श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
देख रहा हूँ
गैजेट्स के स्क्रिन पर गड़ी
‘ड्राई आई सिंड्रोम’
से ग्रसित पुतलियाँ,
आँख का पानी उतरना
जीवन में उतर आया है,
अब कोई मृत्यु
उतना विचलित नहीं करती,
काम पर आते-जाते
अंत्येष्टि-बैठक में
सम्मिलित होना
एक और काम भर रह गया है,
पास-पड़ोस
नगर-ग्राम
सड़क-फुटपाथ पर
घटती घटनाएँ
केवल उत्सुकता जगाती हैं
जुगाली का
सामान भर जुटाती हैं,
आर्द्रता के अभाव में
दरक गई है
रिश्तों की माटी,
आत्ममोह और
अपने इर्द-गिर्द
अपने ही घेरे में
बंदी हो गया है आदमी,
कैसी विडंबना है मित्रो!
घनघोर सूखे का
समय है मित्रो!
नमी के लुप्त होने के
कारणों की
मीमांसा-विश्लेषण
आरोप-प्रत्यारोप
सिद्धांत-नारेबाजी
सब होते रहेंगे
पर एक सत्य याद रहे-
पाषाण युग हो
या जेट एज
ईसा पूर्व हो
या अधुनातन,
आदमियत संवेदना की
मांग रखती है,
अनपढ़ हों
या ‘टेकसेवी’
आँखें सदानीरा ही
अच्छी लगती हैं।
© संजय भारद्वाज, पुणे
( 8.2.18, प्रात: 9:47 बजे)
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
मोबाइल– 9890122603