श्री एस के कपूर “श्री हंस”
☆ “श्री हंस” साहित्य # 125 ☆
☆ ग़ज़ल ☆ ।। बहुत ही यह बेमिसाल है जिंदगी।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆
[।।काफ़िया।। आल ।। -।।रदीफ़।। है जिंदगी।।]
☆
[1]
खेलो तो तब गुलाल है जिंदगी।
बहुत ही यह बेमिसाल है जिंदगी।।
[2]
हार जाये जब मन से कोई आदमी।
तो बस फिर इक़ मलाल है जिंदगी।।
[3]
बस यूँ ही गुजारी तनाव में गर तो।
जान लीजिए कि बेहाल है जिंदगी।।
[4]
गर ढूंढा न जवाब हर बात का हमने।
तो मानो सवाल ही सवाल है जिंदगी।।
[5]
जियो जिंदगी अंदाज़ नज़र अंदाज़ से।
नहीं तो फिर बस बवाल है जिंदगी।।
[6]
गर जी जिंदगी मिलकर सहयोग से।
तो जान लो फिर कमाल है जिंदगी।।
[7]
बस लगे रहे हमेशा. अपने मतलब में।
तो बन जाती बदहाल है जिंदगी।।
[8]
गर घिर गए हम नफरत के जाल में।
तो फिर ये बिगड़ी चाल. है जिंदगी।।
[9]
जियो और जीने दो की राह पर चलो।
तो फिर बनती जलाल है जिंदगी।।
[10]
हंस बस हँसकर ही काटो गमों दुःख में।
यकीन मानो रहेगी खुशहाल है जिंदगी।।
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© एस के कपूर “श्री हंस”
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