हिन्दी साहित्य☆ साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 30 ☆ संतोष के समसामयिक दोहे ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

 

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. 1982 से आप डाक विभाग में कार्यरत हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.    “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत है  श्री संतोष नेमा जी  के  “संतोष के समसामयिक दोहे ”। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार  आत्मसात कर  सकते हैं . ) 

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 30 ☆

☆ संतोष के समसामयिक दोहे   ☆

अभियान

 

कोरोना को रोकने, छेड़ें नव अभियान

होगा तब ही सार्थक, तभी बचे  इंसान

 

कोरोना  के ख़ौफ़ से, सारा जग भयभीत

आस और विश्वास ही, अपने सच्चे मीत

 

सारी दुनिया में मचा, कोरोना का शोर

खूब छिपाया चीन ने, चला न उसका जोर

 

मयंक

 

मुखड़ा उनका देख कर, आया याद मयंक

शीतल उज्ज्वल चांदनी, जैसे उतरी अंक

 

विश्वास 

 

नेता खुद ही तोड़ते, जनता का विश्वास

जन मन फिर भी चाहता, बनी रहे यह आस

 

अभिनय

 

नेता अभिनय में कुशल, करते नाटक खूब

सत्ता लोभी हैं बहुत, कुर्सी ही महबूब

 

अभिनव

राजनीति में हो रहे, अभिनव बहुत प्रयोग

नेता करना चाहते, बस सत्ता का भोग

 

चाँदनी

शीतल धवला चाँदनी, मन भरती उत्साह

निकला पूनम चाँद जब, दिल से निकले वाह

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.)

मोबा 9300101799

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हिन्दी साहित्य- कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #24 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

आचार्य सत्य नारायण गोयनका

(हम इस आलेख के लिए श्री जगत सिंह बिष्ट जी, योगाचार्य एवं प्रेरक वक्ता योग साधना / LifeSkills  इंदौर के ह्रदय से आभारी हैं, जिन्होंने हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के महान कार्यों से अवगत करने में  सहायता की है। आप  आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के कार्यों के बारे में निम्न लिंक पर सविस्तार पढ़ सकते हैं।)

आलेख का  लिंक  ->>>>>>  ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी 

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

☆  कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे # 24 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट ☆ 

(हम  प्रतिदिन आचार्य सत्य नारायण गोयनका  जी के एक दोहे को अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास करेंगे, ताकि आप उस दोहे के गूढ़ अर्थ को गंभीरता पूर्वक आत्मसात कर सकें। )

आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे बुद्ध वाणी को सरल, सुबोध भाषा में प्रस्तुत करते है. प्रत्येक दोहा एक अनमोल रत्न की भांति है जो धर्म के किसी गूढ़ तथ्य को प्रकाशित करता है. विपश्यना शिविर के दौरान, साधक इन दोहों को सुनते हैं. विश्वास है, हिंदी भाषा में धर्म की अनमोल वाणी केवल साधकों को ही नहीं, सभी पाठकों को समानरूप से रुचिकर एवं प्रेरणास्पद प्रतीत होगी. आप गोयनका जी के इन दोहों को आत्मसात कर सकते हैं :

धर्म सदृश रक्षक नहीं, धर्म सदृश ना ढाल ।

धर्म विहारी का सदा, धर्म रहे रखवाल ।।

आचार्य सत्यनारायण गोयनका

#विपश्यना

साभार प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

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Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – आशंका ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – आशंका* ☆

मनुष्य जाति में

होता है एकल प्रसव,

कभी-कभार जुड़वाँ

और दुर्लभ से दुर्लभतम

तीन या चार..,

आशंकित हूँ

ये निरंतर

प्रसूत होती लेखनी

और जन्मती रचनाएँ

कोई अनहोनी न करा दें,

मुझे जाति बहिष्कृत न करा दें!

