हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 2 ☆ पढ़ें न भेजें सँदेशे, निराधार नादान ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

मानवीय एवं राष्ट्रीय हित में रचित रचना

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है एक समसामयिक, मानवीय एवं राष्ट्रीय हितार्थ रचित आपकी  संदेशात्मक रचना  ” पढ़ें न भेजें सँदेशे, निराधार नादान”। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 2 ☆ 

☆ पढ़ें न भेजें सँदेशे, निराधार नादान ☆ 

 

कर्ता करता है सही, मानव जाने सत्य

कोरोना का काय को रोना कर निज कृत्य

कोरो ना मोशाय जी, गुपचुप अपना काम

जो डरता मरता वही, काम छोड़ नाकाम

भीत न किंचित् हों रहें, घर के अंदर शांत

मदद करें सरकार की, तनिक नहीं हों भ्रांत

बिना जरूरत क्रय करें, नहीं अधिक सामान

पढ़ें न भेजें सँदेशे, निराधार नादान

सोमवार को किया था, हम सबने उपवास

शास्त्री जी को मिली थी, उससे ताकत खास

जनता कर्फ्यू लग गया, शत प्रतिशत इस बार

कोरोना को पराजित, कर देगा यह वार

नमन चिकित्सा जगत को, करें झुकाकर शीश

जान हथेली पर लिए, बचा रहे बन ईश

देश पूरा साथ मिलकर, लड़ रहा है जंग

साथ मोदी के खड़ा है, देश जय बजरंग

 

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२१-३-२०२०

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

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हिन्दी साहित्य- कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #39 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

आचार्य सत्य नारायण गोयनका

(हम इस आलेख के लिए श्री जगत सिंह बिष्ट जी, योगाचार्य एवं प्रेरक वक्ता योग साधना / LifeSkills  इंदौर के हृदय से आभारी हैं, जिन्होंने हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के महान कार्यों से अवगत करने में  सहायता की है। आप  आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के कार्यों के बारे में निम्न लिंक पर सविस्तार पढ़ सकते हैं।)

आलेख का  लिंक  ->>>>>>  ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी 

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

☆  कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे # 39 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट ☆ 

(हम  प्रतिदिन आचार्य सत्य नारायण गोयनका  जी के एक दोहे को अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास करेंगे, ताकि आप उस दोहे के गूढ़ अर्थ को गंभीरता पूर्वक आत्मसात कर सकें। )

आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे बुद्ध वाणी को सरल, सुबोध भाषा में प्रस्तुत करते है. प्रत्येक दोहा एक अनमोल रत्न की भांति है जो धर्म के किसी गूढ़ तथ्य को प्रकाशित करता है. विपश्यना शिविर के दौरान, साधक इन दोहों को सुनते हैं. विश्वास है, हिंदी भाषा में धर्म की अनमोल वाणी केवल साधकों को ही नहीं, सभी पाठकों को समानरूप से रुचिकर एवं प्रेरणास्पद प्रतीत होगी. आप गोयनका जी के इन दोहों को आत्मसात कर सकते हैं :

 

सुख आये नाचे नहीं, दुःख आये नहीं रोय ।

दोनों में समरस रहे, तो ही मंगल होय ।।

 आचार्य सत्यनारायण गोयनका

#विपश्यना

साभार प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

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Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ (श्री सुजित कदम की कविता – “तिला खात्री आहे…!” का हिंदी भावानुवाद ) उसे विश्वास है ….! ☆ हेमन्त बावनकर

मानवीय एवं राष्ट्रीय हित में रचित रचना

हेमन्त बावनकर

(आज मानवता अत्यंत कठिन दौर से गुजर रही है।  कई दिनों से  कोरोना की महामारी से सम्बंधित साहित्य पढ़ रहा हूँ एवं मात्र सकारात्मक एवं प्रेरक साहित्य सम्पादित कर आप तक पहुँचाने का प्रयास कर रहा हूँ। वैसे मैं मराठी  भाषी हूँ किन्तु मराठी भाषा में कदापि दक्ष नहीं हूँ।

श्री सुजित कदम जी की कविता तिला खात्री आहे…!  का हिंदी भावानुवाद करने से स्वयं को नहीं रोक पाया ।  इस त्वरित भावानुवाद में कोई त्रुटि रह गई हो तो क्षमा चाहूंगा। कृपया कोरोना रोगियों की सेवा में सेवारत कर्मियों के अंतर्द्वंद्व को समझने  एवं आत्मसात करने का प्रयत्न करें । वे भी हमारी तरह मानवीय संवेदनाएं रखते हैं । श्री सुजित कदम जी की लेखनी को सादर नमन। )

श्री सुजित कदम जी की मराठी कविता – तिला खात्री आहे…! का हिंदी भावानुवाद

☆  उसे विश्वास है ….! ☆

आज चार और

कोरोना ग्रस्त रोगियों को

अस्पताल में

भर्ती करते समय ही

पत्नी का फोन आया ..

