हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ अपना-अपना दोष.. ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ अपना-अपना दोष.. ☆

भूलने का दोष

दोनों के मत्थे चढ़ा,

वह भूल चुका

उसका पता,

वह भूल चुकी उसे!

 

©  संजय भारद्वाज 

30.11.20, 10.41 बजे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry (भावानुवाद) ☆ यादें…/Memories… ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.)

We present an English Version of Captain Pravin Raghuvanshi’s  Classical Poem यादें…  with title  “Memories…” .  We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit,  English and Urdu languages) for this beautiful translation.)

यदि कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी इस कविता को नादानियाँ लेखनी की कहते हैं, तो हम उनके प्रवीण ‘आफताब’ उपनाम से रचित ऐसी नादानियाँ भविष्य में अपने पाठकों से अवश्य साझा करना चाहेंगे। आपसे अनुरोध है कि आप इस रचना को हिंदी और अंग्रेज़ी में आत्मसात करें। 

कुछ नादानियाँ लेखनी की… प्रस्तुत है एक क्षणिका… 

 – कैप्टन प्रवीण रघुवंशी

☆ यादें… ☆

 दरिया के किनारे

साहिल  के दरमियाँ

एक सूखा पेड़,

लिए सब्ज़ पत्ते,

इंतज़ार करता रहा

पथराई आँखों से…

सैलाब में बह गयी

तमाम ज़िंदगी

टूटते  गुम्बद,

ढहती  शाखें…

 

फिर भी,

उम्मीदों का ये पुख्ता दरख़्त

अब भी बरकरार है…

उम्र के दयार में

वक़्त के ग़ुबार  से

चढ़ी  धूल

यादों के अक्स पे

तुम्हारा अहसास

अक्सर साया बनकर

कुरेदता रहा

भरे हुए ज़ख्म!

 

मुरझाया हुआ नाउम्मीद गुल

खिल उठता है, खिंजा में भी,

जब भी तुम

बहार बन कर  आते हो

तनहा  यादों में…

 – प्रवीण  आफ़ताब”

☆ Memories…☆

 

Along the river

On the shore

That dry tree,

with few leaves,

Kept waiting

With the stony eyes…

Entire life

got swept away

in the deluge…

Scarred domes,

Crumbling branches…

 

Nevertheless,

This strong tree of

expectations is

still intact …

The courtyard of memories,

with the passage of time,

kept gathering the

dust  of age-storm…

 

Your everlasting presence

As a ceaseless shadow

Kept scratching

the wounds!

 

Hopelessly withered flower, too

Blooms, even in autumn,

Whenever you

You come as spring

In the lonely memories…!

*-Pravin “Aftab”*

© Captain (IN) Pravin Raghuanshi, NM (Retd),

Pune

≈  Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 52 ☆ नवगीत – कैसा हूँ मैं? ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत।  इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा  डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे । इस कड़ी में आज प्रस्तुत हैं    “नवगीत – कैसा हूँ मैं? .)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 52 ☆

☆ नवगीत – कैसा हूँ मैं? ☆ 

 

अपने दर्द छुपाता रहता

कैसा हूँ मैं ?

हरदम ही मुस्काता रहता

कैसा हूँ मैं ?

 

जीवन के

बंधन हैं मुश्किल

मेरे आँसू

मरते तिल- तिल

बिछुड़न- मिलना

साथ चल रहा

रोते- हँसते देखे

मन – दिल

 

आँसू को सहलाता रहता

कैसा हूँ मैं ?

हरदम ही मुस्काता रहता

कैसा हूँ मैं ?

 

कुछ समझें

नासमझ बहुत से

कुछ बोझिल हैं

बिना वजन से

नैया डूबी देख रहा हूँ

आज – कल की

सब ही वंचित

बिना भजन से

 

मौन – मौन ही उसे बुलाता

मैं कैसा हूँ ?

हरदम ही मुस्काता रहता

मैं कैसा हूँ ?

 

वनवासी – सा विचर

रहा मैं

हूँ कठोर

पर लचर रहा मैं

समझ रहा हूँ

खुद को हर दिन

आस पास की खबर

रहा मैं

 

क्योंकर प्रेमासक्ति  बढ़ाता

कैसा हूँ मैं ?

हरदम ही मुस्काता रहता

कैसा हूँ मैं ?

 

डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ ग़ज़ल – मश्क़ ए सुख़न ☆डॉ. सलमा जमाल

डॉ.  सलमा जमाल 

( सुप्रसिद्ध साहित्यकार डा. सलमा जमाल जी ने  रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त । s 15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 22 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक लगभग 72 राष्ट्रीय एवं 3 अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन। अब तक १० पुस्तकें प्रकाशित।आपकी लेखनी को सादर नमन।) 

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

☆ ग़ज़ल – मश्क़ ए सुख़न ☆

पत्थर के सनम से ,

वफ़ा कर रहा हूं मैं ।

इल्ज़ाम लगा है कि ,

ज़फ़ा कर रहा हूं मैं ।।

 

तलाश है मंज़िल की ,

ख़ुदग़र्ज़ी का दौर है ।

रस्ते के ख़ार चुन के ,

सफा कर रहा हूं मैं ।।

 

ज़ुल्म पर खोलूं ज़बां ,

मेरी क्या बिसात ।

बेचा ज़मीर ख़ुद का

नफ़ा कर रहा हूं मैं ।।

 

मेरा दोस्त बेवजह ,

ही बद गुमान है ।

ज़फ़ाओं के बदले ,

वफ़ा कर रहा हूं मैं ।।

 

माँ बाप की ख़िदमत से,

जन्नत है हमारी ।

जानकर भी सलमा ,

ख़फ़ा कर रहा हूं मैं ।।

 

© डा. सलमा जमाल 

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 24 ☆ देश के जांबाज सैनिकों की शहादत को समर्पित ☆ श्री प्रह्लाद नारायण माथुर

श्री प्रहलाद नारायण माथुर

( श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी अजमेर राजस्थान के निवासी हैं तथा ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से उप प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। आपकी दो पुस्तकें  सफर रिश्तों का तथा  मृग तृष्णा  काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं तथा दो पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा  जिसे आप प्रति बुधवार आत्मसात कर सकेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता देश के जांबाज सैनिकों की शहादत को समर्पित। ) 

 

Amazon India(paperback and Kindle) Link: >>>  मृग  तृष्णा  

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 24 ☆देश के जांबाज सैनिकों की शहादत को समर्पित

उस माँ को नमन है जो सारे कष्ट पाकर पुत्र को जन्म देती है,

जान का खतरा जानते हुए भी उसे देश की सीमा पर भेजती है,

माँ ने उसके लिए जो सुनहरे सपने देखे वो कभी पूरे  नहीं हो पायेंगे ||

 

उस माँ के आगे नतमस्तक हूँ जो उसे शहीद होते अपनी आँखों से देखती है,

नम आँखों से उसे विदा करती है जो फिर कभी वापिस नहीं आएंगे ||

 

उस स्त्री को नमन है जो सब जानते हुए भी उसकी अर्धागिनी बन जाती है,

और भरी जवानी में पति के शहीद होने पर विधवा हो जाती है,

उसने पति संग जो सुहावने सपने देखे वो अब कभी पुरे नहीं पायेंगे ||

 

उस पत्नी के आगे नतमस्तक हूँ जो पति की शहादत अपनी आँखों से देखती है,

नम आँखों से उसे विदा करती है जो फिर कभी वापिस नहीं आएंगे ||

 

उन बच्चों को नमन है जो नन्ही आँखों से पिता की अर्थी उठते देखते हैं,

और अपने नन्हे कोमल हाथों से अपने पिता की चिता को अग्नि देते हैं,

पिता ने बच्चों के लिए जो सपने देखे वो अब कभी पूरे नहीं पायेंगे ||

 

इन बच्चों के आगे नतमस्तक हूँ जो पिता की मृत देह अपनी आँखों से देखते हैं,

इस बात से अनजान हो विदा देते हैं की ये कभी वापिस नहीं आएंगे ||

 

©  प्रह्लाद नारायण माथुर 

8949706002
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 61 ☆ तदबीर ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी  सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी  एक भावप्रवण रचना “तदबीर”। )

आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी के यूट्यूब चैनल पर उनकी रचनाओं के संसार से रूबरू हो सकते हैं –

यूट्यूब लिंक >>>>   Neelam Saxena Chandra

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 61 ☆

☆ तदबीर ☆

 

अच्छी तस्वीर से अच्छी तहरीर

बनना ज़रूरी नहीं है जनाब-

हाँ, अच्छी तहरीर ज़रूर

अच्छी तस्वीर बना सकती है|

 

सुनो,

कूट-कूटकर जोश और जुस्तजू को

अपनी ज़िंदगी की किताब के

हर एक सफ्हे पर बिछा दिया करो,

फिर उसे रौशनी के जुगनुओं से

खूबसूरती से सजा दिया करो-

देखना कैसे तबस्सुम की लाली

तहरीर पर छा जायेगी!

हाँ! वो हर पढने वाले के

अंग-अंग में समा जायेगी,

और उस पढने वाले की तस्वीर में

रंगत ही रंगत छा जायेगी!

 

तहरीर से खूबसूरत तस्वीर बनाना

यही ख़ास तदबीर है!

 

तहरीर – writing

सफ्हे – page

तदबीर – strategy

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ आत्ममुग्ध ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ आत्ममुग्ध ☆

हवा से फूलकर

गुब्बारा कुप्पा हुआ,

पिन चुभने भर की देर थी

किया धरा धराशायी हुआ,

आत्ममुग्धता की हवा भरती है

तब सच की पिन चुभती है,

फूटा गुब्बारा बिना दाम का

आत्मघाती मोह किस काम का?

©  संजय भारद्वाज 

प्रात: 10:06 बजे, 2.11.20

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ लेखनी सुमित्र की – दोहे ☆ डॉ राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम दोहे । )

 ✍  लेखनी सुमित्र की – दोहे  ✍

आंसू सूखे आंख के, सूख रही है देह।

इन यादों का क्या करूं, होती नहीं सदेह।।

 

याद तुम्हारी कुसुम -सी, खिली बिछी तत्काल ।

या समुद्र के गर्भ में, बिखरी मुक्ता माल।।

 

घन विद्युत सी याद है, देती कौंध उजास।

कभी-कभी ऐसा लगे, करती है परिहास।

 

सूना सूना घर मगर, दिखे नहीं अवसाद।

इसमें क्या अचरज भला, महक रही है याद।।

 

मास दिवस या वर्ष सब, होते गई व्यतीत।

किंतु याद की कोख में, है जीवन अतीत।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 27 – मैं ही था … ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज पस्तुत है आपका अभिनव गीत  “मैं ही था … । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 27– ।। अभिनव गीत ।।

☆ मैं ही था … ☆

कितने संघर्षों का मारा

मैं ही था

कुछ न कुछ रह गया

कुँआरा में ही था

 

छूट गया था कुछ

पड़ौस में कुछ घर में

कुछ कुछ छूटा था

कुर्सी पर दफ्तर में

 

कुछ हाटों में

बाजारों में छूटा था

जो कुछ भी बच

सका सहारा मैं ही था

 

आधा रहा बैंक में

आधा जेबों में

आधा रहा पाँयचों-

में पाजेबों में

 

कितनी गाँठों में

मुझ को बाँधा तुमने

कितनी गड़बडियों

का मारा मैं ही था

 

कुछ किताब में कुछ

कविता के पन्नों में

गाया गया खूब

शादी के बन्नों में

 

जैसे छूट गया

अपनों सँग बँधने से

जूड़े का वह बाल

तुम्हारा मैं ही था

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

26-11-2020

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

 

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ सापेक्षता ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ सापेक्षता ☆

घोर नीरव के बीच

कोलाहल मचाता मन,

भारी कोलाहल में

मन का क्वारंटीन,

परिभाषाएँ सापेक्ष होती हैं,

क्या कहते हो आइंस्टीन..?

 

©  संजय भारद्वाज 

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

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