©  संजय भारद्वाज, पुणे

( प्रकाशनाधीन कविता संग्रह से )
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र # 18 ☆ कविता – महान सेनानी वीर सुभाष चन्द बोस ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत।  इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा  डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। अब आप डॉ राकेश ‘चक्र’ जी का साहित्य प्रत्येक गुरुवार को  उनके  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  आत्मसात कर सकेंगे । इस कड़ी में आज प्रस्तुत हैं  महान सेनानी वीर सुभाष चन्द बोस.)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 18 ☆

☆ महान सेनानी वीर सुभाष चन्द बोस ☆ 

वीर सुभाष कहाँ खो गए

वंदेमातरम गा जाओ

वतन कर याद आपको

सरगम एक सुना जाओ

 

कतरा-कतरा लहू आपका

काम देश के आया था

इसीलिए ये आजादी का

झण्डा भी फहराया था

गोरों को भी छका-छका कर

जोश नया दिलवाया था

ऊँचा रखकर शीश धरा का

शान मान करवाया था

 

सत्ता के भुखियारों को अब

कुछ तो सीख सिखा जाओ

वतन कर याद आपको

सरगम एक सुना जाओ

 

नेताजी उपनाम तुम्हारा

कितनी श्रद्धा से लेते

आज तो नेता कहने से ही

बीज घृणा के बो देते

वतन की नैया डूबे चाहे

अपनी नैया खे लेते

बने हुए सोने की मुर्गी

अंडे भी वैसे देते

 

नेता जैसे शब्द की आकर

अब तो लाज बचा जाओ

वतन कर रहा याद आपको

सरगम एक सुना जाओ

 

जंग कहीं है काश्मीर की

और जला पूरा बंगाल

आतंकी सिर उठा रहे हैं

कुछ कहते जिनको बलिदान

कैसे न्याय यहाँ हो पाए

सबने छेड़ी अपनी तान

ऐक्य नहीं जब तक यहां होगा

नहीं हो सकें मीठे गान

 

जन्मों-जन्मों वीर सुभाष

सबमें ऐक्य करा जाओ

वतन कर याद आपको

सरगम एक सुना जाओ

 

लिखते-लिखते ये आँखें भी

शबनम यूँ हो जाती हैं

आजादी है अभी अधूरी

भय के दृश्य दिखातीं हैं

अभी यहाँ कितनी अबलाएँ

रोज हवन हो जाती हैं

दफन हो रहा न्याय यहाँ पर

चीखें मर-मर जाती हैं

 

देखो इस तसवीर को आकर

कुछ तो पाठ पढ़ा जाओ

वतन कर रहा याद आपको

सरगम एक सुना जाओ

 

डॉ राकेश चक्र ( एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001

उ.प्र .  9456201857

[email protected]

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुजित साहित्य # 38 – कर्जमाफी…… ☆ श्री सुजित कदम

श्री सुजित कदम

(श्री सुजित कदम जी  की कवितायेँ /आलेख/कथाएँ/लघुकथाएं  अत्यंत मार्मिक एवं भावुक होती हैं. इन सबके कारण हम उन्हें युवा संवेदनशील साहित्यकारों में स्थान देते हैं। उनकी रचनाएँ हमें हमारे सामाजिक परिवेश पर विचार करने हेतु बाध्य करती हैं. मैं श्री सुजितजी की अतिसंवेदनशील  एवं हृदयस्पर्शी रचनाओं का कायल हो गया हूँ. पता नहीं क्यों, उनकी प्रत्येक कवितायें कालजयी होती जा रही हैं, शायद यह श्री सुजितजी की कलम का जादू ही तो है! आज प्रस्तुत है  उनकी एक भावप्रवण  एवं संवेदनशील  कविता “कर्जमाफी…”।   यह अकेली चिड़िया जीवन के  कटु सत्य को  अकेली अनुभव करती है , साथ ही अपने बच्चों को स्वतंत्र आकाश में उड़ते देखकर उतनी ही प्रसन्न भी होती है। यह कविता हमें और हमारे अंतर्मन को झकझोर कर रख देती है। कल्पना करिये जब कृषक आत्महत्या कर लेता है और कृषक के पुत्र को देवघर में लिखी चिट्ठी मिलती है तो पुत्र पर क्या गुजरती होगी। आप प्रत्येक गुरुवार को श्री सुजित कदम जी की रचनाएँ आत्मसात कर सकते हैं। ) 

☆ साप्ताहिक स्तंभ – सुजित साहित्य #38☆ 

☆ कर्जमाफी… ☆ 

बाबा तू जाण्याआधी

एका चिठ्ठीत लिहून

ठेवलं होतंस

मी देवाघरी जातोय म्हणून.. .

पण..

आम्हाला असं ..

वा-यावर सोडून

तो देव तरी तुला

त्याच्या घरात घेईल का…?

पण बाबा तू. . .

काळजी करू नकोस

त्या देवाने जरी तुला त्याच्या

घरात नाही घेतलं ना तरी

तू तुझ्या कष्टाने उभ्या केलेल्या

ह्या घरात तू

कधीही येऊ शकतोस

कारण .. . बाबा

आम्हाला कर्ज माफी नको होती

आम्हाला तू हवा होतास …!

आम्हाला तू हवा होतास …!

 

© सुजित कदम, पुणे

7276282626

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हिन्दी साहित्य- कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #23 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

आचार्य सत्य नारायण गोयनका

(हम इस आलेख के लिए श्री जगत सिंह बिष्ट जी, योगाचार्य एवं प्रेरक वक्ता योग साधना / LifeSkills  इंदौर के ह्रदय से आभारी हैं, जिन्होंने हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के महान कार्यों से अवगत करने में  सहायता की है। आप  आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के कार्यों के बारे में निम्न लिंक पर सविस्तार पढ़ सकते हैं।)

आलेख का  लिंक  ->>>>>>  ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी 

Shri Jagat Singh Bisht

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☆  कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे # 23 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट ☆ 

(हम  प्रतिदिन आचार्य सत्य नारायण गोयनका  जी के एक दोहे को अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास करेंगे, ताकि आप उस दोहे के गूढ़ अर्थ को गंभीरता पूर्वक आत्मसात कर सकें। )

आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे बुद्ध वाणी को सरल, सुबोध भाषा में प्रस्तुत करते है. प्रत्येक दोहा एक अनमोल रत्न की भांति है जो धर्म के किसी गूढ़ तथ्य को प्रकाशित करता है. विपश्यना शिविर के दौरान, साधक इन दोहों को सुनते हैं. विश्वास है, हिंदी भाषा में धर्म की अनमोल वाणी केवल साधकों को ही नहीं, सभी पाठकों को समानरूप से रुचिकर एवं प्रेरणास्पद प्रतीत होगी. आप गोयनका जी के इन दोहों को आत्मसात कर सकते हैं :

दुःख नाम आसक्ति का, मूल बात यह जान । 

अनासक्ति से दुख मिटें, धर्म मूल पहचान  ।। 

– आचार्य सत्यनारायण गोयनका

#विपश्यना

साभार प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य # 39 – कितना बचेंगे …… ☆ डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

डॉ  सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(अग्रज  एवं वरिष्ठ साहित्यकार  डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी  जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से  लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं।  आप प्रत्येक बुधवार को डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ  “तन्मय साहित्य ”  में  प्रस्तुत है  अग्रज डॉ सुरेश  कुशवाहा जी  की  हमें जीवन के कटु सत्य से रूबरू करता एक गीत  “कितना बचेंगे…..जो आज भी समसामयिक  एवं विचारणीय  है । )

☆  साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य  # 39 ☆

☆ कितना बचेंगे….. ☆  

 

काल की है अनगिनत

परछाईयाँ

कितना बचेंगे।

 

टोह लेता है, घड़ी पल-छिन दिवस का

शून्य से सम्पूर्ण तक के  झूठ – सच का

मखमली है पैर या कि

बिवाईयां है

चलेंगे विपरीत, सुनिश्चित है

थकेंगे  ।  काल की…….

 

कष्ट भी झेले, सुखद सब खेल खेले

गंध  चंदन  की, भुजंग मिले  विषैले

खाईयां है या कि फिर

ऊंचाईयां है

बेवजह तकरार पर निश्चित

डसेंगे  । काल की………….।

 

विविध चिंताएं, बने चिंतक सुदर्शन

वेश धर कर  दे रहे हैं, दिव्य प्रवचन

यश, प्रशस्तिगान संग

शहनाईयां है

छद्म अक्षर, संस्मरण कितने

रचेंगे  । काल की…………..।

 

लालसाएं लोभ अतिशय चाह में सब

जब कभी ठोकर  लगेगी, राह में तब

छोर अंतिम पर खड़ी

सच्चाइयां है

चित्र खुद के देख कर खुद ही

हंसेंगे  ।

काल की है अनगिनत परछाईयाँ

कितना बचेंगे।।

 

© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

जबलपुर, मध्यप्रदेश

मो. 989326601

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – हौसला ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – हौसला  ☆

अपने दुखों से पूछा मैंने-

क्या तुम असीम हो?

उनकी आँखों में

भय उतर आया,

विस्मित मैंने देखा चारों ओर,

अपने पीछे, अपने

हौसले को खड़ा पाया!

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ सजल ☆ श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि‘

श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’  

श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’ जी  एक आदर्श शिक्षिका के साथ ही साहित्य की विभिन्न विधाओं जैसे गीत, नवगीत, कहानी, कविता, बालगीत, बाल कहानियाँ, हायकू,  हास्य-व्यंग्य, बुन्देली गीत कविता, लोक गीत आदि की सशक्त हस्ताक्षर हैं। विभिन्न पुरस्कारों / सम्मानों से पुरस्कृत एवं अलंकृत हैं तथा आपकी रचनाएँ आकाशवाणी जबलपुर से प्रसारित होती रहती हैं। आज प्रस्तुत है  अतिसुन्दर गीत  “सजल ।  इस अतिसुन्दर गीत के लिए श्रीमती कृष्णा जी बधाई की पात्र हैं।)

☆ सजल ☆

 

प्रिया तुम्हारे प्यार में, बनने लगे कबीर

बढ़ती हैं पींगें नयी, मनवा हुआ अधीर

 

आँखें अपलक जोहतीं, बाट गगन के तीर

सूनी राहें देख के, नयन बहाएँ नीर

 

हरिदर्शन पाऊँ भला, कहाँ हमारे भाग्य

उर में छवि घनश्याम की, मनवा धरे न धीर

 

काव्य कला समझे नहीं, नहीं शिल्प का ज्ञान

भाव – भाव  सुरभित सुमन, शब्द – शब्द में पीर

 

जीवन जीने की कला, रखें संतुलित दृष्टि

रखें धीर दुख में, रहें सुख में भी गंभीर।

 

© श्रीमती कृष्णा राजपूत  ‘भूमि ‘

अग्रवाल कालोनी, गढ़ा रोड, जबलपुर -482002 मध्यप्रदेश

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हिन्दी साहित्य- कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #22 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

आचार्य सत्य नारायण गोयनका

(हम इस आलेख के लिए श्री जगत सिंह बिष्ट जी, योगाचार्य एवं प्रेरक वक्ता योग साधना / LifeSkills  इंदौर के ह्रदय से आभारी हैं, जिन्होंने हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के महान कार्यों से अवगत करने में  सहायता की है। आप  आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के कार्यों के बारे में निम्न लिंक पर सविस्तार पढ़ सकते हैं।)

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☆  कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे # 22 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट ☆ 

(हम  प्रतिदिन आचार्य सत्य नारायण गोयनका  जी के एक दोहे को अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास करेंगे, ताकि आप उस दोहे के गूढ़ अर्थ को गंभीरता पूर्वक आत्मसात कर सकें। )

आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे बुद्ध वाणी को सरल, सुबोध भाषा में प्रस्तुत करते है. प्रत्येक दोहा एक अनमोल रत्न की भांति है जो धर्म के किसी गूढ़ तथ्य को प्रकाशित करता है. विपश्यना शिविर के दौरान, साधक इन दोहों को सुनते हैं. विश्वास है, हिंदी भाषा में धर्म की अनमोल वाणी केवल साधकों को ही नहीं, सभी पाठकों को समानरूप से रुचिकर एवं प्रेरणास्पद प्रतीत होगी. आप गोयनका जी के इन दोहों को आत्मसात कर सकते हैं :

पराधीन को सुख कहाँ? सुख भोगे स्वाधीन । 

जो सुख चाहे होश रख, मत हो विषयाधीन ।।

– आचार्य सत्यनारायण गोयनका

#विपश्यना

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