पिछले पंद्रह दिनों से

वह यही प्रश्न पूछ रही है

आज तो आप

घर आओगे न …?

यह सुनकर,

पलकों में भर आये

आँखों से आंसू

चेहरे पर लगे मास्क के भीतर

कब आ गए

पता ही नहीं चला।

 

एक क्षण को लगा

आज ही छोड़ दूँ

देखना गुजरना

इस कोरोना की महामारी से।

 

मैं पुनः घर आ रहा हूं या नहीं

मैं नहीं जानता  ….

 

पिछले पंद्रह दिनों की तरह,

मैं बिना कुछ कहे

फोन रख देता हूँ …

किन्तु,

उसका प्रत्येक दिन

फोन करके यह पूछना

रुकता ही नहीं

कदाचित  …

उसे विश्वास है

मैं पुनः घर अवश्य आऊंगा!

 

© हेमन्त बावनकर, पुणे 

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ कुछ मसीहा लड़ रहे हैं, कोरोना से  रात दिन ☆ श्री अ कीर्तिवर्धन

मानवीय एवं राष्ट्रीय हित में रचित रचना

श्री अ कीर्तिवर्धन

( आज प्रस्तुत है  श्री अ कीर्तिवर्धन जी की एक समसामयिक कविता कुछ मसीहा लड़ रहे हैं,  कोरोना से रात दिन ।)

 

☆ कुछ मसीहा लड़ रहे हैं, कोरोना से  रात दिन ☆

 

हर तरफ

सन्नाटा पसरा हुआ

भय का माहौल है

चिन्तित

हर आदमी

मौत की आहट से

व्याकुल

तन्हा जीवन हो रहा|

क्या करें

कैसे करें

किससे कहें

मन की पीडा

बाँटे जिससे

ऐसा कोई

दिखता नहीं|

कठिन दौर

मानवता पर आया

दानवता ने

परचम फहराया|

दानवता के दौर मे भी

निज परिवारों को भुलाकर

कुछ मसीहा

लड रहे हैं

कोरोना

मिटाने की खातिर

रात दिन

काम कर रहे है|

 

©  श्री अ कीर्तिवर्धन

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 31 ☆ रूठा वक्त ☆ सौ. सुजाता काळे

सौ. सुजाता काळे

(सौ. सुजाता काळे जी  मराठी एवं हिन्दी की काव्य एवं गद्य विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। वे महाराष्ट्र के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल कोहरे के आँचल – पंचगनी से ताल्लुक रखती हैं।  उनके साहित्य में मानवीय संवेदनाओं के साथ प्रकृतिक सौन्दर्य की छवि स्पष्ट दिखाई देती है। आज प्रस्तुत है  सौ. सुजाता काळे जी  द्वारा  प्रकृति के आँचल में लिखी हुई एक अतिसुन्दर भावप्रवण  कविता  “रूठा वक्त ”।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 31 ☆

☆ रूठा वक्त ☆

 

जाने अनजाने में

कितना कुछ छूट गया,

ये वक्त तू बता

मुझसे क्यों रूठ गया।

 

हवाओं को बाँधने की

कोशिश नहीं की,

ये साँस तू बता

बंधन क्यों टूट गया ।

 

ज़मीं को खरीदकर

रखा नहीं है,

मिट्टी का तन मिट्टी में

ढह गया ।

ये वक्त तू बता

मुझसे क्यों रूठ गया।

 

© सुजाता काले

पंचगनी, महाराष्ट्रा।

9975577684

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ आवश्यक सेवाकर्मी  कर्मचारी – नमन है! अभिवादन है! सलाम है! ☆– श्री माधव राव माण्डोले “दिनेश”

मानवीय एवं राष्ट्रीय हित में रचित रचना

श्री माधव राव माण्डोले “दिनेश”

 

(आज  प्रस्तुत है श्री माधव राव माण्डोले “दिनेश” जी की एक समसामयिक कविता आवश्यक सेवाकर्मी  कर्मचारी – नमन है! अभिवादन है! सलाम है!)

