हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अभिशप्त  ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि –अभिशप्त ?

शरीर के साथ

धू-धू करके

जल रही थीं

गोबरियाँ,

उपले,

लकड़ियाँ

और

साथ ही

इन सबमें विचरते

असंख्य जीव..,

पार्थिव के सच्चे प्रेमी,

मुर्दा के साथ

ज़िंदा जलने को

अभिशप्त..!

सोचता हूँ

त्रासदियों को

रोज़ ख़बर बनानेवाला

मीडिया,

रोजाना के इन

भीषण अग्निकांडों पर

अपनी चुप्पी कब तो़ड़ेगा!

©  संजय भारद्वाज

2.10.2007

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

9890122603

≈ श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 41 – फूल ये अपराजिता के… ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज पस्तुत है आपका अभिनव गीत “फूल ये अपराजिता के … । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 41 ।। अभिनव गीत ।।

☆ फूल ये अपराजिता के…  ☆

फूल ये अपराजिता के

आ गिरें ज्यों अश्रु

टूटी खाट पर,बूढ़े पिता के

 

बहुत गहरे और

नीले प्रश्न गोया

शाम के कुहरिल

प्रहर मैं कृष्ण हों, या

 

अडिग निष्ठावान

जैसे प्रेम में हों

दिल्ली -पति

संयोगिता के

 

समय की ताजा

इन्हीं पगडंडियों के

आढ़ती बैठे हुये

मंडियों के

 

मोल-भावों में पड़ा

सौन्दर्य सोचे

हो गये सामान हम

प्रतियोगिता के

 

नील से उतरी

लगी सम्भाविता के

आँख की कोरों

हृदय से गर्विता के

 

हाथ में सूखे हुये

रख कर निवाले,

लगा दिन भर की

खुशी, हों वंचिता के

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

02-12-2-20

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #34 ☆ डर ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है महिला दिवस पर सार्थक एवं अतिसुन्दर भावप्रवण कविता “डर ”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 34 ☆

☆ डर ☆ 

वो कुछ कहना चाहता है

उसके अंदर का

काव्य का सागर

बहना चाहता है

उसके पास शब्दों कीं

कमी नहीं है

उसकी सृजन क्षमता

थमी नहीं है

उसके सीने में

अंगारों की तपिश है

उसके चेहरे पर

अनोखी कशिश है

उसकी आंखों में

दर्द भरा तूफान है

उसकी कांपती पलकों में

भयभीत इन्सान है

उसकी जिव्हा पर

नये तराने है

उसके होंठों पर

मुक्ति के फसाने है

वो जानता है-

वो बोलेगा तो

कहीं ना कहीं

ज्वालामुखी फूट पड़ेगा

उबलता हुआ लावा

शायद

नया इतिहास गढ़ेगा

फिर- सामंतवादी लोग

उसकी रचनाओं को जलायेंगे

उसके उपर निराधार

आरोप लगायेंगे

इसलिए-

वो कुछ लिखने से

वो कुछ कहने से

डरता है

सच्चा कलमकार

होकर भी

एकांतवास में

गुमसुम रहता है

वो आजकल डरकर

बस

चुप है,

चुप है

और

चुप है.

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत…. उत्तर मेघः ॥२.१३॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत …. उत्तरमेघः ॥२.१३॥ ☆

 

वासश चित्रं मधु नयनयोर विभ्रमादेशदक्षं

पुष्पोद्भेदं सह किसलयैर भूषणानां विकल्पम

लाक्षारागं चरणकमलन्यासयोग्यं च यस्याम

एकः सूते सकलम अबलामण्डनं कल्पवृक्षः॥२.१३॥

 

आराधना में निरत या मेरी भाँति

विरहिणी व्यथा भावना में दिखाती

या पूंछती बंदिनी सारिका से

” प्रिये क्या कभी स्वामि की याद आती ? “

मधुर भाषिणी लाड़ली तुम बहुत हो

उन्हें क्या कभी जा सकोगी भुलाई ?

यों भाव भीनी दशा में तुम्हें मेघ

आलोक में वह पड़ेगी दिखाई .

