक मुलाकात तो होने दे

 

Break your strange silence

Just have some hearty talks

Let’s meet up in reality as we

often meet  in  the thoughts..!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 53 ☆ बुंदेली ग़ज़ल – मंजिल की सौं… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताeह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित बुंदेली ग़ज़ल    ‘मंजिल की सौं…। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 53 ☆ 

☆ बुंदेली ग़ज़ल – मंजिल की सौं… ☆ 

मंजिल की सौं, जी भर खेल

ऊँच-नीच, सुख-दुःख. हँस झेल

 

रूठें तो सें यार अगर

करो खुसामद मल कहें तेल

 

यादों की बारात चली

नाते भए हैं नाक-नकेल

 

आस-प्यास के दो कैदी

कार रए साँसों की जेल

 

मेहनतकश खों सोभा दें

बहा पसीना रेलमपेल

 

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 1 (16-20) ॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 1 (16-20) ॥ ☆

योग्य नृपति के गुणों से आश्रित जनहित प्रेय

हुआ कि जलचर, रत्नहित ज्यों सागर है ध्येय ॥ 16॥

 

पूर्व प्रतिष्ठित पंथ की प्रजा रही अनुयायी

कुशल सारथी का सुरथ ज्यों न लीक तज जाए ॥ 17॥

 

रवि किरणों से जिस तरह करता रस स्वीकार

विविध दान हित, प्रजाहित या उसका धर भार॥18॥

 

उसकी सेना के रहे दो बल श्रेष्ठ प्रधान

नीति युक्त शुभ बुद्धि और धनुष रज्जु की तान ॥ 19॥

 

उसके मन के भाव हों या हों गूढ़ विचार

पूर्व कर्म संस्कार युत थे, फल के अनुसार ॥ 20॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 40 ☆ पर्यावरण दिवस विशेष – नदी की मनोव्यथा ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा  5 जून पर्यावरण दिवस पर विशेष कविता  “नदी की मनोव्यथा “।  हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 40 ☆ पर्यावरण दिवस विशेष – नदी की मनोव्यथा 

जो मीठा पावन जल देकर हमको सुस्वस्थ बनाती है

जिसकी घाटी और जलधारा हम सबके मन को भाती है

तीर्थ क्षेत्र जिसके तट पर हैं जिनकी होती है पूजा

वही नर्मदा माँ दुखिया सी अपनी व्यथा सुनाती है

 

पूजा तो करते सब मेरी पर उच्छिष्ट बहाते हैं

कचरा पोलीथीन फेंक जाते हैं जो भी आते हैं

मैल मलिनता भरते मुझमें जो भी रोज नहाते हैं

गंदे परनाले नगरों के मुझमें ही डाले जाते हैं

 

जरा निहारो पड़ी गन्दगी मेरे तट और घाटों में

सैर सपाटे वाले यात्री ! खुश न रहो बस चाटों में

मन के श्रद्धा भाव तुम्हारे प्रकट नहीं व्यवहारों में

समाचार सब छपते रहते आये दिन अखबारों में

 

ऐसे इस वसुधा को पावन मैं कैसे कर पाउँगी ?

पापनाशिनी शक्ति गवाँकर विष से खुद मर जाउंगी

मेरी जो छबि बसी हुई है जन मानस के भावों में

धूमिल वह होती जाती अब दूर दूर तक गांवों में

 

प्रिय भारत में जहाँ कहीं भी दिखते साधक सन्यासी

वे मुझमें डुबकी, तर्पण,पूजन,आरति के हैं अभिलाषी

तुम सब मुझको माँ कहते, तो माँ को बेटों सा प्यार करो

घृणित मलिनता से उबार तुम  मेरे सब दुख दर्द हरो

 

सही धर्म का अर्थ समझ यदि सब हितकर व्यवहार करें

तो न किसी को कठिनाई हो, कहीं न जलचर जीव मरें

छुद्र स्वार्थ नासमझी से जब आपस में टकराते हैं

इस धरती पर तभी अचानक विकट बवण्डर आते हैं

 

प्रकृति आज है घायल, मानव की बढ़ती मनमानी से

लोग कर रहे अहित स्वतः का, अपनी ही नादानी से

ले निर्मल जल, निज क्षमता भर अगर न मैं बह पाउंगी

नगर गांव, कृषि वन, जन मन को क्या खुश रख पाउँगी ?

 

प्रकृति चक्र की समझ क्रियायें,परिपोषक व्यवहार करो

बुरी आदतें बदलो अपनी, जननी का श्रंगार करो

बाँटो सबको प्यार, स्वच्छता रखो, प्रकृति उद्धार करो

जहाँ जहाँ भी विकृति बढ़ी है बढ़कर वहाँ सुधार करो

 

गंगा यमुना सब नदियों की मुझ सी राम कहानी है

इसीलिये हो रहा कठिन अब मिलना सबको पानी है

समझो जीवन की परिभाषा, छोड़ो मन की नादानी

सबके मन से हटे प्रदूषण, तो हों सुखी सभी प्राणी !!

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – पर्यावरण दिवस विशेष – हरी-भरी  ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – पर्यावरण दिवस विशेष – हरी-भरी  ?

मैं निरंतर रोपता रहा पौधे

उगाता रहा बीज उनके लिए,

वे चुपचाप, दबे पाँव

चुराते रहे मुझसे मेरी धरती..,

भूल गए वे, पौधा केवल

मिट्टी के बूते नहीं पनपता,

उसे चाहिए-

हवा, पानी, रोशनी, खाद

और ढेर सारी ममता भी,

अब बंजर मिट्टी और

जड़, पत्तों के कंकाल लिए

हाथ पर हाथ धरे

बैठे हैं सारे शेखचिल्ली,

आशा से मुझे तकते हैं,

मुझ बावरे में जाने क्यों

उपजती नहीं

प्रतिशोध की भावना,

मैं फिर जुटाता हूँ

तोला भर धूप,

अंजुरी भर पानी

थोड़ी- सी खाद

और उगते अंकुरों को

पिता बन निहारता हूँ,

हरे श्रृंगार से

सजती- धजती है

सच कहूँ, धरती

प्रसूता ही अच्छी लगती है!

 

# धरती को हरी-भरी बनाये रखना हम सबका दायित्व है #

©  संजय भारद्वाज

रात्रि 10:01 बजे, 3 जून 2021

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 1 (11-15) ॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 1 (11-15) ॥ ☆

 

वैवस्वत मनु नाम के ख्यात विशेष मनीष

वेदों में ओंकार सम प्रथम प्रबुद्ध महीष ॥ 11॥

 

उनके पावन वंश में प्रबुध दिलीप नरेश

हुये, कि जैसे क्षीरनिधि से उपजे राकेश ॥ 12॥

 

उर विशाल, वृषकन्ध और दीर्घ सुवाहु सुरूप

सकल कर्म हित सबल तनु, क्षात्रधर्म धृतरूप ॥ 13॥

 

शक्ति युक्त अति तेजमय, कान्तिवान, बलवान

पृथ्वी पर विख्यात बुध, पर्वत मेरू समान ॥ 14॥

 

रूप सदृश प्रज्ञा लिये, प्रज्ञा सम श्रम साथ

शास्त्रविहित शुभकर्म संग, कर्मसदृश फल हाथ ॥ 15॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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