श्री प्रहलाद नारायण माथुर
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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 17 ☆ समुंदर जैसा जीवन ☆
समुंदर जैसा जीवन जीने की चाह मेरे मन में नहीं,
समुंदर में उठते तूफानों को झेलना मेरे बस की बात नहीं ||
सांय-सांय सी आवाज कर समुंदर में ऊँची उठती लहरें,
जिंदगी में इन लहरों से टकराना मेरे बस की बात नहीं ||
तेज हवाओं से हिलोरे लेता समुंदर आक्रोशित दिखता,
समुंदर जैसा आक्रोश दिखाना मेरे बस की बात नहीं ||
अंतहीन समुंदर में बड़े जहाज भी हिचकोले भरते हैं,
मैं छोटी सी ताल बड़े जहाजों को झेलना मेरे बस की बात नहीं ||
लहरें ऊंची-नीची बहकर समुंदर तट से टकराती है,
अपनों से टकराकर अपनों के संग जीना मेरे बस की बात नहीं ||
© प्रह्लाद नारायण माथुर