हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत…. उत्तर मेघः ॥२.२२॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत …. उत्तरमेघः ॥२.२२॥ ☆

 

तां जानीथाः परिमितकथां जीवितं मे द्वितीयं

दूरीभूते मयि सहचरे चक्रवाकीम इवैकाम

गाढोत्कण्ठां गुरुषु दिवसेष्व एषु गच्चत्सु बालां

जातां मन्ये शिशिरमथितां पद्मिनीं वान्यरूपाम॥२.२२॥

 

सहचर बिना एक उसे चक्रवाकी

सदृश अल्पभाषी विरह वासिनी को

समझना मेरा ही हृदय दूसरा है

पड़ी दूर मुझसे प्रिया कामिनी को

प्रलंबित विरह के दिनो को बिताती

विकल वेदना से भरी यामिनी जो

मुझे भास होता है कि वह म्लान होगी

शिशिर से मथित ज्यो पद्यनी हो

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ लेखनी सुमित्र की#43 – दोहे ☆ डॉ राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)

✍  लेखनी सुमित्र की #43 – दोहे  ✍

पहर पहर दिन चढ़ गया, पकी समय की धूप ।

आंखों में अंजने लगा, सपनों का प्रारूप।

 

ग्रंथ, पिटक या पुस्तकें, कर न सके उद्धार ।

मुक्ति चाहिए तो भरो, अपने मन में प्यार ।।

 

प्यार नहीं करता कभी, प्रियतम को स्वच्छंद ।

यदि उसका ही वश चले, रखे नयन में बंद।।

 

धड़कन बढ़ती ह्रदय की, सुनने को पदचाप।

दीवारें ही गुन रही, मन का मौन प्रलाप ।।

 

पागल के पल भोगता, पल-पल है बेचैन।

कहां चैन की चांदनी, खोज रही है नैन ।।

 

आस उड़ी बन कर तुहिन, हत आशा अंगार।

दर्पण दरका तो हुआ, नष्ट भ्रष्ट श्रृंगार।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 42 – घाटी से उतरी नदी कोई… ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज पस्तुत है आपका अभिनव गीत “घाटी से उतरी नदी कोई … । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 42 ।। अभिनव गीत ।।

घाटी से उतरी नदी कोई…  ☆

टिप्पणियाँ शाम की किताब पर

ऐसी क्या छाप दीं उन्होंने

रीत चले धूप के भगौने

 

दूब के चुनिंदा मैदान सभी

हरयाले मोरपंख जैसे

घाटी से उतरी नदी कोई

संग लिये सीप-शंख ऐसे

 

जैसे परछाईं हो लम्बग्रीव

पसर गई है कौन-कोने

 

पेड़ मौन सभापति सरीखे

जड़वत हैं किंतु राह ताकते

पूछ रहे पक्षी घर लौटते

आपस में अपने अते-पते

 

झूठी मर्यादा को लाँघते

नकली व्यक्तित्व पड़े ढोने

 

पनिहारिन हवा सहम घाट पर

संकोचों को सहेज  पूछती

लौटेंगे अलगोजे, चरवाहे

गली-गली बालों को ऊँछती

 

चला गया सूरज अस्ताचल को

रक्तवर्ण लगाकर दिठौने

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

28-12-2020

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 88 ☆ विश्व कविता दिवस विशेष – जीवन – प्रवाह ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है। हमारा विनम्र अनुरोध है कि  प्रत्येक व्यंग्य  को हिंदी साहित्य की व्यंग्य विधा की गंभीरता को समझते हुए सकारात्मक दृष्टिकोण से आत्मसात करें। आज प्रस्तुत है आपका एक समसामयिक विषय पर आधारित व्यंग्य टूटी टांग और चुनाव। )  

विश्व कविता दिवस पर जीवन की कविता – – –

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 88

☆ विश्व कविता दिवस विशेष – जीवन – प्रवाह ☆

सबसे बड़ी होती है आग ,

और सबसे बड़ा होता है पानी ,

 

तुम आग पानी से बच गए ,

तो तुम्हारे काम की चीज़ है धरती ,

 

धरती से पहचान कर लोगे ,

तो हवा भी मिल सकती है ,

 

धरती के आंचल से लिपट लोगे ,

तो रोशनी में पहचान बन सकती है ,

 

