हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज # 90 ☆ भावना के दोहे ☆ डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं   “भावना के दोहे। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 90 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे ☆

विनती प्रभु वर आपसे,

करते बारंबार।

कोरोना के कहर से,

मुक्त करो संसार।।

 

महावीर अब कुछ करो,

सही न जाए पीर।

धीरे धीरे टूटता,

इंसानों का धीर।।

 

समाधान अब चाहिए,

होगा कभी निदान।

धरती देती जा रही,

इंसानों का दान।।

प्राणों की रक्षा करो,

सुनो वीर हनुमान

लाओ तुम संजीवनी ,

बचे सभी के प्राण।।

 

प्रत्याशा अब टूटती,

बची नहीं है आस।

पल पल में अब छूटती,

इंसानों की सांस।।

 

प्रत्याशा मन में रखो,

जीतेंगे संग्राम।

कोरोना के काल में,

जपा करो तुम राम।।

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष # 80 ☆ संतोष के दोहे ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.    “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं विशेष भावप्रवण कविता  “अपनी-अपनी जान बचाओ। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 80 ☆

☆ अपनी-अपनी जान बचाओ ☆

अपनी-अपनी जान बचाओ

पहले यह सबको समझाओ

 

कोरोना ने पैर पसारा

आत्मबल ही एक सहारा

मास्क मुँह पर सदा लगाओ

अपनी-अपनी जान बचाओ

 

गीता ने जो हमें सिखाया

कोरोना ने कर दिखलाया

धन-दौलत पर मत इतराओ

अपनी-अपनी जान बचाओ

 

कोई नहीं है संगी साथी

छूट गए पीछे बाराती

धीरज-धर्म सदा अपनाओ

अपनी-अपनी जान बचाओ

 

पल भर में क्या से क्या होता

क्या लाये थे.? किस पर रोता

अहम छोड़ कर अब झुक जाओ

अपनी-अपनी जान बचाओ

 

एक आस विस्वास वही है

जीवन की हर सांस वही है

प्रभु चरणों में शीश झुकाओ

अपनी-अपनी जान बचाओ

 

दो गज दूरी बहुत जरूरी

रखो समय के साथ सबूरी

जीवन में कुछ पेड़ लगाओ

अपनी-अपनी जान बचाओ

 

दिल में गर “संतोष” रहेगा

जीवन में तब जोश रहेगा

मानवता का धर्म निभाओ

अपनी-अपनी जान बचाओ

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत…. उत्तर मेघः ॥२.४३॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत …. उत्तरमेघः ॥२.४३॥ ☆

 

श्यामास्व अङ्गं चकितहरिणीप्रेक्षणे दृष्टिपातं

वक्त्रच्चायां शशिनि शिखिनां बर्हभारेषु केशान

उत्पश्यामि प्रतनुषु नदीवीचिषु भ्रूविलासान

हन्तैकस्मिन क्वचिद अपि न ते चण्डि सादृश्यम अस्ति॥२.४३॥

श्यामालता मे सुमुखि अंग की कांति

हरिणी नयन मे नयन खोजता हूं

मुख चंद्र में बर्हि में केश का रूप

जल उर्मि मे बंक भ्रू सोचता हॅू

पर खेद है मैं किसी एक में भी

तुम्हारी सरसता नहीं पा सका हूं

तरसता रहा हॅू सदा प्रिय परस को

तुम्हारे दरश भी नहीं पा सका हॅू

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – पहेली ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – पहेली ?

वह कहती है ‘रचो’,

दृश्य से दृष्टि उभरती ह़ै,

अक्षरा झरने लगती है..,

तुम बिखेरते हो रंग,

छटाएँ घटती-बढ़ती हैं,

सृष्टि सिरजने लगती है..,

हम तो लेखनी के वश में हैं,

उसकी कही लिखते हैं हर बार,

पर एक बात बताओ,

यह पहेली बुझाओ,

तुम किसके वश में हो

…..सिरजनहार ?

# विश्वास रखें, कोविड हारेगा, मनुष्य जीतेगा #

©  संजय भारद्वाज

( रात्रि 3:12 बजे, 13.5.21)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

9890122603

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ सकारात्मक कविता – आभार कोविड ! ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है। आज प्रस्तुत है कोविड की पीड़ा से निकलकर आई एक सकारात्मक कविता  आभार कोविड!)  

