हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 133 ☆ मुक्तक – ।।नवरात्रि महिमा।। हे माँ दुर्गा पापनाशनी,तेरा वंदन बारम्बार है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ “श्री हंस” साहित्य # 133 ☆

☆ मुक्तक ।।नवरात्रि महिमा।। हे माँ दुर्गा पापनाशनी,तेरा वंदन बारम्बार है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

[1]

सुबह शाम की   आरती  और माता का जयकारा।

सप्ताह का हर दिन बन  गया शक्ति  का  भंडारा।।

केसर चुनरी चूड़ी रोली हे माँ करें तेरा सब श्रृंगार।

सिंह पर सवार माँ दुर्गा आयी बन भक्तों का सहारा।।

[2]

तेरे नौं रूपों में  समायी  शक्ति बहुत  असीम  है।

तेरी भक्ति से बन जाता व्यक्ति संस्कारी  प्रवीण है।।

हे वरदायनी  पपनाशनी   चंडी रूपा  कल्याणी तू।

लेकर तेरे नाम मात्र से हो जाता व्यक्ति दुखविहीन है।।

[3]

नौं दिन की   नवरात्रि  मानो कि ऊर्जा का  संचार है।

भक्ति में लीन तेरे   भजनों   की नौ दिन भरमार है।।

कलश सकोरा  जौ  और   पानी आस्था के   प्रतीक।

हे जगत पालिनी माँ  दुर्गा   तेरा वंदन बारम्बार है।।

।।शारदीय नवरात्रि की अनन्त असीम शुभकामनाओं सहित।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 197 ☆ माँ दरशन की अभिलाषा ले हम द्वार तुम्हारे आये हैं… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित – “माँ दरशन की अभिलाषा ले हम द्वार तुम्हारे आये हैं। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा # 197 ☆ माँ दरशन की अभिलाषा ले हम द्वार तुम्हारे आये हैं☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

माँ दरशन की अभिलाषा ले हम द्वार तुम्हारे आये हैं

एक झलक ज्योती की पाने सपने ये नैन सजाये हैं 

*

पूजा की रीति विधानों का माता है हमको ज्ञान नही 

पाने को तुम्हारी कृपादृष्टि के सिवा दूसरा ध्यान नहीं 

फल चंदन माला धूप दीप से पूजन थाल सजाये हैं 

दरबार तुम्हारे आये हैं, मां  द्वार तुम्हारे आये हैं 

*

जीवन जंजालों में उलझा, मन द्विविधा में अकुलाता है 

भटका है भूल भुलैया में निर्णय नसही कर पाता है 

मां आँचल की छाया दो हमको, हम माया में भरमाये हैं

दरबार तुम्हारे आये हैं, हम द्वार तुम्हारे आये हैं 

*

जिनका न सहारा कोई माँ, उनका तुम एक सहारा हो 

दुखिया मन का दुख दूर करो, सुखमय संसार हमारा हो 

आशीष दो मां उन भक्तों को जो, तुम से आश लगाये हैं 

दरबार तुम्हारे आये हैं, सब  द्वार तुम्हारे आये हैं 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य #252 ☆ कविता – वजूद औरत का… ☆ डॉ. मुक्ता ☆

डॉ. मुक्ता

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य” के माध्यम से  हम  आपको प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू कराने का प्रयास करते हैं। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी की स्त्री जीवन पर आधारित एक भावप्रवण कविता वजूद औरत का…। यह डॉ मुक्ता जी के जीवन के प्रति गंभीर चिंतन का दस्तावेज है। डॉ मुक्ता जी की  लेखनी को  इस गंभीर चिंतन से परिपूर्ण आलेख के लिए सादर नमन। कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य  # 252 ☆

वजूद औरत का… 

काश! इंसान समझ पाता

वजूद औरत का

वह अबला नारी नहीं

नारायणी है,दुर्गा है,काली है

समय आने पर कर सकती

वह शत्रुओं का मर्दन

छुड़ा सकती है उनके छक्के

और धारण कर सकती है

मुण्डों की माला

 

वह सबला है

असीम शक्तियां संचित हैं उसमें

कठिन परिस्थितियों में

पर्वतों से टकरा सकती

आत्मसम्मान पर आंच आने पर

वह अहंनिष्ठ पुरुष को

उसकी औक़ात दिखला सकती

 

बहुत कठिन होता है

विषम परिस्थितियों से

समझौता करना

दिल पर पत्थर रखकर जीना

सुख-दु:ख में सम रहना

सकारात्मक सोच रख

निराशा के गहन अंधकार को भेद

आत्मविश्वास का दामन थामे

निरंतर संघर्षशील रहना

यही सार ज़िंदगी का

 

यदि मानव इस राह को

जीवन में अपनाता

तो लग जाते खुशियों के अंबार

चलती अलमस्त मलय बयार

और ज़िंदगी उत्सव बन जाती

●●●●

© डा. मुक्ता

माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत, पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी

संपर्क – #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com, मो• न•…8588801878

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिंदी साहित्य – कविता ☆ “पूजा का फल…” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

श्री प्रतुल श्रीवास्तव 

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक श्री प्रतुल श्रीवास्तव, भाषा विज्ञान एवं बुन्देली लोक साहित्य के मूर्धन्य विद्वान, शिक्षाविद् स्व.डॉ.पूरनचंद श्रीवास्तव के यशस्वी पुत्र हैं। हिंदी साहित्य एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रतुल श्रीवास्तव का नाम जाना पहचाना है। इन्होंने दैनिक हितवाद, ज्ञानयुग प्रभात, नवभारत, देशबंधु, स्वतंत्रमत, हरिभूमि एवं पीपुल्स समाचार पत्रों के संपादकीय विभाग में महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन किया। साहित्यिक पत्रिका “अनुमेहा” के प्रधान संपादक के रूप में इन्होंने उसे हिंदी साहित्य जगत में विशिष्ट पहचान दी। आपके सैकड़ों लेख एवं व्यंग्य देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। आपके द्वारा रचित अनेक देवी स्तुतियाँ एवं प्रेम गीत भी चर्चित हैं। नागपुर, भोपाल एवं जबलपुर आकाशवाणी ने विभिन्न विषयों पर आपकी दर्जनों वार्ताओं का प्रसारण किया। प्रतुल जी ने भगवान रजनीश ‘ओशो’ एवं महर्षि महेश योगी सहित अनेक विभूतियों एवं समस्याओं पर डाक्यूमेंट्री फिल्मों का निर्माण भी किया। आपकी सहज-सरल चुटीली शैली पाठकों को उनकी रचनाएं एक ही बैठक में पढ़ने के लिए बाध्य करती हैं।

प्रकाशित पुस्तकें –ο यादों का मायाजाल ο अलसेट (हास्य-व्यंग्य) ο आखिरी कोना (हास्य-व्यंग्य) ο तिरछी नज़र (हास्य-व्यंग्य) ο मौन

आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “पूजा का फल… “ की समीक्षा)

☆ “पूजा का फल…” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव

जगतजायनी की पूजा का

फल केवल वह पाता है,

अपनी जन्मदायनी के प्रति

जो कर्तव्य निभाता है ।

 *

तेरे कटु वचनों से तेरी

  जन्मदायनी यदि रोए,

फिर तेरे भजनों से कैसे

जगतजायनी खुश होए ?

 *

तेरे दुर्व्यवहार से तेरी

जन्मदायनी दुख ढोए,

फिर तेरी सेवा से कैसे

जगतजायनी खुश होए ?

 *

तेरी तंगदिली से भूखी

जन्मदायनी यदि सोए,

कैसे तेरे भोग – प्रसाद से

जगतजायनी खुश होए ?

 *

वस्त्र अभाव में तेरी माता

यदि अपनी लज्जा खोए,

फिर तेरी लाल चुनरिया से

क्यों जगतजायनी खुश होए ?

 *

जगतजायनी की पूजा का

फल केवल वह पाता है,

अपनी जन्मदायनी के प्रति

जो कर्तव्य निभाता है ।

© श्री प्रतुल श्रीवास्तव 

संपर्क – 473, टीचर्स कालोनी, दीक्षितपुरा, जबलपुर – पिन – 482002 मो. 9425153629

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रचना संसार #24 – कविता – प्रेम पंथ… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ☆

सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम कविता प्रेम पंथ

? रचना संसार # 24 – कविता – प्रेम पंथ…  ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

प्रेम पंथ पर चलते जाओ,

पथिक मिलेगा तुम्हें किनारा।

सच्चे प्रेमी के हिय मे ही,

नित्य बहे शुचि प्रेमिल धारा।।

राधा सी तुम प्रीति करो अब,

मीरा सी बनके  दीवानी।

युगों युगों तक याद करेगी,

दुनिया तेरी अमर कहानी ।।

बनो श्याम से सखा जगत में,

नित्य बढ़ेगा मान तुम्हारा।

प्रेम पंथ पर चलते जाओ,

पथिक मिलेगा तुम्हें किनारा।।

 *

प्रीत अलौकिक अनुपम होती,

नव विश्वास जगाती मन में।

स्वर्ग सरिस सुख सागर मिलता,

खुशियां भर देती जीवन में।।

संयम सदा प्रेम में रखिए,

वेद ऋचा सा जीवन सारा।

प्रेम पंथ पर चलते जाओ,

पथिक मिलेगा तुम्हें किनारा।।

 *

अर्पण संजीवन बूटी है,

गंग धार सी निर्मल पावन।

भाव अमल हो सागर जैसे,

मर्यादा के पुष्प लुभावन।।

आत्मबोध में बसे नेह का,

मिले निबल को सदा सहारा।।

प्रेम पंथ पर चलते जाओ,

पथिक मिलेगा तुम्हें किनारा।।

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- [email protected], [email protected]

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #252 ☆ भावना के दोहे – नवरात्रि ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं भावना के दोहे – नवरात्रि)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 252 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे –  नवरात्रि ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

माँ तुम जननी जगत की, करती जग उद्धार।

कृपा आपकी बरसती, मिलता प्यार अपार।।

*

दीप ज्ञान का जल रहा, लगता माँ में ध्यान।

 राह कठिन है माँ करो, मेरा तुम कल्याण।।

*

ब्रह्मचारिणी  मातु को, करते सभी प्रणाम।

नौ देवी की नवरात्रि, द्वितीय तेरे नाम।।

*

तप करती  तपश्चारिणी, निर्जल निरहार।

हाथ जोड़कर पूजते, हो देवी अवतार।।

*

करना अंबे तुम दया, रखना मेरी लाज।

भक्तों के तुम कर रही, माता पूरे काज।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #234 ☆ कविता – समय… ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है कवितासमय आप  श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 234 ☆

☆ कविता – समय ☆ श्री संतोष नेमा ☆

अब निद्रा से जागो भाई

अवसर ने आवाज लगाई

*

बढ़ो खोलकर अपनी आँखें

समय स्वयं दे रहा दुहाई

*

कूद पड़ो इस धर्म युद्ध में

लेकर साहस की अँगड़ाई

*

दरवाजे पर शत्रु खड़ा है

लड़नी होगी बड़ी लड़ाई

*

पहचानो अपने दुश्मन को

कौन हितैषी समझो भाई

*

बहुरुपियों की भीड़ बहुत है

समझो तुम इनकी चतुराई

*

माफ न करता समय किसी को

हो ‘संतोष’ न फिर भरपाई

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 70003619839300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ चंदन ☆ श्री अनिल वमोरकर ☆

श्री अनिल वमोरकर 

☆ कविता – चंदन ☆ श्री अनिल वमोरकर ☆

चंदन सा शरीर

अनमोल सा श्वास

अज्ञानांधकार से

माटीमोल जीवन प्रवास….

 

लालच, ईर्षा, बैर

द्वेष, क्रोध को लेकर

असफल जीवन जी रहे

सार्थक कैसा ये जीवन प्रवास?…

 

श्वास रुपी वृक्ष

कम रह जाएंगे

अहसास तब होगा

जब शाश्वत आनंद न पाओंगे…

 

प्रेम, परोपकार

भाई-चारा, सौहार्द व्यवहार

यही है शाश्वत आनंद किल्ली

सोचो, समझो अभी भी जाओ सवंर…

 

©  श्री अनिल वामोरकर

अमरावती

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 222 ☆ गीत – बहुत दिखावा, जग है छइयाँ… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मानबाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंतउत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य प्रत्येक गुरुवार को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 222 ☆ 

गीत – बहुत दिखावा , जग है छइयाँ ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

बहुत दिखावा , जग है छइयाँ

माया रे संसार।

मुँह देखी में सिमट गया रे

सारा ममता , प्यार।

जीते जी ये करें ईर्ष्या

कपट, घृणा की छानी रे।

आँखों में भी सूख रहा अब

मम भावों का पानी रे।

 *

अदले का बदला है सारा

मोबाइल अब सार।

मुँह देखी में सिमट गया रे

सारा ममता , प्यार।

 *

कोठी, कनका , कार ही सब कुछ

रिश्तों की वह डोर कहाँ।

भाव प्रेम का कहाँ वो आँचल

बढ़ता ही अब शोर वहाँ।

 *

बढ़े आदमी सभी हुए अब

टूट रहे अब तार।

मुँह देखी में सिमट गया रे

सारा ममता , प्यार।

 *

भाग रहा जग चाहत मैं ही

अपने से भी दूर रहा।

दीपक बाती बन कब पाया

उड़ता हुआ कपूर रहा।

 *

छोटी-छोटी बात अहमवश

बढ़ीं बहुत तकरार।

मुँह देखी में सिमट गया रे

सारा ममता, प्यार।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – पीड़ा, जिजीविषा और मैं… ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – पीड़ा, जिजीविषा और मैं… ? ?

(1)

पीड़ा और वेदना

तीव्रता से जा मिलीं,

मुझे मथने लगीं,

माँ सुनाती थी कहानी

मेंढ़क-मेंढ़की

खौलते पानी में

खदबद सीजने लगे,

उनकी मदद को

दौड़े थे हरि..,

मेरे लिए

जिजीविषा बनकर

संग खड़े थे हरि..,

तीव्रता हाँफने लगी,

वेदना-पीड़ा

मुँह बाएँ खड़ी रहीं,

नकार नहीं सकता,

सो उनका अस्तित्व भी

पलता रहा,

पर ‘माइंड ओवर बॉडी’

का सूत्र लिए

जीवनभर मैं चलता रहा..!

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 3 अक्टूबर 2024 से नवरात्रि साधना आरम्भ होगी💥

🕉️ इस साधना के लिए मंत्र इस प्रकार होगा-

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

देवीमंत्र की कम से कम एक माला हर साधक करे🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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