 

☆ आवश्यक सेवाकर्मी  कर्मचारी – नमन है! अभिवादन है! सलाम है!  ☆

 

नमन है, अभिवादन है, सलाम है

डॉक्टर, पुलिस, अति आवश्यक सेवा कर्मचारी

कोरोना से बचाने – सर्वशक्तिमान आया है..।

तेरी आस्था और तेरे विश्वास से,

तुझे बचाने देख सर्वशक्तिमान आया है..।

 

न बाहर निकल तू घर से,

कोरोना ने बाहर मौत का बाजार लगाया है..।

पहचान उसे,

तेरी और तेरे अपनो की रक्षा के लिए,

अस्पतालों में उसने अपना घर बनाया है..।

न बाहर निकल तू घर से,

कोरोना ने बाहर मौत का बाजार लगाया है..।

 

पहचान  उसे,

सुन है पंक्षी तू आजादी के,

लक्ष्मण रेखा से बांधा है उसने,  तुझे घर में,

न बाहर निकल तू घर से,

कोरोना ने बाहर मौत का बाजार लगाया है..।

 

पहचान  उसे,

न तोड़ मर्यादा लक्ष्मण रेखा की,

डंडे से काबू में तुझे रखने द्वारपाल बनकर आया है..।

न बाहर निकल तू घर से,

कोरोना ने बाहर मौत का बाजार लगाया है..।

 

पहचान उसे,

न तू भूखा रहे,

खान-पान, धन-धान्य का उसने बाजार लगाया है..।

पहचान उसे,

कैसे जिया जाये वर्तमान में,

तुझे सिखाने बनकर प्रशासन आया है..।

 

पहचान उसे,

जिस धरा पर तू जीता था शान से,

न संभला न समझा अब भी,

सो जायेगा नीचे उसी धरा में शान्ति से,

न बाहर निकल तू घर से,

कोरोना ने बाहर मौत का बाजार लगाया है..।

 

तेरी आस्था और तेरे विश्वास से,

तुझे बचाने देख सर्वशक्तिमान आया है..।

 

© माधव राव माण्डोले “दिनेश”, भोपाल 

(श्री माधव राव माण्डोले “दिनेश”, दि न्यू इंडिया एश्योरंस कंपनी, भोपाल में उप-प्रबन्धक हैं।)

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हिन्दी साहित्य- कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #38 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

आचार्य सत्य नारायण गोयनका

(हम इस आलेख के लिए श्री जगत सिंह बिष्ट जी, योगाचार्य एवं प्रेरक वक्ता योग साधना / LifeSkills  इंदौर के हृदय से आभारी हैं, जिन्होंने हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के महान कार्यों से अवगत करने में  सहायता की है। आप  आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के कार्यों के बारे में निम्न लिंक पर सविस्तार पढ़ सकते हैं।)

आलेख का  लिंक  ->>>>>>  ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी 

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

☆  कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे # 38 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट ☆ 

(हम  प्रतिदिन आचार्य सत्य नारायण गोयनका  जी के एक दोहे को अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास करेंगे, ताकि आप उस दोहे के गूढ़ अर्थ को गंभीरता पूर्वक आत्मसात कर सकें। )

आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे बुद्ध वाणी को सरल, सुबोध भाषा में प्रस्तुत करते है. प्रत्येक दोहा एक अनमोल रत्न की भांति है जो धर्म के किसी गूढ़ तथ्य को प्रकाशित करता है. विपश्यना शिविर के दौरान, साधक इन दोहों को सुनते हैं. विश्वास है, हिंदी भाषा में धर्म की अनमोल वाणी केवल साधकों को ही नहीं, सभी पाठकों को समानरूप से रुचिकर एवं प्रेरणास्पद प्रतीत होगी. आप गोयनका जी के इन दोहों को आत्मसात कर सकते हैं :

दान धरम का मूल है, दान धरम का कोष ।

लेते तृष्णा ही बढ़े, देते सुख संतोष ।।

 आचार्य सत्यनारायण गोयनका

#विपश्यना

साभार प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

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Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
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हिन्दी साहित्य – सस्वर कविता ☆ कोरोना को करें पराजित – आचार्य भगवत दुबे ☆ स्वरांकन एवं प्रस्तुति श्री जय प्रकाश पाण्डेय

मानवीय एवं राष्ट्रीय हित में रचित रचना

आचार्य भगवत दुबे

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(आज प्रस्तुत है हिंदी साहित्य जगत के पितामह  गुरुवार परम आदरणीय आचार्य भगवत दुबे जी की एक समसामयिक, प्रेरक एवं शिक्षाप्रद कविता ” कोरोना को करें पराजित “हम आचार्य भगवत दुबे जी के हार्दिक आभारी हैं जिन्होंने मानवता के अदृश्य शत्रु ‘ कोरोना ‘ से बचाव एवं बचाव के लिए सेवारत चिकित्सकों एवं उनके सहयोगियों का आभार अपनी अमृतवाणी के माध्यम से  किया है।  इस कार्य के लिए हमें श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी का सहयोग मिला है,  जिन्होंने उनकी कविता को  अपने  मोबाईल में  स्वरांकित कर हमें प्रेषित किया है।

ई-अभिव्यक्ति ने पूर्व में आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर विस्तृत आलेख अपने पाठकों के साथ साझा किया था  जिसे आप निम्न लिंक पर पढ़ सकते हैं :

हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆ – हेमन्त बावनकर

यहाँ यह उल्लेखनीय है कि आपके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर 3 पी एच डी (4थी पी एच डी पर कार्य चल रहा है) तथा 2 एम फिल  किए गए हैं। डॉ राज कुमार तिवारी ‘सुमित्र’ जी के साथ रुस यात्रा के दौरान आपकी अध्यक्षता में एक पुस्तकालय का लोकार्पण एवं आपके कर कमलों द्वारा कई अंतरराष्ट्रीय सम्मान प्रदान किए गए। आपकी पर्यावरण विषय पर कविता ‘कर लो पर्यावरण सुधार’ को तमिलनाडू के शिक्षा पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। प्राथमिक कक्षा की मधुर हिन्दी पाठमाला में प्रकाशित आचार्य की कविता में छात्रों को सीखने-समझने के लिए शब्दार्थ दिए गए हैं।

श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी के ही शब्दों में  
संस्कारधानी के ख्यातिलब्ध महाकवि आचार्य भगवत दुबे जी अस्सी पार होने के बाद भी सक्रियता के साथ निरन्तर साहित्य सेवा में लगे रहते हैं । अभी तक उनकी पचास से ज्यादा किताबें प्रकाशित हो चुकी है। बचपन से ही उनका सानिध्य मिला है। कोरोना की विभीषिका के चलते मानव जाति पर आये भीषण संकट के संदर्भ में आचार्य भगवत दुबे जी से दूरभाष पर बातचीत हुई। लाॅक डाऊन और कर्फ्यू के साये में अपनी दिनचर्या  के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि विपदा की घड़ी में सभी लोगों को अपने घर की देहरी के अंदर ही रहना चाहिए, घर से बाहर जाने से बचना चाहिए।अपना एवं अपने परिवार के स्वास्थ्य पर ध्यान देना चाहिए संयमित रहकर अपनी प्रिय अभिरुचि पर काम करते हुए व्यस्त रहना चाहिए।
जब हमने उनसे कोरोना समय पर लिखी रचनाओं की चर्चा की तो उन्होंने बताया कि इस विकट समय पर साहित्यकारों को जन-जन को जागरुक करने वाली रचनाऐं लिखनी चाहिए और समाज के अंदर फैली हताशा और निराशा को दूर करने के लिए मनोबल बढ़ाने वाली रचनाऐं पाठक के बीच आनी चाहिए। जब हमने आचार्य भगवत दुबे जी को फोन किया उस समय वे कोरोना समय पर कविता लिख ही रहे थे और कविता की अन्तिम चार पंक्तियाँ बचीं थीं जिसको पूरा कर हमारे अनुरोध पर उन्होंने सुनाया। चूंकि वर्तमान समय में इस कविता से जन जन के बीच जागरूकता आयेगी और हमारे स्वास्थ्य कर्मियों का मनोबल बढ़ेगा इसलिए हमने इस कविता को टेप कर ई-अभिव्यक्ति पत्रिका में प्रकाशित करने प्रेषित किया है।
आप परम आदरणीय आचार्य भगवत दुबे जी की प्रेरक एवं शिक्षाप्रद कविता उनके चित्र अथवा लिंक पर क्लिक कर उनके ही स्वर में सुन सकते हैं। आपसे अनुरोध है कि आप सुनें एवं अपने मित्रों से अवश्य साझा करें:
स्वरांकन एवं प्रस्तुति – जय प्रकाश पाण्डेय
416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य # 41 ☆ नया दृष्टिकोण ☆ डॉ. मुक्ता

