हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – जीवन ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – जीवन  ☆

जुग-जुग जीते सपने

थोड़े-से पल अपने,

सूक्ष्म-स्थूल का

दुर्लभ संतुलन है,

नश्वर और ईश्वर का

चिरंतन मिलन है,

जीवन,आशंकाओं के पहरे में

संभावनाओं का सम्मेलन है!

 

घर पर रहें, सुरक्षित रहें।

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

(प्रातः 8:11 बजे, 30.3.2019)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

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हिन्दी साहित्य- कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #35 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

आचार्य सत्य नारायण गोयनका

(हम इस आलेख के लिए श्री जगत सिंह बिष्ट जी, योगाचार्य एवं प्रेरक वक्ता योग साधना / LifeSkills  इंदौर के हृदय से आभारी हैं, जिन्होंने हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के महान कार्यों से अवगत करने में  सहायता की है। आप  आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के कार्यों के बारे में निम्न लिंक पर सविस्तार पढ़ सकते हैं।)

आलेख का  लिंक  ->>>>>>  ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी 

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

☆  कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे # 35 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट ☆ 

(हम  प्रतिदिन आचार्य सत्य नारायण गोयनका  जी के एक दोहे को अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास करेंगे, ताकि आप उस दोहे के गूढ़ अर्थ को गंभीरता पूर्वक आत्मसात कर सकें। )

आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे बुद्ध वाणी को सरल, सुबोध भाषा में प्रस्तुत करते है. प्रत्येक दोहा एक अनमोल रत्न की भांति है जो धर्म के किसी गूढ़ तथ्य को प्रकाशित करता है. विपश्यना शिविर के दौरान, साधक इन दोहों को सुनते हैं. विश्वास है, हिंदी भाषा में धर्म की अनमोल वाणी केवल साधकों को ही नहीं, सभी पाठकों को समानरूप से रुचिकर एवं प्रेरणास्पद प्रतीत होगी. आप गोयनका जी के इन दोहों को आत्मसात कर सकते हैं :

सांस देखते-देखते, सत्य दीखता जाए ।

सत्य देखते-देखते, परम सत्य दिख जाये ।।

 आचार्य सत्यनारायण गोयनका

#विपश्यना

साभार प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

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Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 33 ☆ कोरोना ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जीसुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी  कविता “ कोरोना ”। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 33☆

☆  कोरोना ☆

यह जो बढे ही जा रही थीं

इंसान से इंसान के बीच की दूरियाँ,

उसे और बढ़ा रहा है अब

यह कोरोना का आतंक!

 

यूँ ही आदमी अब

किसी और से हाथ मिलाने में कतराता था,

उसे अब रखना ही होगा

एक मीटर का फ़ासला,

अपने मूंह पर नकाब लगाए

चोरों सा चलना होगा,

और एक दूसरे के घर जाना तो

बंद ही हो जाएगा!

 

किसी की तबियत खराब होने पर

हम जो उसके हालचाल पूछने जाया करते थे,

वो अब बंद हो ही जाएगा;

बल्कि कुछ ऐसे भी होंगे

जो छुपायेंगे अपनी छींक आने वाली बात

और फैलाते जायेंगे इस जानलेवा बीमारी को!

 

हाँ,

मैं भी यही सब पूरी शिद्दत के साथ करूंगी

क्योंकि यही समय की मांग है…

आखिर इंसान को तो बचना ही है ना-

मुझे भी, मेरे दोस्तों को भी और अनजाने लोगों को भी!

 

पर शायद अब तो इंसान

करेगा आत्मचिंतन घर पर बैठकर

और सोचेगा कि कैसे जुड़ना है इंसानियत से

जब ख़त्म हो जाए प्रकोप

इस कोरोना नाम के खतरनाक वायरस का!

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हिन्दी साहित्य- कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #34 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

आचार्य सत्य नारायण गोयनका

(हम इस आलेख के लिए श्री जगत सिंह बिष्ट जी, योगाचार्य एवं प्रेरक वक्ता योग साधना / LifeSkills  इंदौर के हृदय से आभारी हैं, जिन्होंने हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के महान कार्यों से अवगत करने में  सहायता की है। आप  आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के कार्यों के बारे में निम्न लिंक पर सविस्तार पढ़ सकते हैं।)

आलेख का  लिंक  ->>>>>>  ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी 

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☆  कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे # 34 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट ☆ 

(हम  प्रतिदिन आचार्य सत्य नारायण गोयनका  जी के एक दोहे को अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास करेंगे, ताकि आप उस दोहे के गूढ़ अर्थ को गंभीरता पूर्वक आत्मसात कर सकें। )

आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे बुद्ध वाणी को सरल, सुबोध भाषा में प्रस्तुत करते है. प्रत्येक दोहा एक अनमोल रत्न की भांति है जो धर्म के किसी गूढ़ तथ्य को प्रकाशित करता है. विपश्यना शिविर के दौरान, साधक इन दोहों को सुनते हैं. विश्वास है, हिंदी भाषा में धर्म की अनमोल वाणी केवल साधकों को ही नहीं, सभी पाठकों को समानरूप से रुचिकर एवं प्रेरणास्पद प्रतीत होगी. आप गोयनका जी के इन दोहों को आत्मसात कर सकते हैं :

आते जाते सांस पर, रहे निरंतर ध्यान ।

कर्मों के बंधन कटें, होय परम कल्याण ।।

 आचार्य सत्यनारायण गोयनका

#विपश्यना

साभार प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ World on the edge / विश्व किनारे पर # 1 ☆ आशा और निराशा  ☆ डॉ निधि जैन

डॉ निधि जैन 

ई- अभिव्यक्ति में डॉ निधि जैन जी का हार्दिक स्वागत है। आप भारती विद्यापीठ,अभियांत्रिकी महाविद्यालय, पुणे में सहायक प्रोफेसर हैं। आपने शिक्षण को अपना व्यवसाय चुना किन्तु, एक साहित्यकार बनना एक स्वप्न था। आपकी प्रथम पुस्तक कुछ लम्हे  आपकी इसी अभिरुचि की एक परिणीति है। आपने हमारे आग्रह पर हिंदी / अंग्रेजी भाषा में  साप्ताहिक स्तम्भ – World on the edge / विश्व किनारे पर  प्रारम्भ करना स्वीकार किया इसके लिए हार्दिक आभार।  स्तम्भ का शीर्षक संभवतः  World on the edge सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद एवं लेखक लेस्टर आर ब्राउन की पुस्तक से प्रेरित है। आज विश्व कई मायनों में किनारे पर है, जैसे पर्यावरण, मानवता, प्राकृतिक/ मानवीय त्रासदी आदि। आपका परिवार, व्यवसाय (अभियांत्रिक विज्ञान में शिक्षण) और साहित्य के मध्य संयोजन अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है आपकी आशावादी कविता  “आशा और निराशा”।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ World on the edge / विश्व किनारे पर # 1 ☆

☆ आशा और निराशा  ☆

 

निराशा जब जीवन का गला घोंटने लगती है,

तब आशा कानों में कह जाती है, बढ़े चलो बढ़े चलो।

 

हर मोड़ हर रास्ता काटने लगता है,

तब आशा फूलों का गुलदस्ता लिए,

कानों मे कह जाती, बढ़े चलो बढ़े चलो।

 

जब रात काली घनेरी आती है, अंधेरा फैलने लगता है,

तब आशा रौशनी का दीप जलाती है,

और कानों मे कह जाती है, बढ़े चलो बढ़े चलो।

 

जब शब्दों के बाण घायल कर जाते हैं,

तब आशा मीठे बोल सुनाती है,

और कानों मे कह जाती है, बढ़े चलो बढ़े चलो।

 

जब रास्ते पथरिले और पाँव छलनी हो जाते हैं,

तब आशा हाथों की गदली रख जाती है,

और कानों मे कह जाती है, बढ़े चलो बढ़े चलो।

जब पतझड़ पीले पत्ते कर जाता है,

तब आशा हरियाली भर देती है,

और कानों में कह जाती है, बढ़े चलो बढ़े चलो।

जब आँखों से आँसू झरने लगते हैं,

तब मन सहराती है, आँसू पी जाती है,

और कानों में कह जाती है, बढ़े चलो बढ़े चलो।

 

जब मन तूफ़ानों मे घिर जाता है, मन की नाव डूबने लगती है,

तब पतवार हाथों में लिए,

आशा कानों में कह जाती है, बढ़े चलो बढ़े चलो।

 

जब राह भटकने लगती, जीवन पहेली बन जाती है,

तब आशा पहेली सुलझाती है,

और कानों मे कह जाती है, बढ़े चलो बढ़े चलो।

 

चलना जीवन, चलते जाओगे, चलते जाओगे,

आशा साथ चलेगी, सदा साथ चलेगी, सदा सदा चलेगी।

 

©  डॉ निधि जैन, पुणे

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अक्षय ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – अक्षय  ☆

 

पत्थर से टकराता प्रवाह

उकेर देता है

सदियों की गाथाएँ

पहाड़ों के वक्ष पर,

बदलते काल और

ऋतुचक्र के संस्मरण

लिखे होते हैं

चट्टानों की छाती पर,

और तो और

जीवाश्म होते हैं

उत्क्रांति का एनसाइक्लोपीडिया…,

और तुम कहते हो

लिखने के लिए

शब्द नहीं मिलते!

 

घर पर रहना है, कोविड-19 को हराना है।

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

प्रातः 7:11 बजे, 26.3.2020

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 40 ☆ कोरोना फोबिया ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय  एवं  साहित्य में  सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की  अगली कड़ी में  उनकी  एक समसामयिक कविता   “कोरोना फोबिया। आप प्रत्येक सोमवार उनके  साहित्य की विभिन्न विधाओं की रचना पढ़ सकेंगे।) 

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 40

☆  कोरोना फोबिया  ☆ 

 

मायूस सड़कें,

उदास लैम्पपोस्ट,

उबाऊ सन्नाटा,

कर्फ्यू का जोर,

कर्फ्यू की ऊब,

डरावना शोर

इक्कीस दिन बाद,

फिर सोच बदलेगी,

सड़कों की तरफ,

फिर भागदौड़ मचेगी,

लोग घरों से,

बाजार तरफ लौटेंगे,

डर के साये में,

सांकल मुक्त होगी

धरती की गोद में,

प्रार्थना की बात होगी

 

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ मजदूरों का महापलायन ☆ श्री कुमार जितेन्द्र

श्री कुमार जितेन्द्र

 

(युवा साहित्यकार श्री कुमार जितेंद्र जी  कवि, लेखक, विश्लेषक एवं वरिष्ठ अध्यापक (गणित) हैं। आज प्रस्तुत है उनकी एक समसामयिक कविता चिंतन करे पर चिंता मजदूर का महापलायन ।  मजदूरों का महापलायन एक विडम्बना है। किन्तु , वैज्ञानिक दृष्टि से पलायन से अधिक वे जहाँ हैं, उन्हें वहीँ सुरक्षित ठहराने की व्यवस्था अत्यंत महत्वपूर्ण है। )

☆ मजदूर का महापलायन ☆

 

कोरोना के कहर से, टूट गया है मजदूर!

महामारी के महापलायन से, मजबूर है मजदूर!!

 

मच गई है अफरातफरी, सड़कों पर भरपुर!

घर पहुचने की दौड़ में, मजबूर है मजदूर!!

 

सड़क पर लंबी कतारें, चल रहे हैं मजदूर!

बच्चे मां को पूछ रहे हैं, जाना कितना दूर !!

 

कोरोना के कहर से, टूट गया है मजदूर!

महामारी के महापलायन से, मजबूर है मजदूर!!

 

क्या होती है प्यास, पूछिए इन बच्चों से!

क्या होती है भूख, पूछिए इन मजदूरों से!!

 

भूखे प्यासे चल रहे हैं, छाले पड़ गए पैरों में!

इधर भूख,उधर भूख, सबसे बड़ी है घर की भूख !!

 

कोरोना के कहर से, टूट गया है मजदूर!

महामारी के महापलायन से, मजबूर है मजदूर!!

 

सड़के बोली मजदूरों से, हम पहुंचाएंगे घर!!

डिजिटल के युग में, सड़कों पर मजबूर है मजदूर!!

 

मजदूरों की मानवता से, हार जाएंगी महामारी !

कुमार जीत के शब्दों से , जीत जाएंगी मानवता!!

 

कोरोना के कहर से, टूट गया है मजदूर!

महामारी के महापलायन से, मजबूर है मजदूर!!

 

✍?कुमार जितेन्द्र

साईं निवास – मोकलसर, तहसील – सिवाना, जिला – बाड़मेर (राजस्थान)

मोबाइल न. 9784853785

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हिन्दी साहित्य- कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #33 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

आचार्य सत्य नारायण गोयनका

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☆  कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे # 33 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट ☆ 

(हम  प्रतिदिन आचार्य सत्य नारायण गोयनका  जी के एक दोहे को अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास करेंगे, ताकि आप उस दोहे के गूढ़ अर्थ को गंभीरता पूर्वक आत्मसात कर सकें। )

आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे बुद्ध वाणी को सरल, सुबोध भाषा में प्रस्तुत करते है. प्रत्येक दोहा एक अनमोल रत्न की भांति है जो धर्म के किसी गूढ़ तथ्य को प्रकाशित करता है. विपश्यना शिविर के दौरान, साधक इन दोहों को सुनते हैं. विश्वास है, हिंदी भाषा में धर्म की अनमोल वाणी केवल साधकों को ही नहीं, सभी पाठकों को समानरूप से रुचिकर एवं प्रेरणास्पद प्रतीत होगी. आप गोयनका जी के इन दोहों को आत्मसात कर सकते हैं :

मन चंचल मन चपल है, भाग रहा सब ओर।   

सांस डोर से बाँध कर, रोक राख इक ठौर ।।

 आचार्य सत्यनारायण गोयनका

#विपश्यना

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विशाखा की नज़र से # 28 – माँ का होना ☆ श्रीमति विशाखा मुलमुले

श्रीमति विशाखा मुलमुले 

(श्रीमती  विशाखा मुलमुले जी  हिंदी साहित्य  की कविता, गीत एवं लघुकथा विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं/ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती  रहती हैं.  आपकी कविताओं का पंजाबी एवं मराठी में भी अनुवाद हो चुका है। आज प्रस्तुत है  एक अतिसुन्दर भावप्रवण  एवं सार्थक रचना  ‘माँ का होना ।  आप प्रत्येक रविवार को श्रीमती विशाखा मुलमुले जी की रचनाएँ  “साप्ताहिक स्तम्भ – विशाखा की नज़र से” में  पढ़  सकते हैं । )

ऐसी रचना सिर्फ और सिर्फ माँ ही रच सकती है और उसकी भावनाएं संतान ही पढ़ सकती हैं ।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 28 – विशाखा की नज़र से

☆ माँ का होना ☆

 

माँ का होना मतलब ,

चूल्हे का होना

आग का होना

उस पर रखी देगची

और,

पकते भोजन का सुवास होना

 

माँ का होना मतलब,

घर का हर कोना व्यवस्थित होना

बुरी नज़र का दूर होना

और,

नौनिहालों के सर पर

आशीष का होना

 

माँ का होना मतलब,

पेट का भरा होना

तन पर चादर का होना

और,

सोते समय एक छोटी सी

कहानी का होना

 

माँ का होना मतलब,

अगरबत्ती का होना

मंत्रों का गुंजित होना

और,

घर के मंदिर में फूलों का होना

 

माँ का होना मतलब

एक व्यक्ति का सजग होना

छोटी सी चोट पर

हल्दी का मरहम होना

और,

अपने सारे तपोबल का

अंश पर निसार होना

मां का होना ….

 

© विशाखा मुलमुले  

पुणे, महाराष्ट्र

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