सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा
(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण रचना “आतिश”। )
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☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 62 ☆
जब जुस्तजू का गला
सूख सा जाए
और कहीं पानी की बूंद नज़र न आये,
जब जोश के स्क्रू ढीले पड़ जाएँ
और किसी भी
पेंचकस से टाइट न हो पायें,
जब उम्मीद की चिंगारी
बुझती सी दिखे
और कोई अलाव नज़र न आये-
तुम्हें घुटने के बल बैठकर
और अपनी ठुड्डी घुटनों पर रखकर
हार थोड़े ही माननी है!
और रोना –
आंसू तो बिलकुल नहीं बहाना है!
ऐसे वक़्त तुम
चुरा लो तारों से रौशनी,
हासिल कर लो चाँद से चांदनी,
चूस लो आफताब का तेज,
बस याद रखना होगा तुम्हें सिर्फ एक बात
कि तुम्हारे ज़हन के भीतर
आतिश जलती ही रहनी है!
उसी आतिश के सहारे
खुल जायेंगे तुम्हारे पर
और तुम उड़ने लगोगे
नीले आसमान को चूमते हुए!
© नीलम सक्सेना चंद्रा
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≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