हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.७॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.७॥ ☆

संतप्तानां त्वमसि शरणं तत पयोद प्रियायाः

संदेशं मे हर धनपतिक्रोधविश्लेषितस्य

गन्तव्या ते वसतिर अलका नाम यक्षेश्वराणां

बाह्योद्यानस्थितहरशिरश्चन्द्रिकाधौतहर्म्या॥१.७॥

 

मैं , धनपति के श्राप से दूर प्रिय से

है अलकावती नाम नगरी हमारी

यक्षेश्वरों की, विशद चंद्रिका धौत

प्रासाद ,  है बन्धु गम्या तुम्हारी

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 29 – उम्मीदों की आँखो में …☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज पस्तुत है आपका अभिनव गीत  “उम्मीदों की आँखो में … । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 29– ।। अभिनव गीत ।।

☆ उम्मीदों की आँखो में … ☆

सूटकेस में कुछ चमकीले

कपड़ों को लेकर

बढ़ने लगी धूप दुपहर की

दिखा रही तेवर

 

कंघी करती रही खोल

रेशम से बालों को

कजरौटी के लिये छान

मारा सब आलों को

 

रही सम्हाल स्वयम् का

पल्लू तिरछी आँखों से

बादल का जब देखा

उसने फटा हुआ ने कर

 

नई बहू से भाभी बन कर

अभी ओसारे पर

फैल गई है छिछली छिछली

फिर चौबारे पर

 

क्यों औंधे मौसम के रुख

को समझ नहीं पाया

बेचारा लहलहा उठा

इस बार नीम देवर

 

खपरैलों से छन छन

कर छारके दिखे सम्हले

आखिर कब तक सहें

सूर्य के आतप के हमले

 

उम्मीदों की आँखो में

बस नई चमक लेकर

लगा अटारी पहन रही है

सम्हल सम्हल जेवर

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

27-11-2020

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ भाषा… ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ भाषा…✍️ ☆

‘ब’ का ‘र’ से बैर है

‘श’ की ‘त्र’ से शत्रुता

‘द’ जाने क्या सोच

‘श’, ‘म’ और ‘न’ से

दुश्मनी पाले है

‘अ’ अनमना-सा

‘ब’ और ‘न’ से

अनबन ठाने है,

स्वर खुद पर रीझे हैं

व्यंजन अपने मद में डूबे हैं,

‘मैं’ की मय में

सारे मतवाले हैं

है तो हरेक वर्ण पर

वर्णमाला का भ्रम पाले है,

येन केन प्रकारेण

इस विनाशी भ्रम से

बाहर निकाल पाता हूँ

शब्द और वाक्य बन कर

मैं भाषा की भूमिका निभाता हूँ।

 

©  संजय भारद्वाज 

16.12.18, रात्रि बजे 11:55

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

मोबाइल– 9890122603

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #22 ☆ अन्नदाता किसान ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है एक  समसामयिक कविता “अन्नदाता किसान”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 22 ☆ 

☆ अन्नदाता किसान ☆ 

वो मेहनतकश

जीवन भर

श्रम करता है बस

हाथ में कुदाली लिए

बंजर जमीन को खोदता है

पत्थरों को तोड़ता है

अपने हल से

जमीन को खेती योग्य

बनाता है

मिट्टी में

श्रम बिन्दुओं को मिलाता है

कुआँ खोदकर

निकालता है पानी

प्यासी धरती होती है

उसकी दिवानी

वो बंजर जमीन को

बनाता है उपजाऊ

वो धान,  गेंहू, गन्ना

सब्जी-भाजी बोता है

कि कुछ धन कमाऊं

वो हर ऋतु में

जी-तोड़ मेहनत करता है

उगाता है सभी फसलें

तभी हमारा पेट भरता है

जब मंडी में नहीं मिलते

उसको दाम

रूक जाते हैं

उसके सारे गृहस्थी के काम

बिटिया की शादी

साहूकार का कर्ज

बूढ़ी मां का

नाईलाज मर्ज

बच्चों की आगे की पढ़ाई

घर में रूठी है लुगाई

वो सबको कैसे मनायेगा

सबके चेहरे पर

खुशियाँ कैसे लायेगा

वो इन समस्याओं से ग्रस्त हैं

अपनी गरिबी से त्रस्त है

तब वो हिम्मत जुटाता है

फसलों की उचित कीमत की

माँग उठाता है

 

तब सरमायेदार

उसको रोकते हैं

अश्रू गैस, पानी की बौछारें

बेरिकेड्स, राह में गड्ढे,

आरोप-प्रत्यारोप

सभी कुछ उसकी

राह में झोंकते है

 

पर वो आज

मुखिया के सामने खड़ा है

अपनी मांगें मनवाने

जिद्द पर अड़ा है

क्या कोई

उसके साथ न्यायकर

नया इतिहास गढ़ेगा ?

या सदा की तरह-

हमारा भोला इन्सान

हमेशा से बेजुबान

अन्नदाता किसान

झूठें वादों, जुमलों की

भेंट चढ़ेगा ?

© श्याम खापर्डे 

भिलाई  05/12/20

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.६॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.६॥ ☆

जातं वंशे भुवनविदिते पुष्करावर्तकानां

जानामि त्वां प्रकृतिपुरुषं कामरूपं मघोनः

तेनार्थित्वं त्वयि विधिवशाद दूरबन्धुर गतो ऽहं

याच्ञा मोघा वरम अधिगुणे नाधमे लब्धकामा॥१.६॥

 

कहा पुष्करावर्त के वंश में जात ,

सुरपति सुसेवक मनोवेशधारी

मैं दुर्भाग्यवश दूर प्रिय से पड़ा हूं

हो तुम श्रेष्ठ इससे है विनती हमारी

संतप्त जन के हे आश्रय प्रदाता

जलद! मम प्रिया को संदेशा पठाना

भली है गुणी से विफल याचना पर

बुरी नीच से कामना पूर्ति पाना

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 34 ☆ हर विचार का स्वागत … ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताeह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी  द्वारा रचित  कविता हर विचार का स्वागत …। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 34☆ 

☆ हर विचार का स्वागत …☆ 

आकर भी तुम आ न सके हो

पाकर भी हम पा न सके हैं

जाकर भी तुम जा न सके हो

करें न शिकवा, हो न शिकायत

*

यही समय की बलिहारी है

घटनाओं की अय्यारी है

हिल-मिलकर हिल-मिल न सके तो

किसे दोष दे, करें बगावत

*

अपने-सपने आते-जाते

नपने खपने साथ निभाते

तपने की बारी आई तो

साये भी कर रहे अदावत

*

जो जैसा है स्वीकारो मन

गीत-छंद नव आकारो मन

लेना-देना रहे बराबर

इतनी ही है मात्र सलाहत

*

हर पल, हर विचार का स्वागत

भुज भेंटो जो दर पर आगत

जो न मिला उसका रोना क्यों?

कुछ पाया है यही गनीमत

 

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ मैं औऱ वो…. ☆ श्री जयेश वर्मा

श्री जयेश कुमार वर्मा

(श्री जयेश कुमार वर्मा जी  बैंक ऑफ़ बरोडा (देना बैंक) से वरिष्ठ प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। हम अपने पाठकों से आपकी सर्वोत्कृष्ट रचनाएँ समय समय पर साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता मैं औऱ वो….।)

☆ कविता  ☆ मैं औऱ वो…. ☆

बार बार याद आते वो पल, थे हम दोनों साथ, जाने कहाँ थे,

हाथो में हाथ थे, बहते अश्क थे, हम दो दिल, एक एहसास से,

 

लम्हा लम्हा दिल भीगे, अश्कों से तर, नैन सजल हुए,

उसे ना थी कोई जल्दी, शिद्दत से पकड़े थी हाथ मेरे,

 

ज़िन्दगी चली बीतने, कुछ बीते, लम्हे आने लगे याद मुझे,

ज़िया वो पल, उसे जीना, थी वही ज़िन्दगी, सब याद मुझे,

 

कुछ तो, ना था बीच हमारे, हमसफ़र थे, सफर खत्म सा,

चुप चुप सी, उनकीआंखे,यादों का बस, एक एहसास सा,

 

©  जयेश वर्मा

संपर्क :  94 इंद्रपुरी कॉलोनी, ग्वारीघाट रोड, जबलपुर (मध्यप्रदेश)
वर्तमान में – खराड़ी,  पुणे (महाराष्ट्र)
मो 7746001236

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.५॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.५॥॥ ☆

धूमज्योतिःसलिलमरुतां संनिपातः क्व मेघः
सन्देशार्थाः क्व पटुकरणैः प्राणिभिः प्रापणीयाः
इत्य औत्सुक्याद अपरिगणयन गुह्यकस तं ययाचे
कामार्ता हि प्रकृतिकृपणाश चेतनाचेतएषु॥१.५॥

 

प्रकाश सलिल वायु धूम्र विनिर्मित

कहां घन , कहां योग्य संदेशहारी

पर भूल इस भेद को कामआतुर ने

जड़ और चेतन की सीमा बिसारी

प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ गणित, कविता, आदमी! ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ गणित, कविता, आदमी!

बचपन में पढ़ा था

X + X , 2X होता है,

X × X,  X² होता है,

Y + Y,  2Y होता है

Y × Y,  Y² होता है..,

X और Y साथ आएँ तो

X  + Y होते हैं,

एक-दूसरे से

गुणा किये जाएँ तो

XY होते हैं..,

X और Y चर राशि हैं

कोई भी हो सकता है X

कोई भी हो सकता है Y,

सूत्र हरेक पर, सब पर

समान रूप से लागू होता है..,

फिर कैसे बदल गया सूत्र

कैसे बदल गया चर का मान..?

X पुरुष हो गया

Y स्त्री हो गई,

कायदे से X और Y का योग

X + Y होना चाहिए

पर होने लगा X – Y,

सूत्र में Y – X भी होता है

पर जीवन में कभी नहीं होता,

(X + Y) ² = X² + 2 XY + Y²

का सूत्र जहाँ ठीक चला है,

वहाँ भी X का मूल्य

Y की अपेक्षा अधिक रहा है,

गणित का हर सूत्र

अपरिवर्तनीय है

फिर किताब से

ज़िंदगी तक आते- आते

परिवर्तित कैसे हो जाता है.. ?

जीवन की इस असमानता को

किसी तरह सुलझाओ मित्रो,

इस प्रमेय को हल करने का

कोई सूत्र पता हो तो बताओ मित्रो!

 

©  संजय भारद्वाज 

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

मोबाइल– 9890122603

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 20 ☆ किसके कैसे कर्म हैं देख रहे भगवान ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  की  संस्कारधानी जबलपुर शहर पर आधारित एक भावप्रवण कविता  “किसके कैसे कर्म हैं देख रहे भगवान।  हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।  ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 20 ☆

☆  किसके कैसे कर्म हैं देख रहे भगवान 

जन्म मरण के मध्य है जीवन एक प्रवाह

जिसे नहीं मालूम कहां उसकी जग में राह

 

मौसम और परिवेश का जिस पर प्रबल प्रभाव

अनजाने नये क्षेत्र में जिसका सतत बहाव

 

आने वाले कल का नित जिसको है ज्ञान

कई झंझट झंझाओं में उलझे रहते प्राण

 

कोई नहीं अनुमान कब मिले नया आदेश

जाना होगा कब कहां और कौन से देश

 

केवल उसके साथ है खुद अपना विश्वास

मन की दृढ़ता बांधती रहती नित नई आश

 

साहस संयम नियम ही जीवन के आधार

दिशा मार्ग शुभ दिखलाते खुद के सोच विचार

 

पाने अपने लक्ष्य को जिसको नित परवाह

जहां पहुंचना है वहां की पा जाता है राह

 

निश्चल निर्मल भावना ही पाती वरदान

किसके कैसे कर्म हैं देख रहे भगवान

 

साहस रख विश्वास से लड़ जीवन संग्राम

सतत साधना श्रम से सब पूरे होते काम

 

कर सकते जो निडर हो निर्णय युग अनुसार

वह ही पाते विजय नित कभी ना होती हार

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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