हिन्दी साहित्य – कविता ☆ जन्मदिवस विशेष ☆ सन्दर्भ – अभिव्यक्ति ☆ डॉ राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं।

? सर्वप्रथम गुरुवर डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’ जी को आज उनके जन्मदिवस पर हार्दिक बधाई ?

 ✍ ☆ जन्मदिवस विशेष ☆ सन्दर्भ – अभिव्यक्ति  ✍

(आज से 2 वर्ष पूर्व आपके आशीष स्वरूप इस कविता से ई-अभिव्यक्ति का शुभारम्भ किया था। यह मेरे लिए गुरमन्त्र है एवं समय-समय पर मुझे मेरा दायित्व  बोध कराती रहती है। )

संकेतों के सेतु पर

साधे काम तुरंत |

दीर्घवयी हो जयी हो

कर्मठ प्रिय हेमंत

काम तुम्हारा कठिन है

बहुत कठिन अभिव्यक्ति

बंद तिजोरी सा यहां

दिखता है हर व्यक्ति

मनोवृति हो निर्मला

प्रकटें निर्मल भाव

यदि शब्दों का असंयम

हो विपरीत प्रभाव ||

सजग नागरिक की तरह

जाहिर हो अभिव्यक्ति

सर्वोपरि है देशहित

बड़ा न कोई व्यक्ति||

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈     

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ विजयादशमी पर्व विशेष ☆ त्यौहार दशहरा ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत।  इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा  डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’विजयादशमी पर्व पर आज प्रस्तुत है आपकी एक कविता  “त्यौहार दशहरा.)

☆ विजयादशमी पर्व विशेष –  त्यौहार दशहरा ☆ 

राम चरित की शक्ति  है

त्योहार दशहरा

धर्म विजय की अमरबेल

त्योहार दशहरा।।

 

दुष्टों के संहार हेतु ही

शस्त्र उठाने पड़ते हैं

हर युग में ही राम

शत्रु से लड़ते हैं।।

 

पुण्य पावनी धरती पर

सत्य सदा ही जीतेगा

युगों-युगों से काल चक्र

इस तरह सदा ही बीतेगा।।

 

सन्देश सदा ये देता आया

शत्रु स्वयं के पहचानो

अहम, क्रोध,लोभ, घृणा को

जितना हो जल्दी जानो।।

 

सबको ही सत प्रेम बाँटकर

हर अच्छाई को ठानो

मन पापों से मुक्त रहेगा

राम-कृष्ण को ही मानो।।

 

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 26 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 26 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 26) ☆ 

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

☆ English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 26☆

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

मेरी ना सही, तो ना सही

तो आपकी  होनी चाहिए,

तमन्ना किसी एक की तो

जरूर पूरी होनी चाहिए…

 

No problem, if not mine, then

Your wish should be met,

But  the  desire  of atleast

One of us  must  be fulfilled…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

किसी ने मुझसे पूछा कि

दर्द  की  कीमत क्या है?

मैंने कहा, मुझे नहीं पता…

मुझे तो मुफ्त में ही मिला

बस कुछ लोगों पर हद से

ज्यादा  यकीन  किया था!

 

Someone  asked  me…

what is the cost of pain

I  said, I  don’t  know

since I  got  it  for free

I only believed in  some

people to  the extreme!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

ये  भी कैसा अजब नशा है

किस  गजब ख़ुमार  में हूँ,

तू आ के जा भी चुका है

और मैं तेरे इंतज़ार में हूँ…

 

What type of strange

intoxication  is  this

What  an  amazing

hangover  I  am  in…

 

You have come

and  gone  also

And,  I  am  still      

waiting for you…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈  Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 26 ☆ नमन मीनाक्षी सुवाचा…. ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है  आचार्य जी  की एक रचना  नमन मीनाक्षी सुवाचा….। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 26 ☆ 

नमन मीनाक्षी सुवाचा….☆ 

अरुण अर्णव लाल-नीला

अहम् तज मन रहे ढीला

स्वार्थ करता लाल-पीला

छंद लिखता नयन गीला

संतुलन चाबी, न ताला

बिना पेंदी का पतीला

 

नमन मीनाक्षी सुवाचा

गगन में अरविंद साँचा

मुकुल मन ने कथ्य बाँचा

कर रहा जग तीन-पाँचा

मंजरी सज्जित भुआला

 

पुनीता है शक्ति वर ले

विनीता मति भक्ति वर ले

युक्तिपूर्वक जिंदगी जी

मुक्ति कर कुछ कर्म वर ले

काल का सब जग निवाला

 

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ विधान  ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? सभी मित्रों को दुर्गाष्टमी की हार्दिक बधाई ?

