डॉ निधि जैन
( डॉ निधि जैन जी भारती विद्यापीठ,अभियांत्रिकी महाविद्यालय, पुणे में सहायक प्रोफेसर हैं। आपने शिक्षण को अपना व्यवसाय चुना किन्तु, एक साहित्यकार बनना एक स्वप्न था। आपकी प्रथम पुस्तक कुछ लम्हे आपकी इसी अभिरुचि की एक परिणीति है। आपका परिवार, व्यवसाय (अभियांत्रिक विज्ञान में शिक्षण) और साहित्य के मध्य संयोजन अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “लम्हों की किताब ”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆निधि की कलम से # 11 ☆
☆ लम्हों की किताब ☆
लम्हों की किताब में यादों को शब्दों में पिरोकर, कुछ बात मैंने कही हैं,
माँ छूटी मायका छूटा कई रिश्ते जुड़े, एक मजबूत रिश्ता तुम्हारा भी है,
शहर बदले रास्ते बदले दोस्त बदले, कई रास्ते बदलने के बाद,
नये साथ के साथ एक साथ तुम्हारा भी था,
लम्हों की किताब में यादों को शब्दों में पिरोकर, कुछ बात मैंने कही हैं।
तिनका तिनका जोड़ा बूंद-बूंद को समेटा,
घर के द्वार खिड़की जोड़ी, मेरे कन्धों के साथ एक कन्धा तुम्हारा भी था,
ख्वाब टूटे, फिर टूटे, नए सपने टूटे फिर जुड़े,
रात में घबरा कर जब उठे, तो एक तकिया तुम्हारा भी था,
लम्हों की किताब में यादों को शब्दों में पिरोकर, कुछ बात मैंने कही हैं।
मौसम बदले काले बादल आए,
आँसू झरे डर गई, गमों में डूब गई एक आँसू तुम्हारा भी था,
बेटा आया, फूलों सी मुस्कान लाया,
आँखों में नए ख्वाब नई रोशनी आई, उसमे एक मुस्कान तुम्हारी भी थी,
लम्हों की किताब में यादों को शब्दों में पिरोकर, कुछ बात मैंने कही हैं।
बात पुरानी हो गई, किताबों के पन्ने मैले हो गए,
काई पतझड़ सावन आ कर चले गए, जीवन ने समय के साथ मौसम बदले,
फिर भी हम साथ चलते-चलते, लम्हों की किताब बन गई,
हर लम्हें का एक-एक पन्ना खुलता गया, उम्र कटती जा रही है,
लम्हों की किताब में यादों को शब्दों में पिरोकर, कुछ बात मैंने कही हैं।
© डॉ निधि जैन, पुणे