तुम चाहो तो धरती की गोद में ,

पांव फैलाकर सो भी सकते हो ,

 

धरती को नाखूनों से खोदकर ,

अमूल्य रत्नों भी पा सकते हो ,

 

या धरती में खड़े होकर ,

अथाह समुद्र नाप भी सकते हो ,

 

तुम मन भर जी भी सकते हो ,

धरती पकडे यूं मर भी सकतेहो ,

 

कोई फर्क नहीं पड़ता ,

यदि जीवन खतम होने लगे ,

 

असली बात तो ये है कि ,

धरती पर जीवन प्रवाह चलता रहे ,

 

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #35 ☆ मैं स्वाभिमानी हूँ ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है एक सार्थक एवं अतिसुन्दर भावप्रवण कविता “मैं स्वाभिमानी हूँ ”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 35 ☆

☆ मैं स्वाभिमानी हूँ ☆ 

जिंदगी में सदा मुझको अंधेरे मिलें

उजाले के लिए मैं लड़ता रहा

पथ में बिछें थे कांटे मगर

मैं जख्मी होकर भी चलता रहा

 

तूफानों ने मुझको कई बार रोका

घर उजाड़ने काफी था एक झोंका

तिनके तिनके जोड़कर बनाया

था आशियाना

सजाया-संवारा जब भी मिला मौका

 

राह में एक खूबसूरत हमसफ़र मिलीं थीं

हाथ थामे संग संग

कुछ दूर चली थी

परंपराओं के, रूढियोंके बंधन

ना वो तोड़ पायी

बिखर गए सपने

पर वो लड़की भली थी

अपनों ने मुझको हमेशा रूलाया

ना दर्द बांटा, ना पास बिठाया

हिम्मत दी मुझको, जो थे पराये

खिलाया निवाला, गले से लगाया

 

मैंने अपने उसूलों  सें

समझौता नहीं किया

सत्य के मार्ग पर चला

झूठ का सहारा नहीं लिया

हो उनको मुबारक,

ये दौलत, ये महल सारे

मै स्वाभिमानी हूँ

मैंने भीख में कुछ नहीं लिया

#

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत…. उत्तर मेघः ॥२.२१॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत …. उत्तरमेघः ॥२.२१॥ ☆

 

तन्वी श्यामा शिखरीदशना पक्वबिम्बाधरौष्ठी

मध्ये क्षामा चकितहरिणीप्रेक्षणा निम्ननाभिः

श्रोणीभाराद अलसगमना स्तोकनम्रा स्तनाभ्यां

या तत्र स्याद युवतीविषये सृष्टिर आद्यैव धातुः॥२.२१॥

 

छरहरी, भरे देह की, पूर्ण यौवन

रदनपंक्ति जिसकी गँसी कुंद कलि सी

पके बिंब फल से, अधर सुगढ़ जिसके

चकित वनमृगी सी, सरल दृष्टि जिसकी

गहन नाभि, कटि क्षीण, औ” पीन स्तन

नितंबिनि, विनम्रा, अलसगामिनी जो

दिखे युवतियों बीच ऐसी कोई ज्यों

विधाता की मानो प्रथम नारि कृति हो

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 46 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 46 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 46) ☆ 

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>  कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

☆ English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 46☆

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

सुई की फितरत तो बस

सिर्फ चुभने  की  ही  थी

क्या साथ मिला धागे का,

बस फितरत ही बदल गई!

 

The nature of needle

was  just  to  prick…

In the company of thread

Its attribute got changed!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

जैसा भी  हूँ  खुद  के

लिये  बेमिसाल  हूँ  मैं…

किसी को भी हक नहीं

दिया कि मेरी परख करे…!

 

Whatever I  am, I  am

unmatched for myself…

Haven’t  given  anyone

the right to judge me..!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

इश्क़  करने  से  पहले

आ बैठ फैसला कर लें…

सुकूँ किसके हिस्से होगा,

बेक़रारी किसके हिस्से…!

 

Before  falling  in  the  love,

Let’s sit together and decide

Who’ll be entitled to solace

who’ll share restlessness!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

फिर  मुझे  कुछ  ऐसे

भी  आज़माया गया

पंख  काटे  गए  और

आसमाँ में उड़ाया गया…

 

Then I was also

tried  like  this…

With wings chopped,

made to fly in the sky

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 47 ☆ मुक्तिका ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताeह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी  द्वारा रचित  ‘मुक्तिका’। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 47 ☆ 

☆ मुक्तिका ☆ 

*

कहाँ गुमी गुड़धानी दे दो

किस्सोंवाली नानी दे दो

 

बासंती मस्ती थोड़ी सी

थोड़ी भंग भवानी दे दो

 

साथ नहीं जाएगा कुछ भी

कोई प्रेम निशानी दे दो

 

मोती मानुस चून आँख को

बिन माँगे ही पानी दे दो

 

मीरा की मुस्कान बन सके

बंसी-ध्वनि सी बानी दे दो

*

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२७-३-२०२०

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 79 – गौरैया दिवस विशेष – संकल्प से सिद्धि☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”


(आज  “साप्ताहिक स्तम्भ -आत्मानंद  साहित्य “ में प्रस्तुत है  श्री सूबेदार पाण्डेय जी की  गौरैया दिवस पर एक भावपूर्ण रचना  “गौरैया दिवस । ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 79 ☆ गौरैया दिवस विशेष – संकल्प से सिद्धि ☆

नील गगन की छांव में,

सघन बृक्ष की छांव में।

वो तिनका तिनका चुनती थी,

सुन्दर नीड़ बनाने का

वो ताना बाना बुनती थी।

दिनभर कठिन परिश्रम करते,

हार नहीं मानी थी वह।

अपना घर बार बसाने का,

दृढनिश्चय मन में ठानी थी वह।।1।।

 

जाड़े वर्षा  में भीगी थी,

गर्मी तन मन झुलसाती थी।

पर राह डिगा न सकी उसकी,

सुन्दर घोंसला बनाती थी।

सपनों से प्यारा नीड़ देख,

वह मन ही मन मुस्काई थी।

बैठ घोंसलों के भीतर ,

वह राग-विहाग सुनाई थी।।2।।

 

उस नीड़ के भीतर उसने दो,

बच्चे सुंदर बच्चे जाये थे।

उन्मुक्त गगन में उड़ने की,

ले चाह पंख फैलाए थे।

पर हाय विधाता! क्या लिखा भाग्य में,

ना जाने कैसा दिन आया।

नीड़ उजाड़ा बच्चे मारा,

बिल्ले ने तांडव दिखलाया।

पंख नोच खा गया उन्हें,

फिर खों-खों करता चिल्लाया।।३।।

 

घर चमन उजड़नें की पीड़ा,

उसके मन में समाई थी ।

वो  छोटी नीरीह प्राणी ,

कुछ भी ना कर पाई थी।

बच्चों की अल्पायु मौत पर,

उसकी ममता रोई थी।

कुछ करना बस में न था उसके,

वह अपनी सुध बुध खोइ थी।

उन दुखी पलों की बन साक्षी ,

रो रो कर सांझ बिहान किया,

टूटे नीड़ से ममता छूटी,

टूटा दिल ले प्रस्थान किया।4।।

 

उस निरीह प्राणी को देखो,

उसका एक ही नारा है।

संकल्प से सिद्धि मिलती है,

सबका यही सहारा है।

जाते जाते संदेश दे गई,

उम्मीद का दामन थाम लिया।

उन्मुक्त गगन में उड़ने का ,

उसने नव संकल्प लिया।

दुख आता है दुख जाता है,

पर हिम्मत अपनी मत हारो।

उम्मीद का दामन मत छोड़ो

फिर उडो़ गगन में पंख पसारो।

 

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत…. उत्तर मेघः ॥२.२०॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत …. उत्तरमेघः ॥२.२०॥ ☆

 

गत्वा सद्यः कलभतनुतां शीघ्रसंपातहेतोः

क्रीडाशैले प्रथमकथिते रम्यसानौ निषण्णः

अर्हस्य अन्तर्भवनपतितां कर्तुम अल्पाल्पभासं

खद्योतालीविलसितनिभां विद्युदुन्मेषदृष्टिम॥२.२०॥

तब हस्ति शावक सदृश रूप धर मेघ

रुकते कथित रम्य क्रीड़ा शिखर पर

खद्योत दल सम प्रभा क्षीण विद्युत

नयन से निरखना भवन में पहुंचकर

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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