हिन्दी साहित्य – कविता ☆ जीवन की रीत ☆ डॉ कामना तिवारी श्रीवास्तव

डॉ कामना तिवारी श्रीवास्तव

(आज  प्रस्तुत है  डॉ कामना तिवारी श्रीवास्तव जी  की  एक भावप्रवण रचना जीवन की रीत । 

 ☆ कविता ☆ जीवन की रीत ☆ डॉ कामना तिवारी श्रीवास्तव ☆ 

जो किया तुमने ठीक किया

मुस्कुराता जीवन तुम्हारा

तुमसे गिला नहीं है हमारा

दुख नहीं मुझे तुमसे मिले हादसों से

क्योंकि जीवन की रीत

अभी-अभी ही देखी है

मुस्कुराता चेहरा ठीक तुम्हारी तरह

उसकी अभी एक तस्वीर और देखी है

© डॉ कामना तिवारी श्रीवास्तव

मो 9479774486

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत…. उत्तर मेघः ॥२.११॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत …. उत्तरमेघः ॥२.११॥ ☆

 

अक्षय्यान्तर्भवननिधयः प्रत्यहं रक्तकण्ठैर

उद्गायद्भिर धनपतियशः किंनरैर यत्र सार्धम

वैभ्राजाख्यं विबुधवनितावारमुख्यसहाया

बद्धालापा बहिरुपवनं कामिनो निर्विशन्ति॥२.११॥

सहचर बिना एक उसे चक्रवाकी

सदृश अल्पभाषी विरह वासिनी को

समझना मेरा ही हृदय दूसरा है

पड़ी दूर मुझसे प्रिया कामिनी को

प्रलंबित विरह के दिनो को बिताती

विकल वेदना से भरी यामिनी जो

मुझे भास होता है कि वह म्लान होगी

शिशिर से मथित ज्यो पद्यनी हो

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – समानता ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – समानता ?

यह अनपढ़,

वह कथित लिखी पढ़ी,

यह निरक्षर,

वह अक्षरों की समझवाली,

यह नीचे जमीन पर,

वह बैठी कुर्सी पर,

यह एक स्त्री,

वह एक स्त्री,

इसकी आँखों से

शराबी पति से मिली पिटाई

नदिया-सी प्रवाहित होती,

उसकी आँखों में

‘एटिकेटेड’ पति की

अपमानस्पद झिड़की,

की बूंद बूंद एकत्रित होती,

दोनों ने एक दूसरे को देखा,

संवेदना को

एक ही धरातल पर अनुभव किया,

बीज-सा पनपा मौन का अनुवाद

और अब, उनके बीच वटवृक्ष-सा

फैला पड़ा था मुख्य संवाद!

©  संजय भारद्वाज

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

9890122603

≈ श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज # 85 ☆ भावना के दोहे  ☆ डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं   “भावना के दोहे । ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 85 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे  ☆

पिया मिलन की राह में,

रोज करें  शृंगार।

अब तक वो आया नहीं,

ना चिट्ठी ना तार ।।

 

उसको अब लगने लगा,

अब जीना  दुश्वार।

तुझ बिन अब जीवन नहीं,

करना है अभिसार।।

 

छबि बसंत की दिख रही,

आया है त्यौहार।

फूलों से अब सज रहा,

हर घर बंदनवार।।

 

प्रभु अब तो तुम जान लो,

नहीं सहेंगे पीर।

धीरज अब मुझमें नहीं,

बदलो अब तकदीर।।

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष # 75 ☆ अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस विशेष – सारे रिश्तों की धुरी ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.    “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष रचना  “सारे रिश्तों की धुरी। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार  आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 75 ☆

☆ अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस विशेष – सारे रिश्तों की धुरी ☆

नारी से दुनिया बनी, नारी जग का मूल

हर घर की वो लक्ष्मी, दें आदर अनुकूल

 

चले सभी को साथ ले, सहज सरल स्वभाव

रखती कभी न बे-बजह, कोई भी दुर्भाव

 

सीता, दुर्गा, कालका, नारी रूप अनूप

राधा, मीरा, द्रोपदी, अलग-अलग बहु रूप

 

नारी बिन संभव नहीं, उन्नत सकल समाज

समझें मत अबला कभी, करती सारे काज

 

सारे रिश्तों की धुरी, उसका हृदय विशाल

माँ-बेटी भाभी बहन, बन पत्नी ससुराल

 