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 45 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 45 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 45) ☆ 

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>  कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

☆ English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 45☆

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

सच को तमीज ही

नहीं बात करने की,

झूठ  को  तो  देखो

कितना मीठा बोलता है…

 

Truth  doesn’t  even

have the manner to talk

Just look at the  lie,

how sweetly it talks…

 ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

हम तो फूलों की तरह,

अपनी आदत से बेबस हैं

तोड़ने वाले को भी,

खुशबू की सजा देते हैं…

 

Helpless with the habit,

Like the flowers, I even

penalise the pluckers

With the fragrance only…!

 ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

अगर दर्द ने मज़बूत, तो

डर ने बहादुर बना दिया

बार-बार  दिल  टूटने से

अड़चनें सारी जाती रहीं…

 

If the pains made me strong

Then  fear  turned me brave,

Repeated  heartbreaks  just

removed all the impediments

 ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

शुक्र कर ये दिल तेरे

लिए सिर्फ धड़कता है

गर बोलने लगता तो

क़यामत ही आ जाती…

 

Thankfully, this heart

Just only beats for you

If only it could speak,

Doomsday would come

 ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈  Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 46 ☆ मुक्तिका ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताeह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी  द्वारा रचित  ‘मुक्तिका’। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 46 ☆ 

☆ मुक्तिका ☆ 

 

अर्णव-अरुण का सम्मिलन

जिस पल हुआ वह खास है

 

श्री वास्तव में है वहीं

जहँ हर हृदय में हुलास है

 

श्रद्धा जगत जननी उमा

शंकारि शिव विश्वास है

 

सद्भाव सलिला है सुखद

मालिन्य बस संत्रास है

 

मिल गैर से गंभीर रह

अपनत्व में परिहास है

 

मिथिलेश तन नृप हो भले

मन जनक तो वनवास है

 

मीरा मनन राधा जतन

कान्हा सुकर्म प्रयास है

***

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२६-३-२०२०

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 78 – मैं श्रमिक हूँ ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”


(आज  “साप्ताहिक स्तम्भ -आत्मानंद  साहित्य “ में प्रस्तुत है  श्री सूबेदार पाण्डेय जी की एक भावपूर्ण रचना  “मैं श्रमिक हूँ । ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 78 ☆ मैं श्रमिक हूँ ☆

मैं श्रमिक हूं इस धरा पर, कर्म ही पूजा है मेरी।

श्रम की‌ मै करता इबादत, श्रम से है पहचान मेरी।

 

श्रमेव जयते इस धरा पर, लिख‌ रहा मै नित कहानी

तोड़ता पत्थर का सीना, दौड़ता नहरों में पानी।

काट करके पत्थरों को‌,  राह बीहड़ में बनाता।

स्वश्रम की साधना कर, दशरथ मांझी मैं कहाता ।। मैं श्रमिक हूं।।1।।

 

श्रम के बल पे बाग में, पुष्प भी मैं ‌ही‌ खिलाता ।

श्रम के बल पे खेत में, फल अन्न भी मैं ‌उगाता।

सड़क भी मैं ‌ही‌ बनाता,‌बांध भी मैं ही बनाता ।

रत निरंतर कार्य में, मन की‌ सुख शांति मैं पाता।। मैं श्रमिक हूं।।2।।

 

पेट भरता दूसरों का, मैं सदा भूखा रहा।

छांव दे दी दूसरों को, धूप में जलता रहा।

करके सेवा ‌दूसरों की, फूल सा खिलता  रहा।

देखता संतुष्टि सबकी, पुलक मन होता रहा ।। मै श्रमिक हूं।।3।।

 

श्रम अथक मैंने किया, मोल मैं पाया नहीं ।

रात दिन मेहनत किया, किन्तु पछताया नहीं।

झोपड़ों में दिन बिताता, गरीबी में पलता रहा।

होता रहा शोषण निरंतर, दिल मेरा जलता रहा।

पर जमाने की नजर ना जाने, क्यूं मुझे लग गई।

लुट गई मेरी श्रम की पूंजी, हाथ मैं मलता रहा।। मैं श्रमिक हूं।।4।।

 

अब बेबसी दुश्वारियां, पहचान मेरी बन गई।

हाथ के खाली कटोरे, मेरी कहानी कह रहे।

बेबसी लाचारी है,  भूख है बीमारी है।

मेरी विवशता देख कर, हंसती दुनिया सारी है।

अशिक्षा अज्ञानता की, पांव में बेड़ी पड़ी है।

कोसता हूँ भाग्य को मैं, आज दुर्दिन घड़ी है ।। मैं श्रमिक हूं।।5।।

 

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत…. उत्तर मेघः ॥२.१२॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत …. उत्तरमेघः ॥२.१२॥ ☆

 

मत्वा देवं धनपतिसखं यत्र साक्षाद वसन्तं

प्रायश चापं न वहति भयान मन्मथः षट्पदज्यम

सभ्रूभङ्गप्रहितनयनैः कामिलक्ष्येष्व अमोघैस

तस्यारम्भश चतुरवनिताविभ्रमैर एव सिद्धः॥२.१२॥

 

गये सूज होंगे विरह में मेरे नित्य

अविकल रुदन से नयन उस प्रिया के

होंगे अधर श्याम , जलते हृदय की

व्यथित श्वांस गति की उष्णता से

कर से हटाते हुये श्याम अलकें

प्रलंबित गिरीं घिरीं अपने वदन से

दिखेगी मेरी प्रियतमा , मेघ तुमको

वहाँ ज्यों मलिन इंदु तव आवरण से

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 33 ☆ आदमी आदमी को करे प्यार जो ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा  एक भावप्रवण कविता  “आदमी आदमी को करे प्यार जो“।  हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 33 ☆

☆ आदमी आदमी को करे प्यार जो 

आदमी आदमी को करे प्यार जो, तो धरा स्वर्ग हो मनुज भगवान हो

घुल रहा पर हवा में जहर इस तरह, भूल बैठा मनुज धर्म ईमान को

राह पर चल सके विश्व यह इसलिये, दृष्टि को दीप्ति दो प्रीति को प्राण दो

 

रोज दुनियां बदलती चली जा रही,  और बदलता चला जा रहा आदमी

आदमी तो बढ़े जा रहे सब तरफ, किन्तु होती चली आदमियत कीकमी

आदमी आदमी बन सके इसलिये, ज्ञान के दीप को नेह का दान दो

 

हर जगह भर रही गंध बारूद की, नाच हिंसा का चलता खुला हर गली

देती बढ़ती सुनाई बमो की धमक, सीधी दुनियां बिगड़ हो रही मनचली

द्वार विश्वास के खुल सकें इसलिये, मन को सद्भाव दो सच की पहचान दो

 

फैलती दिख रही नई चमक और दमक, फूटती सी दिखती सुनहरी किरण

बढ़ रहा साथ ही किंतु भटकाव भी, प्रदूषण घुटन से भरा सारा वातावरण

जिन्दगी जिन्दगी जी सके इसलिये स्वार्थ को त्याग दो नीति को मान दो

 

प्यास इतनी बढ़ी है अचानक कि सब चाहते सारी गंगा पे अधिकार हो

भूख ऐसी कि मन चाहता है यही हिमालय से बड़ा खुद का भण्डार हो

जी सकें साथ हिल मिल सभी इसलिये मन को संतोष दो त्रस्त हो त्राण दो

 

देश है ये महावीर का बुद्ध का, त्याग तप का जहां पै रहा मान है

बाह्य भौतिक सुखो से अधिक आंतरिक शांति आनंद का नित रहा ध्यान है

रह सकें चैन से सब सदा इसलिये त्याग अभिमान दो त्याग अज्ञान दो

 

आदमी के ही हाथों में दुनियां है ये आदमी के ही हाथो में है उसका कल

जैसा चाहे बने औ बनाये इसे स्वर्ग सा सुख सदन या नरक सा विकल

आने वालो और कल की खुशी के लिये युग को मुस्कान का मधुर वरदान दो

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – संग्रह ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – संग्रह ?

संग्रह दोनों ने किया,

उसका संग्रह,

भीड़ जुटाकर भी

उसे अकेला करता गया,

मेरे संग्रह ने

एकाकीपन

पास फटकने न दिया,

अंतर तो रहा यारो!

उसने धनसंग्रह किया

मैंने जनसंग्रह किया!

 

©  संजय भारद्वाज

रविवार 16 अप्रैल 2017, प्रातः 8:16 बजे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

9890122603

≈ श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares