हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.३॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.३॥ ☆

तस्य स्थित्वा कथम अपि पुरः कौतुकाधानहेतोर

अन्तर्बाष्पश चिरम अनुचरो राजराजस्य दध्यौ

मेघालोके भवति सुखिनो ऽप्य अन्यथावृत्ति चेतः

कण्ठाश्लेषप्रणयिनि जने किं पुनर दूरसंस्थे॥१.३॥

हुआ स्तब्ध, चिंतित, प्रिया स्व्पन में रत

उचित जिन्हें लख विश्व चांच्ल्य पाता

उन आषाढ़घन के सुखद दर्शनो से

प्रियालिंगनार्थी हृदय की दशा क्या ?

प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry (भावानुवाद) ☆ चाँदनी…/Enchanting Moon… – Ms. Neelam Saxena Chandra ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.)

We present an English Version of Ms. Neelam Saxena Chandra’s mesmerizing poem  “चाँदनी”.  We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit,  English and Urdu languages) for this awesome translation.)

Ms Neelam Saxena Chandra

(Ms. Neelam Saxena Chandra ji is a well-known author. She has been honoured with many international/national/ regional level awards. Ms. Neelam Saxena Chandra ji is  an Additional Divisional Railway Manager, Indian Railways, Pune Division.

☆ चाँदनी… ☆

आसमान की चादर पर चांदनी

मस्त हो, इतरा रही थी,

उसकी ग़ज़ब सी नज़ाकत थी,

एक पाँव भी आगे बढ़ाती

तो हवा पायल बन खनक उठती,

और उसकी मुस्कान पर तो

सेंकडों लोग फ़िदा थे –

उनमें से एक उसका आशिक़

बेपरवाह समंदर भी था!

 

समंदर ने उससे कहा,

“बहुत मुहब्बत करता हूँ तुमसे!”

और वो चांदनी इठलाती हुई

उसकी आगोश में समा गयी!

 

चांदनी तो

यह भी न समझ पायी

कि उसका रूप ही बदल गया है

और वो हो गयी है क़ैद

समंदर के घेरे में…

वो तो उसे एक हसीं मकाँ समझ

खुश रहती!

 

यह तो उसने कई दिनों बाद जाना

कि शांत सा समंदर

दिखता कुछ और था

पर उसके मन में कुछ और था;

उसके मन के ऊफ़ान को देख,

और उसका यह बनावटी पहलू देख,

आज़ादी को तरसने लगी!

 

आज मैंने देर रात को देखा

वो करवा चौथ के दिन

पहुँच गयी थी वापस आसमान में

और फिर मुसकुरा रही थी!

 

☆ Enchanting Moon… 

Spirited moonlight,

in the lap of sky

Kept swaying galore!

Amazingly rollicking gait,

Even the swinging

movement of steps

Would make the wind blow like tinkling of sprightly anklets…

 

On her smile

were hundreds of

smitten people floored

and willing to die for…

Of which, one was,

the careless sea,

an ardent lover!

 

The sea told her,

I’m in love with you

and can’t live without you!”

And, the moonlight

flauntingly merged

into the hug of the sea…

 

Innocent moonlight,

Could not even understand

That her form has changed

And, she has been imprisoned

In the precincts of the sea…

Considering it

as her sweet home

She would remain happy!

 

But soon, she learnt

after a few days

That, apparently,

quiet looking sea

was something

else in reality;

She was petrified

To see the fury of

storms in his mind,

And, the conceited

artificiality of appearance,

She began to crave

for her freedom!

 

Today, I saw her again

late at night on the

day of Karva Chauth*

She had reached back

up in the sky

glowing with her

ever enchanting smile!

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈  Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ चुप्पियाँ..(40) ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ चुप्पियाँ..(40) ☆

भीतर का कोलाहल

धीरे-धीरे बढ़ा,

….और बढ़ा,

और अधिक बढ़ा,

चरम पर पहुँचा

और प्रसूत हुई

…………चुप्पी!

 

(प्रकाशनाधीन कवितासंग्रह ‘चुप्पियाँ’ से।)

©  संजय भारद्वाज 

प्रात: 8:04. 17.10.2018

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत
[email protected]

मोबाइल– 9890122603

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 53 ☆ पाँच दोहे ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत।  इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा  डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे । इस कड़ी में आज प्रस्तुत हैं    “पाँच दोहे.)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 53 ☆

☆ पाँच दोहे ☆ 

जीवन हो सुख सुरभि- सा, बाँटें सबको प्यार।

दान, यज्ञ ,तप नित करें,ये ही जीवन सार।।

 

नए कलेवर योग में, छिपे अनत भंडार।

जो जितना अंतः घुसे, मिलती शक्ति अपार।।

 

सविता अपने देव हैं, करते हैं कल्याण।

देव दिवाकर, भास्कर,  सबके ही हैं प्राण।।

 

अंतरिक्ष में हैं छिपे , ज्ञान और विज्ञान।

सृष्टि का आधार यह , मानव मन पहचान।।

 

देता मैं शुभकामना, सब ही रहें निरोग।

अहम स्वार्थ को त्यागकर, करें प्रेम औ योग।।

 

डॉ राकेश चक्र ,90 बी,शिवपुरी

मुरादाबाद 244001,उ.प्र .

9456201857

 

डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ बीता पल ☆ सुश्री हरप्रीत कौर

सुश्री हरप्रीत कौर

(आज प्रस्तुत है  सुश्री हरप्रीत कौर जी  की एक भावप्रवण कविता  “बीता पल ”।)   

☆ कविता  – बीता पल  

कहानी, फसाना ही कहलाते है

पल जो बीत जाते हैं,

 

कुछ पल मन को आह्लादित करते

तो कुछ जख्म पूराने टीस दे जाते है.

 

वो बस बीता कल है, बीता पल है, जानती हूँ भली भाँति

फिर  जाने क्यों उन बीते पल के गलियारों मे जाती हूँ.

यादों को झोली में भर लाती हूँ

 

आज है मेरा, इतना उज्जवल

क्यों मै कल में भटक रही.

 

चिंगारी है ये आज को जलाएगी,

भूल जा दिल, बीते दिन की

यादों को, वादों को,

इनसे हासिल ना कुछ कर पाएगा.

 

बीते पलों को दफन ही रहने दें,

नहीं तो गड़े मुर्दे , जिंदा हो जाएंगे.

जीना मुश्किल कर जाएंगे.

 

©  सुश्री हरप्रीत कौर

कानपुर

ई मेल [email protected]

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.२॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.२॥☆

तस्मिन्न अद्रौ कतिचिद अबलाविप्रयुक्तः स कामी

नीत्वा मासान कनकवलयभ्रंशरिक्तप्रकोष्ठः

आषाढस्य प्रथमदिवसे मेघम आश्लिष्टसानुं

वप्रक्रीडापरिणतगजप्रेक्षणीयं ददर्श ॥१.२॥

 

बिताते कई मास दौर्बल्य के वश

कनकवलय शोभा रहित हस्तवाला

प्रथम दिवस आषाढ़  के अद्रितट

वप्रक्रीड़ी द्विरद सम लखी मेघमाला

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ पराकाष्ठा ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ पराकाष्ठा ☆

मिलन उनके लिए

प्रेम का उत्कर्ष था,

राधा-कृष्ण का

मेरे सामने आदर्श था!

 

©  संजय भारद्वाज 

30.11.2020, दोपहर 2:05 बजे।

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 25 ☆ देश का गौरव हो तुम अभिनंदन ☆ श्री प्रह्लाद नारायण माथुर

श्री प्रहलाद नारायण माथुर

( श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी अजमेर राजस्थान के निवासी हैं तथा ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से उप प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। आपकी दो पुस्तकें  सफर रिश्तों का तथा  मृग तृष्णा  काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं तथा दो पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा  जिसे आप प्रति बुधवार आत्मसात कर सकेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता देश का गौरव हो तुम अभिनंदन। ) 

 

Amazon India(paperback and Kindle) Link: >>>  मृग  तृष्णा  

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 25 ☆ देश का गौरव हो तुम अभिनंदन

देश का गौरव हो तुम अभिनंदन,

छूट कर पँजे से दुश्मन के घर को वापिस आ गए,

अभिनंदन, अभिनंदन है तुम्हारा ।।

 

चेहरे पर शिकन तक ना थी तुम्हारे ,

मातृभूमि के लिए अपनी जान पर तुम खेल गए,

अभिनंदन, अभिनंदन है तुम्हारा ।।

 

चेहरा आत्मविश्वास से भरा था तुम्हारा,

ख़ौफ़ तो पाक सैनिकों के चेहरे पर दिख रहा था,

अभिनंदन, अभिनंदन है तुम्हारा ।।

 

झुके नहीं, बिल्कुल टूटे नहीं तुम दुश्मन के सामने,

गजब का जज्बा दुनिया को तुमने दिखा दिया,

अभिनंदन, अभिनंदन है तुम्हारा ।।

 

चेहरे पर तुम्हारे लालिमा चमक रही थी,

आत्मविश्वास दिखा सबका दिल तुमने जीत लिया,

अभिनंदन, अभिनंदन है तुम्हारा ।।

 

©  प्रह्लाद नारायण माथुर 

8949706002
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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.१॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा  प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव)

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.१॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’☆

कश्चित कान्ताविरहगुरुणा स्वाधिकारात प्रमत्तः

शापेनास्तंगमितमहिमा वर्षभोग्येण भर्तुः

यक्षश चक्रे जनकतनयास्नानपुण्योदकेषु

स्निग्धच्चायातरुषु वसतिं रामगिर्याश्रमेषु॥१.१॥

पदच्युत , प्रिया के विरहताप से

वर्ष भर के लिये , स्वामिआज्ञाभिशापित

कोई यक्ष सीतावगाहन सलिलपूत

घन छांह वन रामगिरि में निवासित

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ आँच आये न किसी को….. ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(वरिष्ठ साहित्यकार एवं अग्रज  श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी  की  सकारात्मक एवं संवेदनशील रचनाएँ  हमें इस भागदौड़ भरे जीवन में संजीवनी प्रदान करती हैं। आपकी पिछली रचना ने हमें आपकी प्रबल इच्छा शक्ति से अवगत कराया।  ई-अभिव्यक्ति परिवार आपके शीघ्र स्वास्थय लाभ की कामना करता है। हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए आपकी नवीन रचना आपके दृढ मनोबल के साथ निश्चित ही एक सकारात्मक सन्देश देती है। )

आपकी नवीन रचना और भावनाएं अक्षरशः प्रस्तुत करना चाहता हूँ – “अस्पताल से आए आज आठवां दिन है। बहुत धीमे सुधार के साथ रुग्णावस्था में बेड पर हूँ। सकारात्मक सोच के साथ इसी मनः स्थिती की एक रचना। कुछ समयोपरांत स्वस्थ तन-मन के साथ ही स्वस्थ रचनाओं के साथ हम सब साथ होंगे।” – सुरेश तन्मय 

☆  तन्मय साहित्य  #  ☆ आँच आये न किसी को.… ☆ 

चलते-चलते ऐसा कुछ, हो जाये मेरे साथ

आँच आये न किसी को,

हँसते – गाते, करते  बातें, गिरे पेड़ से पात

आँच आये न किसी को।।

 

जीवन के अद्भुत, विचित्र इस मेले में

रहे  भटकते  भीड़  भरे  इस  रैले  में

साँझ पड़े जब सुध आयी तो पछताये

शेष बचा  कुछ नहीं, समय के  थैले में,

बीते सुख से रात, ठिकाने से लग जाये

तन-मन की बारात

आँच आये न किसी को।

 

चिंतन में चिंताओं ने है, चित्र उकेरे

स्मृतियों के अब लगने लगे, निरंतर फेरे

बातें भीतर है असंख्य, बाहर हैं ताले

देने लगे तपिश, सावन के शीतल सेरे,

उमड़-घुमड़ कर, सिर पर चढ़ कर

हो जाये बरसात

आँच आये न किसी को।

 

कौन पाहुने, दूजे ग्रह से  आयेंगे

कैसे नेह निमंत्रण हम पहुंचाएंगे

आगत के  स्वागत को, आतुर बैठे हैं

मिलने पर सचमुच क्या गले लगायेंगे,

शंकित मन, कंपित तन कैसे

निभा सकेगा साथ

आँच आये न किसी को।

 

जो  सब के सुख की, चिंताएं करता है

जिसकी सदा दुखों से, रही निडरता है

सूर्य-चंद्र के ग्रहण कभी पड़ जाते भारी

होती कभी स्वयं की, धूमिल प्रखरता है,

रहे निडर मन, करते विचरण

पा जाएं निज घाट

आँच आये न किसी को।

 

बूढ़ा बरगद, व्यथित स्वयं अपने पन से

पुष्प – पल्लवित शाखें हैं, हर्षित मन से

अंतर से आशिष, प्रफुल्लित भाव भरे,

मोह भंग में  स्वयं, विरक्त  हुए  तन से,

लिखते-पढ़ते, खुद से लड़ते

कटे शीघ्र यह बाट

आँच आये न किसी को।

 

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

14 दिसंबर 2020, 10.49

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश

मो. 9893266014

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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