हिन्दी साहित्य – कविता ☆ इतिहास… ☆ श्री जयेश वर्मा

श्री जयेश वर्मा

(श्री जयेश कुमार वर्मा जी  बैंक ऑफ़ बरोडा (देना बैंक) से वरिष्ठ प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। हम अपने पाठकों से आपकी सर्वोत्कृष्ट रचनाएँ समय समय पर साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक  अतिसुन्दर भावप्रवण कविता इतिहास…।)

☆ कविता  ☆ इतिहास… ☆

इतिहास, मज़लूमों को

दिवारों में चिनवा देता है,

 

गलत, सही, नहीँ, देखता,

वज़ीरों का साथ देता है,

 

क्यों सदियों, हम ही इस देश

में मज़लूम गुलाम रहे,

कहते रहे कि ये आये वो आये,

हम लड़े गुलाम हुए, बकवास है,

 

वो हमीं हम हमसे,

लडाते रहे, हमको,

यूँ ही, गुलाम रखे,

हम पर किये राज,

सब कुछ, लूट गये,

 

वो चंद लोग थे, चंद सिक्कों पे,

हम, वतन बेचते रहे,

लोग वही है, मुखोटे नए हैं,

हम फिर भरमाये गये हैं,

 

धरम बेचो, वतन बेचो,

सनम बेचो, खरीददार, वही हैं,

 

मगर, इस बार, याद रखना,

चल पड़ा है, वतन, नई बयार में,

लोगों के कारवां के साथ,

अबके, उनके तेवर नये हैं…

 

©  जयेश वर्मा

संपर्क :  94 इंद्रपुरी कॉलोनी, ग्वारीघाट रोड, जबलपुर (मध्यप्रदेश)
वर्तमान में – खराड़ी,  पुणे (महाराष्ट्र)
मो 7746001236

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ दस्तक ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ दस्तक ☆

तकलीफदेह है

बार-बार दरवाज़ा खोलना

जानते हुए कि

कोई दस्तक नहीं दे रहा,

ज़्यादा तकलीफदेह है

हमेशा दरवाज़ा बंद रखना

जानते हुए कि

कोई दस्तक दे रहा है,

बार-बार; लगातार!

©  संजय भारद्वाज 

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज # 71 ☆ गीत – “मैं जीवन हूँ , तू ज्योति है…” ☆ डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं उनकी एक  भावप्रवण गीत  “गीत – मैं जीवन हूँ ,तू ज्योति है… । ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 70 – साहित्य निकुंज ☆

☆ गीत – मैं जीवन हूँ ,तू ज्योति है…  ☆

भुलाकर दुश्मनी हमको, गले सबको लगाना  है ।

प्यार से जीवन है जीना, प्यार से गुनगुनाना है।

 

दूर न रह पाउँगा तुझसे, तुझे अपना बनाना है

तू मेरे ही करीब आये, तू मेरा शामियाना है।

 

तुझे मैंने ही चाहा है, तुझे मैंने ही जाना है

मेरा दिल तो तेरा ही, अब पागल दीवाना है।

 

तू प्यारा ही मुझे लगता, तेरे बस  गीत गाना है।

तेरे छोटे से दिल में तो. मेरा बस ही ठिकाना है।

 

मैं सच कहता हूँ बस तुझसे, मेरा तू आशियाना है।

मैं जीवन हूँ ,तू ज्योति है, तुझे बस मुस्कुराना है।

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ विसंगति ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ विसंगति ☆

पूनम के गीत

मावस के मीत हो गये,

कविता के छंद

उलझे गणित हो गये,

जिनकी आँखों में

बोया था भविष्य कभी,

हमारे बच्चे कहते हैं

हम अतीत हो गये।

©  संजय भारद्वाज 

25 अक्टूबर 2018 5:56 am

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ सन्दर्भ: एकता शक्ति ☆  डॉ राजेंद्र प्रसाद – भारत के प्रथम राष्ट्रपति ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  की  डॉ राजेंद्र प्रसाद जी के जन्मदिवस पर एक विशेष कविता  डॉ राजेंद्र प्रसाद –  भारत के प्रथम राष्ट्रपति।) 

☆ सन्दर्भ: एकता शक्ति ☆  डॉ राजेंद्र प्रसाद –  भारत के प्रथम राष्ट्रपति

 ग्राम जीरा देई प्रांत बिहार जन्म स्थान

रहकर कोलकाता में पाया ऊंचा ज्ञान

देश सेवा में रहे रत गांधी जी के साथ

सरल जीवन कितना कठिन अनुमान

 

बुद्धि में अतुलित प्रखर युग के बड़े विद्वान

स्वार्थ रहित विनम्र निश्चल छात्र गुणवान

राष्ट्रपति पद पर प्रतिष्ठित सरल निराभिमान

जैसे कि भारत का हो ग्रामीण कोई किसान

 

जिन्हें छू न पाया जीवन भर कभी अभिमान

जिन्हें था संप्राप्त भारत रत्न का सम्मान

थे प्रसिद्ध वकील अपने समय के विख्यात

उन्हीं के नेतृत्व में बना भारतीय संविधान

 

जो बिहार प्रदेश के जन जन के थे प्राण

सदाकत आश्रम का जिन्होंने करवाया निर्माण

देश के जो राष्ट्रपति पद पर रहे दो दो बार

कोई दिखता नहीं उन सा शांत और महान

 

उस विमल व्यक्तित्व की कर्म याद साभार

करते विनत प्रणाम सब मिल आज बारंबार

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 51 ☆ परमपिता से चाह ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत।  इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा  डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे । इस कड़ी में आज प्रस्तुत हैं    “परमपिता से चाह.)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 51 ☆

☆ परमपिता से चाह ☆ 

निष्काम भक्त

कहाँ है माँगता

धन-दौलत

यश-ऐश्वर्य

देह से देह को

भोगने के लिए

कंचन-कानन मृगनयनियाँ

परमपिता से

 

वह है माँगता

आत्मा की पावनता

निश्छलता

दयालुता

सन्मार्ग दिखाने की चाह

उठते-बैठते

खाते-पीते उसका सुमिरन

प्रदीप्त ज्योतित किरणें

जो मिटा सकें

अज्ञान अँधेरा सदियों का

 

न भटक जाए वह

कहीं अंधकार में

झूठे प्यार में

भौतिक संसार में

 

लेकिन मैं उससे

रहा माँगता

एक प्रबल कामना

हो अंतिम विदाई

सुखद

लोग करें आश्चर्य

अभी तो हँस-बोल रहा था

बिना कष्ट दिए

 

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 60 ☆ शून्य ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी  सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साbharatiinझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी  एक भावप्रवण रचना “शून्य”। )

आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी के यूट्यूब चैनल पर उनकी रचनाओं के संसार से रूबरू हो सकते हैं –

यूट्यूब लिंक >>>>   Neelam Saxena Chandra

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 60 ☆

☆ शून्य ☆

मैं शून्य हूँ-

हाँ, शून्य ही तो हूँ मैं!

 

न मेरा कोई रूप,

न ही मेरा कोई स्वरूप,

न मैं अधूरा,

न ही मैं पूरा,

न सोच के दायरे में बंधा हुआ,

न पानी में काई सा रुका हुआ,

न किसी सहर का इंतज़ार,

न कोई साहिल, न कहीं मझदार,

न मेरा सीना दरख़्त सा बड़ा,

न मैं किसी तमन्ना की आस में खड़ा,

न ख्वाहिशों के घेरे में क़ैद,

न चौकन्ना, न मुस्तैद…

 

आखिर मुझे कोई डर नहीं-

मैं तो शून्य हूँ,

मेरी कोई आरज़ू ही नहीं!

 

अब तो पसंद हो चला है मुझे

मुझे मेरा यूँ ही शून्य रहना,

न कुछ सुनना, न कुछ कहना;

पानी की एक बूंद सा

गिरकर आसमान से

कहीं भी बह लेता हूँ,

जो मुझे प्यार से बुलाता

उसी का हो लेता हूँ….

 

मैं शून्य हूँ!

 

कभी-कभी

कितना अच्छा होता है

शून्य हो जाना

और खो जाना

बहती सी हवाओं में…

तुम भी कभी

शून्य होकर देखो!

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ ग्लानि ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ ग्लानि  ☆

अखंड रचते हैं,

कहकर परिचय

कराया जाता है,

कुछ हाइकू भर

उतरे काग़ज़ पर

भीतर घुमड़ते

अनंत सर्गों के

अखंड महाकाव्य

कब लिख पाया,

सोचकर संकोच

से गड़ जाता है!

©  संजय भारद्वाज 

सुबह 9.24, 20.11.19

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ शांति शांति ☆ सुश्री अंजली श्रीवास्तव

सुश्री अंजली श्रीवास्तव

☆ कविता ☆ शांति शांति ☆ सुश्री अंजली श्रीवास्तव☆

बहुत हुआ रक्तपात अब ,वसुंधरा पुकारे शांति शांति,

हाहाकार मचा चतुर्दिक, अब हृदय पुकारे शांति शांति!

 

धुएँ में घुटता वायुमंडल, अब गगन पुकारे शांति शांति,

जीव जंतु कर रहे त्राहि त्राहि,वनस्पतियाँ पुकारें शांति शांति!

 

इस विनाश में कहाँ संभव है, मानव का कल्याण कभी,

अब तो युद्ध समाप्त करो, मानवता पुकारे शांति शांति!

 

© सुश्री अंजली श्रीवास्तव

26/11/2020

संपर्क – सी-767सेक्टर-सी, महानगर, लखनऊ – 226006

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ लेखनी सुमित्र की – दोहे ☆ डॉ राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम दोहे । )

 ✍  लेखनी सुमित्र की – दोहे  ✍

आंसू सूखे आंख के, सूख रही है देह।

इन यादों का क्या करूं, होती नहीं सदेह।।

 

याद तुम्हारी कुसुम -सी, खिली बिछी तत्काल ।

या समुद्र के गर्भ में, बिखरी मुक्ता माल।।

 

घन विद्युत सी याद है, देती कौंध उजास।

कभी-कभी ऐसा लगे, करती है परिहास।

 

सूना सूना घर मगर, दिखे नहीं अवसाद।

इसमें क्या अचरज भला, महक रही है याद।।

 

मास दिवस या वर्ष सब, होते गई व्यतीत।

किंतु याद की कोख में, है जीवन अतीत।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares