हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रचना संसार # 17 – नवगीत – दिव्य नव कविता… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ☆

सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम रचना – नवगीत – दिव्य नव कविता… 

? रचना संसार # 17 – गीत – दिव्य नव कविता… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

नित नये हैं बिंब लेकर,

दिव्य नव कविता चहकती।

लय सदा अनुपम निरंतर,

श्वेत पत्रों पर चमकती।।

 *

नवरसों से है अलंकृत,

शब्द में संदेश धारा।

चेतना के व्योम छूती,

इंद्रधनुषी वेश सारा।।

धार उन्नत लेखनी में,

शिल्प अद्भुत है समाया।

शारदे की है कृपा भी,

प्रेम अंतस् में जगाया।।

व्यंग्य करती है अनूठे,

पायलों -सी है खनकती।

 *

नित गढ़े उपमा नवल यह,

नव सृजन आभास लाती,

भाव गहरे सिंधु से भी,

रूप अद्भुत रास आती।।

घट भरे शृंगार के हैं

नित छटा अनुप्रास मिलती।

शूल राहों के हटाकर,

तूलिका है नित्य खिलती।।

बैठ कर साहित्य रथ पर,

आज नव कविता ठुमुकती।

 *

कल्पना उन्मुत्त उड़ती,

नव शिखर आनंद लाए ।

ज्ञान का आलोक देती,

काव्य में मकरंद भाए।।

सींचती है बिंब  चिंतन,

गंध देती रात रानी ।

तोड़हर बंधन बही है,

झील-झरनों की कहानी।।

है मदन सुर सोमरस- सा,

लेखनी कवि की चहकती।

 

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- [email protected][email protected]

≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #245 ☆ कविता – लहराता आंचल खुले केश… ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं कविता – लहराता आंचल खुले केश)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 245 – साहित्य निकुंज ☆

☆ कविता – लहराता आंचल खुले केश☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

तुझपर पड़ी नजर मेरी यह देखकर।

भर लूं आगोश में तुम्हें देखकर।

*

तुम तो खोई हो जाने किन ख्याल में।

मासूम  दिखती हो तुम यह देखकर।।

*

तन्हा तन्हा क्यों हो क्या सोचती।

अधर गुलाबी हो रहे क्या सोचकर।।

*

खिल रही अधरोंं पर हसीं मुस्कान।

ख्वाब में मुलाकात उनसे मानकर।।

*

सजना ने की शरारत ये सोच लिया।

अभिसार की हकीकत ये जानकर।।

*

तुम एक ताजा गजल हो मैं मानता।

मैं गाना चाहता हूं तेरा सुर साधकर।।

*

तुम हो हुस्न की मलिका  कमलनयनी।

मैं देखना चाहता हूं एक नजर भरकर।।

*

लहराता आंचल खुले केश बिखरे।

निडरता से सोई हो क्या सोचकर।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #227 ☆ दो मुक्तक… बारिश ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है दो मुक्तक… बारिश आप  श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 227 ☆

☆ दो मुक्तक बारिश ☆ श्री संतोष नेमा ☆

बारिश जब भी झमाझम होती है

सड़कें  खून  के  आंसू  रोती   हैं

नाले शहर के चलते हैं इठलाकर

बस्तियां गरीब की कहां सोती  है

*

नर्मदा    पार    बना     गुरुद्वारा

मोहक  लगती  जल   की  धारा

विदेशी  पक्षी  भ्रमण  पर  आते

जबलपुर  अपना  सबसे  न्यारा

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

रिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 70003619839300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ – विडंबन गीत… – ☆ सौ. रेखा दयानंद हिरेमठ ☆

सौ. रेखा दयानंद हिरेमठ

? कवितेचा उत्सव ?

☆ – विडंबन गीत… – ☆ सौ. रेखा दयानंद हिरेमठ

(चाल – लटपट लटपट तूझं चालणं)

चमचम  चमचम चमचम चमचम

तुझं चमकणं साऱ्यांच्या नजरेत

नेसणं तुला अंमळ कष्टांचं

साडी ग…साडी ग..ग साडी ग..ग साडी ग…

*

विविधता नवनवतीची, कितीक रंगाची नव्या ढंगाची

 ह्रदयाच्या तू  जवळी

दिसे नार तुझ्यामुळे चवळीची शेंग कवळी

तूला  नेसून ती  मिरवी

असे नार तूझ्यासाठी पहा किती हळवी

बाईपण ती जपते ने मिरवते तोऱ्यात

आवडे कौतुक स्वतःचं

फिटे मग पारणं डोळ्यांचं

साडी ग…साडी ग..ग साडी ग..ग साडी ग…

*

नऊवारी चा डौल, शालू अनमोल, पटोला पहा ना

 कशिद्यावरती राघू मैना

 कितीही असल्या तरी मन काही भरेना

साडीचं दुकान सोडवेना

बिलाचा आकडा बघून नवऱ्याची होई  दैना

असा हा महिमा साडीचा

साडीवरचं प्रेम असं आम्हा बायकांचं

पुढेही चालतंच रहायचं

तिच्या पुढे चालेना ड्रेसचं

साडी ग…साडी ग..ग साडी ग..ग साडी ग….. 

*

🥰दEurek(h)a 😍

🥰दयुरेखा😍

© सौ. रेखा दयानंद हिरेमठ

सांगली

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ बिदाई… ☆ डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’ ☆

डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’

(डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’ जी  बेंगलुरु के नोबल कॉलेज में प्राध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं एवं  साहित्य की विभिन्न विधाओं की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में मन्नू भंडारी के कथा साहित्य में मनोवैज्ञानिकता, दो कविता संग्रह, पाँच कहानी संग्रह,  एक उपन्यास (फिर एक नयी सुबह) विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इसके अतिरिक्त आपकी एक लम्बी कविता को इंडियन बुक ऑफ़ रिकार्ड्स 2020 में स्थान दिया गया है। आपका उपन्यास “औरत तेरी यही कहानी” शीघ्र प्रकाश्य। आप कई विशिष्ट पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता बिदाई… ।)  

☆ कविता ☆ बिदाई… ☆ डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’ ☆

सूरज, चांद और बादल,

अपना-अपना करते काम,

एक लगाव है उनसे.

समुंदर की लहरों में भी,

कई बार उफ़ान आता-जाता है.

फ़िर भी किसी को बुरा नहीं लगता.

बुरा तो मात्र औ’ मात्र!!!

अपनों के बिछुडने का लगता,

बंद आखों में सपने सँजोए,

निकल पड़े कँटीली राह पर,

बचपन की यादें बरबस ही आती,

भुलाए नहीं भूलती ये यादें,

वह नटखटपन तेरा,

माँ के साथ लड़ना,

यूँ झूठ बोलना किसी को भी,

नहीं होता इल्म जिसका,

पकड़े जाने पर मुस्काना,

लिखने पर आलस्य करना,

हर बात के लिए माँ से डाँट खाना,

कभी प्यार से बतियाना,

कभी माँ के लिए तोहफा लाना,

बिदाई सिर्फ लड़कियों की नहीं,

होती है बिदाई हर किसी की,

जो घर से बाहर जाता है,

चहारदीवारी में सिमटा हुआ,

आज निकला चांद का टुकडा,

चांदनी फैलाने को समाज में,

पहले था समय प्राचीन…

जब घर से सिर्फ औ’ सिर्फ,

होती लड़की की बिदाई,

आज तो निकल पड़े लड़के भी,

सपने को करने साकार,

घर से दूर जाकर अनजान जगह,

अनजान लोगों के बीच…

बनाने पहचान चल पड़े राही,

रुखसत में याद आती बातें,

यादों का जहाँ बना फिरदौस,

वादियों में नज़र आता चेहरा,

कारवाँ यूँ ही चलता रहेगा,

बिदाई सही अर्थों में हुई आज,

बस भर आती आँखे…

ताउम्र संजोएँगे सपने,

याद आएगी वो हर रात,

गुज़रे हुए पल-वो लम्हा,

जो बिताया है साथ में,

फिर से हुई आँखे नम,

रोके नहीं रूकते आँसू,

याद मात्र याद बनकर रह गई,

नादान पुत्तर बनना काबिल इंसान,

ज्ञान का दीपक बनकर लौटना,

इंतज़ार रहेगा इन आँखो को,

एक खिलता हुआ गुलाब देखने की,

यही आशीर्वाद है, यही आशीर्वाद है…

© डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’

संपर्क: प्राध्यापिका, लेखिका व कवयित्री, हिन्दी विभाग, नोबल कॉलेज, जेपी नगर, बेंगलूरू।

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #242 – कविता – ☆ पावस प्रणाम… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता पावस प्रणाम” ।)

☆ तन्मय साहित्य  #242 ☆

☆ पावस प्रणाम… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

धरा की अम्बर से मनुहार

रम्य ऋतु पावस के उपहार

बँधे झूले अमुआ की डार

हुई स्वीकृत सब निविदाएँ

ऐसे स्नेहिल मौसम में

कुछ गीत गुनगुनाएँ

चलो हम सावन हो जाएँ।।

 

ताप मिटा तन का वसुंधरा पावस नीर नहाई

हरी ओढ़नी ओढ़ प्रफुल्लित मन ही मन मुस्काई

मची बादल बिजुरी में रार

बँटे नहीं उसका अपना प्यार

कुपित हो चमके बारम्बार7

आँख धरती को दिखलाए

ऐसे स्नेहिल मौसम में

कुछ गीत गुनगुनाएँ

चलो हम सावन हो जाऍं।।

 

ताल-तलैया भरे

बाँध ने तोड़ी निज मर्यादा

नदी विहँसती चली लक्ष्य

प्रियतम सिन्धु का साधा

झमाझम पावस की बौछार

झींगुरों की अविचल गुंजार

प्रकृति में बज उठे सितार

बीज खेतों में अँकुराए

ऐसे स्नेहिल मौसम में

कुछ गीत गुनगुनाएँ

चलो हम सावन हो जाएँ।।

 

पशु पक्षी वनचर विभोर

नव युगल मुदित बौराये

बाँच रहा सावन प्रेमिल

पावस की पुनित ऋचाएँ

पुण्यमय पर्व तीज त्योहार

सृष्टि में आया नवल निखार

प्रीत की बहती रहे बयार

करें नित नई सर्जनाएँ

ऐसे स्नेहिल मौसम में

कुछ गीत गुनगुनाएँ

चलो हम सावन हो जाएँ।।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 66 ☆ यादों की परछाँई… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “यादों की परछाँई…” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 66 ☆ यादों की परछाँई… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

बतियाते हैं

दिन भर दिन से

रात बदलते करवट कटती।

 

तिथि बाँचते

पोथी पत्तर

तीज पर्व हैं आते-जाते

कृष्ण पक्ष से

शुक्ल पक्ष तक

सूरज रखते चाँद उठाते

 

नक्षत्रों के

चरण पकड़ते

भाग्य रेख कब बढ़ती घटती ।

 

गये दिनों का

लेखा जोखा

ख़ालीपन हाथों में लेकर

चुपके-चुपके

वर्तमान को

भरते रहे तसल्ली देकर

 

बैठ अनागत

आहट सुनते

केवल उम्र पहाड़ा रटती।

 

उढ़ा मखमली

चादर तन की

रिश्तों की बगिया महकाई

जोड़-जोड़ कर

सिलते हरदम

संबंधों की फटी रज़ाई

 

अब यादों की

परछाँई में

अपनेपन की छाँव भटकती।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 70 ☆ फूल की उम्र चंद लम्हों हैं… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “फूल की उम्र चंद लम्हों हैं“)

☆ साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 70 ☆

✍ फूल की उम्र चंद लम्हों हैं… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

ये करामात है बहारों की

बाढ़ आई है जो नज़ारों की

पीठ पर ज़ख्म देखने वालों

ये इनायत है मेरे यारों की

 *

चाँद का हाथ बाँटने के लिए

कहकशाँ आ गई सितारों की

 *

फूल की उम्र चंद लम्हों हैं

उम्र लम्बी बड़ी है खारों की

 *

आदमी ढो रहे हैं ग़म के पहाड़

चाह मत करिए ग़म गुसारों की

 *

पहले कुदरत जता दे खतरे को

समझें हम बात कब  इशारों की

 *

आपके गर कलाम में है दम

क्या जरूरत है इश्तहारों की

 *

धन कुबेरों के साथ है संसद

फ़िक़्र किसको है खाक़सारों की

 *

आग दमकल नहीं बुझा सकती

भड़की नफ़रत के जो शरारों की

 *

ये भी विज्ञान की है भेंट अरुण

छीन रोज़ी ली दस्तकारों की

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 67 – देखकर चाँद भी तुमको, जल जाएगा… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – देखकर चाँद भी तुमको, जल जाएगा।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 67 – देखकर चाँद भी तुमको, जल जाएगा… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

कल की बातें न कर, देखा कल जाएगा 

ये मिलन का मुहूरत निकल जाएगा

*

आज भी तेरा कल, कल में बदला अगर 

देखना, दम हमारा, निकल जाएगा

*

हुस्न पर थोड़ा परदा रखा कीजिए

देखकर, चाँद भी तुमको, जल जाएगा

*

हस्न के ये शरारे, न भड़काइये 

पास आने से, पत्थर पिघल जाएगा

*

वादियों में अकेले न घूमा करो 

कोई भँवरा, कभी भी मचल जाएगा

*

रूप पर अपने, इतना न इतराओ तुम 

एक दिन, रूप-यौवन भी ढल जाएगा

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – विदेह ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – विदेह ? ?

बूझता हूँ पहेली-

कटोरे में कटोरा

पुत्र, पिता से गोरा,

भीतर झाँकता हूँ, 

अपनी देह के भीतर

एक और देह पाता हूँ,

इस देह का भान

सांसारिक प्रश्नों को

कर देता है बौना,

अपनी आँख से

अपनी आँख में देखो,

देह से विदेह कर देता है

इस देह का होना…!

© संजय भारद्वाज  

रात्रि 3:22 बजे, 12 जुलाई 2021

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्रवण मास साधना में जपमाला, रुद्राष्टकम्, आत्मपरिष्कार मूल्याकंन एवं ध्यानसाधना करना है 💥 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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