☆ सकारात्मक कविता ☆ आभार कोविड ! ☆

बच्चे रोने नहीं दे रहे हैं

इन दिनों,

भल भला के

दहाड़ मार के

रोना चाहता हूं,

कोविड का कमाल

कि समुद्र से

सोंधी-सोंधी

फूली रोटी भेज रही है मां,

अस्पताल से लौटने पर,

नीम की ताजी हवा

आ आकर जगा जाती है,

बादल ढोल मंजीरा

लेकर घर के सामने

डेरा डाले हुए हैं,

मंदाकिनी और अलकनंदा

उछाल मारकर

घुस आयी है सांसों

के बसेरे में,

गिलहरी दौड दौड़

सिखा रही है

पुल बनाने की तकनीक,

दुआओं का समंदर

इतना उमड़ आया है

इन दिनों,

प्रणाम करता हूं

उन प्रार्थनाओं से

उठे पवित्र हाथों को

 

# क़ोविड से जीतने की खुशी में #

© जय प्रकाश पाण्डेय

११.०५.२०२१

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ सकारात्मक कविता – पॉज़िटिव रिपोर्ट – नेगेटिव रिपोर्ट ! ☆ श्री हेमन्त बावनकर

हेमन्त बावनकर

☆ सकारात्मक कविता – पॉज़िटिव रिपोर्ट – नेगेटिव रिपोर्ट ! ☆ हेमन्त बावनकर 

जीवन में अब तक

सीखा भी यही था

और

बच्चों को सिखाया भी यही था –

“सकारात्मकता का पाठ”

सकारात्मकता – पोजिटिविटी !

प्रोटोकॉल !

किन्तु,

इन सबको मानने के बाद भी

ताश के पत्तों के महल की मानिंद

काँप उठती है ज़िंदगी

जब

आपकी जिंदगी के

प्रोटोकॉल को तोड़ते हुए

आपकी रिपोर्ट आती है

‘कोरोना पॉज़िटिव’

 

आप हो जाते हैं

किंकर्तव्यमूढ़

सब कुछ लगने लगता है

भयावह

जैसे बस

यहीं तक था सफर!

 

सबसे अधिक डराता है

चौथा स्तम्भ

चीख चीख कर

किसी हॉरर फिल्म की तरह

और

हम ढूँढने लगते हैं

उस भयावह भीड़ में

ऑक्सीजन, वेंटिलेटर और शमशान में

पंक्तिबद्ध अपने अस्तित्व को।

 

डरिए मत

यह समय भी निकल जाएगा।

जंगल की आग में जले ठूंठ में भी

अंकुरित होती हैं पत्तियाँ

उन्हें जीवित रखिए।

 

जो सकारात्मक बातें

बच्चों को अब तक सिखाते आए थे

अब उसी शिक्षा को

स्वयं में जीवित रखिए।

 

अनिष्ट की मत सोचिए

यदि

खबर न बता कर आती तो?

“होइहि सोई जो राम रचि राखा”।

 

अपने कमरे और मन की

खिड़की खोलिए

एक लंबी साँस लीजिये

संयमित चिकित्सा लीजिये

आइसोलेशन में

जीवन के उजले पक्ष में

आत्मसाक्षात्कार करिए

सकारात्मक योजनाएँ बनाइये

कमरे के बाहर

बेहद खूबसूरत कायनात

और

आपके अपने ही

आपकी राह देख रहे हैं।

देखना

अगली रिपोर्ट जरूर

“नेगेटिव” ही आएगी।

# स्वयं पर विश्वास रखिये – सकारात्मक रहिये #

© हेमन्त बावनकर, पुणे 

26 अप्रैल 2021

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य # 90 – कुछ दोहे  … हमारे लिए ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

वरिष्ठ साहित्यकार एवं अग्रज श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी स्वास्थ्य की जटिल समस्याओं से  सफलतापूर्वक उबर रहे हैं। इस बीच आपकी अमूल्य रचनाएँ सकारात्मक शीतलता का आभास देती हैं। इस कड़ी में प्रस्तुत है आपके कुछ दोहे  … हमारे लिए। )

☆  तन्मय साहित्य  # 90  ☆

 ☆ कुछ दोहे  … हमारे लिए ☆

 इधर-उधर सुख ढूँढते, क्यों भरमाये जीव।

बच्चों के सँग बैठ ले, जो है सुख की नींव।।

 

लीलाएं शिशु की अजब, गजब हास्य मुस्कान।

बिरले लोगों को मिले, शैशव सुख वरदान।।

 

शिशु से निश्छल प्रेम ही, है ईश्वर से प्रीत।

आनंदित तन मन रहे, सुखद मधुर संगीत।।

 

रुदन हास्य करुणा मिले, रस वात्सल्य अपार।

नवरस का आनंद है, शैशव नव त्योहार।।

 

स्नेह थपकियाँ मातु की, कुपित प्रेम फटकार।

शिशु अबोध भी जानता, ठंडे गर्म प्रहार।।

 

फैलाए घर आँगने, खेल खिलौने रोज।

नाम धाम औ’ काम की, नई-नई हो खोज।।

 

जातिभेद छोटे-बड़े, पंथ धर्म से दूर।

कच्ची पक्की कुट्टियाँ, बाल सुलभ अमचूर।।

 

बच्चों की तकरार में, जब हो वाद विवाद।

सहज मिलेंगे सूत्र नव, अनुपम से संवाद।।

 

