English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 48 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 48 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 48) ☆ 

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>  कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

☆ English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 48☆

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

हुजूर, दोस्ती में कहाँ

कोई उसूल होता  है

जो  जैसा  है  वैसे

ही  कुबूल  होता  है..!

 

When does friendship

 follow any principle

Friends  are  always

accepted as they are!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

कब धूप चली, कब शाम ढली

किस  को  ख़बर  है…

इक उम्र से मैं अपने ही

साये  में  खड़ा  हूँ…

 

Who knows if it was sunshine

or when would Sun set in,

I’ve just been standing in my

own  shadow  since  ages..!

  ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

खाक उड़ती है रात भर मुझ में

कौन फिरता है दर-ब-दर मुझ में,

मुझको खुद में जगह नहीं मिलती,

तू  है मौजूद इस  कदर  मुझ में…!

 

Dust blows into me 

through out the night

Who is that always

wanders around in me…

 

I do not find a place

for myself in me…

You are filled in me

to  such  an  extent…!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

फिर मेरे हिस्से में आएगा

समझौता  कोई…

आज फिर कोई कह रहा था

समझदार  हो  तुम…

 

Yet again a compromise

will be coming in  my share…

Today again someone was

saying you are intelligent…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 49 ☆ सरस्वती वंदना अलंकार युक्त ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताeह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी  द्वारा रचित  एक रचना   ‘सरस्वती वंदना अलंकार युक्त। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 49 ☆ 

☆ सरस्वती वंदना अलंकार युक्त ☆

*

वाग्देवि वागीश्वरी, वरदा वर दे विज्ञ

– वृत्यानुप्रास  (आवृत्ति व्)

कोकिल कंठी स्वर सजे, गीत गा सके अज्ञ

-छेकानुप्रास (आवृत्ति क, स, ग)

*

नित सूरज  दैदीप्य हो, करता तव वंदन

– श्रुत्यनुप्रास (आवृत्ति दंतव्य न स द त)

ऊषा गाती-लुभाती, करती अभिनंदन

– अन्त्यानुप्रास (गाती-भाती) 

*

शुभदा सुखदा शांतिदा, कर मैया उपकार

– वैणसगाई (श, क) 

हंसवाहिनी हो सदा, हँसकर हंससवार

– लाटानुप्रास (हंस)

*

बार-बार हम सर नवा, करते जय-जयकार

– पुनरुक्तिप्रकाश (बार, जय)

जल से कर अभिषेक नत, नयन बहे जलधार

– यमक (जल = पानी, आँसू)

*

मैया! नृप बनिया नहीं, खुश होते बिन भाव

– श्लेष (भाव = भक्ति, खुशामद, कीमत)

रमा-उमा विधि पूछतीं, हरि-शिव से न निभाव? 

– वक्रोक्ति (विधि = तरीका, ब्रह्मा)  

*

कनक सुवर्ण सुसज्ज माँ, नतशिर करूँ प्रणाम 

– पुनरुक्तवदाभास (कनक = सोना, सुवर्ण = अच्छे वर्णवाली)

मीनाक्षी! कमलांगिनी, शारद शारद नाम

– उपमा (मीनाक्षी! कमलांगिनी), – अनन्वय (शारद)

*

सुमन सुमन मुख-चंद्र तव, मानो ‘सलिल’ चकोर 

– रूपक (मुख-चंद्र), उत्प्रेक्षा (मान लेना)

शारद रमा-उमा सदृश, रहें दयालु विभोर 

– व्यतिरेक (उपमेय को उपमान से अधिक बताया जाए)

*

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 81 ☆ लोकगीत – मरल बेचारा गांव …. ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”


(आज  “साप्ताहिक स्तम्भ -आत्मानंद  साहित्य “ में प्रस्तुत है  श्री सूबेदार पाण्डेय जी की  एक भावपूर्ण रचना  “मरल बेचारा गांव….। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 81 ☆ लोकगीत – लोकगीत – मरल बेचारा गांव…. ☆

घरे के उजरल ओर बड़ेर,

सगरो उजरल गाॅव।

दुअरा के कुलि पेड़ कटि गयल,

ना बचल दुआरें छांव।

खतम हो गइल  पोखर ताल ,

सूखि गइल कुअंना गांवे कै‌।

खतम भयल पनघट राधा के,

बांसुरी मौन भईल मोहन के।।१।।

 

कउआ गांवै छोडि परइलै ,

गोरिया के सगुन बिचारी के।

सुन्न हो गयल पितर पक्ख,

आवा काग पुकारी के।

झुरा गइल तुलसी कै बिरवा,

अंगना दुअरा के बुहारी के।

लोक परंपरा लुप्त भईल ,

एकर दुख धनिया बनवारी के।।२।।

 

बाग बगइचा कुलि कटि गइलै,

आल्हा कजरी बिला गयल।

चिरई चहकब खतम भयल,

झुरमुट बंसवारी कै उजरि गयल।

नाहीं बा घिसुआ कै मड़ई,

नाहीं रहल अलाव।

अब नांहीं गांवन में गलियां,

नाहीं रहल ऊ गांव।।३।।

 

अब नांही बा हुक्का-पानी,

ना गांवन में लोग।

जब से छोरियां गइल सहर में,

ली आइल बा प्रेम का रोग।

जब से गगरी बनल सुराही,

शहर चलल गांवों की ओर।

लोक धुनें सब खतम भइल,

खाली डी जे कै रहि गयल शोर।

अब गावें से खतम भयल बा,

गुड़ शर्बत औ पानी।

अब ठेला पर बिकात हौ,

थम्स अप कोका बोतल में पानी।।४।।

 

जब-जब सूरू भइल गांवे में,

आधुनिक दिखै के अंधी रेस।

गांव में गोधना मजनूं बनि के,

धइले बा जोकर कै भेष ।

जवने दिन शहर गांव में आइल,

उजरि गइल ममता कै छांव।

सब कुछ खतम भयल गांवें से,

मरल बेचारा प्यारा गांव।।५।।

 

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत…. उत्तर मेघः ॥२.३२॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत …. उत्तरमेघः ॥२.३२॥ ☆

सा संन्यस्ताभरणम अबला पेशलं धारयन्ती

शय्योत्सङ्गे निहितम असकृद दुःखदुःखेन गात्रम

त्वाम अप्य अस्रं नवजलमयं मोचयिष्यत्य अवश्यं

प्रायः सर्वो भवति करुणावृत्तिर आर्द्रान्तरात्मा॥२.३२॥

जो भूषण विहीना गहन दुख क्षीणा

सुनिकटस्थ शैय्या मृदुल गात्रवाली

तुम्हें देख फिर नयन आंसू भरेगी

मृदुद हृदय घन ! अति दयावान भारी

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – सोहर ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – सोहर ?

साँस उखड़ने लगी है,

उमंग भरने लगी है,

नवांकुरण का सोहर

मेरी आँख लिखने लगी है!

©  संजय भारद्वाज

30.3.2021, प्रात: 7.47 बजे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

9890122603

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 36 ☆ रामायण मन मोहिनी ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा  एक भावप्रवण कविता  “रामायण मन मोहिनी“।  हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 36 ☆

☆ राम जाने कि – रामायण मन मोहिनी ☆

रामायण है मन मोहिनी पावन कथा श्री राम की

संसार में नित्य धर्म और अधर्म के संग्राम की

 

कष्ट कितना भी हो आखिर सत्य की होती विजय

दुराचार का अंत होता पाता निश्चित ही पराजय

 

सादगी और सच्चाई में ही शक्ति होती है बड़ी

तपस्या और त्याग होते ही हैं जादू की छड़ी

 

सुलझती हैं समस्याएं न्याय सद्व्यवहार से

जो सताती दूसरों को ऐंठ औ अधिकार से

 

उदाहरण करता है प्रस्तुत आचरण श्रीराम का

दुराचारी राक्षसों का दर्प था किस काम का

 

प्रेम है वह तत्व जिससे बदल जाते दुष्ट मन

सद्भाव आत्मविश्वास से सब काम जाते सहज बन

 

सदाचार व प्यार नित कर्तव्य और संवेदना

धैर्य करुणा निपुणता देते रहें यदि प्रेरणा

 

शांति मिलती है सदा तो मन को हर प्रतिकार से

सिखाती रामायण जग को जीतना नित प्यार से

 

धर्म ही सबसे बड़ा साथी है इस संसार में

चाहिए हम रखें मन को अपने नित अधिकार में

 

मनोभावों का बड़ा होता है जीवन में असर

मन अगर वश में है तो दुर्भावनाओं का न डर

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत…. उत्तर मेघः ॥२.३१॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत …. उत्तरमेघः ॥२.३१॥ ☆

 

आद्ये बद्धा विरहदिवसे या शिखा दाम हित्वा

शापस्यान्ते विगलितशुचा तां मयोद्वेष्टनीयाम

स्पर्शक्लिष्टाम अयमितनखेनासकृत्सारयन्तीं

गण्डाभोगात कठिनविषमाम एकवेणीं करेण॥२.३१॥

विरह के दिवस बंधी निर्माल्य वेणी

मिलन दिन विगत शोक मुझसे खुले जो

हटाते बढे नख भरे हाथ से क्लिष्ट

उलझी अलक गाल से प्रियतमा को

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष # 78 ☆ रंगपंचमी विशेष – संतोष के दोहे ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.    “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं रंगपंचमी पर्व पर विशेष भावप्रवण कविता  “संतोष के दोहे। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 78 ☆

☆ रंगपंचमी विशेष – संतोष के दोहे ☆

माटी वृज की भी कहे, मुझे नहीं अब चैन

चरण पखारन चाहती, कबसे हूँ बैचैन

 

ग्वाल-बाल तकते रहे ,कबसे प्रभु की राह

रँग-अबीर हाथ लिए, बस खेलन की चाह

 

आवत देखा कृष्ण को, संखियाँ हुईं अधीर

नर-नारी वृज के सभी, कोई रखे न धीर

 

श्याम रँग राधा रचीं, मन बसते बहुरंग

मुरली की धुन में नचीं, लग मोहन के अंग

 

प्रेम-रस में पगे सभी, देख श्याम का रास

वृज में लगता आज यह, ज्यूँ आया मधुमास

 

प्रेम रँग बरसाइये, कहता यह “संतोष”

चरण-शरण मैं आपकी, हरिये मेरे दोष

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत…. उत्तर मेघः ॥२.३०॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत …. उत्तरमेघः ॥२.३०॥ ☆

 

निःश्वासेनाधरकिसलयक्लेशिना विक्षिपन्तीं

शुद्धस्नानात परुषमलकं नूनमागण्ण्दलम्बम

मत्संभोगः कथमुपनमेत स्वप्नजोऽपीति निद्राम

आकाङ्क्षन्तीं नयनसलिलोत्पीडरुद्धावकाशम॥२.३०॥

 

श्रृंगार साधन रहित स्नान से मात्र

उलझी अलक गाल पर लटक आती

विरह ताप से श्वांस उच्छवास जिसके

सुकोमल अरूण अधर पल्लव जलाती

जो स्वप्न मे मम मिलन कामना से

मधुर नींद का आगमन चाहती है

लखोगे उसे प्रिय नयन द्वार जिसके

सलिल धार रूकना नही जानती है

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 77 ☆ शून्य☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है  आपकी एक भावप्रवण कविता “शून्य । )

आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी के यूट्यूब चैनल पर उनकी रचनाओं के संसार से रूबरू हो सकते हैं –

यूट्यूब लिंक >>>>   Neelam Saxena Chandra

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 77 ☆

☆ शून्य ☆

मैं शून्य में हूँ?

या शून्य मुझमें है?

या मैं ही शून्य हूँ?

 

बैठी थी जब इस इमारत के भीतर

जो शून्य के आकार की थी,

मैंने कोशिश की उस शून्य में समा जाने की,

और इतनी आसानी से समा गयी,

जैसे वो या तो मेरे लिए बना था

या फिर मैं उसके लिए!

 

पर ज़रा उठकर आगे बढ़ी ही थी

कि कोई और उस शून्य की गोद में

यूँ जा बैठा, जैसे वो उसके लिए ही बना हो…

 

नहीं…शायद मैं शून्य में नहीं थी…

हम सब में शून्य है-

तभी तो वो हम सिखाता है

कि नहीं है हमारा अपना वजूद कोई-

आखिर हमें मिट्टी में समां जाना है!

 

तो फिर हम ही शून्य हुए ना?

 

हाँ, हम शून्य हैं-

‘गर ज़िंदगी के साथ ख़ुशी से मिल जाते हैं

तो ख़ुशी चारों ओर बारिश सी बरसती है,

और यदि हम ज़िंदगी से तालमेल ही नहीं बिठा पाते

तो नहीं बचती हमारी कोई अहमियत!

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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