डॉ.  मुक्ता

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं  माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं।  साप्ताहिक स्तम्भ  “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक  साहित्य” के माध्यम से आप  प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू हो सकेंगे। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी की एक अति संवेदनशील  सार्थक एवं  नारीशक्ति पर अपनी बेबाक कविता  “नया दृष्टिकोण ”.  डॉ मुक्ता जी  नारी शक्ति विमर्श की प्रणेता हैं ।  नारी जगत  में पनपे नए दृष्टिकोण  पर रचित रचना के लिए डॉ मुक्ता जी की  लेखनी को सादर नमन।  कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें। )     

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य  # 41 ☆

☆ नया दृष्टिकोण  

 

मैं हर रोज़

अपने मन से वादा करती हूं

अब औरत के बारे में नहीं लिखूंगी

उसके दु:ख-दर्द को

कागज़ पर नहीं उकेरूंगी

द्रौपदी,सीता,गांधारी,अहिल्या

और उर्मिला की पीड़ा का

बखान नहीं करूंगी

मैं एक अल्हड़,मदमस्त

स्वच्छंद नारी का

आकर्षक चित्र प्रस्तुत करूंगी

जो समझौते और समन्वय से

कोसों दूर लीक से हटकर

पगडंडी पर चल

अपने लिये नयी राह का

निर्माण करती

‘खाओ-पीओ,मौज-उड़ाओ’

को जीवन में अपनाती

‘तू नहीं और सही’को

मूल-मंत्र स्वीकार

रंगीन वातावरण में

हर क्षण को जीती

वीरानों को महकाती

गुलशन बनाती

पति व उसके परिवारजनों को

अंगुलियों पर नचाती

उन्मुक्त आकाश में

विचरण करती

नदी की भांति

निरंतर बढ़ती चली जाती

 

परन्तु, यह सब त्याज्य है

निंदनीय है

क्योंकि न तो यह रचा-बसा है

हमारे संस्कारों में

और न ही है यह

हमारी संस्कृति की धरोहर

 

खौल उठता है खून

महिलाओं को

शराब के नशे में धुत्त

सड़कों पर उत्पात मचाते

क्लबों में गलबहियां डाले

नृत्य करते

अपहरण व फ़िरौती की

घटनाओं में लिप्त देख

सिर लज्जा से झुक जाता

और वे दहेज के इल्ज़ाम में

निर्दोष पति व परिवारजनों को

जेल की सीखचों के पीछे पहुंचा

फूली नहीं समाती

अपनी तक़दीर पर इतराती

नशे के कारोबार को बढ़ाती

देश के दुश्मनों से हाथ मिलाती

अंधी-गलियों में फंस

स्वयं को भाग्यशाली स्वीकारती

खुशनसीब मानती

क्योंकि वे सबला हैं,स्वतंत्र हैं

और हैं नारी शक्ति की प्रतीक…

जो निरंकुश बन

स्वेच्छा से करतीं

अपना जीवन बसर

 

© डा. मुक्ता

माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत।

पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी,  #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com

मो• न•…8588801878

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – प्रकृति ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – प्रकृति ☆

प्रकृति ने चितेरे थे चित्र चहुँ ओर

मनुष्य ने कुछ चित्र मिटाये

अपने बसेरे बसाये,

 

प्रकृति बनाती रही चित्र निरंतर,

मनुष्य ने गेरू-चूने से

वही चित्र दीवारों पर लगाये,

 

प्रकृति ने येन केन प्रकारेण

जारी रखा चित्र बनाना

मनुष्य ने पशुचर्म, नख, दंत सजाये

 

निर्वासन भोगती रही

सिमटती रही, मिटती रही,

विसंगतियों में यथासंभव

चित्र बनाती रही प्रकृति,

 

प्रकृति को उकेरनेवाला

प्रकृति के खात्मे पर तुला

मनुष्य की कृति में

अब नहीं बची प्रकृति,

 

मनुष्य अब खींचने लगा है

मनुष्य के चित्र..,

मैं आशंकित हूँ,

बेहद आशंकित हूँ..!

 

घर पर रहें। स्वस्थ और सुरक्षित रहें।

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

(प्रातः 10:21 बजे, 21.8.2019)

 

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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