त्योहार विधिवत एवं सामूहिक रूप से मनाएँ।

अनुरोध है कि कन्यापूजन निमित्त अधिकाधिक निर्धन बच्चियों को भोजन कराएँ।

यह हमारा सामाजिक दायित्व भी है। साथ ही इन बच्चियों के जीवन में थोड़े समय के लिए आनंदरस घोल कर हम स्वयं भी आनंदित होंगे। यूँ भी आनंद से ही परमानंद की दिशा में यात्रा हो सकती है।     …संजय भारद्वाज 

☆ संजय दृष्टि  ☆ विधान ☆

चाँदनी के आँचल से

चाँद को निरखते हैं,

इतने विधानों के साथ

कैसे लिखते हैं..?

सीधी-सादी कहन है मेरी

बिम्ब, प्रतीक,

उपमेय, उपमान

तुमको दिखते हैं..!

 

©  संजय भारद्वाज 

21.10.20, रात्रि 10:09

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ नवरात्रि विशेष☆ देवी गीत – ….तुम्हारे दर्शन को ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

( आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित नवरात्रि पर्व पर विशेष  देवी गीत ….तुम्हारे दर्शन को । ) 

☆ नवरात्रि विशेष  ☆ देवी गीत – ….तुम्हारे दर्शन को ☆

 

पावन नवरात्री की बेला, उमड़ी है माँ भीड़,  तुम्हारे दर्शन को

 

मां सबकी तुम एक सहारा, पाने को आशीष तुम्हारा

आये चल के बड़ी दूर से, तुम्हें चढ़ाने नीर, तुम्हारे दर्शन को

 

तुम्हें ज्ञात हर मन की भाषा, आये हम भी ले अभिलाषा

छू के चरण शाँति पाने माँ, मन है बहुत अधीर, तुम्हारे दर्शन को

 

भाव सुमन रंगीन सजाये, पूजा की थाली ले आये

माला , श्रीफल , और भौग में , फल मेवा औ खीर, तुम्हारे दर्शन को

 

मन की कहने, मन की पाने, आशा की नई ज्योति जगाने

तपते जीवन पथ पर चलते, मन में है एक पीर, तुम्हारे दर्शन को

 

मां भू मंडल की तुम स्वामी, घट घट की हो अंतर्यामी

देकर आशीर्वाद, कृपाकर, लिख दो नई तकदीर, तुम्हारे दर्शन को

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ कविता का जन्म ☆ डॉ कामना तिवारी श्रीवास्तव

डॉ कामना तिवारी श्रीवास्तव

(आज  प्रस्तुत है  डॉ कामना तिवारी श्रीवास्तव जी  की एक विचारणीय कविता कविता का जन्म।  

☆ कविता – कविता का जन्म ☆

 

कैसे होता है

कविता का जन्म

वो केसे उपजती है

सजती और

सजाती है जीवन को

कैसे होता है

कविता का जन्म

वो कैसे उपजती है

सजती और

सजाती है जीवन को

मन को।

 

माना कि

प्रेम शक्ति है

जीवन जीने की

उससे भी ज्यादा अहमियत है पसीने की

प्रेम और पसीना

दोनों जरूरी हैं

कविता के लिए

और कविता जरूरी है जीवन के लिए

 

© डॉ कामना तिवारी श्रीवास्तव

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ हाँ, तू इंसान है ☆ श्री कपिल साहेबराव इंदवे

श्री कपिल साहेबराव इंदवे 

(युवा एवं उत्कृष्ठ कथाकार, कवि, लेखक श्री कपिल साहेबराव इंदवे जी का एक अपना अलग स्थान है. आपका एक काव्य संग्रह प्रकाशनधीन है. एक युवा लेखक  के रुप  में आप विविध सामाजिक कार्यक्रमों में भाग लेने के अतिरिक्त समय समय पर सामाजिक समस्याओं पर भी अपने स्वतंत्र मत रखने से पीछे नहीं हटते.  आज प्रस्तुत है समसामयिक विषय पर आधारित एक कविता  हाँ, तू इंसान है।) 

 ☆ कविता – हाँ, तू इंसान है ☆

किरदार बदले,

सूरतें बदली,

जगह बदली शहर भी

लेकिन,

काम वही,

अंज़ाम वहीं

काम भी इतना घिनौना

कि हैवानियत भी शर्मसार हो जाए

ख़ुद को समझने वाले इन्सान को देखकर

जानवर भी ख़ुदकुशी कर जाए

हे इन्सान,

सदियों से नारी को

तूने कमज़ोर बनाया है

कभी निर्भया, आसिफा,

कभी प्रियंका, मनीषा

न जाने कितने नामों को सताया है।

ख़ुद बुराई भी जिसके खिलाफ़ खड़ी हो

ऐसा घिनौना काम हुआ हैं

कई शहरों के नाम बदले

हर जगह एक ही अंजाम हुआ है

हैवानो से भी उपर उठकर

इन्सान तेरे कर्म हैं

इंसानियत तूझमे जिंदा ही नहीं

ऐसा तू बेशर्म हैं।

हे,

इंसानियत के नाम पर कलंक

क्या तुझमें दिल नहीं,

किसी मासूम की चीत्कार से

तेरा कलेजा फट जाता नहीं,

सिर्फ एक बार सोच कर देख

तू इन्सान है

हाँ,

तू इन्सान है।

 