प्रेम, त्याग, ममता, दया, करुणा करे अपार

धीरज,-धरम न छोड़ती, उसकी जय-जय कार

 

रिश्तों की ताकत वही, रखती दिल में प्यार

जीवन में “संतोष” रख, आँचल चाँद-सितार

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799
संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत…. उत्तर मेघः ॥२.१०॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत …. उत्तरमेघः ॥२.१०॥ ☆

 

यत्र स्त्रीणां प्रियतमभुजोच्च्वासितालिङ्गितानाम

अङ्गग्लानिं सुरतजनितां तन्तुजालावलम्बाः

त्वत्संरोधापगमविशदश चन्द्रपादैर निशीथे

व्यालुम्पन्ति स्फुटजललवस्यन्दिनश चन्द्रकान्ताः॥२.१०॥

 

छरहरी , भरे देह की , पूर्ण यौवन

रदनपंक्ति जिसकी गँसी कुंद कलि सी

पके बिंब फल से  , अधर सुगढ़ जिसके

चकित वनमृगी सी , सरल दृष्टि जिसकी

गहन नाभि , कटि क्षीण , औ” पीन स्तन

नितंबिनि , विनम्रा , अलसगामिनी जो

दिखे युवतियों बीच ऐसी कोई ज्यों

विधाता की मानो प्रथम नारि कृति हो

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – त्रिकाल ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

?️? संजय दृष्टि – त्रिकाल ??️

कालजयी होने की लिप्सा में,

बूँद भर अमृत के लिए,

वे लड़ते-मरते रहे,

उधर हलाहल पीकर,

महादेव, त्रिकाल भये!

हलाहल की आशंका को पचाना, अमृत होने की संभावना को जगाना है।

?️ ? सभी मित्रों को महाशिवरात्रि की हार्दिक बधाई। महादेव की अनुकंपा आप सब पर बनी रहे। नम: शिवाय! ??️

©  संजय भारद्वाज

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

9890122603

≈ श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 79 – हाइबन- धुआंधार जलप्रपात ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं।  आज प्रस्तुत है  “हाइबन- धुआंधार जलप्रपात। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 79☆

☆ हाइबन- धुआंधार जलप्रपात ☆

संगमरमर एक सफेद व मटमैले रंग का मार्बल होता है। मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले से 20 किलोमीटर दूर भेड़ाघाट में इसी तरह के मार्बल पहाड़ियों के बीच नर्मदा नदी बहती है। नदी के दोनों किनारों की ऊंचाई 200 फीट के लगभग है।

भेड़ाघाट का दृश्य रात और दिन में अलग-अलग रूप में दर्शनीय होता है। रात में चांदनी जब सफेद और मटमैले संगमरमर के साथ नर्मदा नदी में गिरती है तो अद्भुत बिंब निर्मित करती है। इस कारण चांदनी रात के समय में नर्मदा नदी में नौकायन करना अद्भुत व रोमांचक होता है।

दिन में सूर्य की किरणें नर्मदा नदी के साथ-साथ संगमरमर की चट्टानों पर अद्भुत बिंब निर्मित करती है। सूर्य की रोशनी में नहाई नर्मदा नदी और संगमरमर की उचित चट्टानों के बीच नौकायन इस मज़े को दुगुणीत कर देती है।

इसी नदी पर एक प्राकृतिक धुआंधार जलप्रपात बना हुआ है। इस प्रपात में ऊंचाई से गिरता हुआ पानी धुएं के मानिंद   वातावरण में फैल कर अद्भुत दृश्य निर्मित करता है। यहां से नर्मदा नदी को निहारने का रोमांच और आनंद ओर बढ़ जाता है। इसी दृश्य प्रभाव के कारण इसका नाम धुआंधार जलप्रपात पड़ा है।

यह स्थान पर्यटकों का सबसे मन पसंदीदा स्थान है। आप भी एक बार इस स्थान के दर्शन अवश्य करें।

नदी का स्वर~

मार्बल पर दिखे

सूर्य का बिंब।

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

16-01-21

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) म प्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 65 ☆ श्रीमद्भगवतगीता दोहाभिव्यक्ति – चतुर्थ अध्याय ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत।  इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा  डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे । 

आज से हम प्रत्येक गुरवार को साप्ताहिक स्तम्भ के अंतर्गत डॉ राकेश चक्र जी द्वारा रचित श्रीमद्भगवतगीता दोहाभिव्यक्ति साभार प्रस्तुत कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें । आज प्रस्तुत है चतुर्थ अध्याय

फ्लिपकार्ट लिंक >> श्रीमद्भगवतगीता दोहाभिव्यक्ति 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 65 ☆

☆ श्रीमद्भगवतगीता दोहाभिव्यक्ति – चतुर्थ अध्याय ☆ 

स्नेही मित्रो श्रीकृष्ण कृपा से सम्पूर्ण श्रीमद्भागवत गीता का अनुवाद मेरे द्वारा दोहों में किया गया है। आज आप पढ़िए चतुर्थ अध्याय का सार। आनन्द उठाएँ।

 डॉ राकेश चक्र

अध्याय 4

चौथा अध्याय दिव्य ज्ञान

श्री कृष्ण भगवान ने अपने सखा अर्जुन से अष्टांग योग का दिव्य ज्ञान कुछ इस तरह दिया

प्रथम बार सूरज सुने, यह अविनाशी योग।

सूरज से मनु और फिर,बना इच्छु- संजोग।। 1

 

योग रीत ये चल रही, सदा-सदा से जान।

लोप हुआ कुछ काल तक, तुम्हें पुनः यह ज्ञान।। 2

 

वर्णन जो तुझसे किया, यही पुरातन योग।

तू मेरा प्रिय भक्त है, अति उत्तम संयोग।। 3

अर्जुन उवाच

जन्म हुआ प्रभु आपका, इसी काल में साथ।

सूर्य जन्म प्राचीन है, कैसे मानूँ बात।। 4

 

तेरे-मेरे जन्म तो, हुए अनेकों बार।

मुझे विदित,अनभिज्ञ तुम,प्रियवर पाण्डु कुमार।।5

 

जन्म नहीं प्राकृत मेरा, नहीं मनुज सादृश्य।

मैं अविनाशी अजन्मा, शक्ति-योग प्राकट्य।। 6

 

धर्म हानि जब- जब बढ़ी, बढ़ता गया अधर्म।

तब-तब माया-योग से, रचा नया ही धर्म।। 7

 

साधु जनों का सर्वदा,किया परम् उद्धार।

दुष्टों के ही नाश को, प्रकटा बारम्बार।। 8

 

मुझे अलौकिक मानकर, जो जानें सुख पाँय

मैं हूँ अविनाशी अमर, भक्त सदा तर जाँय। 9

 

राग-द्वेष,भय-क्रोध से, हो जाता है मुक्त।

साधक मेरी भक्ति का,भाव समर्पण युक्त।।

 

सब ही मेरी शरण में, सबके भाव विभिन्न।

फल देता अनुरूप में, कभी न होता खिन्न।। 11

 

करते कर्म सकाम जो, मिलें शीघ्र परिणाम।

देवों को वे पूजते, मुझे न करें प्रणाम।। 12

 

तीन गुणों की यह प्रकृति, सत, रज, तम आयाम।

वर्णाश्रम मैंने रचे, मैं सृष्टा सब धाम।। 13

 

कर्म करूँ जो भी यहाँ, पड़ता नहीं प्रभाव।

कर्म फलों से मैं विरत, सत्य जान ये भाव।। 14

 

दिव्य आत्मा संत जन, हुए पुरातन काल।

कर तू उनका अनुसरण,नित्य बनाकर ढाल।। 15

 

समझ न पाते मोहवश,बुधि जन कर्माकर्म।

कर्म बताऊँ शुभ तुझे, ये ही मानव धर्म।। 16

 

कर्म कौन हैं शुभ यहाँ, ये मुश्किल है काम।

कर्म, विकर्म, अकर्म का, जान सुखद परिणाम।। 17

 

कर्म सदा परहित करें, ये ही मानव धर्म।

लाभ-हानि में सम रहें, नहीं करें दुष्कर्म।। 18

 

इन्द्रिय-सुख की कामना, रखें न मन में ध्यान।

ऐसे ज्ञानी जगत में, होते बड़े महान।। 19

 

कर्म फलों के फेर में, पड़ें न ज्ञानी लोग।

ऐसे मानव जगत में, रहते सदा निरोग।। 20

 

माया के रह बीच में,स्वामि- भाव का त्याग।

कर्म गात निर्वाह को, गाए मेरा राग।। 21

 

अपने में संतुष्ट जो, द्वेष कपट से दूर।

लाभ-हानि में सम रहे, ऐसे मानव शूर।। 22

 

आत्मसात जिसने किया,अनासक्ति का भाव।

ऐसा ज्ञानी को मिले, हरि पद पंकज-ठाँव।। 23

 

जो मुझमें लवलीन है, पाए भगवत धाम।

यज्ञ यही है सात्विकी, भजें ईश का नाम।। 24

 

देव यज्ञ कुछ कर रहे, पूजें देवी-देव।

ज्ञानी-ध्यानी पूजते, ब्रह्म परम् महदेव।। 25

 

इन्द्रिय संयम हम करें, भजें प्रभू का नाम।

राग-द्वेष से विरत जो,  करें भस्म सब काम।। 26

 

चेष्टा जो इन्द्री करें, करें ब्रह्म का ज्ञान।

प्राणों के व्यापार का, योगी करते ध्यान।। 27

 

कुछ योगी परहित करें, कुछ करते तप यज्ञ।

करें योग अष्टांग कुछ, कुछ हैं ग्रंथ- गुणज्ञ।। 28

 

प्राण वायु का हवि करें, करते प्राणायाम।।

प्राण गती वश में रखें, लेवें प्रभु का नाम।। 29

 

प्राणों को ही प्राण में, योगी करते ध्यान।

पाप-शाप सारे मिटें , यज्ञ करें कल्यान।। 30

 

फलाभूत यज्ञादि से, करें ईश कल्यान।

यज्ञ न करते जो मनुज, भोगें कष्ट महान।। 31

 

वर्णन वेदों में हुआ, कतिपय यज्ञ- प्रकार।

तन, मन इन्द्री ही करें, निष्कामी उपचार।। 32

 

सब यज्ञों में श्रेष्ठतर, ज्ञान यज्ञ है ज्येष्ठ।

ज्ञान करे विज्ञान को, बने आत्मा श्रेष्ठ। 33

 

ज्ञानी पुरुषों को सदा, कर दण्डवत प्रणाम।

जान, ज्ञान के मर्म को, दें उपदेश महान।। 34

 

जब तुम जानो मर्म को, नहीं करोगे मोह।

ज्ञान बुद्धि चेतन करे, हटे हृदय अवरोह।। 35

 

सदा ज्ञान ही श्रेष्ठ है, करता नौका पार।

पापी भी सब तर गए, उत्तम हुए विचार।। 36

 

जैसे जलकर अग्नि में, ईंधन होता भस्म।

वैसे ही ये ज्ञान भी, करे पाप को भस्म।। 37

 

ज्ञान जगत में श्रेष्ठ है, इससे बड़ा न कोय।

पावन होता वह मनुज,खोट रहे ना कोय।। 38

 

ज्ञान ही करता स्व विजय, हो वही जितेंद्रिय।

ज्ञान बढ़ाए भक्ति को, जीवन बने अनिन्द्रिय।। 39

 

जो प्रभु भक्ति नहीं करें , रहें संशयाधीन।

लोक और परलोक में, रहें सदा ही दीन।। 40

 

कर ले बुद्धि समत्व तू, लगा मुझी में ध्यान।

अर्पित प्रभु को जो करें, उनका हो कल्याण।। 41

 

ज्ञान बढ़ा अर्जुन सखा, बुद्धि करो संशुद्ध।

संशय भ्रम को काट तू, करो धर्म का युद्ध।। 42

 

 इस प्रकार श्रीमद्भगवतगीता के चतुर्थ अध्याय ” दिव्य ज्ञान” का भक्तिवेदांत तात्पर्य पूर्ण हुआ(समाप्त)।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत…. उत्तर मेघः ॥२.९॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत …. उत्तरमेघः ॥२.९॥ ☆

 

नेत्रा नीताः सततगतिना यद्विमानाग्रभूमीर

आलेख्यानां सलिलकणिकादोषम उत्पाद्य सद्यः

शङ्कास्पृष्टा इव जलमुचस त्वादृशा जालमार्गैर

धूमोद्गारानुकृतिनिपुणा जर्जरा निष्पतन्ति॥२.९॥

 

हे बन्धु इन चिन्ह को ध्यान रखकर

लख शंख औ” पद्म के चित्र द्वारे

श्री हीन मेरे विरह से भवन लख

समझना कमल , क्षीण बिन रवि सहारे

तब हस्ति शावक सदृश रूप धर मेघ

रुकते कथित रम्य क्रीड़ा शिखर पर

खद्योत दल सम प्रभा क्षीण विद्युत

नयन से निरखना भवन में पहुंचकर

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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