बच्चों में हमको मिले, सकल जगत का प्यार।

बालरूप ईश्वर सदृश, दिव्य रत्न उपहार।।

 

सूने जीवन में भरे, रंग बिरंगे चित्र।

बच्चों सँग बच्चे बनें, उन्हें बनाएं मित्र।।

 

भारी भरकम न रहें, हल्का रखें स्वभाव।

पत्थर पानी में डुबे, रहे तैरती नाव।।

 

बुद्धि विलास बहुत हुआ,तजें कागजी ज्ञान।

सहज सरल हो सीख लें, बच्चों सी मुस्कान।।

 

अधिकाधिक दें हम समय, दें बच्चों पर ध्यान।

बढ़ते बच्चों से बढ़े, मात-पिता की शान।।

 

ज्ञानी ध्यानी संत जन, सब को सुख की चाह।

बस बच्चे बन जाइए, सुख की सच्ची राह।।

 

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 41 ☆ तू क्या बला है ए जिंदगी ☆ श्री प्रह्लाद नारायण माथुर

श्री प्रहलाद नारायण माथुर

( श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी अजमेर राजस्थान के निवासी हैं तथा ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से उप प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। आपकी दो पुस्तकें  सफर रिश्तों का तथा  मृग तृष्णा  काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं तथा दो पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा  जिसे आप प्रति बुधवार आत्मसात कर सकेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता ‘तू क्या बला है ए जिंदगी। ) 

 

Amazon India(paperback and Kindle) Link: >>>  मृग  तृष्णा  

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 41 ☆

☆ तू क्या बला है ए जिंदगी 

 

कितने राज छुपा रखे है तूने ए जिंदगी,

आज मुझे किस मोड़ पर पहुंचा दिया तूने ए जिंदगी ||

दो घड़ी खुशी से गुजारने की तमन्ना थी,

खुशी से पहले ग़मों को पहुंचा दिया तूने ए जिंदगी ||

दो पल का सब्र तो कर लेती,

क्या पहले कम थे जो और ग़म दे दिए तूने ए जिंदगी ||

सुना था हर रात के बाद एक नई सुबह होती है,

नई सुबह को भी अंधेरी रात में पहुंचा दिया तूने ए जिंदगी ||

एक सीधा सा जीवन ही तो जीना चाहा था,

सुलझे हुए जीवन को उलझा कर रख दिया तूने ए जिंदगी ||

अब तो शाम होने को आई ए जिंदगी,

जाते-जाते तो बतला जा आखिर तू बला क्या है ए जिंदगी ||

 

© प्रह्लाद नारायण माथुर 

8949706002
≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ नववर्ष विशेष – आओ अपना नववर्ष मनाएं ☆ श्री आर के रस्तोगी

श्री आर के रस्तोगी

☆ नववर्ष विशेष – आओ अपना नववर्ष मनाएं ☆ श्री आर के रस्तोगी☆ 

आओ हम सब मिलकर अपना नववर्ष मनाएं।

घर घर हम सब मिलकर नई बंदनवार लगाए।

 

करे संचारित नई उमंग घर घर सब हम,

फहराए धर्म पताका अपने घर घर हम।

करे बहिष्कार पाश्चातय सभ्यता का हम,

अपनी सभ्यता को आज से अपनाए हम।

आओ सब मिलकर नववर्ष का दीप जलाए

आओ हम सब मिलकर अपना नववर्ष मनाए,

घर घर हम सब मिलकर नई बंदनवार लगाए।।

 

क्या कारण है हम अपना नववर्ष नहीं मनाते है,

केवल पाश्चातय सभ्यता का हम नववर्ष मनाते है।

रंग जाते है नई सभ्यता मे भूल गए अपने को।

रहे गुलाम अंग्रेजो के भूल गए अपने सपनों को।

आओ सब मिलकर इस सभ्यता की होली जलाए,

करे बहिष्कार इन सबका अपना नववर्ष मनाए।

आओ घर घर नववर्ष का हम सब दीप जलाएं।।

 

© श्री आर के रस्तोगी

गुरुग्राम

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत…. उत्तर मेघः ॥२.४२॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत …. उत्तरमेघः ॥२.४२॥ ☆

 

शब्दाख्येयं यदपि किल ते यः सखीनां पुरस्तात

कर्णे लोलः कथयितुम अभूद आननस्पर्शलोभात

सो ऽतिक्रान्तः श्रवणविषयं लोचनाभ्याम अदृष्टस

त्वाम उत्कण्ठाविरचितपदं मन्मुखेनेदम आह॥२.४२॥

 

कथन योग्य अपनी सरल बात भी जो

कि मुख स्पर्ष हित कान मे था बताता

अब श्रवण और दृष्टि से दूर तव प्राण

मम मुख व्यथा तुम्हें अपनी सुनाता

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares