श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं “संतोष के दोहे”। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 61 ☆
☆ संतोष के दोहे ☆
अंतस दीपक जब जले, हो मन में उजियार
रखिये दीपक देहरी, रोशन हों घर द्वार
धर्म-कर्म ही बढ़ाता, अंतस का आलोक
यही लगाता है सदा, बुरे कर्म पर रोक
अंधकार की आदतें, रोकें सदा उजास
सूरज की पहली किरण, करतीं तम का नाश
सामाजिक सौहार्द्र में, रहे प्यार सहकार
सच्चे मानव धरम का, एक यही उपहार
लिए वर्तिका प्रेम की, दीप देहरी द्वार
दीवाली में हो रही, खुशियों की बौछार
धरती-सूरज-आसमाँ, सबका अपना मोल
इनके ये उपकार सब, होते हैं अनमोल
© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
सर्वाधिकार सुरक्षित
आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799