 © कपिल साहेबराव इंदवे

मा. मोहीदा त श ता. शहादा, जि. नंदुरबार, मो  9168471113

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ बाल कविता – इंद्रधनुष ☆ सुश्री ज्योती महाजन

☆ बाल कविता – इंद्रधनुष ☆ सुश्री ज्योती महाजन ☆ 

 

रंग बिरंगे फूलों जैसा

रंगोली के रंगों जैसा

तितली के सुंदर पंखों जैसा

दुल्हन की रंगी मेहंदी जैसा

मन को भाता नयन सुहाता

बच्चों और बड़ों का प्यारा

रहा है और रहेगा सबका दुलारा

बरसात के बाद आसमान में झलकता

विशाल निले अम्बर को सजाता

सात रंगों से बना सजीला

मानो स्वर्ग का द्वार लचीला

सबको लुभाता, कितना प्यारा

धरती पर मानों स्वर्ग है उतरा….

मन भावन स्वरूप खुशी दिलाता

– इंद्रधनुष है यह कहलाता…

 

©  सुश्री ज्योती महाजन

Mobile:  8830167199

Email id:  [email protected]

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry (Classical Translation) ☆ बेहतरीन शायरियाँ – लगता नहीं है जी मेरा उजड़े दयार में…. /I don’t  feel  inspirited at all in this desolated abode… – बहादुर शाह ज़फर ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.)

We present a Classical Translation of Mughal emperor Bahadur Shah Zafar’s Classical Shayari “लगता नहीं है जी मेरा उजड़े दयार में…”  Mughal emperor Bahadur Shah Zafar had composed this very soulful immortal ghazal, when he was imprisoned in Burma, away from his motherland, where he eventually died.

In Capt. Pravin Raghuvansi ji  wordsI always had a great desire to do an English paraphrasing of it, while retaining its spirit and emotions… ” 

We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit,  English and Urdu languages) for this classical translation.

बहादुर शाह ज़फर 

 ☆ लगता नहीं है जी मेरा उजड़े दयार में …. ☆ 

कैप्टेन  प्रवीण रघुवंशी:  बहादुर शाह ज़फर की एक बहुत भावपूर्ण, अमर कालजयी रचना है: “लगता नहीं है जी मेरा उजड़े दयार में…” बड़ी इच्छा थी कि इसका एक भावानुवाद किया जाये… .

 

लगता नहीं है जी मेरा

उजड़े  दयार  में

किस  की  बनी  है

आलम-ए-ना-पायेदार में

 

बुलबुल को बाग़बां से

न  सैय्याद से  गिला

क़िस्मत में क़ैद थी लिखी

फ़सल-ए-बहार  में

 

उम्र-ए-दराज़ माँग के

लाये थे चार दिन

दो आरज़ू में कट गये,

दो इंतज़ार में…

 

कह दो इन हसरतों से

कहीं  और जा  बसें

इतनी जगह कहाँ है

दिल-ए-दाग़दार  में

 

है कितना बदनसीब

ज़फ़र दफ़्न के लिये

दो  गज़  ज़मीन भी

न मिली कू-ए-यार में

 

☆ I don’t  feel  inspirited at all in this desolated abode …. ☆

(Captain Pravin Raghuvanshi: Mughal emperor Bahadur Shah Zafar had composed a very soulful immortal ghazal, when he was imprisoned in Burma, away from his motherland, where he eventually died:  “Lagta nahi hai jee mera ujde dayar mei…”

I always had a great desire to do an English paraphrasing of it, while retaining its spirit and emotions… Here’s an attempt…

 

I don’t  feel  inspirited at all

in this desolated abode, but

Whose happiness has  ever

lasted in this transient world

 

Nightingale has no complaint

With the  gardener or fowler

When  destiny  itself scripted

its captivity in peak of spring

 

Was  granted  four  days

of  life  as  a  benefaction…

Two were spent in desires,

while remaining two in wait

 

Please  tell  these desires to

settle down somewhere else

There isn’t enough room left

in this overly blotched heart

 

How  much  unfortunate,  I,

Zafar*  is, who couldn’t  find

Two yards of land for  burial

In the street of dear homeland!

*Zafar – India’s last Mughal emperor, Bahadur Shah, also known as Zafar, died in a British prison in Burma, longing for his country….

© Captain (IN) Pravin Raghuanshi, NM (Retd),

Pune

≈  Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

 

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